मंगलवार, जनवरी 31, 2023

🏅औरत🏅











मेरे पाँव के छाले कहते
क्यों औरत धरती पर आई है
हर सिसकी उसकी ऐसी है
जैसे मौसम की अंगड़ाई है

रोज हँसने की कोशिश करती

चाहत यही की कुछ सुख तो मिले

आज काँटो पर चल लेती

कल फूलों में रहने का सुख तो मिले


आज काला अंधकार सह लेती

पर कल भोर का सूरज तो मिले

राहों में पग-पग डोल रही

चाहत मंजिल पर बहार मिले


धरती पर नारी आई जब से

संताप से तन लिपटा रहा

नयन अश्रू में डूबे रहे

मन आहत होकर पलता रहा


कभी चाँद को देखकर सहमी रही

थोड़ा किरणों का भाव मिले

तारों से बातें करती रही

अपनो में थोड़ी पनाह मिले


रिश्तों के ताने बाने में वह 

तोरण सा गूँथ तो जाती है

सबके लिए द्वार पर टंगी हुई

बिन मन के भी मुस्काती है


कुछ मृदुल मनोहर यादों से

अपने को पोषित करती है

त्यागी है वह हर पल की

फिर भी आगे बढ़ती है


क्यों रिश्तों को संजोने वाली

हर एक में बंट जाती है

नयनों के कठोर चोटों से 

संयम से खुद को बचाती है


✍️ वन्दना सिंह ( वाराणसी, उत्तर प्रदेश )

🏅 उसके बाद....! 🏅

जिंदगी कब क्या मोड़ दिखा दे कोई नही जानता। नही जानते थे दीनानाथ जी कि जिस बेटे को न देखने की कसम खाई है, उसे एक दिन खुद ही फोन कर अपनी लाचारगी दिखाते हुए बुलाना पड़ेगा। बहुत अहंकारी थे। बेटे की परवरिश में कोई कसर नही छोड़ी। अविनाश भी महत्त्वाकांक्षी था। जैसा-जैसा पिता चाहते गए अरमान पूरे करता गया और जब पिता का नाम रोशन कर विदेश गया गांँव का कौन सा घर होगा जहाँ उस दिन चूल्हा जला होगा अरे भई पूरे गांँव वालों के साथ खुशी मनाई गई थी। शुरू के कुछ साल उत्साह में बीते लेकिन एक दिन अचानक एक फोन ने रिश्ते बदल डाले।


"पापा, आपसे कुछ कहना चाहता हूँ !"


"अब ये मत कहना छुट्टी नही मिल रही। दो साल हुए तेरी शक्ल देखे। अब आ जा मेरे बच्चे ! तेरी माँ की तबियत भी ढीली है अपनी बहू को लाने का अरमान रख, खुद को संँभाले हुए है।"


"पापा... कुछ कहना है आपसे ? "मैं आ तो रहा हूँ लेकिन अकेला नही !"


"मतलब !"


"मैने शादी कर ली है।"


एक वज्रपात सा उनके दिल के टुकड़े कर गया।


"शादी कर ली बिना हमें बताए ? वो औरत जिसकी उँगली पकड़े बिना तू एक कदम भी नही बढ़ा पता था, वो पिता जिसकी हाँ सुने बिना, तू गर्दन नही उठाता था। तू इतना बड़ा हो गया...! हमने इतने विश्वास से तुझे भेजा और तूने हमारे ख्वाबों के साथ.... विश्वासघात किया है। आज से तेरा और हमारा कोई संबंध नही। मेरे जीते जी इस घर की तरफ रुख मत करना।"


"पापा.....!"


