सोमवार, फ़रवरी 28, 2022

📖 पतिदेव का ज्ञान 📖








उन्हें अपने पास बुलाया
धीरे से फरमाया
सुनिए जी
मेरी उम्र अब 
बढ़ती जा रही है 
सेहत भी देखो 
गिरती जा रही है।

कब तक दुपहिए पर 
रहूंगी सवार 
ले दीजिए ना 
मुझे भी एक कार
कभी तो जताइए न 
आप भी करते हैं 
मुझसे प्यार।

पतिदेव लगे मुस्काने
फिर ज्ञान की गंगा लगे बहाने
बोले 
मेरी प्राणेश्वरी 
मैं करता हूं स्वीकार 
मुझे तुमसे है बहुत प्यार।

ये कार तो है बेकार
दुपहिया
मोह माया है 
उम्र और सेहत के साथ
वजन भी बढ़ रहा है प्यारी।

ऐसा करो
तुम दुपहिए की छोड़ो सवारी
और पैदल चलने की 
करो तैयारी
इतने ज्ञान के बाद 
कार के सपने चूर हुए
हम दुपहिए पर ही 
चलने को मजबूर हुए।

         ✍️ निरुपमा बिस्सा ( दुर्ग, छत्तीसगढ़ )

शनिवार, फ़रवरी 26, 2022

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित ऑनलाइन वक्त सशक्त साहित्यिक महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार 'पुनीत साहित्य सुधा' सम्मान से सम्मानित।

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा वक्त के महत्व‌ तथा उपयोगिता को दर्शाने के उद्देश्य से ऑनलाइन वक्त सशक्त साहित्यिक महोत्सव का आयोजन किया गया। जिसका विषय 'वक्त का महत्व' रखा गया। इस महोत्सव में देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकारों ने भाग लिया, जिन्होंने एक से बढ़कर एक वक्त के महत्व तथा उपयोगिता पर आधारित अपनी रचनाओं को प्रस्तुत कर महोत्सव की शोभा में चार चाँद लगा दिए। इस महोत्सव में सम्मिलित सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन 'पुनीत साहित्य सुधा' सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने महोत्सव में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन तथा उत्साहवर्धन किया एवं सम्मानित होने वाले रचनाकारों को बधाई व शुभकामनाएं दी और वक्त की उपयोगिता का वर्णन करते हुए कहा कि मनुष्य के जीवन में वक्त बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में वक्त की अहमियत को समझते हुए प्रत्येक काम सही वक्त पर कर लेना चाहिए ताकि उन्हें सफलता सुगमता से प्राप्त हो सके। इसके साथ ही उन्होंने समूह द्वारा आयोजित होने वाले विभिन्न ऑनलाइन साहित्यिक कार्यक्रमों में सम्मिलित होने के लिए हिंदी रचनाकारों को सादर आमंत्रित भी किया। इस महोत्सव में उत्कृष्ट रचना प्रस्तुत करके समूह की शोभा बढ़ाने वालों में प्रमुख नाम चंचलिका शर्मा, डाॅ. ऋतु नागर, कुसुम अशोक सुराणा, चंचल जैन, सावित्री मिश्रा, सुनीता सोलंकी 'मीना', रेखा रतनानी, निरुपमा बिस्सा, स्मिता सिंह चौहान, मीता लुनिवाल रचनाकारों के रहे।




शुक्रवार, फ़रवरी 25, 2022

⏲️ वक्त का महत्व ⏲️








वक्त का क्या है वो तो गुजर ही जाता है,
वक्त गुजरने से पहले जो संभल जाता है।

जीवन में फिर वो आगे निकल जाता है,
वक्त के अनुसार जो खुद को ढाल लेता है।

जैसे बच्चा खेल में मिट्टी मुँह मे डाल लेता है,
वैसे ही वो हर मुश्किलों को निगल जाता है।

वक्त कभी नहीं रुकता अच्छे अच्छों को झुकाता,
वक्त गुजरने से पहले जो संभले वो आगे बढ़ जाता।

इतिहास गवाह है वक्त गुजरने के बाद कुछ ना पाया,
वक्त गुजरने से पहले जो चला उसी ने है नाम कमाया।

