शनिवार, जनवरी 29, 2022

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित ऑनलाइन 'नारी रचनाकार प्रशस्ति कार्यक्रम' में नारी रचनाकार शख्सियतों की प्रतिभा को किया गया नमन।

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा नारी रचनाकार शख्सियतों की प्रतिभा को नमन करने के उद्देश्य से ऑनलाइन 'नारी रचनाकार प्रशस्ति कार्यक्रम' का आयोजन किया गया। जिसमें रचनाकारों को अलग-अलग विषयों के विकल्प देकर उसमें से किसी एक विषय का चयन करके उस विषय पर आधारित रचना लिखने के लिए कहा गया था। इस कार्यक्रम में अर्चना वर्मा (क्यूबेक, कनाडा) सहित देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकारों ने भाग लिया। जिन्होंने दिए गए विषयों पर आधारित एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट रचनाओं को प्रस्तुत कर ऑनलाइन 'नारी रचनाकार प्रशस्ति कार्यक्रम' की शोभा में चार चाँद लगा दिए। इस महोत्सव में ममता रिछारिया (हरदा, मध्य प्रदेश), शिप्रा गुप्ता (हरिद्वार, उत्तराखंड), चंचल जैन (मुंबई, महाराष्ट्र) तथा डाॅ. इन्दु अग्रवाल (देहरादून, उत्तराखंड) की रचनाओं ने सभी का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित किया। इस ऑनलाइन प्रशस्ति कार्यक्रम में सम्मिलित सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन 'पुनीत रचनाकार' प्रशस्ति पत्र देकर उनका उत्साहवर्धन किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने नारी रचनाकार शख्सियतों की प्रतिभा को नमन करते हुए, प्रशस्ति पत्र पाने वाली सभी प्रतिभागी रचनाकारों को उज्ज्वल साहित्यिक जीवन की शुभकामनाएं दी और रचनाकारों को आने वाले ऑनलाइन साहित्यिक महोत्सवों में अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए सादर आमंत्रित भी किया। इस महोत्सव में उत्कृष्ट रचना प्रस्तुत करके समूह की शोभा बढ़ाने वालों में प्रमुख नाम सुनीता सोलंकी 'मीना', कुसुम अशोक सुराणा, चंचल जैन, जया वैष्णव, डाॅ. ऋतु नागर, शिप्रा गुप्ता, अंजली सारस्वत शर्मा, अर्चना वर्मा, सीमा गुप्ता, जया विनय तागड़े, ममता रिछारिया, नर्मदा दीवान 'नैना', मीता लुनिवाल, डॉ. उमा सिंह बघेल, प्रतिभा सिंह, डाॅ. इन्दु अग्रवाल रचनाकारों के रहे।




शुक्रवार, जनवरी 28, 2022

🏆 नयन 🏆

 








विचित्र बड़ा इसका चयन है

समझो ! हर भाव दर्शाते नयन है

कभी शून्य भाव से निहारते नयन

कभी हँसमुख झलक दिखाते नयन है


कभी सावन से बरसते नयन है

कभी नयन से अंगार दहकते है

आशा पर नयन आस लगाते है 

निराशा हो तो नयन छलकते है

विचित्र बड़ा इसका चयन है

समझो ! हर भाव दर्शाते नयन है


कभी रोते नयन

कभी हँसते नयन है 

हृदय भरे घाव को 

कभी देखते नयन है

आँसू से भीगें-भीगें नयन

जीना सीखाते है 

लाज से सिमटते नयन

अपने विशेष भाव दिखाते हैं

नयन से नयन जब मिले

दिल की बात लगे सच 

नयन से नयन दिल की 

प्रेम कहानी पढ़ लेते हैं

विचित्र बड़ा इसका चयन है

समझो ! हर भाव दर्शाते नयन है


बेटी जब ससुराल से आती 

माँ के नयन हाल-ए-दिल समझते

माँ के नयन से कुछ छिपा नही रहता 

यह एक व्यक्ति नही बल्कि सब जग कहता 

विचित्र बड़ा इसका चयन है

समझो ! हर भाव दर्शाते नयन है


जब भूख से पेट जलता 

दिन-रात नयन व्याकुल रहते

जब बच्चे को दूध नही मिलता 

माँ की ममता अश्रुधारा बन

नयनों से बहती है

विचित्र बड़ा इसका चयन है

समझो ! हर भाव दर्शाते नयन है


आराधना कर भगवान की 

अपने आराध्यों के दर्शनों की

उम्मीद पर नयन टिके रहते हैं

नयन जब हद से ज्यादा थक जाते हैं

तब गहरी निद्रा स्वप्न में वह ढल जाते हैं

विचित्र बड़ा इसका चयन है

समझो ! हर भाव दर्शाते नयन है


                 ✍️ अर्चना वर्मा ( क्यूबेक, कनाडा )