कहाँ जानते थे दीनानाथ जी कि एक दिन अपना स्वाभिमान दांँव पर रख बेटे को फोन कर बुलाना पड़ेगा।

धर्मपत्नी ने बिस्तर क्या पकड़ा, मोहित को बुलाने की जिद्द पकड़ बैठी।


"माफ कर दीजिए ना उसे। जाने से पहले एक बार उसे देख लूँ तो चैन से जा पाऊंँगी।"


कहते हैं ना किस्मत में लिखा कोई नही टाल सकता। ये ज़िन्दगी कब क्या खेल खिला दे कोई नही जानता। आज अपना अहम किनारे रख बेटे को फोन कर आने को कह दिया।


"पापा आपका कहना ही काफी है। मैं तो तरस गया था आप लोगों को देखने के लिए ।"


बेटा तुरंत पहली फ्लाइट पकड़ परिवार सहित पहुँच गया लेकिन फिर वही बात ज़िंदगी इतनी आसान कहाँ होती है ! उसके पहुँचने से पहले माँ चल बसी।

भारतीय मूल की विदेश में जन्मी लड़की दीनानाथ जी की बहू बन पहली बार इंडिया आई थी। बिल्कुल देशी रंग में रंगी, जिम्मेदारियों को निभाती रही। यही नही उसकी सौम्यता, व्यक्तित्व हर एक के लिए उदाहरण का पात्र बन चुके थे। दीनानाथ जी बारह दिन में पुराने गिले-शिकवे सब भूल गए।


बेटा-बहू कुछ दिन यहाँ रहकर, पापा का मन बदलने के लिए उन्हें अपने साथ ले गए लेकिन दीनानाथ जी ठहरे गाँव के आदमी कुछ दिन रह वापिस आ गए।


अब बच्चों से संबंध अच्छे बन चुके थे। वो अक्सर फोन पर बात करते। आज बेटे से फोन पर बात के बाद दीनानाथ जी कुछ विचलित दिखाई दिए।


धर्मपत्नी की फोटो के आगे लाचारगी से खड़े होकर बोले,"आखिर दिखा ही दी उसने अपनी औकात ! जो बेटा समय रहते धोखा दे गया था वो अचानक से मेरा कैसे हो सकता था। न जाने क्यों मैं उसके भोलेपन में फंस गया। जानता था तुम्हारी जिद्द, तुम्हें मेरी चिंता थी कि तुम्हारे जाने के बाद मेरा क्या होगा। क्यों मैंने तुम्हारी बात के आगे घुटने टेक दिए। चालाकी देखो माँ की मौत पर आकर सबकी नजरों में अच्छा बन गया। कौन जानता था नजर कहीं और थी!"


लगा धर्मपत्नी मुस्कुरा कर कह रही हो, "देखो जी कई बार स्थिति जैसा हम सोचते हैं उसके विपरीत होती है। एक बार खुलकर बात करो। पता नही क्यों अविनाश गलत होगा ऐसा मुझे नही लगता।"


कल आ रहा है लगता है ये आखिरी मुलाकात होगी।‌ स्पष्ट कह दूँगा तुम्हारी मांँ की वजह से मैंने तुम्हें आने की इजाजत दी थी।


अगले दिन बहू और अविनाश पहुँच गए। बहू को घर संभालते बिल्कुल समय नही लगा। पापा का ख्याल रखना, समय पर दवाई देना से लेकर आए-गए का करना। सर्वगुण सम्पन्न कहें तो गलत नही होगा। उसका व्यवहार देख दीनानाथ जी चाहते हुए भी कुछ कहने की हिम्मत नही कर पा रहे थे। अगले दिन तीनों बैठे बातें कर रहे थे।


खट-खट 


"जी कहिए ?"


"अविनाश जी है। मैं फाइनैंस कंपनी से आया हूँ। मीटिंग करने को कहा था।"


अविनाश ने पिता को उनसे मिलवाया," पापा ये इंजीनियर हैं और साथ में फाइनैंस कंपनी वाले। अपनी जमीन का ब्यौरा देना होगा हम उस पर लोन उठाकर काम शुरू करवाना चाहते हैं।"


मन से टूटे दीनानाथ जी, तबियत खराब का बहाना बनाकर अंदर चले गए। अविनाश ने उन्हें फिर बुलाने का कह रुखसत ली। शाम को पिता के साथ वार्तालाप में अविनाश ने फिर बात छेड़ दी,"पापा, अपने पास कितने एकड़ जमीन होगी ? उस पर काम शुरू करवाएँगे तो लोन मेरे नाम से या सुजाता के नाम से लेना होगा।"