वक्त से पहले न किसी को कुछ मिला न भाग्य से ज्यादा,
तन-मन से जो मेहनत करेगा वही नया इतिहास रचेगा।

वक्त का महत्व क्या ये तो आने वाला वक्त बताएगा,
होगा हौंसला जिसमें वही अपने सपनो को पाएगा।

इसलिए सदा वक्त का करो मान यदि पाना है सम्मान,
वक्त के साथ कदम बढ़ाकर जीवित रखो स्वाभिमान। 

                   ✍️ सावित्री मिश्रा ( झारसुगुड़ा, ओड़िशा )


गुरुवार, फ़रवरी 24, 2022

⏲️ वक्त पर नही अपनी पकड़ ⏲️









भींच लो मुठ्ठी में हर शय,
बिगड़े न जिंदगी की लय।
कल की क्यों मनवा फिक्र ?
आज का हो सिर्फ जिक्र।
अनमोल, अद्वितीय हर पल,
जिंदगी बना दो सफल।
लक्ष्य का सदा रहे ध्यास,
कामयाबी की जिंदा रहे प्यास।
मनुज जन्म हैं बहुमूल्य,
बनाओ उसे अमृत तुल्य।
जीवन में पूनम हो या अमावस,
कुंदन सा हो जीवन का कस।
पल-पल महके जीवन उपवन,
नवरंगों से सजेगा जीवन।
सायों की गिरफ्त में हो कानन,
या रश्मियों सजा-धजा गगन।
अनुभव की भट्टी में तपेगा यौवन,
फौलाद सा निखरेगा जीवन।
वक्त पर है नही अपनी पकड़,
रख लो उम्मीदों से जकड़।
कौन पल आएगा बुलावा,
वक्त ठहर कर करेगा छलावा।
बिखर जाएगी उम्मीदों की बस्ती,
जिंदगी न बन जाए सस्ती।
लूट लो जी-जान से मस्ती,
फिर भले ही मिट जाए‌ पल में हस्ती।
      
✍️ कुसुम अशोक सुराणा ( मुंबई, महाराष्ट्र )


⏲️ बीते पल ⏲️




 



बीते हुए पल कभी लौट कर नही आते, 
 आज भी जब मायके की देहरी पर पाँव रखती हूँ,
 तो सारा बचपन आंखों के समक्ष घूम जाता है,
 चाहे-अनचाहे आंसू ढुलक जाते हैं,
 वह बचपन की गलियां,
 वह बचपन की बेफिक्री,
 वह सखियों के साथ घंटों बातें बनाना, 
 घंटों किताबों में खोए रहना,
 वह माँ के हाथों का लजीज खाना,
 बाबा का प्यार से माथा सहलाना,
 वह होली-दिवाली पर घर की रौनक,
 वह भाई-बहनों की धमा-चौकड़ी,
 आज ख्वाहिशों की लंबी क्रमसूची बनी है,
 रात दिन का चैन ओ सुकून नही है,
 काश ! वह बचपन के पल फिर से वापस आ जाएं,
 चाह कर भी उन पलों को वापस नही ला पाती,
 कैद है पर आज भी मेरे स्मृति पटल पर, 
 बचपन के वो बीते हुए पल।

                                 ✍️ डॉ. ऋतु नागर ( मुंबई, महाराष्ट्र )

⏲️ वक्त का पहिया ⏲️








वक्त बेवक्त यह वक्त सताता है
ये वक्त ही वक्त की कीमत बताता है
वक्त की कद्र करले बंदे 
वक्त की कद्र ना करके 
वक्त के आगे तू अपनी क्यूं कद्र गंवाता है
वक्त बेवक्त यह वक्त सताता है
ये वक्त ही वक्त की कीमत बताता है

ये वक्त ही तो है 
जो मुफ्त में जिंदगी का पाठ पढ़ाता है
पर मुफ्त में मिली चीज की 
तू बड़ी कीमत चुकाता है
वक्त बेवक्त यह वक्त सताता है 
ये वक्त ही वक्त की कीमत बताता है।

एक चेहरे के पीछे छुपे 
कई चेहरों के पर्दे 
ये वक्त ही तो हटाता है
कौन अपना, कौन पराया है 
वक्त आने पर ये वक्त ही बताता है
वक्त बेवक्त ये वक्त सताता है 
ये वक्त ही वक्त की कीमत बताता है।

