बुधवार, नवंबर 30, 2022

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित राष्ट्रीय स्तरीय ऑनलाइन सुंदरता विशेष साहित्यिक महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा लोगों को कण-कण में बसी सुंदरता का अहसास करवाने के उद्देश्य से ऑनलाइन सुंदरता विशेष साहित्यिक महोत्सव का आयोजन किया गया। जिसका 'विषय - कण-कण में है सुंदरता' रखा गया। इस महोत्सव में देवप्रिया 'अमर' तिवारी (दुबई, यू.ए.ई.) सहित देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकारों ने भाग लिया। जिन्होंने दिए गए विषय पर आधारित एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट रचनाओं को प्रस्तुत कर महोत्सव की शोभा में चार चाँद लगा दिए और महोत्सव को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस महोत्सव में सम्मिलित सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन 'पुनीत सर्वोत्तम रचनाकार' सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने सुंदरता के महत्व, विशेषता तथा उपयोगिता के बारे में बताते हुए‌ सभी देशवासियों से देश को स्वच्छ व सुंदर बनाने के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान देने की प्रार्थना की और महोत्सव में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन व उत्साहवर्धन किया तथा सम्मान पाने वाली सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को उज्ज्वल साहित्यिक जीवन की शुभकामनाएं दी। इसके साथ ही उन्होंने हिंदी रचनाकारों को आने वाले ऑनलाइन साहित्यिक महोत्सवों में अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए सादर आमंत्रित भी किया। इस महोत्सव में उत्कृष्ट रचना प्रस्तुत करके समूह की शोभा बढ़ाने वालों में प्रमुख नाम अमृता पुरोहित, जयंती खमारी 'रुही', देवप्रिया 'अमर' तिवारी रचनाकारों के रहे।

रविवार, नवंबर 27, 2022

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित राष्ट्रीय स्तरीय ऑनलाइन भारत विशेष साहित्यिक महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा भारत देश की महानता तथा विशेषता को दर्शाने के उद्देश्य से ऑनलाइन भारत विशेष साहित्यिक महोत्सव का आयोजन किया गया। जिसका 'विषय - भारत देश है विशेष' रखा गया। इस महोत्सव में देवप्रिया 'अमर' तिवारी (दुबई, यू.ए.ई.) सहित देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकारों ने भाग लिया। जिन्होंने दिए गए विषय पर आधारित एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट रचनाओं को प्रस्तुत कर महोत्सव की शोभा में चार चाँद लगा दिए और महोत्सव को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस महोत्सव में सम्मिलित सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन 'पुनीत साहित्य स्वर्ण' सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने भारत देश की महानता तथा विशेषता के बारे में बताते हुए सभी भारतवासियों को भारत की उन्नति में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए प्रेरित किया तथा महोत्सव में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन व उत्साहवर्धन किया और सम्मान पाने वाली सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को उज्ज्वल साहित्यिक जीवन की शुभकामनाएं दी। इसके साथ ही उन्होंने हिंदी रचनाकारों को आने वाले ऑनलाइन साहित्यिक महोत्सवों में अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए सादर आमंत्रित भी किया। इस महोत्सव में उत्कृष्ट रचना प्रस्तुत करके समूह की शोभा बढ़ाने वालों में प्रमुख नाम देवप्रिया 'अमर' तिवारी, अमृता पुरोहित, जयंती खमारी 'रुही' रचनाकारों के रहे।

🌻 सुरम्य सृष्टि का गीत 🌻








कण कण में जैसे रमे, मलय मधुर संगीत। 
सांसों की धुन का सुनो, गीत नया मनमीत।।

तरू पल्लव मेघा नदी, करते हैं झनकार।
कोयल कू मीठी लगे, मोहक भ्रमर गुंजार।। 
ममतामय हों लोरियां, या शिशु की किलकार।
पियु वियोग के गीत या, मीत मिलन श्रृंगार।।
जीवन का उत्सव बनी, चाहत सरगम गीत।
सांसों की धुन का सुनो, गीत नया मनमीत।।

