रचनाकारों, कलाकारों, प्रतिभाशाली लोगों और उत्कृष्ट कार्य करने वाली शख्सियतों को प्रोत्साहित करने का विशेष मंच।
गुरुवार, नवंबर 25, 2021
💢 अंतस की सुंदरता 💢
💢 व्यवहार अक्सर सौन्दर्य को तय करता है 💢
व्यवहार अक्सर सौन्दर्य को तय करता है
💢 सुंदरता 💢
💢सौंदर्य बोध 💢
बुधवार, नवंबर 24, 2021
💢 मधुसूदन 💢
मोर-मुकुट माथे पे धार्यो
मधुसूदन की मोहक मुस्कान पे
मीरा..मयूर सों चंचल मन वार्यो
सौंदर्य-ज्ञान जिसके पग चाँपे
तीन लोक अंगुरी पे धारें
बो बांकों तो रीझै केवल
करुण भाव-सरिता पे
जिसको रचकर
स्वयं कमलापति ने
बार-बार बलैयाँ ली
बलभद्र के उसी बालसखा ने
बल पे नहीं
प्रेम पे सगरी दुनिया नचा ली
सौंदर्य सौहे जब कृष्ण सरीखो
कालातीत हो
स्नेह रस भीजै
श्याम वरण
सलोने श्रीमुख पर
सुर-नर सगरे क्यूँ नाही रीझै
💢 दिखावटी दुनिया 💢
माया उसे ध्यान से देखती हुई एक निश्चित दूरी पर आ कर रुक गई।
सुमन ? सुमन नाम है ना तुम्हारा ? माया ने पूछा। जी, सुमन ने झेंपते हुए हामी भरी, जैसे कि उसका नाम सुमन होना कोई शर्म की बात है। माया ने मास्क के भीतर से ही कुछ ऊंची आवाज़ में कहा, यहां खाना रख रही हूं। जब इशारा करें तभी बैग उठाना। ठीक है ?
सुमन ने स्वीकृति में सर हिला दिया।
माया ने एक कपड़े का थैला जमीन पर रख दिया। सुमन उसे देखकर मन ही मन खुश हुई, अंदाजन पांच किलो वजन होगा,, उसने सोचा,और वह धीरे धीरे थैले तक पहुंच गई। उसने माया की तरफ देखा ,सुमन की आंखों की मुस्कुराहट को नजरंदाज करते हुए ,माया ने पीछे खड़े फोटोग्राफर को इशारा किया।
सुमन ने धीरे से झुक कर थैला उठा लिया।
फोटो में माया पैकट देते हुए,और सुमन पैकेट लेते हुए, खूबसूरती से कैद हो गए। फोटोग्राफर अपना काम खतम करके सड़क किनारे खड़ी कार की तरफ माया मैडम के साथ विचार विमर्श करते हुए,चल पड़ा।
उनकी आज की पोस्ट का फोटो तैयार था।
रोज कोरोना पीड़ितों को मुफ्त खाना बांटने की मुहिम। अखबार में प्रकाशित होती माया की लोकप्रियता की मुहिम।
इधर सुमन ने अपने थैलों को संभाला और तेज कदमों से बस्ती की तरफ चल दी।
वहां उसे घरों में बंद बीमार लोगों को खाना देना था। बीमार, बेरोजगार, गरीब दिहाड़ी मजदूर, जो लॉकडाउन में अपने घरों के भीतर भूखे और बेबस हैं, उन्हे खाना, राशन बांटती सुमन लोगों से आवाज़ लगाती, पूछती जाती थी, क्या लाऊं कल क्या चाहिए ? यहां खाना बांट कर सुमन को अस्पताल अपनी ड्यूटी पर भी जाना है।
दान मिला खाना बांटती सुमन का फोटो खींचने वाला कोई न था।
उसके मन की सुंदरता का प्रचार करने वाला कोई न था।
✍️ दिव्या सिंह ( द्वारका, नई दिल्ली )
💢 वास्तविक सौंदर्य 💢
💢 नारी की सुंदरता 💢
सुंदरता में लक्ष्मी रूप हैं नारी, आँखों में बसे हैं गहरे सागर।।
सुंदरता में सरस्वती रूप हैं नारी, मंजु वन में कंठ विद्या धुन में बसी आत्मा।।
सुंदरता में पार्वती रूप हैं नारी, सौभाग्य महाबला, शिव अर्धांगिनी।।
सुंदरता में सीता रूप हैं नारी, मर्यादा सहनशीलता की देवी।।
सुंदरता में अन्नपूर्णा रूप हैं नारी, खान पान का भंडार।।
सुंदरता में सावित्री रूप है नारी, पतिव्रता में कष्ट निवारणी गृह स्वामिनी ।।