करता जा तू नेक काम वक्त-वक्त पे
कुछ खुशियां तेरे बुरे वक्त पे
वापस यह वक्त तुझे दे जाएगा
यह वक्त है साहेब 
अच्छा हो या बुरा 
वक्त सबका आएगा
ये वक्त का पहिया है 
घूम-फिर कर वापस सब लौटाता है
वक्त बेवक्त ये वक्त सताता है 
ये वक्त ही वक्त की कीमत बताता है।

                                  ✍️ रेखा रतनानी ( नर्मदापुरम, मध्य प्रदेश )



⏲️ ऐ वक्त ⏲️



          
           



           

ऐ वक्त, तुझसे बस 

इतनी सी मेरी गुज़ारिश है ....


ग़म के पलों में भी

उतनी ही देर ठहरना 

अगले पलों में खुशियों को

जी भर महसूस कर सकें.... 


वक्त लगता है 

रिश्तों को समझकर

साथ-साथ रहकर

साथ निभाने में..... 


कहीं वक्त लगता है

दूरियों को नज़दीकियों

और नज़दीकियों को 

दूरियों में बदलने में.... 


ख़बर है वक्त के पहले

कुछ नहीं मिलता है 

और वक्त के गुज़रते ही 

दोबारा कुछ नही बदलता है... 

 

लम्हा-लम्हा जुड़कर भी

दो पल कही ठहरता नहीं 

 टूटते जुड़ते लहरों से उफ़नते

 वक्त यहीं से गुज़रता है...  


        ✍️ चंचलिका शर्मा ( वडोदरा, गुजरात )


⏲️ वक्त कभी मिला नही ⏲️








वक्त
कभी मिला ही नही
उसे
अपने लिए।

बचपन की 
पगडंडी पर
बाबा के
सपनों की लाठी
थामकर चली थी।

जवानी की 
दहलीज पर
अम्मा ने 
संस्कारों की 
पोटली बांध 
विदा कर दिया था।

रिश्तों के 
दायरे
बढ़ने लगे तो 
जिम्मेदारियों ने 
भी पर फैलाए।

फूल जब खिले 
बसंत का आभास था
एक बार फिर 
अपने आप को
दुछत्ती पर रख 
वो बगिया 
संवारने लगी।

सपने पूरे हुए
संस्कार निभाए गए
रिश्ते भी 
फले फूले
बगिया 
आज हरी भरी है।

आज
बाबा के सपने
अम्मा के संस्कार
रिश्ते 
जिम्मेदारियां
बगिया
हर एक चीज
सही ठिकाने पर है।

बस
वो खुद
कहीं खो गई है।

उम्र के इस छोर पर
खड़ी होकर 
सोच रही है 
कितना वक्त 
बीत गया 
मगर
वक्त कभी
मिला ही नहीं
मुझे 
अपने लिए।

✍️ निरुपमा बिस्सा ( दुर्ग, छत्तीसगढ़ )



⏲️ लम्हों की सौगात जिंदगी ⏲️


लम्हों की सौगात है ये जिंदगी,

पलो मे सिमटी इस सफर की बंदगी।

हर क्षण का रूतबा, एक मुकम्मल तस्वीर हरसू।
एक पल में जीवन, एक में मृत्यु।

पलों के बीच मे मुख्तसर, सबकी अपनी कहानी है,
खुशी और गमो की तहों में, लिपटी जिंदगानी है।

कर्मो का कारवां, चल रहा बदस्तूर
नियति बनती जा रही, हर पल के कर्मों की तस्वीर।

एक जीवन मे अनंत लम्हों का सफर,
हर लम्हा किमती, हर पल तकदीर से चुराया हुआ कोहिनूर।

जो समझा हर पल का मोल, वही जी पाया है,
इंसान को इंसान बनने का खिताब वक्त ही दे पाया है।

खुद के कर्मो के फलसफे से ही, वक्त अपना और पराया है,
लेकिन तूने ऐ बन्दे ! नाइंसाफियो का इल्जाम भी वक्त पर लगाया है।

चलो एक बार कर्मो का करार वक्त के साथ करते है,
लोग जीकर मरते है, हम मरकर जीते है।

                        ✍️ स्मिता सिंह चौहान ( गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश )


मंगलवार, फ़रवरी 22, 2022

⏲️ समय का खेल ⏲️







चारों ओर कैसी हवा, कैसा दृश्य है
आज समय से पहले सब व्यस्क है

समय का पहिया जब चले
किस ओर, किस दिशा चले
काल चक्र में फंसकर सृष्टि
प्रहार झेलती कितने कुदृष्टि

संतुलन बनाना सच आवश्यक है
आज समय से पहले सब व्यस्क है

दिन रात मेहनतकश जो लोग
कितने आघात इन्हें कितने रोग
जीवन दोपहर भी ढ़ली बेकार
कर रहे बैठ सुबह का इंतजार

हर किसी को कहाँ सब मयस्सर है
आज समय से पहले सब व्यस्क हैं

जीवन संध्या के काल पहर में
सब कुछ घूम रहा जब ज़हन में
शाम धुंधली के राही ठहर जा
इस पल में बस जीवन जी जा

जीवन उसी का जो ख़ुद सक्षम है
आज समय से पहले सब व्यस्क है

हर पहर, हर घड़ी किसका इंतजार
ये इंतजार ही तो प्रिय मौत समान
यूँ जीवन खाली समाप्त ना करना
जब आएगी कयामत तभी मरना

बुरे क्षण भले क्षणिक पर भक्षक हैं
आज समय से पहले सब व्यस्क है

कोई क्षण नही कि सूकून मिला
जो मिला उससे अधिक है दिया
क्या शिकायत और कैसा गिला
सुनने वाला कभी कोई न मिला

लम्हों की सौगात बड़ी अनमयस्क है
आज समय से पहले सब व्यस्क है

             ✍️ सुनीता सोलंकी 'मीना' ( मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश )

⏲️ वक्त हो अपना ⏲️








वक्त कभी अपना,

कभी बेगाना-सा,

वक्त के संग मिला दो अपना सुर, लय, ताल,

जीवन संगीत सुरमई सरगम सा हो जाएगा।


वक्त के संग मुस्कुराना,

वक्त पर वक्त की परवाह करना,

गम दर्द में भी खिलखिलाकर हंसना सीखाएगा,

वक्त मेहरबान होगा तो जीना आसान हो जाएगा।


खुशी की शीतल छांव वक्त कभी,

गम की झुलसाती तेज धूप कभी,

जैसा वक्त होगा, अपने आपको जो ढाल देगा,

जीवन सफल, सार्थक उसी का हो जाएगा।


वक्त की नजाकत जो जान लेगा, 

वक्त बर्बाद न कर आगे बढ़ेगा,

वक्त की धारा को अपने हौसले से जो मोड़ देगा,

जग में जगमग प्रकाश ज्योत सा जगमगायेगा।


वक्त के साथ संभलकर चलो,

अपना मिजाज बदल आगे बढ़ो,

जिंदगी की जंग मानो सुहास, जीत ली उसने,

विजयपथ-सी जीने की राह खोज ली उसने।


वक्त पर काम आए, वह अपना,

वक्त अपना शुभ भाव ले आये,

वक्त न थमेगा, न रुकेगा, राही, साथ चलना हैं,

जीवन बहार की मुस्कुराहट का यह तराना हैं।


✍️ चंचल जैन ( मुंबई, महाराष्ट्र )



⏲️ वक्त ⏲️

 









ऐ वक्त ! अब तो थम जा
दो घड़ी तो रुक ज़रा
मैं जिन्दगी भर भागा हूँ
लगातार तेरे साथ-साथ।

अब कुछ तो मेरी उम्र का ख्याल कर
कब तक तेरे साथ यूँ ही भागता रहूँगा
ना दिन देखा ना रात बस काम-काम
नही रुकी मेरी तेरे साथ कदम ताल।

ना चैन से कभी भोजन किया ना आराम
ना कभी खुशियाँ ही ढंग से मना पाया
जन्मदिन बच्चे का चाहे, हो कोई त्यौहार 
रुका नही निरन्तर चलता रहा तेरे साथ।

अब में थक गया हूँ बूढ़ा भी हो गया 
शरीर नही देता साथ ना कोई अपना
सब तेरे साथ ही भाग रहे तू ना छूटे
ऐ वक्त ! तू बड़ा ही निष्ठुर है निर्दयी है।

