पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा रचनाकारों को अपने मन की भावनाओं को रचनाओं के माध्यम से प्रकट करने का अवसर देने के उद्देश्य से राष्ट्रीय स्तर पर ऑनलाइन मन सृजन महोत्सव का आयोजन किया गया। जिसमें रचनाकारों को दस अलग-अलग शब्दों के विकल्प देकर उनमें से किसी एक शब्द का विषय के तौर पर चयन करके चयनित विषय पर आधारित रचना लिखने के लिए कहा गया। इस महोत्सव में देश के अलग-अलग राज्यों की रचनाकार शख्सियतों ने भाग लिया। जिन्होंने दिए गए विषयों पर एक से बढ़कर एक बेहतरीन रचनाओं को प्रस्तुत कर महोत्सव की शोभा में चार चाँद लगा दिए और महोत्सव को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। महोत्सव में सम्मिलित प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन 'पुनीत साहित्य श्री' सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर ग्रुप के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने महोत्सव में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन व उत्साहवर्धन किया तथा सम्मान पाने वाली सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को उज्ज्वल साहित्यिक जीवन की शुभकामनाएं दी। इसके साथ ही उन्होंने ग्रुप द्वारा आयोजित होने वाले भिन्न-भिन्न ऑनलाइन कार्यक्रमों में अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए प्रतिभाशाली लोगों को सादर आमंत्रित भी किया। इस महोत्सव में बेहतरीन रचना प्रस्तुत करके ग्रुप की शोभा बढ़ाने वालों में प्रमुख नाम पूनम लता, प्रियंका थारवान 'प्रियमित', सीमा मोटवानी, रजनी वर्मा, करिश्मा नरेंद्र मल, स्मिता चौहान रचनाकारों के रहे।
रचनाकारों, कलाकारों, प्रतिभाशाली लोगों और उत्कृष्ट कार्य करने वाली शख्सियतों को प्रोत्साहित करने का विशेष मंच।
बुधवार, अक्टूबर 11, 2023
सोमवार, अक्टूबर 09, 2023
🍁 मर्यादा की परिभाषा 🍁
"सारी मर्यादा छोड़ दी है तुमने, कोई शर्म लिहाज नही रहा बड़ों का। इस घर में रहना है तो हमारे तरीके से रहना पड़ेगा तुम्हें। "यह बातें आरती के दिमाग में घूम रही थी कि कैसे उसके ससुर ने उस से कहा था। आरती एक पढ़ी-लिखी लड़की थी और आगे भी कुछ करके अपने पैरो पर खड़ा होना चाहती थी पर मां बाप ने समर का रिश्ता आने पर यह कहकर शादी कर दी कि इतना बड़ा घर है राज करोगी, ऐसे रिश्ते नही मिलते। शादी के कुछ समय बाद ही आरती समझ गई कि उसके ससुराल में बहू को बोलने का हक नही है उनकी जबान बंद रखी जाती है मर्यादा का नाम देकर। अंदर ही अंदर घुट रही थी वो। आरती के जेठ का चरित्र सही नही था उसने एक दिन आरती के साथ गलत हरकत करनी चाही तो आरती ने उनके खिलाफ आवाज उठाई। इस बार पर ससुराल में सब उसके विरुद्ध हो गए और पति भी साथ नही थे। ससुर के द्वारा मर्यादा का पाठ पढ़ाने पर आरती का सब्र का बांध टूट गया वो बोली, "बस करिए यह मर्यादा की परिभाषा जो केवल स्त्री के लिए बनाई गई है। काश ! यह मर्यादा आपने अपने घर के पुरुषों को सिखाई होती तो आज यह दिन ही नही आता।" हमारे समाज की विडंबना यही है कि यहां मर्यादा सिर्फ स्त्री के लिए है जिसमें उसको यह सिखाया जाता है कि हमेशा चुप रहो अन्याय के खिलाफ ना बोलो और अगर आप ने बोला तो आपको चरित्रहीन की उपाधि मिल जायेगी। पर पुरुष के लिए कोई परिभाषा नही है, वो महान है।" पर बस, अब नही। अब यह परिभाषा बदलनी पड़ेगी और मैं इसकी शुरूआत आज यही से करती हूँ। यह घर छोड़ के जा रही हूँ और अब कानूनी कार्रवाई करुंगी।