अब दीनानाथ जी के सब्र का बांँध टूट चुका था।


"तुमने मुझे इतना कमजोर समझ लिया। पाई-पाई जोड़कर मैंने ये जमीन खड़ी की है। तुम्हारी माँ के जाने से मैं अकेला जरूर हो गया हूँ असहाय नही। अपनी ज़िंदगी से जुड़ी एक मनमानी तुम कर चुके हो जिसके लिए तुम्हारी माँ की वजह से मैंने तुम्हें माफ कर दिया। तुम्हारी इतनी हिम्मत कि मेरे जीते जी, तुम मेरी जीवन भर की कमाई पर लोन उठा रहे हो !"


"पापा क्या गलती हुई मुझसे ? अंत-पंत जमीन की देखभाल तो मुझे ही करनी है और यदि समय रहते हमने कदम उठा लिया तो क्या गलत किया ?"


"मैं तुमसे किसी बात पर सवाल-जवाब नही करना चाहता। वो जमीन मेरी है और सिर्फ मेरी।"


बहू दूर खड़ी दोनों की बातें सुन रही थी।


"पापा हम किसके है ? क्या आपने अभी भी हमें माफ नही किया। अविनाश आप लोगों के बिना अधूरे थे। मेरे पापा डेथ बेड पर थें उनकी जिद्द थी। भारतीय मूल के लड़के से मेरी शादी करने की। अविनाश के हाथ में मेरा हाथ दे उन्होंने चैन की सांस ली लेकिन इन्होंने मुझसे शादी नही की और तब तक नही करना चाहते थे जब तक आप लोगों का आशीर्वाद नही मिल जाता।


यकीन मानिए आप लोगों को हमारा बिना शादी के इस तरह साथ रहना भी पसंद नही आता इन्होंने अभी यहाँ से जाने के बाद मुझे पत्नी रूप में स्वीकार किया है। आपके संस्कार बहुत मजबूत है पापा, आपने कैसे सोच लिया कि हम जमीन आपसे लेकर अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करेंगे। जब आपका हमारे साथ मन नही लगा तो अविनाश का मन भी वहाँ से उखड़ चुका था। वो आपको किसी कीमत पर अकेला नही छोड़ना चाहते थे इसलिए हमने निश्चय किया कि यहाँ से सब छोड़-छाड़ कर गाँव की जमीन पर मशरूम की खेती करेंगे। मैंने भी हॉर्टिकल्चर में एम.एस.सी की है सोचा था अपनी पढ़ाई और आपके अनुभव का फायदा उठाकर आपके साथ यहीं रहेंगे लेकिन यदि आपको ये प्रस्ताव नही पसंद.....तो...!"


दीनानाथ जी बहू की बातें सुन आत्मग्लानि से भर उठे। वो क्या समझ रहे थे और ये क्या हुआ !


धीरे से वहांँ से उठ धर्मपत्नी की फ़ोटो के पास जा खड़े हुए...,"तू सही कहती थी मैं बहुत जल्दी में निर्णय ले लेता हूँ। बच्चे हमेशा गलत ही हो ऐसा नही है। आजकल के बच्चे बहुत व्यवहारिक हो गए हैं। तुम्हारे और मेरे दिए संस्कार कभी गलत नही हो सकते। हमारा अविनाश लौट आया है बहू को लेकर।


अगले दिन फाइनेंस के कागजात साइन कर दीनानाथ जी ने अविनाश के आगे कर दिए, "बस एक इच्छा है उसके जाने के बाद भी उसका वजूद हम सबके बीच जिंदा रहे इसलिए अपनी फर्म का नाम अपनी माँ के नाम पर रखना।"


✍️ मीता जोशी ( जयपुर, राजस्थान )