सुंदरता में राधा रूप हैं नारी, प्रेम स्नेह की कोमल छवि।।
सुंदरता में मीरा रूप है नारी, प्रेम भक्ति लीन की योगिनी।।
सुंदरता में मदर-टेरेसा रूप है नारी, सेवा-साधन की पहचान।।
शक्ति में काली, दुर्गा, चंडी रूप अवतार हैं नारी।।
नारी है, सम्पूर्ण विश्व विधाता की सुंदरता।।
सुंदरता इस बात पर निर्भर करती हैं, जिसके मन में कैसी सोच हैं।।
सुंदरता में मन और दिल को देखना,
चेहरे की सुंदरता आँखों में समाती हैंं, स्वभाव की सुंदरता हृदय में बसती हैंं
सुंदरता देखने वालों के नज़र में होती,
अगर सोच खूबसूरत हैं, तो ईश्वर की हर कृति सुंदर नजर आती हैं।।
सुन्दर होते हैं इंसान के कर्म, विचार और वाणी, व्यवहार और संस्कार,
जिससे जीवन में सब कुछ है,
असल दुनियाँ में सब से सुन्दर रचना इंसान का मन है।।
नारी की सुंदरता में गोरे या काले रंग की त्वचा में भेदभाव ना हो,
नारी की सुंदरता में समाए सारे गुण,
नारी खुद पर विश्वास रखती हैं और दृढ़ संकल्प से आगे बढ़ती।।
चट्टान जैसी मजबूत होते और वृक्ष सी सृजनशील होती ओस के बूँद सी चमक से चमकती।।
फूल सी कोमल, नाजुक होती, चिड़ियाँ सी हौसलों से बुलंद उड़ान भरती।।
नदी जैसे चंचल मन से सभी के मन में रहती, समुद्र जैसे विशाल हृदय में सब समेट कर रखती है।।
नारी हैं सुंदर, सुंदरता हैं नारी।।
✍️ अर्चना वर्मा ( क्यूबेक, कनाडा )
💢 एक अनमोल बंधन 💢
दोस्तों की दोस्ती बहुमूल्य अलंकरण है। दोस्ती बहुत ही खूबसूरत शब्द है जो अपने आप में मानो परिपूर्ण तथा सभी रिश्तो एवं भावों को समेट हुए हैं।
मंगलवार, नवंबर 23, 2021
पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित 'सुंदरता' विषय पर आधारित ऑनलाइन 'साहित्यिक प्रतियोगिता' के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।
पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर ऑनलाइन "साहित्यिक प्रतियोगिता" का आयोजन किया गया। जिसका विषय 'सुंदरता' रखा गया। इस प्रतियोगिता में अर्चना वर्मा ( क्यूबेक, कनाडा ) की प्रतिभागिता ने एक ओर जहां इस राष्ट्रीय स्तरीय प्रतियोगिता को अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता बना दिया तो वहीं दूसरी ओर देश के अलग-अलग राज्यों के प्रतिभागी रचनाकारों ने भी एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट 'सुंदरता' विषय पर आधारित अपनी रचनाओं को प्रस्तुत कर प्रतियोगिता के स्तर को काफी ऊंचा उठा दिया। समूह के निर्णायकों द्वारा रचनाओं की उत्कृष्टता और रचनाकारों द्वारा रचनाओं में प्रस्तुत की गई हृदयस्पर्शी भावनाओं के आधार पर कुसुम अशोक सुराणा ( मुंबई, महाराष्ट्र ), अर्चना वर्मा ( क्यूबेक, कनाडा ) और सरला सोनी "मीरा कृष्णा" ( जोधपुर, राजस्थान ) को ऑनलाइन "पुनीत सर्वश्रेष्ठ रचनाकार" सम्मान देकर सम्मानित किया गया तथा अन्य प्रतिभागी रचनाकारों को ऑनलाइन "पुनीत श्रेष्ठ रचनाकार" सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस प्रतियोगिता में अपनी रचना प्रस्तुत कर समूह की शोभा बढ़ाने वालोे में प्रमुख नाम कुसुम अशोक सुराणा, अर्चना वर्मा, सरला सोनी "मीरा कृष्णा", सुनीता सोलंकी 'मीना', चंचल जैन, डाॅ० ऋतु नागर, दिव्या सिंह, मीता लुनिवाल, लीना प्रिया रचनाकारों के रहे। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने सभी सम्मानित रचनाकारों को बधाई तथा शुभकामनाएं दी और कहा कि पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह इसी तरह आगे भी ऑनलाइन 'साहित्यिक प्रतियोगिताओं' के माध्यम से रचनाकारों को अपनी साहित्यिक प्रतिभा दिखाने का अवसर प्रदान करता रहेगा तथा नए रचनाकारों को साहित्यिक मंच उपलब्ध करवा के साहित्य के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता रहेगा। उन्होंने समूह द्वारा आयोजित ऑनलाइन साहित्यिक कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए हिंदी रचनाकारों को सादर आमंत्रित भी किया।
सोमवार, नवंबर 15, 2021
पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित ऑनलाइन 'बाल दिवस साहित्यिक महोत्सव' के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।
पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा बाल दिवस के उपलक्ष्य में ऑनलाइन "बाल दिवस साहित्यिक महोत्सव" का आयोजन किया गया। जिसका 'विषय - बचपन के खेल, सपने और इच्छाएं' रखा गया। इस महोत्सव में इंदु नांदल (बावेरिया, जर्मनी ) सहित देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकारों ने भाग लिया तथा एक से बढ़कर एक बेहतरीन बचपन विशेष और बाल दिवस से संबंधित रचनाओं को प्रस्तुत कर ऑनलाइन बाल दिवस साहित्यिक महोत्सव में चार चाँद लगा दिए। इस महोत्सव में कुसुम अशोक सुराणा (मुंबई, महाराष्ट्र), निर्मला कर्ण (राँची, झारखण्ड) और इंदु नांदल (बावेरिया, जर्मनी) की रचनाओं ने सभी का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित किया। इस महोत्सव में सम्मिलित सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन "पुनीत बाल साहित्य सुमन" सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने भारत देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू जी को नमन करते हुए देश के सभी बच्चों को बाल दिवस की शुभकामनाएं दी और महोत्सव में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन तथा उत्साहवर्धन किया। उन्होंने कहा कि समूह आगे भी इसी तरह से विभिन्न पर्वों एवं विशेष दिवसों के अवसर पर ऑनलाइन साहित्यिक महोत्सव आयोजित करता रहेगा तथा नए रचनाकारों को अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए ऑनलाइन साहित्यिक मंच उपलब्ध कराता रहेगा। इस महोत्सव में उत्कृष्ट रचना प्रस्तुत करके समूह की शोभा बढ़ाने वालों में प्रमुख नाम कुसुम अशोक सुराणा, चंचल जैन, सावित्री मिश्रा, निर्मला कर्ण, महेन्द्र जोशी, मीता लुनिवाल, इंदु नांदल, डॉ० ऋतु नागर, मंजू शर्मा, मुकेश बिस्सा, सुनीता सोलंकी 'मीना', सविता 'सुमन' रचनाकारों के रहे।
शनिवार, नवंबर 13, 2021
🕺बचपन होता कोमल निर्मल चंचल🕺
🕺कभी ना जाए मेरा बचपन🕺
कभी ना जाए मेरा बचपन
उमर साठ की हो या हो पचपन
कभी ना जाए मेरा बचपन