✍️ स्मिता चौहान ( गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश )
शुक्रवार, अक्टूबर 06, 2023
🌻 पैसा 🌻
पैसे को इंसान
ना हैं खा पाता
फिर भी वह सबको
अपने पीछे हैं भगाता
चंद पैसों के लिए लोग
अपनों से हैं बिछड़ते
बहुत दूर-दूर कहीं
विदेशों में जा बसते।
हर जगह हैं
पैसों का ही बोल-बाला
इसी के लिए ही करते हैं
सब गड़बड़ घोटाला
पैसों से हैं अगर आपकी जेब भारी
तो पूछेगी आपको दुनिया सारी।
पैसों से ही हैं
सबका ताल-मेल
उसी के लिए ही
सब खेलते विविध खेल
पैसा बना अब पहला प्यार
बिन पैसे लगता जीवन बेकार।
✍️ करिश्मा नरेंद्र मल ( गढ़चिरौली, महाराष्ट्र )
🌻 बुढ़ापा 🌻
मन के हारे हार है,
मन के जीते जीत,
मन में बुढ़ापे से प्रेम बढ़ा,
बुढ़ापे पे कर ले जीत,
बचपन खेल में खोया,
जवानी दुनियादारी में खोया,
बुढ़ापा आता देख,
मन तू क्यों घबराता,
सोच-सोच कर डरता,
अब तो कमजोर हो रहा।
शायद तुझे लगता.....
अब अकेला हो रहा,
अब चिंता नहीं चिंतन कर,
क्या खोया-क्या पाया
माना बुढ़ापे में,
अकेलापन बहुत सताता,
अकेलेपन को तज.....
अब एकांत को साथी बना,
नई ऊर्जा नई तरंग अपने में पाएगा,
जीवन का वास्तविक सार
तुझे अब समझ में आएगा।
क्यों ! घबराता है,
अपनी कमजोर काया देख,
इसका गुमान मत कर,
यह जलकर राख हो जाएगी,
माया जो तूने जोड़ी.....
क्यों उसकी चिंता करता है ?
यह भी तेरा साथ ना निभाएगी,
बुढ़ापा ही तेरी असली परीक्षा है,
सार्थक हो जीवन तेरा,
बुढ़ापे से प्रीत कर बुढ़ापे को जीत।
✍️ रजनी वर्मा ( नोएडा, उत्तर प्रदेश )
गुरुवार, अक्टूबर 05, 2023
🌸 टीसो के घूँट 🌸
ओढ़ कर लिवास मुस्कुराहटों के जी रहे,
अंदर हम टीसों के घूँट कितने पी रहे।
उजड़े हुए रिश्ते और खुलते हुए गठबंधन,
किस तरह किनारों को पकड़ पकड़ सी रहे।
कौन समझ पाएगा इस दर्द की गहराई को,
बेमन दरवाजे पर बज रही शहनाई को।
तिल-तिल कर छूट रही हाथों से जिंदगी,
मन की बेचैनी और अनकही तन्हाई को।
टूट रहे ख्वाब बिना शब्द और आवाज के,
दर्द की गजल छिड़ी है बिना सुर और साज के।
बेजुबान शब्द मगर आँख गुनगुना रही,
तोड़ रही पहरे सतरंगी अल्फाज के।
कोई नही अपना फिर इंतजार क्या करूँ,
गुजरे हुए वक्त से मन बेजार क्या करूँ।
जोड़ू दिल को या हालात पे फिर छोड़ दूँ,
रोलूँ या हंसकर फिर हो गुलज़ार क्या करूं।
खेल रही शब्द और कलम के गलियारों में,
दिल की बाजियों में कहीं जीत और हारों में।
बेवफाई और वफ़ा की नाप तोल करते हुए,
ढूंढ रही प्यार की झलकी तेरे सहारों में।
✍️ डॉ० सुजाता 'वीरेश' यादव ( मैनपुरी, उत्तर प्रदेश )
🍁 बीते लम्हें 🍁
मुझे हथेली पर चाँद उगाना था
मेहंदी में बस तुमको रचाना था
करनी थी तुमसे दो जहाँ की बातें
बस आसमां तक घूम के आना था।
कुछ वादे थे जन्म-जन्म के
कुछ किस्से थे अपने हिस्सों के
यूँ बनते-बनते बिगड़ गये
कैसे रिश्ते थे ये अपने बरसों के।
तुम कभी जो वापस आना चाहो
मोहब्बत को फिर दोहराना चाहो
देखते रहना उन टूटे तारों को
काश पा न सको जो पाना चाहो।
ये वक्त कैसे ठहर गया
ठहरा ही है या फिर गुजर गया
हम बीते लम्हों में कहीं रुक गए
जिंदा कोई शख्स हम में मर गया।
✍️ सीमा मोटवानी ( अयोध्या, उत्तर प्रदेश )
मंगलवार, अक्टूबर 03, 2023
🌻 मन है चंचल 🌻
ऐ मेरे चंचल मन,
तू काहे न धीर धरे।
क्यूँ रहे तू इतना अधीर,
ऐ मेरे चंचल मन...