सोमवार, जनवरी 30, 2023

🏅एक सराय है जिंदगी🏅











सच है ये,

नही है कोई अफसाना।

दिल से होगा,

हमे इसे अपनाना।


मुसाफिर की तरह,

लगा रहता है नित यहां आना जाना।

एक सराय ही तो है ये जिंदगी,

जो आया है उसे पड़ता है वापस जाना।


भूल गए हम ये सत्य,

अनजान बन हकीकत को हमने नही जाना।

आये थे खाली हाथ सब यहां,

खाली हाथ ही सभी को यहां से है जाना।


अनसुलझी पहेलियों को,

भाग्य के भरोसे नही है हमें सुलझाना।

शब्दों, भावों से नही चलती ये जिंदगी,

कर्मो से ही होता है हमें इसे निखारना।


जन्म से मरण तक,

चलता रहता है नित हंसना-रुलाना।

सदैव के लिए नही है यहां,

किसी भी जीव का ठौर-ठिकाना।

 

✍️ पुष्पा श्रीवास्तव ( डूंगरपुर, राजस्थान )

🏅प्रेम एक अहसास🏅










एक अहसास है प्रेम
इस चंचल मन की
कल्पनाओं से परे दूर 
स्वच्छंद आकाश में
विचरण करने वाले 
दो दिलों की अनकही
अनसुनी दास्तां है प्रेम

प्रेम वो नही 

जिसका इज़हार किया जाये

प्रेम तो वो है जो

महसूस किया जाये

प्रेम वो नही जो पाया जाए

प्रेम तो वो है जो जिया जाए


प्रेम नाम है समर्पण का

प्रेम नाम है विश्वास का

प्रेम नाम है त्याग का 

प्रेम की भी बड़ी

अजब सी कहानी है

पर अब ना पहले जैसा 

दीवाना कोई

और ना ही पहले जैसी

कोई दीवानी है


ना वो प्रेम परीक्षा में 

पीना जहर का प्याला

बांध के घुंघरू, सुध-बुध भूल

तज के लोक लाज की मर्यादा

नाचना प्रियतम प्यारे को 

बसा के दिल में


शायद नही मिलेगी 

अब ऐसी मिसाल

ऐसी प्रेम दीवानी

जिसने त्याग कर राज-पाट

वैराग्य जीवन को अपनाया

संसार के मोह से दूर

प्रियतम प्यारे को 

स्मरण करते-करते

अपना जीवन बिताया।


✍️ मधु श्रीवास्तव ( प्रयागराज, उत्तर प्रदेश )

🏅जिंदगी मेहमान है🏅











जिंदगी मेहमान है,

चंद साँसों का नाम है,

आज हसीन तो कल तन्हां,

ढल जाएगी वो शाम है।


बंद मुट्ठी में लेकर आए,

कुदरत का पैगाम है,

मिल जाएगी मिट्टी में,

मिट्टी का ही सामान है।

   

है अजब दुनिया, 

जमीन के टुकड़ों पर लिखें नाम हैं,

शुक्र है आसमान का अभी तक,

लग न पाया दाम है।


अपना-अपना कहते जिसको,

झूठी अपनी शान है,

कफ़न मिलेगा सफ़ेद ही,

रंग पर क्यों करे गुमान है।


दुनिया के बाज़ार में ‘स्मिता',

खरीद रहे खुशियाँ और आराम है,

करोंड़ो चेहरों की भीड़ में, 

पहचान हमारी गुमनाम है।


ऊँची-ऊँची मीनारों में रहने वालों,

कद अपना तो बौना है,

पल भर को खुशियाँ देता,

मन काँच का एक खिलौना है।


✍️ स्मिता प्रसाद दारशेतकर ( पणजी, गोवा )