रिमझिम बारिश में बसा, प्रेम राग का शोर।
पंख पसारे भीगता, विरहिन मन का मोर।।
दूर पपिहरा पियु करे, पियु की याद सताय।
अम्बर गरजें मेघ जब, बिरही मन अकुलाय।।
सातों सुर संगीत के, जीवन परम पुनीत।
सांसों की धुन का सुनो, गीत नया मनमीत।।

सुर खनके जब साज पर, पंख लगे आवाज।
मन की गांठें खोल कर, जानें यह सब राज।।
बंसी, वीणा, झांझणी, तबला, ढोलक, थाप।
हर धडकन में छोड़ते, यह सब अपनी छाप।।
निर्झर सा झरझर झरे, निर्मल जल नवनीत।
सांसों की धुन का सुनो, गीत नया मनमीत।।

अन्तर मन का द्वन्द या, सागर का ठहराव।
मौन मुखर सुर कर रहे, बने भंवर की नाव।।
परम व्योम में नाचती, चंचलता की धार।
सात सुरों का मेल है, जीवन का श्रृंगार।।
कविता युग का गीत है, ले भावों की प्रीत।
सांसों की धुन का सुनो, गीत नया मनमीत।।

✍️ देवप्रिया 'अमर' तिवारी  ( दुबई, यू.ए.ई. )

शनिवार, नवंबर 26, 2022

🌻 सुंदरता की खान थी वह 🌻













सुंदरता की खान थी वह।
मेरे हृदय का गान थी वह।
झूम उठा था जिसको देख,
सहज सरल शाम थी वह।।

मात-पिता की मान थी वह।
समझदार इंसान थी वह।
देख जिसे मन पुलकित हो,
वही मधुर मुस्कान थी वह।।

सर्द हवा की बयार थी वह‌।
महकती फुहार थी वह।
भूल गया हूँ खुद को अब,
वो हँसी मुलाकात थी वह।।

मुचमुच-मुचमुच इठलाती मुझमें।
विराजे जो हृदय सिंहासन में।
भूला भटका आया घर पर,
भौंरा ठहरा देखो मकरंद में।।

कभी-कभी खोजूँ मैं खुद में।
ओस सम बन चमके चमन में।
भूल न जाना हरदम कहता,
जीवन बन आना जीवन में।।

✍️ जयंती खमारी 'रूही' ( सक्ती, छत्तीसगढ़ )

🇮🇳 मेरे भारत सा ना कोई मिला 🇮🇳












देख ली सारी दुनिया,
पर मेरे भारत सा ना कोई मिला।
दुनिया के इस चमन में मेरे वतन सा,
ना कोई फूल खिला।
धन्य है भारत की धरती,
अक्षुण्य यहां की धरोहर है।
मेरे भारत का क्या कहना,
ये तो स्वर्ग से भी सुंदर है।
निराले हैं यहां के तीज त्यौहार,
इन सब में मुझे सद्भाव मिला।
देख ली मैंने सारी दुनिया,
पर मेरे भारत सा ना कोई मिला।

ऊंचे हिमालय की चोटियां,
मेरे भारत का अभिमान हैं।
गंगा की पावन अमृतधारा है यहां,
पक्षी भी सुनाते मधुर तान हैं।
लहलहा उठती हैं फसलें खेतों की,
मिट्टी में मुझे सोना ही मिला।
देख ली सारी दुनिया,
पर मेरे भारत सा ना कोई मिला।

शत्रुओं ने कई आक्रमण किए।
और दर्द दिया भारतीयता को
देश के वीरों ने बलिदान देकर,
सदैव ही बताया है उनको,
अजर अमर है मेरा भारत।
आंख उठाकर ना देखना,
इस ओर गर कदम बढ़ाया तो,
मुश्किल कर देंगे जीना।
ऐसे शूरवीरों के दम पर ही
मेरे भारत का वजूद कभी न हिला।
देख ली सारी दुनिया
पर मेरे भारत सा ना कोई मिला।