🏆 समाज का गौरव बेटियां 🏆








बेटियां मुस्कुराती हैं, 
तो ये जहां है खिलखिलाता,
एक नन्ही सी कली...
जब बाबा की बगिया में आती,
तो वह बगिया रंगीन हो जाती,
कड़ी धूप में भी छांव का एहसास कराती,
जाने कब वह समझदार हो जाती,
माँ की आंखों की जुबां को,
बिन कहे ही समझ जाती,
हैं सपने इनके भी...
आज हर क्षेत्र में खुद को आजमाती,
वह ज़मीं से लेकर आसमां,
तक को अपने पैगाम है सुनाती,
वक्त के क्रूर दौर में जो,
सहमी, सिसकी, अस्तित्व विहीन नारी,
थी बंद झरोखे में कैद,
अजन्मी ही भूला दी जाती,
आज का दौर....
उनके जज्बे को सलाम करता है,
संस्कृति, कला, साहित्य, विज्ञान,
कोई जगत अछूता नहीं,
जिसमें ये अपना परचम फहराती,
आज प्रगतिशील समाज की...
पहचान बन गई,
वह नन्ही बिटिया......
आज माँ बाबा का....
अभिमान बन गई।

          ✍️ डॉ. ऋतु नागर ( मुंबई, महाराष्ट्र )


🏆 रात का ख्वाब 🏆








रात के ख्वाब में

मौन के जवाब में

मैं छज्जे पे आई

अरमां संग ले आई

रात यूँ ही चलने दे

आस यूँ ही पलने दे

 

राज़ मन के खोल लूँ

मुख से कुछ तो बोल लूँ

तारे नभ में टहल रहे

जज्बे दिल में महक रहे

खुमार अभी बाक़ी है

सामने खड़ा साकी है

कहे तो इक बूँद पी लूँ     

कुछ पल मैं भी जी लूँ

नक़ाब चेहरे से हटाऊँ

नगमे प्यारे से सुनाऊं

आगोश में मुझे समाने दे

जुगनू सा मुझे जगमगाने दे

रात के ख्वाब में

मौन के जवाब में।

 

मन हंसा भी मन रोया भी

मैंने पाया भी मैंने खोया भी

सुख दुख सब मैंने सहे

निर्झर अश्रु तब बहे

मिले मुझे वो गम

जाने कब होंगे कम

शब्दस्पर्शरसरूपगंध

तपस्या करते रहे भंग

'शिव रूप है जगत                 

रूप बदले शत शत                 

सुहानी इक भोर आने दे

बंद आँख अब खुल जाने दे

रात के ख्वाब में, 

मौन के जवाब में।


ख्वाब की ताबीर क्या

मुक़द्दर से हासिल क्या

वक़्त की रफ्तार से चल

सुबह के इंतज़ार में पल

पाप पुण्य आजकल

परे इनके मिलेगा हल

अनंत की आवाज़ सुनूँ

बंदगी का अंदाज़ गुनूँ

सागर की एक लहर बनूँ

झर-झर झरने सी झरूँ

पहुंचूँ मैं अनंत तक

फैलूँ दिग्दिगंत तक

रात के ख्वाब में

मौन के जवाब में।


             ✍️ डॉ. इन्दु अग्रवाल ( देहरादून, उत्तराखंड )

🏆 हल्ला बोल 🏆








दरवाज़े पर लगी डोरबेल बजती हैं। सुधा टीवी की आवाज़ कम कर दरवाज़ा खोलती हैं। दरवाजा खुलने का इंतज़ार कर रही अज़नबी महिला को देख ठिठक जाती हैं और पुछती हैं।
'ज़ी कहिए किससे मिलना है आपकों..?'