रविवार, जनवरी 29, 2023

🏅प्रकृति चलती रहती है🏅










जीवन की गाथा कहती है

प्रकृति संग चलती रहती है

धूप-छाँव के संग जैसे यह

दुख-सुख सहती रहती है।


कहीं मनोरम दृश्य हो जैसे

रहस्यमयी सपनो के जैसे

अपना कोई उस सपने में

चुपके से आता-जाता है।


हरीतिमा आनंद बरसाती

पतझर जैसे हमें रुलाती

फिर भी बसंत आ ही जाता है

वैभव से सब भर जाता है।


दिन-रात का चक्र गजब का 

हरिश्रृगांर पुष्प जैसे अजब सा

छाये जवानी तो महक उठे तन

वृद्ध हुआ तो चुमे मन रज का।


आँखो से बरसता पानी

जीवन करता घो-घो रानी

लुकछिप बादल आये जाये

इन्द्रधनुषी रंग मौसम का।


✍️ वन्दना सिंह ( वाराणसी, उत्तर प्रदेश )

🏅कर्तव्य🏅

लाल जोडे़ में लिपटी बड़ी सी बिंदी लगाए मांँ, ऐसी लग रही थी जैसे शैया पर नही, आराम करने लेटी हैं बस आँख खुली और तुरंत बोल पड़ेंगी, "बहुरिया ये क्या हल्के रंग की साड़ी पहन रखी है। जरा चटक रंग पहनियो, लगे हमारी बहू है। मैं तो जब अंतिम विदाई लूँगी तब भी मेरा इतना ही श्रृंगार करना इतना कि तुम्हारे बाऊजी को अफसोस हो कि उन्होंने जीवन में कितना खूबसूरत समय खोया है।"


स्निग्धा अम्मा की बातें सोच ही रही थी कि शैया के पास बैठे बाऊजी की सिसकने की आवाज़ सुनाई दी।


"बहुत जिद्दी हो माया ! आखिर अपना कहा पूरा कर ही लिया। ये ना सोचा तुम्हारे बिना मैं कितना अधूरा हो जाऊँगा।"


बाऊजी की बातें स्निग्धा की सोच के बाहर थी। उसने जब से देखा, अम्मा को बाऊजी पर भुनभुनाते ही देखा और बाऊजी को देख लगता वो उनकी बातों को नजरअंदाज कर रहे हैं।दोनों में शायद कभी पटी ही नही।


कहते है बाऊजी भरी जवानी अम्मा को अपने माता-पिता की सेवा के लिए छोड़ शहर चले गए थे और पूरी ज़िंदगी उन्हें ले जाने का झांँसा देते रहे। अपनी जवानी से लेकर बुढ़ापे तक अम्मा ने बस उनका इंतजार ही किया और जब माता-पिता चल बसे तो उन्होंने अपनी इच्छा अम्मा के आगे रख दी, "अब साल दो-साल में रिटायर हो, मैं खुद शहर की चकाचौंध से दूर गाँव आना चाहता हूँ।"


अम्मा जब गुस्सा होती अक्सर यही कहती, "देखना जब मैं चली जाऊंँगी ना तब बुढ़ऊ को पता चलेगा अकेलेपन की पीड़ा क्या होती है।" और सच...अम्मा ने अपनी बात सच साबित कर दी पिता जी को आए साल भर ही बीता था कि अम्मा उन्हें अकेला छोड़, सदा के लिए चली गईं।


देखते ही देखते दस बारह दिन बीत गए। आज बेटा-बहू वापिस जाने वाले है। अपने पिता के अकेलेपन को देखकर मुकुल ने भी वही निर्णय लेने का सोचा जो कभी बाऊजी ने लिया था, "बाऊजी मुझे जाना पड़ेगा। स्निग्धा यहीं आपके साथ रहेगी। साल भर निकालना है उसके बाद देख लेंगे जैसा भी होगा।"


स्निग्धा मन ही मन सोचने लगी कितनी उलझी हुई होती है। एक स्त्री की ज़िंदगी। यदि वो विद्रोह करे तो संस्कारहीन होने का ठप्पा लग जाता है और सब जिम्मेदारी छोड़ चली जाए तो बेशरमी का। उसका अपना कोई वजूद नही, कोई मन नही। धन्य थी माँ जो पूरी ज़िंदगी बाऊजी के इंतजार में बिता दी। मुकुल ने एक बार भी यह नही सोचा मेरा भी कुछ मन होगा। मेरी ज़िंदगी का फैसला लेने का अधिकार मुझे भी है। कैसे कहूँ मैं औरत किसी के हाथ की कठपुतली नही और ये अम्मा का जमाना भी नही जहाँ जो निर्णय ले लिया उसी पर हाँ कर दी।