कभी कभी अकेले में
जी चाहे खूब नाचूँ
बुला लूँ देकर आवाज
जोर से चिल्लाऊँ
हाँ वैसे ही खुश हो जाऊँ
जैसे खाली कमरे में अपनी ही
आवाज की प्रतिध्वनि सुनकर
बार बार चिल्लाना
हाँ कितना भाता था
तितलियों को पकड़ बांध
धागे में उठाना
कितना प्यारा लगता था
कोयल की कूक में आवाज मिलाना
कभी बिल्लियों को चिढ़ाना
कभी बंदर सा मुंह बनाना
पेडो़ं की डाली पर झूले
परियों के किस्से में
सबक स्कूल की भूले
गिल्ली डंडा खोखो कबड्डी
खेल कितने थे प्यारे
कितना प्यारा था
माँ के आंचल का कोना
चिपक कर माँ के साथ सोना
दादी की मजेदार कहानी
एक था राजा एक थी रानी
सचमुच बचपन कितना सुहाना
खुशियों का होता खजाना
🕺बचपन की अठखेलियां🕺
शुक्रवार, नवंबर 12, 2021
🕺काग़ज़ की नाव🕺
जो बनाते थे हम अपने बालपन में
🕺नटखट बचपन🕺
बीते न अलबेला बचपन।
छोटे-छोटे सुन्दर सपने,
हकीकत से दूर, अनजाने।
मिट्टी के खिलौने, लुभावने,
प्यारे-प्यारे रंगीन, सुहावने।
प्रकृति मां की छांव शीतल,
दुलार का हरियाला आँचल।
कागज की छोटी-सी कश्ती,
बारिश बूंदों की मौज मस्ती।
धमाल, शोर शराबा, उल्लास चहके,
गूंजे उन्मुक्त, निश्छल हंसी ठहाके।
खिलखिलाती रहें सदा खुशियां,
रंगरंगीली, मतवाली अठखेलियां।
सखा, मित्रोंसंग खेले खूब जी भर,
आनंद ,उल्लास से नाचे मनमोर।
मासूम को नहीं चाह महंगे खिलौनों की,
खिलौने स्टेटस सिंबल, चाह दिखावे की।
बेशकीमती खिलौने, केवल दर्शनीय कृतियों से,
आनंद ढूंढें भी कभी,नहीं मिलता खेलने से।
महज शो केस की शोभा ये खिलौने होते हैं,
चारदीवारी में कैद सपने सतरंगे होते हैं।
खेलने दो बच्चों को पंछियों से हो उन्मुक्त,
उनकी अपनी परिधि में, हो भय मुक्त।
मुस्कुराने दो अपने हमउम्र साथियों के संग,
जीवन में सजाने दो विविध, नवल ऋतु रंग।
खेलने दो खुले मैदानों में, खेत, खलिहानों में,
लहराते पवन संग, नव तरंग, उमंग सहेजते।
पर्वत की गगन छूती उत्तुंग चोटियों पर,
वृक्षों की फल-फूल लदी डालियों पर।
उछलते, कूदते, आनंदोत्सव मनाते बच्चे,
भोले-भाले प्रभु से दिल के होते हैं सच्चे,
गिल्ली-डंडा, छुपम-छुपाई,
लंगड़ी, खो खो, नित नई नवलाई।
न सिर्फ गुड़िया, ड्रोन, इलेक्ट्रॉनिक्स,
कंप्यूटर, मोबाइल, विडिओ गेम्स।
सब कुछ हो रहा हैं ऑनलाइन,
और पालनाघर में सिसक रहा बचपन।
होश, जोश की उम्र आते-आते,
न जाने कब मशीन का पुर्जा बन जाते।
छोटा-बड़ा, अमीर-गरीब, ऊंच-नीच,
न मन में कोई भेदभाव, न कोई खिचखिच।
खुशियां छितराना चाहता है भोला बचपन,
जैसे कोई खिला खिला गुलजार गुलशन,
फूलों की तरोताजगी, चाहता हैं अल्हड़पन,
दीपित होना हैं तेजस सूरज-सा, चांद सितारों-सा,
ख़ूबसूरत सुनहरा दमकता भविष्य चाहता हैं,
आज बालमन वर्तमान बेफिक्र हो जीना चाहता हैं,
मासूम बचपन जी भर हंसी ख़ुशी जीना चाहता हैं।
फूलों-सा महकना, पंछियों-सा चहकना चाहता हैं,
पर्यावरण मित्र बन, खुलकर मुस्कुराना चाहता हैं।
🕺भरोसा🕺
देखो कितना यह हृष्ट-पुष्ट है
यह कुत्ता तो बड़ा दुष्ट है
🕺बाल दिवस मनाए कैसे ?🕺
बालक अधिकार माँग रहा,
गली, चौराहों और सड़कों पर,
बड़ी-बड़ी कमीशन बैठी,
मिला ना बालक को मुट्ठी भर।
बाल दिवस मनाए कैसे ?