ये सुनकर वो अज़नबी महिला उत्तर देती हैं। 'आप ही से..! क्या हम बात कर सकते हैं..? दरअसल, मुझें आपसे आपके पति के बारे में कुछ बात करनी हैं।'

'रमेश के बारे में बातचीत..! आईये अंदर आईये।' हैरानी जताते हुए सुधा उस महिला को अंदर ले जाती हैं। 

सुधा की जिज्ञासा को शान्त करते हुए वो अज़नबी महिला अपना परिचय देती हैं - 'मेरा नाम नीलिमा हैं आपके पति मेरे मित्र हैं। लेकिन पिछले कुछ दिनों से उसका व्यवहार मेरे प्रति बदल गया हैं। वो मुझसे प्रेम निवेदन करता है।' 

'छी.! ये आप क्या कह रही हैं...? मेरे पति मेरे लिए ईश्वरतुल्य हैं वो किसी पराई स्त्री की तरफ आँख उठाकर भी नहीं देखते। और आप..!' ये कहते हुए सुधा परेशान हो जाती हैं।

'मैं जानती थी आप मेरी बातों पर भरोसा नहीं करेंगी। ये देखिए सोशल मीडिया पर भेजे गए आपके पति के मैसेज और बातचीत की रिकॉर्डिंग।' निर्भीकता से ये कहते हुए नीलिमा अपने सेलफोन पर सुधा को मैसेज दिखाती हैं। 

ये देखकर सुधा धक्क सी रह जाती हैं। फिर अपने आपको संभालते हुए कहती है- 'आमतौर पर महिलाएँ इस तरह की घटनाओं को किसी से साँझा नही करती। फ़िर आप मुझे ये सब ..!'

'वो महिलाए गलती करती हैं ज़ब तक हम महिलाए पुरुषों की करतूतों को उनके घर तक नही पहुँचाएगी तब तक पुरुष हम महिलाओँ का शोषण करता रहेगा। ये सिलसिला तभी टूट सकता है जब प्रत्येक महिला ये ठान ले कि वो दूसरी महिला का अहित कभी नही होने देगी।' नीलिमा ने दृढ़ता से कहा।

'आप ठीक कह रही हैं नीलिमा जी, तभी सही मायनों में एक महिला दूसरी महिला की हितैषी हो सकती हैं।'

'अ.. अ... मुझें लगता है कि मैंने आपका काफ़ी समय ले लिया हैं अच्छा अब मैं चलती हूँ।' ये कहते हुए नीलिमा हाथ जोड़ते हुए बाहर जाने के लिए उठ खड़ी होती है। कि तभी सुधा बोल बड़ती हैं- 'मैं भी ...!'  
नीलिमा बड़ी हैरानी से पुछती हैं -'ज़ी क्या कहा आपने..?'
तब सुधा बड़े इत्मीनान से उत्तर देती हैं। 'आपने जो ये "हल्ला बोल" जागरूकता की शुरूआत की हैं अब मुझे भी तो इसे आगे बढ़ाना हैं।' 

                                  ✍️ जया विनय तागड़े ( भोपाल, मध्य प्रदेश )

🏆 प्रकृति के अनूठे नज़ारे 🏆








प्रकृति ने फैलाई बाहें,
मुस्कुराई वसुंधरा,
खिलखिलाई सूरजमुखी,
पुलकित हुई धरा।

सूरज ने दौड़ाए घोड़े,
रश्मियों ने नयन खोले,
डालियों पर झूला झूले,
परिंदों के श्वेत जोड़े।

वृक्षों की ठंडी छांव में,
सुस्ताए थके-हारे राही
सूर्य को माथे पर देख,
साथ छोड़ गई परछाई।

रंग बदलती दुनिया में,
सूरज भी निकला बेवफ़ा,
रोशनी के ख़्वाब सजा,
दरख्तों के पीछे जा छुपा।

निशा ने ली अंगड़ाई,
लहरों ने बजाई शहनाई,
हवाओं ने‌ लहराया आंचल,
प्राची ने उंडेला गुलाल।

हिमशिखरों को चूम चला,
श्वेत बादलों का जत्था,
शिव के विराट स्वरुप समक्ष,
विनीत जगत का मत्था। 

          ✍️ कुसुम अशोक सुराणा ( मुंबई, महाराष्ट्र )


🏆 दिल और दिमाग की तकरार 🏆








प्रि..
"ये दिल तुम बिन कहीं लगता नही हम क्या करें।"

सुनो! याद है तुम्हे यह गाना! एक समय यह हम दोनों का मनपसंद गाना था। मेरा तो आज भी है। 
वो तुम ही तो हो जिसके लिए मेरे दिल और दिमाग में तकरार हुई।
         ...दिमाग की कठोर दलील की जमीं पर
           दिल के कोमल भाव की बरसात हुई...