बाऊजी चुप थे। कौन समझ सकता है ये वही बाऊजी हैं जिनकी अम्मा से एक मिनट नही पटती थी। अम्मा के जाने के बाद वो बिल्कुल टूट गए थे। हमेशा माँ की फ़ोटो के पास गुम-सुम बैठे रहते। हर समय उन्हीं की बातें और उन्हीं की पसंद का देना-लेना।


स्निग्धा सोचती काश ! बाऊजी ने समय रहते अम्मा की कद्र की होती बिचारी ने कितना अकेलापन झेला। क्यों आदमी अपनी जिम्मेदारियों को एक स्त्री के कंधे में डाल बेफिक्र हो जाता है।


बाऊजी इतने टूटे हुए थे कि स्निग्धा ने मन ही मन कुछ समय उनके साथ रहने की ठान ली। अगले दिन मुकुल ने खुद के जाने का एलान कर दिया।


"कुछ दिन और रुक जाते मुकुल। जानता हूँ बेटा, तुम सबका दोषी हूँ। तुम्हारा किसी का दर्द नही समझा और आज फिर खुद का सोच तुम्हें रोक रहा हूँ।


"नही बाऊजी आप अपने बेटे से ही तो कह रहे है। स्निग्धा यहीं रहेगी ..आपके साथ।"


"क्यों ?"


जब तक माँ की बरसी नही हो जाती आपको अकेले छोड़ कहीं नही जाएंँगे और फिर मैं आता-जाता रहूंँगा।


"जी बाऊजी, सही कह रहे हैं ये। "स्निग्धा ने हामी भरते हुए कहा।


"नही मुकुल नही...। बहू की जगह यहाँ नही, तुम्हारे साथ है इतना बड़ा त्याग किसलिए ?"


"त्याग...कैसा त्याग बाऊजी ? आपने भी तो....!"


मुकुल वो त्याग ही था उस समय अपने कर्त्तव्य के चक्कर में मैंने अपने बीवी-बच्चों के साथ नाइंसाफी की। ये तो उसकी सजा वो मुझे देकर गई है। अकेली वो थोड़ी थी मैं था। परिवार से, बच्चों, पत्नी से दूर। आज यदि बहू को रख लिया तो वो मुझे कभी माफ नही करेगी।


"बाऊजी यदि आप ऐसा समझते है तो माँ को कभी क्यों नहीं समझे ?"


"वो मेरी ताकत थी। मैंने उसी के सहारे निश्चित होकर नौकरी की है। उसकी बातें, बच्चों की याद सबके सहारे जीवन बिताया। हमने अपने-अपने हिस्से का कर्तव्य पूरा किया लेकिन न जाने क्यों कभी-कभी माता-पिता भी इतने स्वार्थी हो जाते है। कभी उन्होंने उसे मेरे साथ भेजना ही न चाहा और मैं तुम्हारी माँ की हिम्मत देख समय बिताता रहा। सच एक स्त्री यदि अपने जीवन साथी का भरपूर साथ दे तो जीवन की हर मुश्किल आसानी से हल हो जाती है।


बेटा मैं अकेला नहीं हूँ। तुम्हारी माँ की यादें मेरे साथ है उसके रहते मैं अकेला कैसे हो सकता हूँ। अब कुछ पल तुम्हारी अम्मा के साथ अकेले बिताना चाहता हूँ। उसके गिले-शिकवे भी तो दूर करने हैं। मुझे इसी में संतुष्टि है कि उसने तुम्हें इतने अच्छे संस्कार दिए। कह बाऊजी अम्मा की फ़ोटो को सीने से लगाए दूसरे कमरे में चले गए।


      ✍️ मीता जोशी ( जयपुर, राजस्थान )