जब 70% पीड़ित हैं,
रतन जड़ा आज कोट पर,
109 बालक रोज उत्पीड़ित हैं।
कलम बहुत ही क्रोधित हैं,
लिखना ना चाहे रत्ती भर,
जब 90% पीड़ित बच्चे,
सिसकी भरते अपने ही घर।
मुलभूत सुविधा से वंचित,
ना नृत्य ना नाटक होगा,
कांटों पर चला जो बचपन तो,
भविष्य में तांडव ही होगा।
प्रीत-रीत बदलना होगा,
हर बालक की ख़ातिर लड़ना होगा,
स्वतंत्र भारत के भविष्य की ख़ातिर,
सबको मिलकर बढ़ना होगा।
✍️ मंजू शर्मा ( सूरत, गुजरात )
🕺काग़ज़ की कश्ती🕺
भरी है इसमें बचपन की मस्ती।
आया सावन नदियाँ भर गईं,
बच्चों की काग़ज़ की नाव ब
हाथों में लेकर भागे सब नाव,
धरती पर नही पड़ रहे थे
बचपन की गलियों में खेल रहे थे बच्चे ,
आनंद उनके लग रहे थे कि
हिलती-डुलती हिचकोले खाती लगी नाव तैरने,
देख तैरती अपनी नाव बच्चों
ये नज़ारा जैसे इक सपना था,
दिखा रहा मेरा बचपन था।
मैंने भी इक नाव बनाई,
जाकर बच्चों संग चलाई।
एक अद्भुत ख़ुशी मैंने पाई,
जब अपने बचपन से आँख मिलाई।
काग़ज़ की नाव चली,
गाँव चली,
कभी शहर चली।
गलियों से गुज़रती,
पल भर न ठहरती।
गड्ढों से निकलती,
पत्थरों पर उछलती।
मंज़िल पाने में हुई मनचली,
काग़ज़ की नाव चली,
गाँव चली,
कभी शहर चली।
बच्चों ने इक सीख सिखा दी,
सच्चे ख़ज़ाने की पहचान करा दी।
बह रही थी काग़ज़ की नाव,
जगा रही थी सोए भाव।
देख नज़ारा ये मैं खो गई,
भूलभुलैया सी ज़िंदगी में
तभी सुनाई दी बच्चों की किलकारियाँ,
कूद रहे थे सब, साहिल पा गईं थी कश्तियाँ।
✍️ इंदु नांदल ( बावेरिया, जर्मनी )
पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा आयोजित ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।
पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा लोगों को स्नेह के महत्व और विशेषता का अहसास करवाने के उद्देश्य से ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव का आयोजन किया गया...
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjpF5dcMgycu4Z3yajZOMYW2wpb4fCgYEvbo8BXkhVG_VY_oB2yC6ml71pz-BvJsDiybhiKFnlxu3GwWlR2hfK1ABFKcc6z_uy3oqxZZXnPWgNvhhdIeF4x1RS5RoA20T-A4vv2FXXdxZdLb2qKZxugNQPFUJbsmazErMA9q6a3_CJizjopmVdOnD-jgGpZ/s320/IMG_20240321_165746.jpg)
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बन जाते हैं कुछ रिश्ते ऐसे भी जो बांध देते हैं, हमें किसी से भी कुछ रिश्ते ईश्वर की देन होते हैं कुछ रिश्ते हम स्वयं बनाते हैं। बन जाते हैं ...
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जीवन में जरूरी हैं रिश्तों की छांव, बिन रिश्ते जीवन बन जाए एक घाव। रिश्ते होते हैं प्यार और अपनेपन के भूखे, बिना ममता और स्नेह के रिश्ते...
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हे प्रियतम ! आपसे मैं हूँ और आपसे ही मेरा श्रृंगार......। नही चाहिए मुझे कोई श्रृंगार-स्वर्ण मिल जाए बस आपका स्नेह.. ...