✍️ अमृता पुरोहित ( पंचमहल, गुजरात )

शुक्रवार, नवंबर 25, 2022

🇮🇳 भारत मेरा अभिमान 🇮🇳










जय हिन्द बोल कहते जब जब,
तन मन मेरे ज्वाला भड़के।
अंग अंग मेरा ललकार रहा, 
शत्रु भयभीत होकर तड़पे।

रग रग में मातृभूमि की सेवा,
सैनिक बन सरहदों पर बैठे।
मात की ममता को बचाने, 
हरदम शीश कटाने बैठे।
भूल चुका जो मानव मानवता,
उनको सबक सिखाने धधके।
जय हिन्द बोल कहते जब जब,
तन मन मेरे ज्वाला भड़के।

भारत की रखवाली करने,
जगत नाथ धरती पर आते।
कभी राम कभी कृष्ण बनकर,
अधर्मियों का संहार करते।
देश भक्ति की बयार बही है, 
मत उलझो कहते हम डटके।
जय हिन्द बोल कहते जब जब,
तन मन मेरे ज्वाला भड़के।

राम भी हम में रहीम भी हम में,
मत उलझाओं मां के लाल को।
कण कण में बहती है समता, 
जान से जाओगे भांप लो।
भारत है मेरा अभिमान, 
वीर बोले है देखो जम के।
जय हिन्द बोल कहते जब जब,
तन मन मेरे ज्वाला भड़के।

इंकलाब हो या हो अहिंसा, 
सब कुछ तुमने मुझमें पाया।
फिर भी आंख दिखाकर तुमने,
लाठी राह पर है अड़ाया।
रिश्तों की मर्यादा भूले, 
तुम कैसे विद्रोही बन आए।
अस्तित्व की चिंता छोड़ तुमने, 
हिंसा रूप को अपनाया।
बहुत हुआ अब संभल जाओ, 
देखो विश्लेषण करके।
शौर्यवान है धरती मेरी, 
देखो तो इतिहास खोल के।
जय हिन्द बोल कहते जब जब,
तन मन मेरे ज्वाला भड़के।

✍️ जयंती खमारी 'रूही' ( सक्ती, छत्तीसगढ़ )

🇮🇳 अमर रहें माँ भारती, अमर रहे परिवेश 🇮🇳








जीयो जीने दो यही, भारत का संदेश।
सत्य अहिंसा शांति ही, हैं इसके उपदेश।।
जां से प्यारा है मुझे, मेरा भारत देश। 
अमर रहें माँ भारती, अमर रहे परिवेश।।

मिली विश्व गुरु रूप में, इसे अलग पहचान।
गंगा जमुनी सभ्यता, भारत की है शान।।
पावन वंदेमातरम, जण गण सुंदर गान।
जग में प्यारे नाम है, भारत, हिन्दुस्तान।।
बोस भगत आजाद हैं, आजादी का भान।
लक्ष्मी शिवा प्रताप के, मत भूलो बलिदान।।
लाखों के बलिदान हैं, आजादी के नाम।
सभी शहीदों को करूँ, शत शत बार प्रणाम।।
कई रंग की सभ्यता, बोली भाषा भेष। 
भाईचारे से रहें, दिल में रहें न द्वेष।।