तुम भी तो भीगे थे इस बरसात में।
तुम्हारा साथ पाकर सारे रिश्ते भुला दिए मैने। दिमाग ने कुछ समझाना भी चाहा, पर दिल ने इसे दरकिनार कर दिया।
प्यार की ताकत ही तो थी जिसके भरोसे दिल अकेला ही दिमाग़ जैसे महारथी से भिड़ गया।
हम दोनो ही खुश थे।
        ....दिल से दिल की बात हो रही थी,
         एक नए रिश्ते की शुरुआत हो रही थी...

तुम्हे पता है दिल का अपना ही दिमाग़ होता है, कोमल, मासूम और जज़्बातों से भरा।
कहां सोचता है कुछ नकारात्मक। फैसला भी लेता है भावों से भरा। जमाने के बनाए नियमों से दूर। जिनके दम पर सबसे लड़ने की ताकत रखता है।
मैंने भी लिया और तुमने भी लिया वो फैसला।

          ....मेरा तुमसे जो एक संबंध था, वो
         मेरे दिल का तुम्हारे दिल से अनुबंध था...

दो दिलों से लिया गया फैसला दिमाग पर भारी पड़ गया। दिल से दिल की बात हो रही थी।

पर इस कमबख़्त दिमाग को नही रास आया दिलों का मेल। यथार्थ के धरातल पर तो उसका ही राज है।
हम दोनों को अलग कर दिया। तुम आने का कहकर दूर चले गए।

हमारे दिलों का अनुबंध टूट सा गया। पर मै जानती हूँ, मैं अब भी तुम्हारे दिल के किसी कोने में बसी हूँ। बस तुम्हारा दिमाग शायद उससे तुम्हे मिलने नही देता।

दिमाग तो मेरा भी हावी होना चाहता है, पर मैं होने नही देती। दिल को अपने मैंने तुम्हारे अहसासों की नमी से हमेशा सिंचित किया है। 
तुम्हे दिल में हमेशा महफूज रखा। मुझे अब भी अच्छा लगता है तुमसे अकेले मे बातें करना। 

इतजार है अब भी तुम्हारा। जल्दी आना। और हाँ ! अपने दिल का ख्याल रखना। इसको कुछ हो गया तो अस्तित्व मेरा भी खत्म हो जाएगा।

तुम्हारी.....

                                          ✍️ प्रतिभा सिंह ( लखनऊ, उत्तर प्रदेश )

गुरुवार, जनवरी 27, 2022

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित ऑनलाइन गणतंत्र दिवस साहित्यिक महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में ऑनलाइन गणतंत्र दिवस साहित्यिक महोत्सव का आयोजन किया गया। जिसका विषय 'गणतंत्र का महत्व तथा विशेषता' रखा गया। इस महोत्सव में अर्चना वर्मा (क्यूबेक, कनाडा) सहित देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकारों ने भाग लिया तथा एक से बढ़कर एक गणतंत्र के महत्व तथा विशेषता पर आधारित और देशभक्ति से संबंधित रचनाओं को प्रस्तुत कर गणतंत्र दिवस साहित्यिक महोत्सव की शोभा में चार चाँद लगा दिए। इस महोत्सव में सम्मिलित सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन 'पुनीत गणतंत्र गौरव' सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने भारत माता को कोटि-कोटि नमन करते हुए तथा गणतंत्र के महत्व के बारे में बताते हुए सभी लोगों को गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं दी। उन्होंने गणतंत्र दिवस मनाने के उद्देश्य की पूर्ति हेतु संविधान में दिए गए अधिकारों तथा कर्तव्यों के प्रति लोगों को जागरूक करने वाली रचनाएं लिखने के लिए रचनाकारों को प्रेरित किया और साथ ही उन्होंने महोत्सव में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन तथा उत्साहवर्धन भी किया। उन्होंने समूह द्वारा आयोजित होने वाले विभिन्न ऑनलाइन साहित्यिक महोत्सवों में सम्मिलित होने के लिए हिंदी रचनाकारों को सादर आमंत्रित भी किया। इस महोत्सव में उत्कृष्ट रचना प्रस्तुत करके समूह की शोभा बढ़ाने वालों में प्रमुख नाम कुसुम अशोक सुराणा, चंचल जैन, सुनीता सोलंकी 'मीना', अर्चना वर्मा, मीता लुनिवाल, डॉ. ऋतु नागर और डॉ. उमा सिंह बघेल रचनाकारों के रहे।