तेरी अलग पहचान है।
मन है चंचल मन अधीर है,
कभी न रहता वह स्थिर है।
साँसों के हर कदम पर,
वह अथक, अविराम चलता है।
सपनों की ऊँचाई मिलती जब,
मन के घोड़े दौड़ते तब।
कल्पनाओं की ऊँची उड़ान भर,
मन प्रसन्न हो जाता है।
दुख हटा स्वच्छंद मन से,
हम निराशा छोड़ते तब।
यूँ तो मन में सुख की चाह है,
पर है संतोष का नाम कहाँ।
जब कभी भटक जाता मन,
तब लालच आ जाता वहाँ।
तर्क हो दिमाग में जब,
और हो मन की भावनाएँ।
किसको छोड़े किसकी सुनें,
ऐसे दुविधा में फँस जाए मन।
आगे कर दिमाग को तब,
मन पीछे हट जाता बेचारा।
जिंदगी के सुख-दुःख में,
मन ही साथ रहता सदा।
मन है समंदर की तरह,
चाहत की लहरें उठतीं जिसमें।
महत्वाकांक्षा के तेज बहाव में,
सब कुछ पाने को मचलता मन।
मन है चंचल मन अधीर है,
कभी न रहता वह स्थिर है।
✍️ पूनम लता ( धनबाद, झारखंड )
🌻 मेरी जिंदगी 🌻
हर रोज गुजर जाता है
एक-एक पल
मेरी जिंदगी का और
आ जाती है सुहानी शाम
लेकर के यादें तमाम
और शुरू हो जाती सोच
मेरे मन की
झिलमिलाती दर्पण सी
कितनी खुशियां बांटी हैं आज
और कितने गम खरीदे हैं।
किस तरह लोग दुनिया में
अपना हर पल जीते हैं
एक पल में बंध जाता बंधन
दूजे पल टूट जाते हैं रिश्ते
कभी सपने सजाता है मन
तो कभी हो जाता उदास
कैसा यह जिंदगी का एहसास।
खैर ! सिलसिला यह
सुबह-शाम का
यूँ ही चलता रहेगा
मेरे मन की किताब का
एक पन्ना रोज ही भरता रहेगा
कुछ खट्टी-मीठी यादों से
जब संघर्षों का अंधेरा होता है
और मन घबरा जाता है
तो इस मन को
कैसे भी बहला लेती हूँ
और इन्हीं यादों से जिंदगी
जीने की रोशनी पा लेती हूँ।
✍️ प्रियंका थारवान 'प्रियमित' ( जयपुर, राजस्थान )
पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा आयोजित ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।
पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा लोगों को स्नेह के महत्व और विशेषता का अहसास करवाने के उद्देश्य से ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव का आयोजन किया गया...
-
बन जाते हैं कुछ रिश्ते ऐसे भी जो बांध देते हैं, हमें किसी से भी कुछ रिश्ते ईश्वर की देन होते हैं कुछ रिश्ते हम स्वयं बनाते हैं। बन जाते हैं ...
-
जीवन में जरूरी हैं रिश्तों की छांव, बिन रिश्ते जीवन बन जाए एक घाव। रिश्ते होते हैं प्यार और अपनेपन के भूखे, बिना ममता और स्नेह के रिश्ते...
-
हे प्रियतम ! आपसे मैं हूँ और आपसे ही मेरा श्रृंगार......। नही चाहिए मुझे कोई श्रृंगार-स्वर्ण मिल जाए बस आपका स्नेह.. ...