नही तुझमे प्रीत, कितना साथ दिया तेरा
आज तूने ही सब कुछ छीन लिया मेरा
तेरी वजह से आज नही कोई मेरे साथ 
इसलिए अपनो को वक्त दो मानो बात।

            ✍️ मीता लुनिवाल ( जयपुर, राजस्थान )



रविवार, फ़रवरी 20, 2022

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित ऑनलाइन स्वप्न सुनहरे साहित्यिक महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार 'पुनीत उत्कृष्ट रचनाकार' सम्मान से सम्मानित।

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा लोगों को सपनों के महत्व का अहसास कराने के उद्देश्य से ऑनलाइन 'स्वप्न सुनहरे साहित्यिक महोत्सव' का आयोजन किया गया। जिसका विषय 'सपने हैं खास' रखा गया। इस महोत्सव में देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकारों ने भाग लिया, जिन्होंने एक से बढ़कर एक सपनों के महत्व तथा विशेषता पर आधारित अपनी रचनाओं को प्रस्तुत कर महोत्सव की शोभा में चार चाँद लगा दिए। इस महोत्सव में सम्मिलित सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन 'पुनीत उत्कृष्ट रचनाकार' सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने महोत्सव में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का उत्साहवर्धन किया तथा सम्मानित होने वाले रचनाकारों को शुभकामनाएं दी और सपनों की विशेषता का वर्णन करते हुए कहा कि सपने केवल कल्पना नही होते है बल्कि यह एक तरह की प्रेरणा होते हैं जो लोगों को अपने लक्ष्य निर्धारित करने तथा उस लक्ष्य तक ले जाने का साधन बनते है। इसके साथ ही उन्होंने समूह द्वारा आयोजित होने वाले विभिन्न ऑनलाइन साहित्यिक कार्यक्रमों में सम्मिलित होने के लिए हिंदी रचनाकारों को सादर आमंत्रित भी किया। इस महोत्सव में उत्कृष्ट रचना प्रस्तुत करके समूह की शोभा बढ़ाने वालों में प्रमुख नाम निरूपमा बिस्सा, कुसुम अशोक सुराणा, सावित्री मिश्रा, चंचल जैन, संध्या रामप्रीत, मंजू शर्मा, सुनीता सोलंकी 'मीना', बबीता, अनुराधा प्रियदर्शिनी, अर्चना मुकेश मेहता रचनाकारों के रहे।



शुक्रवार, फ़रवरी 18, 2022

🦜ख़्वाब सुनहरे🦜








मंद-मंद पवन के झोंको से,
निंदिया रानी आयी हौले से,
सपनों की दुनिया रंग-रंगीली,
सजाये ख़्वाब सुनहरे आस से।

आशा-निराशा का झूले झूला,
हर नयन आशा स्वप्न रंगीला,
उल्लास भरे मन मंदिर में,
रंग-तरंग झंकृत मंगल बेला।

ऊंची उड़ान हो सपनों की,
उम्मीद किरणें हौसले की,
जीत का विश्वास हो मन में,
हिम्मत अटल चट्टान की।

आंधी तूफान के थपेड़े,
दुश्वारियां भरे पथ टेढ़े-मेढ़े,
राहों से शूल हटाते चले,
सपनों का सौदागर आगे बढ़े।

ख़्वाब सुहाने सच हो सारे,
नन्हीं दुनिया के उजियारे,
प्रेम, दुलार, स्नेह रिमझिम,
धुंधलाती आँखों के तारे।

       ✍️ चंचल जैन ( मुंबई, महाराष्ट्र ) 

🦜ख़्याल🦜








ख़्यालों को ना ज़हन में इतना भरिए
आए हों तो रहने की क्षमता रखिए 

नज़रों से बाहर की चीज के ख़्याल छोड़ 
प्रेम भरी बात बाहर निकाला करिए

सब अपने हिसाब से अव्वल दर्जे के
सलीका ज़ज्बातों में कुछ अपना कहिए

नजर अंदाज ना कर सके हमें कोई
उस इंतजार में ख़ुद ही तपते रहिए

खामोशियां दोनो तरफ जो गयी पसर
कौन जो इतना कुछ बोल रहा सुनिए 

तकलीफें हजार हो सकती है जहाँ में
नज़र अंदाज करने वालों से क्या कहिए 

ख्वाहिशों ने जकड़ा हुआ 'मीना' इतना
दिल में दहशत का घणा अंधेरा सहिए 

               ✍️ सुनीता सोलंकी 'मीना' ( मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश )



🦜सपनों की दुनिया🦜

 



          




          
           सपनों की दुनिया बड़ी हसीन होती है,
           झूठी ही सही पर सच से बेहतरीन होती है।
           हर वो खुशी जिसकी हकीकत में,
           न कोई जमीन होती है।
           उस हर खुशी से रंगी वो दुनिया,
           बेइंतिहा रंगीन होती है।
  
   ये सपने ही तो है,
   जो हौंसले खोने नही देते।
   दिनभर बेचैन रखते है,
   और रात को सोने नही देते।
           
           अपने अरमान भरे सपनों को,
             खुद समेटना सीख लो।
             खुद पर यकीन करके,
             अपने ख्वाबो को जीना सीख लो।
 
   सपने न मिट्टी के होते है,
   कि मिट्टी में मिल जाए।
   न फूलों से होते है,
   कि मुरझाकर गिर जाए।
   न कांच के होते है,
   कि टूटकर बिखर जाए।
               
               सपने पंख देते है,
               उड़ने का विश्वास देते है।
               इन पंखो को फैलाकर,
               उड़ने का अभ्यास करो।
  
कोई नही करेगा पूरे, 
तुम खुद पर एतबार करो।
सपनों को साकार करो,
अपने सपनों को साकार करो।
    
                          ✍️ बबीता ( मेरठ, उत्तर प्रदेश )



🦜स्वप्न सुनहरे मीत मेरे🦜










सच हो सुबह के सपने,
पारिजात से धवल, शुभ्र,
केसरिया दंठल पर तने,
त्याग, समर्पण से लबरेज़,
उबलते लावा से बने,
जो होले से आएं नींदे चुराने,
हमसफ़र मेरे अपने।

बसंती खुशनुमा बयारों में,
मदमाता यौवन लिए,
होली के सतरंगी फुहारों में,
फागुन की बहार लिए,
सावन की पहली बूंदा-बांदी में,
मिट्टी की खुशबू लिए,
शरद की ठिठुरती रातों में,
चांदनी का दुलार लिए।

स्वप्न सुनहरे मीत मेरे,
दुश्वारियों के सायों से घिरे,
एक डोर के दो सिरे,   
क्षितिज की कोशिशों से परे,
फासलों से सदा डरे-डरे,
जिद कर जंग का एलान करे,
स्वर्ण मृग से भागे परे-परे,
मृगमरिचिका से ललचाया करे।

पंखों में जिजीविषा का ज्वार,
आंखों में फ़ौलादी इरादों का अंगार,
हौसलों के दम पर थामें पतवार,
दरिया में कालिया मर्दन सा चित्कार,
जीवट, लगन से लगे कश्ती पार,
किनारों पे लहरें करे सत्कार,
सपने सुनहरे आत्मा की हुंकार,
करें ब्रह्म नाद, सुनाए ओम्कार।

                  ✍️ कुसुम अशोक सुराणा ( मुंबई, महाराष्ट्र )

🦜काश ! तुम हकीकत होते🦜








जब भी ख़्वाब में, मैं तुम्हारें करीब बैठती हूँ
................तो तुम से बातें हज़ार करती हूँ
तुम्हारी कोहनी पर.... गर्दन टिकाये
बस एक टक...... तुम्हें ही निहारती हूँ
तुम्हारी आँखे .......कितना कुछ कह जाती है
वो सब कुछ ......जो तुम्हारे लबों से सुनना चाहती हूँ
तुम्हारी ख़ामोश ..... मुस्कुराती सी आँखे
जब मेरे चेहरे पर ..... रुक कर जम जाती है
तो थोड़ी सी .......और इठला कर चहक जाती हूँ
दिल चाहता है हाथ बढ़ाकर .......छू लू तुम्हें
मगर तब तक......कम्बख़्त ख़्वाब ही टूट जाता है 
और फ़िर सारा दिन........ गुमसुम सी सोचती हूँ
काश !  तुम हकीकत होते ......................
.......................तो रात में ख़्वाबों में ही नही
..................दिन के उजाले में भी साथ होते।