बुधवार, जनवरी 26, 2022

🇮🇳 हमारा गणतंत्र 🇮🇳






हमारा यह आजाद तिरंगा
लहर-लहर कर लहराएगा
भारत माँ के मस्तक ऊपर
झूम-झूम सदा इतराएगा

झंडे का मान बढ़ाया 
जन-जन ने जब इसे फहराया
26 जनवरी को मिलकर हमने
गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया

विश्व स्तर पर गणतंत्र बनाया
भारत पूरी दुनिया पर छाया 
क्या करना क्या नही है करना
संविधान ने हमको बतलाया

हम सब भारत वासियों का
संविधान से है गहरा नाता
उन्नति का आधार इसी में
ऊँच-नीच का यह भेदभाव मिटाता

जनहित की सब बात सिखाता
नियम-कानून का पाठ पढ़ाता
अपनी आवाज़ उठानी है कैसे
इस बात से सबको परिचित कराता

सही व्यवस्था को है अपनाया
इसलिए सारी दुनिया पर है छाया
सरपंच से मंत्री तक के
काम करने के तरीके को बतलाया

जिसने है संविधान पढ़ा
शक्तिवान बना वह और बना बड़ा
सीखो अधिकारों से जुड़ना
अपने कर्तव्यों को पहचानना

         ✍️ सुनीता सोलंकी 'मीना' ( मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश )








🇮🇳 भारत माँ की संतान हैं हम 🇮🇳








आओ हम गर्व से कहते है

भारत माँ की संतान है हम

हे माँ भारती आपके चरणों में

हमारा कोटि-कोटि प्रणाम

हे माँ भारती धन्य है हम

जो आज मिला सौभाग्य

हम भारत माँ की संतानों को 

गणतंत्र दिवस मनाने का


सभी भारत माँ की संतान 

एक साथ मिलकर कदम बढ़ाओ

हाथों में पवित्र तिरंगा थामें 

खुशियों संग लहराओं गगन में

हम संतानों की अभिलाषा है 

तिरंगा ऊँचा रहें सदा शिखर पर

कभी हवाओं में झूमता

कभी वर्षा से बलखाता तिरंगा

खुशी से बादलों से टकराता तिरंगा

कभी इठलाता समंदर में 

कभी अठखेलियाँ करता दिखता तिरंगा


रहे शिखर पर देश हमारा

दिल में है यही अभिलाषा

देश निर्माण लक्ष्य में 

हर इंसान आगे बढ़ता है

जब देश को मिलती सफलता

तब हम जीवन में सुख पाते हैं

कितनों ने मातृभूमि के लिए 

सीने पर गोली खाई

हम है नसीब वाले

मोहब्बत से भरा

हमारा देश भारत है महान

आओ शीश झुकाकर

करते है सलाम वीर जवानों को

जो अपना लहू बहाकर

रक्षा करते हैं धरती माँ की


आसमाँ में सितारों के बीच

बुलंदी पर लहराएँ तिरंगा हमारा

देखकर तिरंगा मन होता गौरवमय

चलो साथ मिल कर गणतंत्र दिवस मनाएँ

हे माँ भारती स्वीकारो हम संतानों का नमन

गणतंत्र दिवस पर सबको हार्दिक शुभकामनाएँ 

 

                        ✍️ अर्चना वर्मा ( क्यूबेक, कनाडा )

   

🇮🇳 शुभवेला है आयी 🇮🇳



 






गुलामी की जंजीरों से,
परतंत्रता की बेड़ियों से,
स्वतंत्रता सेनानियों के संग्राम से,  
त्याग, समर्पण, बलिदानों से,
क्रांति की धधकती मशाल से,
विशाल जनसमुदाय के संघर्ष से,
अहिंसावादी सत्याग्रह से,
पायी हैं आजादी, बड़ी मुश्किल से। 
आओ, मनाये आनंदोत्सव धूमधाम से। 

