पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा मन में उठने वाली भिन्न-भिन्न भावनाओं के महत्व तथा विशेषता को दर्शाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर ऑनलाइन भावना विशेष साहित्यिक महोत्सव का आयोजन किया गया। जिसमें रचनाकारों को दस अलग-अलग शब्दों के विकल्प देकर उनमें से किसी एक शब्द का विषय के तौर पर चयन करके चयनित विषय पर आधारित रचना लिखने के लिए कहा गया। इस महोत्सव में देश के अलग-अलग राज्यों की रचनाकार शख्सियतों ने भाग लिया। जिन्होंने दिए गए विषयों पर एक से बढ़कर एक बेहतरीन रचनाओं को प्रस्तुत कर महोत्सव की शोभा में चार चाँद लगा दिए और महोत्सव को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। महोत्सव में सम्मिलित प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन 'पुनीत साहित्य गौरव' सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर ग्रुप के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने भावनाओं के महत्व तथा विशेषता के बारे में बताते हुए महोत्सव में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन व उत्साहवर्धन किया तथा सम्मान पाने वाली सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को उज्ज्वल साहित्यिक जीवन की शुभकामनाएं दी। इसके साथ ही उन्होंने ग्रुप द्वारा आयोजित होने वाले भिन्न-भिन्न ऑनलाइन कार्यक्रमों में अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए लोगों को सादर आमंत्रित भी किया। इस महोत्सव में बेहतरीन रचना प्रस्तुत करके ग्रुप की शोभा बढ़ाने वालों में प्रमुख नाम रजनी वर्मा, अमिता अनुत्तरा, करिश्मा नरेंद्र मल रचनाकारों के रहे।
रचनाकारों, कलाकारों, प्रतिभाशाली लोगों और उत्कृष्ट कार्य करने वाली शख्सियतों को प्रोत्साहित करने का विशेष मंच।
शुक्रवार, नवंबर 24, 2023
शुक्रवार, नवंबर 17, 2023
🍁 मन की भावना 🍁
दिवाली की सफाई जोर-शोर से कर रही थी,
घर का कोना-कोना साफ कर रही थी,
मकड़ी के जालों को साफ कर रही थी,
संग-संग मकड़ी को मौत के घाट उतार रही थी।
काम जब खत्म हुआ.....
निढाल हो बिस्तर पर लेट गई,
ना जाने कब सपने में खो गई,
सपने में मकड़ी से झड़प मेरी हो गई,
खरी-खोटी वो मुझे सुनाने लगी,
अपने मन की भावना वो मुझे बताने लगी।
मेरी मेहनत से बनाए खुबसूरत जालों को,
तुम पल में नष्ट कर देती हो,
मुझे भी प्राणों के घाट उतारने से,
जरा भी नहीं चुकती हो,
अपने अंदर झांक भी तो जरा देखो,
तुमने न जाने…..कितने प्रकार की,
ईष्या, द्वेष की मकड़ी पाल रखी है,
नफरत और जलन के जालें जो नित बुनती है,
और तुम्हें अंदर से खोखला करती है।
पहले इन जालों को साफ करो....
फिर मेरे खूबसूरत जालों को हटाना,
मैं क्यों ना तुम्हें सताऊं,
मैं तो तुम्हें बस यही सीखाने तुम्हारे घर,
नित्य जालें बनाती हूँ,
तुम्हें यह सीखाने तुम्हारे घर आती हूँ।
मकड़ी के मन की भावना जानकर......
मैं निहाल हो गई,
और कदरदान मैं उस नन्ही सी,
मकड़ी की हो गई,
मन में प्रेम की झाड़ू से,
नफरत और जलन के जालों को,
साफ करने लग गई।
स्नेह, सौहार्द का घी,
मधुर संबंधों के दीपक में डाल,
मन के भीतर जगमग स्नेह की,
दिवाली मैं मनाने लग गई,
और तन की सफाई के संग,
मन की सफाई अब नित्य करने लग गई।
✍️ रजनी वर्मा ( नोएडा, उत्तर प्रदेश )
💥 दीपोत्सव 💥
अंधेरे से उजाले की ओर ले जाता दीपोत्सव
आसमां से धरती तक चमकता दीपोत्सव,
हर गली, हर घर रोशन करता दीपोत्सव,
साफ-सफाई की खुशी को दर्शाता दीपोत्सव।
रंगोलियों से आंगन की रौनक बढ़ाता दीपोत्सव,
चीजों की खरीदी की जरुरत बताता दीपोत्सव,
विविध व्यंजनों को घर में बनवाता दीपोत्सव,
बच्चों के चेहरों पर मुस्कान लाता दीपोत्सव।
लक्ष्मी पूजन की विशेषता सीखाता दीपोत्सव,
दीवे जलाने का महत्व बताता दीपोत्सव,
नई चाह, नई उमंग, नई तरंग लाता दीपोत्सव,
अंधेरे से उजाले की और ले जाता दीपोत्सव।
✍️ करिश्मा नरेंद्र मल ( गढ़चिरौली, महाराष्ट्र )
👩⚖️ औरत 👩⚖️
मैं वही औरत हूँ न
अस्तित्वहीन ?
उत्साह, उमंग, उल्लास
के हर रंग को सदियों से
संजोती आ रही हूँ
फिर भी वही हूँ
दिशाहीन।
कई रूप धरे हैं मैंने
कई लक्ष्य को साधा मैंने
मातृत्व और प्रेम की
परिभाषा हूँ
फिर भी बनी हुई हूँ
लक्ष्यहीन।
क्यूँ इस पुरुषत्व के
वर्चस्व वाले संसार ने
विलुप्त कर दिया है
मेरी उपस्थिति को ?
ईश्वर की सर्वोत्तम कृति
और आकार हूँ मैं
इस गर्वित संसार की जननी
और आधार हूँ मैं।
मैं सुनती हूँ क्यूंकि माँ हूँ मैं
मैं कहती हूँ क्यूंकि प्रेम हूँ मैं
मैं सहती हूँ क्यूंकि औरत हूँ मैं।।
✍️ अमिता अनुत्तरा ( जोधपुर, राजस्थान )
पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा आयोजित ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।
पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा लोगों को स्नेह के महत्व और विशेषता का अहसास करवाने के उद्देश्य से ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव का आयोजन किया गया...
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बन जाते हैं कुछ रिश्ते ऐसे भी जो बांध देते हैं, हमें किसी से भी कुछ रिश्ते ईश्वर की देन होते हैं कुछ रिश्ते हम स्वयं बनाते हैं। बन जाते हैं ...
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जीवन में जरूरी हैं रिश्तों की छांव, बिन रिश्ते जीवन बन जाए एक घाव। रिश्ते होते हैं प्यार और अपनेपन के भूखे, बिना ममता और स्नेह के रिश्ते...
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हे प्रियतम ! आपसे मैं हूँ और आपसे ही मेरा श्रृंगार......। नही चाहिए मुझे कोई श्रृंगार-स्वर्ण मिल जाए बस आपका स्नेह.. ...