                                  ✍️ संध्या रामप्रीत ( पुणे, महाराष्ट्र )



🦜सपने हैं खास🦜



  




जो सपने दिल के करीब होते हैं
हमको वो सपने सोने कहां देते हैं
एक जूनून जिंदगी में वो भरते हैं
राही को मंजिल तक ले जाते हैं
सपने जो अक्सर खास होते हैं
जिंदगी के वो मायने बदल देते हैं
असम्भव को सम्भव कर जाते हैं
वो आशाओं के प्रखर पुंज होते हैं
वो आँधी-तूफाँ से कहाँ घबराते हैं
साहिल को किनारे तक पहुँचाते हैं
आसमां की सैर सपने ही कराते हैं
मुश्किल हालात में प्रेरणा दे जाते हैं
नव ऊर्जा को गर्भ में समेटे रहते हैं
खूबसूरत जिंदगी का उपहार देते हैं
ख्वाहिशों के सागर में ही मिलते हैं
अनमोल रत्न जिंदगी में जो होते हैैं
पतझड़ में भी बसंत बहार ला देते हैं
मन में वो खुशियां अपार भर देते हैं

               ✍️ अनुराधा प्रियदर्शिनी ( प्रयागराज, उत्तर प्रदेश )






🦜ख़्वाब नही जीना है🦜






ग़म नही जिंदगी,
दे दो जो देना है,
कहां मुझे सपनों को,
अब संजोना है।

बस सांसें चलती है,
उठना और सोना है,
अब कहां ख्वाबों के,
मुझे हिलोरे लेना है।

साथ कहां कोई देता है
सब को छोड़ जाना हैं,
बोलो सपने क्यों देखूं,
जो बिखर ही जाना है।

जब जीवन भर बिखरे,
तारों को ही बिनना है,
तो बेशक सौ बार गिरकर,
उठना केवल सपना है।

डर से सांसो को,
रोज सिहर जाना है,
तो सुनहरे सपनों को,
नींद में क्यों आना है।


हासिल नहीं करना कुछ,
बस खोते ही जाना है,
नींद भी आंखों से डरती है,
जाने कब बह जाना है।

क्या करना है जीवन का,
ख़्वाब कहां जीना है,
मुश्किल से तो छूटा है,
अब बस मुझको पीना है।

 ️ मंजू शर्मा ( सूरत, गुजरात )

गुरुवार, फ़रवरी 17, 2022

🦜चिरैया 🦜








नन्ही सी चिरैया
एक ही सपना 
देखती थी
पंख पसारे
आसमान को 
नाप कर आने का।

बादलों के पार
उड़ जाना चाहती थी
पूरी धरती के 
सौंदर्य को 
आँखो में बसाना
चाहती थी।

फिर एक दिन 
उसके पंख निकल आए 
माँ ने उड़ने का
तरीका बताया
पिता ने 
हौंसला रखना सिखाया।

मगर दोनों ही भूल गए 
बाज की 
कहानी सुनाना।

भोली चिड़िया 
उड़ान भर कर 
आसमान तक 
जा पहुंची थी
पर 
शिकारी बाज की 
नजर उससे भी 
ऊंची थी।

एक झपट्टा 
और चिरैया के पंख 
एक-एक करके
जमीन पर आ गिरे
नोच ली गई थी वो 
पर हौंसला न हारी थी।

अंतिम विदाई पर बोली 
अगली बार
बाज की कहानी 
पहले ही सुना देना माँ
मुझे उड़ान के दायरे 
मत समझाना बाबा
बस बाज से लड़ना 
सिखा देना।

✍️ निरुपमा बिस्सा ( दुर्ग, छत्तीसगढ़ )