हम भारतवासी मिल-जुलकर,
धर्म, पंथ, जाति भेद भूलाकर,
जोश, जूनून, उल्लास, उमंग से,
प्रेम, स्नेह, सद्भाव, भाईचारे से,
आजादी का अमृत महोत्सव मनाये,
झूमे, नाचे, गाये, खूब जश्न मनाये,
गणतंत्र का आनंदोत्सव मनाने,
आयी है यह शुभवेला, रंगारंग खुशियां ले,
आओ, मनाये आनंदोत्सव धूमधाम से।

स्मरण दिवस, गुलामी से मुक्ति का,
अपनी संप्रभुता महोत्सव मनाने का,
अपना संविधान, अपना अधिकार,
कला, कौशल, धर्म, ज्ञान उजियार,
गणतंत्र दिवस, जनता का प्रशासन,
लोकतांत्रिक देश, सुचारू संचालन,
आत्मविश्वास, स्वावलंबन का पायदान, 
आशा आकांक्षाओं का मधुर गान,
आओ, मनाये आनंदोत्सव धूमधाम से। 

हुकूमत नहीं अब औरों की चलेगी,
राजपाट न किसी की जागीर होगी,
जनता जागरूक हो करे मतदान,
सुरक्षित, सु-सूत्र संचालित संविधान,
हमारी संस्कृति, हमारे संस्कार,
हमारा धर्म, हमारा जीवन आधार,
हमारे कायदे कानून, नीति नियम,
हमारी धरती, हमारा आकाश।
आओ, मनाये आनंदोत्सव धूमधाम से।

सीमा पर मुस्तैद हरपल जवान वीर,
जान हथेलियों पर ले रहते वो तत्पर,
बलिवेदी पर हँसते हँसते प्राण समर्पित,
देशसेवा में तन, मन, धन जीवन अर्पित,
स्मरण रहे शहीदों का, आजादी के दीवानों का
अपने वतन के लिए मर मिटने वाले वीरों का।
प्रण करे, वीरों की शहादत व्यर्थ न जाने देंगे,
भारत माँ का आँचल, तिरंगा झंडा शान से फहराएंगे,
आओ, मनाये आनंदोत्सव धूमधाम से।

हे युवा, हौसला हो, नवभारत का स्वप्न साकार हो,
नौनिहालों, स्वतंत्रता, आजादी स्वच्छंदता नहीं हैं, 
आत्मसंयम,अनुशासन  की नकेल हैं जरूरी, 
कानून का पालन, संविधान का सम्मान जरुरी,
बुद्धिबल, प्रतिभा, कौशल को खुला आकाश दो,
हमारी बेटियों को शिक्षा का अनमोल वरदान दो।
सम्मानित हर रूप में  नारी, रोको बाल मजदूरी,
जनता की सेवा, देश हित हो सर्वोपरि,
आओ, मनाये आनंदोत्सव धूमधाम से।

विश्व में हो भारत माता का सदा गौरव गान,
हिमालय से ऊंचा कद, सागरतल-सी हो गहराई,
शिक्षा, खेल, अनुसंधान हो या अंतरिक्ष की उड़ान,
मान, सम्मान, प्रतिष्ठा, यश, कीर्ति, मेरा भारत महान। 
भारत माता के सपूत, हर क्षेत्र में लहराये जीत का परचम,
धर्म, योग, ध्यान, ज्ञान  प्रकाश से जगमग  दीपित,
विजयश्री ले आओ, यशगान दश दिशाएं होवो,
भारत माता के भाल पर जीत का तिलक सजाओ।

लहराता रहे झंडा ऊंचा-ऊंचा हमारा,
जय भारत, जय भारत हो नील गगन में जयकारा।
अन्नदाता किसान के ह्रदय की जाने दुखदायी पीर, 
भूख से बिलखे न कोई, मजबूर न हो कोई मजदूर, 
विकास पथ पर अग्रसर विकासशील भारत देश,
विश्व गुरु बन, विविधता में एकता का देता संदेश।
जीव दया, परोपकार, भाईचारा से जीवन हो अलंकृत।
धर्म साधना, सहिष्णुता, संस्कारों से जीवन बाग हो सुरभित।
आओ, मनाये आनंदोत्सव धूमधाम से।

                              ✍️ चंचल जैन ( मुंबई, महाराष्ट्र )

                             

पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा आयोजित ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।

पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा लोगों को स्नेह के महत्व और विशेषता का अहसास करवाने के उद्देश्य से ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव का आयोजन किया गया...