जां से प्यारा है मुझे, मेरा भारत देश। 
अमर रहें माँ भारती, अमर रहे परिवेश।।

शब्द आरती प्रेर सँग, गूँजे यहाँ अजान।
सब धर्मों का देश में, होता है सम्मान।।
अतिथि लगे है देव सम, जग परिवार समान। 
पर दुश्मन को भेजते, हम सीधे शमशान।।
जंगल जंगल हम फिरें, चाहे जाए जान।
प्राणों से ज्यादा करें, हम वचनों का मान।।
होली या दीपावली, क्रिसमस डे रमजान।
पर्वो के उल्लास हैं, खुशियों के उद्यान।।
कण कण में इसके बसें, ब्रह्मा विष्णु महेश।
अडिग आस्था से लगे, सुन्दर हर परिवेश।।

जां से प्यारा है मुझे, मेरा भारत देश। 
अमर रहें माँ भारती, अमर रहे परिवेश।।

तुलसी सूर कबीर हैं, मीरा और रसखान।
भूषण जगनिक ने रचा, है साहित्य महान।।
रहा पुरातन काल से, शोध सुगम विज्ञान।
हमने खोजा शून्य भी, भेजा मंगलयान।।
उड़े तिरंगा नभ छुये, ऐसी भरें उड़ान। 
सबसे आगे ये रहे, दिल का है अरमान।।
भारत की खातिर लड़ें, इस पर दे दें प्राण।
हर भारतवासी करें, भारत पर अभिमान।।
कटुता कुन्ठा शत्रुता, रहे न कोई क्लेश।
भाई चारा मित्रता, है अपना संदेश।।

जां से प्यारा है मुझे, मेरा भारत देश। 
अमर रहें माँ भारती, अमर रहे परिवेश।।

✍️ देवप्रिया 'अमर' तिवारी ( दुबई, यू.ए.ई )

गुरुवार, नवंबर 24, 2022

🌻 प्रकृति में सुंदरता 🌻













प्रकृति तेरे हर कण में
सुंदरता समाई है।
कहीं है कल-कल करती नदियां
तो कहीं पहाड़ों की गहराई है।
खूबसूरती ने तेरी छवि
हर मन में बसाई है।
प्रकृति तेरे हर कण में 
सुंदरता समाई है।

हरे-भरे वनों ने हरियाली की
नई परिभाषा बनाई है।
रसीले फलों से लदे पेड़ों ने
झुककर विनम्रता की
सुरीली तान गाई है।
प्रकृति तेरे हर कण में
सुंदरता समाई है।

रेगिस्तान की तपती रेत में भी
मुझे सौंदर्य दिखता है।
सावन में जब बरखा का पानी
पेड़ों की पत्तियों पर बरसता है।
लगता है जैसे तूने ही कोई
खूबसूरत गजल सुनाई है।
प्रकृति तेरे हर कण में
सुंदरता समाई है।

मुलायम बर्फ की चादरें
जब तन में ठिठुरन पैदा करती हैं।
समंदर की लहरें जब मुझसे
अठखेलियां करती हैं।
सुबह सूरज की किरणें जब
ओस की बूंदों पर पड़ती हैं।
तब लगता है कि जिंदगी की
खूबसूरती यही है जिसने
जीने की चाहत बढ़ाई है।
सचमुच स्वर्ग की तरह 
सुंदर है तू।
प्रकृति तेरे हर कण में
सुंदरता समाई है।

 ✍️ अमृता पुरोहित ( पंचमहल, गुजरात )