🦜मेरे सपने🦜








सपने तो सभी देखते हैं। ये और बात है कि किसी का सपना साकार हो जाता है तो किसी का सपना टूट कर बिखर जाता है। किसी को खुशियाँ मिलती हैं तो कोई गम के आँसुओं मे डूब जाता है। मेरे साथ तो भगवान और किस्मत दोनो ने ही खेल खेला है। मेरे सारे सपने अधूरे ही रहे। बचपन से एक सपना था डॉक्टर बनने का। उस समय लड़कियाँ गृह विज्ञान लेकत पढ़ती थी पर मैने गणित लेकर मैट्रिक किया। नवीं कक्षा से ही घर की सारी जिम्मेदारी निभाती घर के सारे काम कर स्कूल जाती और आने के बाद भी सारे काम कर पढ़ाई करती। मैट्रिक अच्छे अंक से पास होने पर भी जब ये कहकर आगे पढ़ाने से इन्कार कर दिया गया कि लड़की है पढ़ कर क्या करेगी तो सारे सपने टूट गए।18 वर्ष की उम्र में शादी और मिली हुई यातनाओं के कारण डिप्रेसन मे जाना फिर शिक्षिकाओं के कहने पर भी कॉलेज ना भेजना। बस सपने टूटकर बिखरते रहे। उन्हीं हालातों में किसी तरह घर से पढ़ाई कर इंटर, बी.ए.और एम. ए. किया। एल.एल.बी. कर वकालत करना चाहा पर नही कर पाई क्योंकि लड़की थी। फिर नया सपना देखा IAS का प्री पास भी कर गई बिना किसी कोचिंग के पर फाइनल का फार्म ही नहीं भर पाई। शिक्षिका भी शायद किस्मत ने बना दिया क्योंकि इसके लिये भी कोई तैयार नहीं था। केंद्रीय विद्यालय से नौकरी छोड़ने के लिए भी घर से मजबूर कर दी गई। बस हर बार सपने टूटकर बिखरते और माँ की प्रेरणा फिर एक नए हौंसले के साथ खड़ा कर देती। दो माह के बेटे और टूटे हर सपनो के साथ नई जिन्दगी और संघर्षों के बाद फिर नौकरी। आज एक सफल और लोकप्रिय शिक्षिका होने के बाद भी वो टूटे हर सपने दिल के किसी कोने में टीस देते हैं। लोगों का सपना असफल होने पर टूटता है पर मेरी तो सफलता ही मेरे लिए असफलता बन गई। आज भी दिल रोता है और होंठ मुस्कुराते हैं। अपने आप से सवाल करती हूँ कि मेरी गलती यही थी कि मैं एक लड़की थी। आज जब बेटा IPS  की तैयारी कर रहा है, तो लगता है। शायद मेरा सपना पूरा होगा। आज मैं सबसे यही कहती हूूँ कि बेटियों को संस्कार के साथ उन्मुक्त गगन दो ताकि उनके सपने पूरे हो। उन्हें पढ़ा-लिखा कर योग्य बनाओ ताकि वे हर मुसीबत का सामना कर पायेें। 
वास्तव मे सपने वो नहीं होते,
जो हम नींद में देखते हैं।
सपने वो होते हैं, जो हमें सोने ना दें।
अब ना पाने की चाहत ना कोई उम्मीद,
बस अधूरे सपने और पूरा करने की जिद।
देखा था कभी एक प्यारा सपना,
वो भी अब रहा ना मेरा अपना।
ईश्वर से यही दुआ है कि,
किसी का सपना ना टूटे।
सब के सपने पूरे हो।
 
                             ✍️ सावित्री मिश्रा ( झारसुगुड़ा, ओड़िशा )

🦜सपने शीघ्र हैं सच होने वाले🦜









फिर नन्हे-नन्हे कदमों से 
सूनी गलियां गुंजित होंगीं
भँवरे फिर गीत सुनाएंगे 
फिर नव कलियां पुष्पित होंगी।

होगी नव किरणें सूरज की 
नव आशाएं अग्रसर होंगी,
चहुँ ओर दिखेगा हर्ष-आनंद 
आशाएं अवसर ढूंढेंगीं।

माना मन भरा निराशा से 
माना है रात बड़ी भारी 
जब वक़्त का पहिया घूमेगा 
होगी सुबह वो मतवाली।

नीले-नीले इस अम्बर पर 
जो बादल घिर के छाए हैं 
सपने शीघ्र हैं सच होने वाले
वो यह संदेशा लाए है।

     ✍️ अर्चना मुकेश मेहता ( ग़ाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश )


पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा आयोजित ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।

पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा लोगों को स्नेह के महत्व और विशेषता का अहसास करवाने के उद्देश्य से ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव का आयोजन किया गया...