शनिवार, जनवरी 28, 2023

🏅नारी तुम ही पालनहार हो🏅











नारी, तुम ही सृष्टि 
तुम ही आधार हो
ईश्वर के बाद
तुम ही पालनहार हो।

उजली भोर सी तुम
सूर्य की लालिमा हो
संसार को रोशन करती
रोशनी की पहली किरण हो।

तुम से ही शक्ति की पूजा
तुम ही सुगंध फूलों की हो
मंदिर की घण्टियों की
गूंज में तुम ही हो।

कर्म, त्याग की तुम मूरत
सबकी निरन्तर प्रेरणा हो
धर्म, संस्कृति, संस्कारों की
बहती हुई नदी हो।

स्वयं के दर्द को तुम अक्सर
खामोशी से भूल जाती हो
दूसरों के जख्मों पर तुम
स्नेह से मरहम लगाती हो।

धर्म के सभी कार्यो को
करती तुम ही पूर्ण हो
इस पूरी धरा की केंद्र व
पथ प्रदर्शक तुम ही हो।

नारी, तुम ही सृष्टि 
तुम ही आधार हो
ईश्वर के बाद
तुम ही पालनहार हो।

 ✍ पुष्पा श्रीवास्तव ( डूंगरपुर, राजस्थान )

🏅स्नेहिल स्पर्श🏅











खुरदुरी तेरी उंगलियों का वो स्पर्श

आज भी महसूस करती हूँ अपने माथे पर

हाथों की मात्र छुअन नही

तेरे निस्वार्थ प्यार

आशीर्वाद का लेप सा होता था

जो उस दर्द को भी दूर कर देता था

जिसका मैं जिक्र तक नही करती थी।


सिर्फ अपने एक प्यार भरे स्पर्श से

मां, तू मुझ पर अमृत बरसाती थी

ये जादूगरी और किसी को कहाँ आती थी

खोजती हूँ लेकिन तेरा स्पर्श अब पाती नही।


छूती हूँ साड़ी तेरी इस आस से मैं कि

किसी परत के बीच तेरी छुअन मिल जाए कहीं

करती हूँ कोशिश बहुत तेरे स्पर्श को जीने की

लेकिन हर बार हार जाती हूँ

जब मेरी संतान हाथ मेरा रखती अपने माथे पर

सुन मां, तब तुझे मैं खुद में ही पा जाती हूँ।


✍️ संयुक्ता त्यागी ( मेरठ, उत्तर प्रदेश )

शुक्रवार, जनवरी 27, 2023

🏅मासिक धर्म🏅












सृष्टि के सृजन का,

है सुंदर पावन कर्म,

स्त्री युगों से निभा रही,

नित नियमित मासिक धर्म।

 

संवेदनाओं के ज्वार उठते,

होती जब वह रजस्वला, 

सुंदर प्रेम भाव उमड़ते,

उर ममत्व भरती वत्सला,

निर्मिती के आरंभ का,

यह शुद्ध पवित्र एक कर्म,

स्त्री युगों से निभा रही,

नित नियमित मासिक धर्म।


सहे असह्य वेदना का भार,

तीव्र पीढ़ा और रक्त्मि धार,

खुद से संघर्ष चले निरंतर,

क्षीण तन रोए है अंदर,

मौन हो जाती कभी जो,

समझ तनिक वह मर्म,

स्त्री यु्गों से निभा रही,

नित नियमित मासिक धर्म।


कहते अशुद्ध जिसे तुम,

बीज रोपती वह सृजन का

जननी होने का वरदान यह,

विषय निश्चित चिंतन का,

न धिक्कारों उसकी अवस्था,

करो व्यवहार उससे नर्म,

स्त्री यु्गों से निभा रही,

नित नियमित मासिक धर्म।


✍️ स्मिता प्रसाद दारशेतकर ( पणजी, गोवा )

पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा आयोजित ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।

पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा लोगों को स्नेह के महत्व और विशेषता का अहसास करवाने के उद्देश्य से ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव का आयोजन किया गया...