शनिवार, नवंबर 19, 2022

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित राष्ट्रीय स्तरीय ऑनलाइन वक्त विशेष साहित्यिक महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा लोगों को वक्त के महत्व का अहसास करवाने के उद्देश्य से ऑनलाइन वक्त विशेष साहित्यिक महोत्सव का आयोजन किया गया। जिसका 'विषय - वक्त का महत्व' रखा गया। इस महोत्सव में देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकारों ने भाग लिया। जिन्होंने दिए गए विषय पर आधारित एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट रचनाओं को प्रस्तुत कर महोत्सव की शोभा में चार चाँद लगा दिए और महोत्सव को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस महोत्सव में एक ओर जहां वरिष्ठ रचनाकारों ने रचनाओं में अपनी विशिष्ट साहित्यिक शैली का प्रदर्शन किया तो दूसरी ओर समूह से जुड़े नवीन रचनाकारों ने भी अपनी अनूठी भावनाओं और विचारों से समूह का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित किया। महोत्सव में सम्मिलित सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन 'पुनीत वक्त गौरव' सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने जीवन में वक्त के महत्व के बारे में बताते हुए सभी लोगों को वक्त के साथ चलने के लिए प्रेरित किया तथा महोत्सव में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन व उत्साहवर्धन किया और सम्मान पाने वाली सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को उज्ज्वल साहित्यिक जीवन की शुभकामनाएं दी। इसके साथ ही उन्होंने हिंदी रचनाकारों को आने वाले ऑनलाइन साहित्यिक महोत्सवों में अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए सादर आमंत्रित भी किया। इस महोत्सव में उत्कृष्ट रचना प्रस्तुत करके समूह की शोभा बढ़ाने वालों में प्रमुख नाम संध्या शर्मा, भारती राय, स्मिता चौहान, कल्पना यादव रचनाकारों के रहे।

बुधवार, नवंबर 16, 2022

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित राष्ट्रीय स्तरीय ऑनलाइन बाल दिवस साहित्यिक महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा बाल दिवस के उपलक्ष्य में ऑनलाइन बाल दिवस साहित्यिक महोत्सव का आयोजन किया गया। जिसका विषय 'बचपन होता है विशेष' रखा गया। इस महोत्सव में देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकारों ने भाग लिया। जिन्होंने दिए गए विषय पर आधारित एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट रचनाओं को प्रस्तुत कर ऑनलाइन बाल दिवस साहित्यिक महोत्सव की शोभा में चार चाँद लगा दिए और ऑनलाइन बाल दिवस साहित्यिक महोत्सव को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस महोत्सव में भारती राय ( नोएडा, उत्तर प्रदेश ) और संध्या शर्मा ( पटना, बिहार ) द्वारा प्रस्तुत की गई रचनाओं ने समूह का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित किया। महोत्सव में सम्मिलित सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन 'पुनीत बाल साहित्य रत्न' सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू जी को कोटि-कोटि नमन करते हुए सभी देशवासियों को उनकी भांति बच्चों से स्नेह करने के लिए प्रेरित किया और महोत्सव में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन एवं उत्साहवर्धन किया तथा सम्मान पाने वाली प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को उज्ज्वल साहित्यिक जीवन की शुभकामनाएं दी। इसके साथ ही उन्होंने हिंदी रचनाकारों को समूह द्वारा आयोजित होने वाले विभिन्न ऑनलाइन साहित्यिक कार्यक्रमों में अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए सादर आमंत्रित भी किया। इस महोत्सव में उत्कृष्ट रचना प्रस्तुत करके समूह की शोभा बढ़ाने वालों में प्रमुख नाम भारती राय, संध्या शर्मा, कल्पना यादव, स्मिता चौहान रचनाकारों के रहे।

⏲️ वक्त की पहचान ⏲️

"मैं समय हूँ "यह पंक्ति आप सब ने महाभारत धारावाहिक में सुनी होगी। वक्त का हम सब के जीवन में बहुत महत्त्व है। कभी अच्छा तो कभी बुरा वक्त भी आता है, पर हमेशा एक सा नही रहता। बस हमें उस की कद्र करनी चाहिए। हम हमेशा सुनते आए हैं कि वक्त कभी किसी के लिए नही रुकता इसलिए उसका सही उपयोग कर लो वरना उसके गुजरने के बाद आप बस अफ़सोस ही करते रह जाओगे। इस इक्कीसवीं सदी में लोगों को लगने लगा था कि वह वक्त को काबू में कर सकतें हैं, उसे अपने अनुरूप चला सकते हैं। हम सब अपने आने वाले वक्त को अच्छा बनाने के लिए, जिसका यह भी नही पता कि हम उसको देख भी पाएँगे कि नही अपना आज का वक्त खो रहे हैं। और इस का अहसास हमें अभी आई कोरोना महामारी ने करा दिया। कल का किसी को नही पता इसलिए अपने किसी भी कार्य को कल पर ना डालें, उसी वक्त में कर लें, चाहें वह किसी अपने से मिलना हो या दिल की बात कहनी हो । कबीर जी का एक दोहा है,
 "काल करे सो आज कर, आज करे सो अब, 
  पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब"।
तो वक्त रहते वक्त का महत्व पहचानिए वरना वक्त आप को नही पहचानेगा।
        
          ✍️ स्मिता चौहान ( गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश )

मंगलवार, नवंबर 15, 2022

⏲️ बेरहम वक्त ⏲️








यह वक्त भी 
कितना बेरहम होता है
कभी एकदम सख्त तो 
कभी नरम होता है
वक्त के साथ चल पाना 
बड़ा मुश्किल है यारों
वक्त कभी जख्म देता है तो 
कभी जख्म का मरहम होता है
वक्त सही हो तो 
हमारा हमदम होता है
वक्त पलट जाए तो
गम ही गम होता है
वक्त को मुट्ठी में 
पकड़ सकते नही हम
वक्त देखने में भले मोती हो 
पर फूलों पर गिरा शबनम होता है

✍️ संध्या शर्मा ( पटना, बिहार )

🤹 बचपन मरने ना दो 🤹

"मेम साहब मुझे बुखार हो रहा है, एक दो दिन की छुट्टी चाहिए "राधिका ने कहा। कैसी बात कर रही है राधिका, तुझे पता है ना मेरे पास बिल्कुल भी समय नहीं होता है तू किसी और को बोल अपनी जगह काम करने को" सुधा बोली। "मेम साहब मैंने पूछा था पर कोई भी साथ की कामवाली तैयार नही है।" मुझे नही पता राधिका, तेरी बेटी भी तो है तू उसको भेज दे अपनी जगह।" "कैसी बात कर रही हैं मेम साहब वो तो अभी छोटी बच्ची है और स्कूल जाती है। वैसे भी मैं अपनी बच्ची का बचपन नही छीन सकती।" "देख राधिका मुझे कुछ नहीं पता या तो तू अपनी जगह बेटी को भेज नही तो मैं किसी और को रख लूंगी। मेरे पास समय नही होता घर के काम का और कल बाल दिवस है मेरे कल कई कार्यक्रम है।" कहकर सुधा ने फोन रख दिया। पास बैठे सुधा के पति जो सारी बातें सुन रहे थे बोले "क्या हुआ सुधा क्यों इतनी परेशान हो ?" अरे ! ये राधिका जरूरत के समय छुट्टी कर लेती है और अपनी बच्ची को भी नही भेज रही।" तुम परेशान ना हो कल मेरी और पीहू की छुट्टी है हम दोनों मिलकर सब संभाल लेंगे तुम अपने बाल दिवस के कार्यक्रम पर ध्यान दो जहां तुम मुख्य अतिथि हो"। "कैसी बात कर रहे हैं आप पीहू छोटी बच्ची है वो घर का काम कैसे करेगी।" " वैसे ही जैसे राधिका की बेटी करेगी, पीहू उसकी ही हम उम्र है ना तो हमारी बेटी भी तो कर सकती है ना" सुधा के पति ने कहा। सुधा को समझ आ गया कि वो क्या गलती कर रही थी। मुझे माफ कर दीजिए भूल गई थी कि अपने स्वार्थ में मैं किसी बच्चे का बचपन छीनने चली थी। मैं अभी राधिका को फोन कर के माफी मांगती हूँ।

                   ✍️ स्मिता चौहान ( गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश )

सोमवार, नवंबर 14, 2022

🤹 बच्चों की ख्वाहिश 🤹








बाल दिवस पर,
महज।
कुछ भाषण।
कुछ निर्देश।
पेन, पेन्सिल, फल, 
मिठाईयो  के उपहार,
मत लाना।
ले आना,
इस बार।
अंग्रेजी माध्यम का "बस्ता"
खिलौनों का ढेर,
कार की लम्बी सैर,
शाही नाश्ता,
मोटी किताबें,
बड़े शहर का "कालेज"
विदेश जाने के "स्वप्न"
"उड़कर" गांव आने की राह, 
ताकि आसान हो जाए
बाबू का कर्ज,
उतर सके,
अम्मा की धोती,
पर लग सकें,
"रेशमी पैबंद"
निम्बोलियों तले,
मुरझाते हैं स्वप्न,
हर बरस,
कि तरह,
इस बार हमें।
विमर्श  का हिस्सा,
मत बनाना।
कुछ,
जेब ढीली करना।
कुछ दिल,
बड़ा करके।

✍️ कल्पना यादव ( कानपुर, उत्तर प्रदेश )

शनिवार, नवंबर 12, 2022

⏲️ वक्त ⏲️








वक्त !
हमेशा एक सा नही रहता !
वक्त !
खराब-अच्छा कभी हुआ ही नही,
खराब-अच्छे हुए हैं  "हम"
कोसना !
वक्त को क्यूं ?
दोष खुद को भी कभी !
झांकना जब गिरेबान में था,
हम !
घड़ी की सुईयों की रफ्तार देखते रहे,
वक्त !
रूका सा है !
"वह" चला ही कब था,
दौड़ तो तुम रहे हो,
"अन्धी दौड़ें "
जिनके छोर तलाशते,
बीतेंगी सदियां !
साथ ही !
बीतेगा मनुष्य भी,
वो वक्त ही था,
जब बिछीं खुशियों की रंगीन चादरें !
और वो भी,
वक्त ही था !
जब ! रूदालियों ने पीटी छातियां !
वक्त के पहियों के साथ, 
दौड़ते रहे हम,
या !
हमारे साथ दौड़ा वक्त !
कौन जानता है !
समय ने छलनी किये तमाम सीने,
तो !
बजाई शहनाईयां भी !
विदाई की अन्तिम बेला में,
जब !
प्रेयसी ने रोके पलकों पर "अश्क"
कभी किसी वक्त !
बाहों में झूलकर छेड़े थे,
हज़ारों राग भी !
वक्त-वक्त की बात है !
कभी दुःखों के साझीदार भी,
बन जाते हैं "मुखौटे"
काल की मार से बचा है कोई  !
जो ! तू बचेगा !
बस तू !
वक्त से कदम ताल मिला !

✍️ कल्पना यादव ( कानपुर, उत्तर प्रदेश )

शुक्रवार, नवंबर 11, 2022

🤹 बच्चों के लिए गुरु मंत्र 🤹



 




स्वच्छ रहना सीखो सदा
 स्वस्थ रहकर जियो सदा
 जब सफाई से हटे जरा
 तन होगा रोगों से भरा
 अगर चाहते रहना स्वस्थ
 रखो हमेशा तन को स्वच्छ
 स्वच्छ रहोगे स्वस्थ रहोगे
 जीवन में तुम मस्त रहोगे
 स्वच्छता को यदि पहचानोगे
 जीवन जीना तुम जानोगे
 अच्छी तरह से धोना हाथ
 फिर लेना भोजन का साथ
 जंक फूड से दूर रहोगे
 रोगों को तुम दूर रखोगे  
 चीनी तो तुम ना ही खाना
 उसकी जगह गुड़ अपनाना
 रोज सवेरे लेना बाथ
 अच्छी नींद में कटेगी रात
 रात में हो जो दूध का ग्लास
 परीक्षा में तुम होगे पास
 खेल कर जब घर आओगे
 तन में ताजगी पाओगे
 स्वच्छ रखना अपने वस्त्र
 याद रखना ये सारे मंत्र
 स्वास्थ्य हमारा पहला धन है
 फिर रोटी, घर और वसन है

 ✍️ संध्या शर्मा ( पटना, बिहार )

गुरुवार, नवंबर 10, 2022

🤹 भिन्न हुआ बचपन कैसे‌ 🤹











देख एक बच्चे को चुनते कचरा

मेरी बेटी ने प्रश्न किया गहरा

माँवो भी तो है बच्चा मुझसा

तो क्यों उसके बचपन पर पहरा ?

क्यों मैं फिरती नाज़ों से और

क्यों वो चुनता फिरता कचरा ?


माँवो बचपन क्यों पैबंद में लिपटा ?

क्यों मैं बदलूँ सुंदर कपड़े टपट ?

क्यों सब मुझसे लाड लड़ाते

क्यों उसको कहते ‘चल हट’ ?


क्यों मेरी पीठ पे महँगा बस्ता ?

क्यों कचरे का थैला उसे मिला ?

क्यों उसका मटमैला बचपन ?

क्यों मेरा रंगों से खिला ?


माँमैं क्यों पढ़ने जाती हूँ ?

क्यों हक़ शिक्षा का उसको नही मिला ?

जब हम दोनों ही बच्चे हैं

तो बचपन कैसे भिन्न भला ?


सुनकर बेटी के प्रश्नों को

मैं भीतर-भीतर सोचती हूँ

तीर से चुभते लेकिन सच्चे

इन प्रश्नों के उत्तर खोजती हूँ


लाख कोशिशें करती हूँ

गूगलट्विटर भी खोलती हूँ

पुस्तकलेखनिबंध और टीवी

हर सम्भावित जगहें टटोलती हूँ


पाती हूँ इन पर बातें बड़ी

लेखनिबंधडिबेट की लगी झड़ी

किंतु हल मिलता कहीं नही

बस बातें होतीं बड़ी-बड़ी


उपजे बालमन के प्रश्न ये गूढ़ ड़े

मानोमुँह बाये उत्तर सुनने को खड़े

क्यों एक तरफ़ मटमैला बचपन

क्यों दूसरी ओर रत्नों से जड़े ?


बिटिया के प्रश्न हैं नश्तर से

मानो सीने में चुभते हों जैसे

जब हम दोनों ही बच्चे हैं

तो भिन्न हुआ बचपन कैसे…?

बोलो

हुआ भिन्न बचपन कैसे ?


✍️ भारती राय ( नोएडा, उत्तर प्रदेश )

मंगलवार, नवंबर 08, 2022

⏲️ समय का व्याकरण ⏲️











समय का व्याकरण 

और हम...

 के जाल में उलझे

बुनते ताने बाने

छोटा बड़ा 

क्या घटाऊँक्या बढ़ाऊँ

रिश्ते घटतेअसंवेदनशीलता बढ़ते

देखते सब कुछ

मोहमाया के जंजाल में फँसे...

ज़िंदगी हमपर जैसे लगातार कोई तं कसे,

 का भी खेल निराला

लयसुरताल पर पड़ गया ताला...

जीवन की डगर कभी इधर से गुजरे

तो कभी उधर से गुजरे

जिंदगी करती दिखती बिन ताल के मुजरे...

सोचने बैठे अंअः

होंठो पर हंसी गायब स्वतः..

कितने और उतार चढ़ाव 

जाने क्या है जीवन का बहाव...

आँखों की नदी अब बनी समंदर 

गहरी वेदना इसके अंदर....

कुछ भी नही बचा अब शेष 

चल रही हैं बस साँसें और धड़कन...

और समय के इस व्याकरण में

बस उलझे रह गए हम...


   ✍️ भारती राय ( नोएडा, उत्तर प्रदेश )

पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा आयोजित ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।

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