मंगलवार, सितंबर 27, 2022

🌸 जय 🌸



      




सब मिल आओ, प्रेम से गाओ।।
बोलो, भारत माँ की जय !!
महात्मा गांधी की जय !!

छुआछूत का भेद मिटाया,
दया-धर्म का अलख जगाया,
सत्य के पथ पर चलना जिनका,
केवल एक विधान था।।
बोलो, भारत माँ की जय !!
महात्मा गांधी की जय !!

चम्पारण से संकल्प उठाया,
अंग्रेजों को मार भगाया,
आजादी की गाथा लिखकर,
पाया तब सम्मान था।।
बोलो, भारत माँ की जय !!
महात्मा गांधी की जय !!

अंग्रेजी ताकत थी हारी,
राष्ट्रहित पर सब बलिहारी,
शौर्य की ज्वाला ऐसी चमकी,
जगमग हुआ हिंदुस्तान था।।
बोलो, भारत माँ की जय !!
महात्मा गांधी की जय !!

राष्ट्रपिता व बापू कहलाए,
भारतवासी थे हर्षाए,
भारत में नव सूर्य उदित हुआ,
छाया नया विहान था।।
बोलो भारत माँ की जय !!
महात्मा गांधी की जय !!

उनके संघर्षों को ना भूले,
राग-रंग में मगन ना झूले,
उनके आदर्शों पर ही चलके,
हो सकता नवनिर्माण है।।
बोलो भारत माँ की जय !!
महात्मा गांधी की जय !!

✍️ सोनी कुमारी ( पटना, बिहार )


सोमवार, सितंबर 26, 2022

🌸 सत्य 🌸








सत्य ओ सत्य सुनो न 
क्यूँ छिप रहे तुम  
पढ़ती और सुनती आई हूँ 
सत्य नही होता विचलित, पराजित  
नही होता सत्य को भय किसी का 
फिर क्यूँ छिप रहे तुम  
आओ बैठो दो घड़ी पास मेरे  
बस यूँ ही निहारने को जी चाह रहा  
इस झूठी दुनियाँ की झूठे दंभ से 
माना थोड़े प्रभावित हुए हो तुम  
पर तुम डर कर छिप नही सकते  
ये चिल्लाते झूठ भले ही चीख-चीख कर 
साबित करे खुद को  
पर तुम्हारी एक धीमी आवाज भी 
चित्कार बन दहक उठती है  
झूठ के काले अम्बर पर सत्य की आवाज
किसी अरुणोदय का आभास दिलाती है  
विश्वास दिलाती है मुझे तुम हो यहीं-कहीं 
आस-पास बिल्कुल उस वायु की तरह
जो दिखती तो नही पर जीवनदायी होती है  
ओ सत्य मत रूठो न
तुम तो आत्मा हो इस पावन धरा की  
आओ मिलो गले उनसे जो सच में  
व्याकुल हुए जा रहे तुम्हारी राह में 
सत्य ओ सत्य सुनो न 
क्यूँ छिप रहे तुम  
तुम आओगे है यकीन मुझे 
और मुझसे भी ज्यादा 
इस पावन धरा माँ भारती को  
सत्य ओ सत्य सुनो न 
क्यूँ छिप रहे तुम   

✍️ सुषमा पांडे ( बोकारो, झारखंड )

शनिवार, सितंबर 24, 2022

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित ऑनलाइन पूर्वज स्मृति साहित्यिक सप्ताह सम्पन्न।

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा पितृ पक्ष में पूर्वजों को स्मरण करने तथा साहित्यिक श्रद्धांजलि देने के उद्देश्य से ऑनलाइन पूर्वज स्मृति साहित्यिक सप्ताह का आयोजन किया गया। जिसका 'विषय - पूर्वज और उनकी शिक्षाएं' रखा गया। इस स्मृति साहित्यिक सप्ताह में देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकारों ने भाग लिया। जिन्होंने पूर्वजों के जीवन और उनकी शिक्षाओं पर आधारित अपनी श्रद्धा भरपूर रचनाओं को प्रस्तुत कर पूर्वजों के प्रति अपनी अटूट श्रद्धा तथा आदर भाव को प्रकट किया। इस स्मृति साहित्यिक सप्ताह में सावित्री मिश्रा (झारसुगुड़ा, ओड़िशा), भारती राय (नोएडा, उत्तर प्रदेश) तथा सुषमा पांडे (बोकारो, झारखंड) की रचनाओं ने समूह का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित किया। इस स्मृति साहित्यिक सप्ताह में सम्मिलित सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन 'पुनीत पूर्वज आशीष' सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने पितृ पक्ष के महत्व के बारे में बताते हुए युवा पीढ़ी के लोगों से पूर्वजों की शिक्षाओं को अपने जीवन में अपनाने के लिए कहा और साथ ही पूर्वज स्मृति साहित्यिक सप्ताह में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन व उत्साहवर्धन किया। उन्होंने समूह द्वारा आयोजित होने वाले विभिन्न ऑनलाइन साहित्यिक कार्यक्रमों में सम्मिलित होने के लिए हिंदी रचनाकारों को सादर आमंत्रित भी किया। पूर्वज स्मृति साहित्यिक सप्ताह में अपनी श्रद्धा भरपूर रचनाओं से पूर्वजों को साहित्यिक श्रद्धांजलि देने वालों में प्रमुख नाम सीमा मोटवानी, सुषमा पांडे, सावित्री मिश्रा, भारती राय, डॉ. उमा सिंह बघेल रचनाकारों के रहे।

शुक्रवार, सितंबर 23, 2022

🦚 परिवार की नींव पूर्वज 🦚

आश्विन माह के कृष्ण पक्ष मे पन्द्रह दिन को पितृ पक्ष कहा जाता है। इस समय प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक लोग अपने पूर्वजों का तर्पण और श्राद्ध करते हैं। परिवार के जिस व्यक्ति की मृत्यु जिस तिथि को होती है। उस दिन उसका श्राद्ध कर्म किया जाता है। भारतीय दर्शन की मान्यता के अनुसार मृत्यु से मात्र शरीर नष्ट होता है। आत्मा नष्ट नही होती। मरने के बाद जीवात्मा दुबारा जन्म लेकर कर्मो के अनुसार सुख या दुख भोगती है। इसी का अनुकरण करते हुए श्राद्ध का विधान बना। श्राद्ध के द्वारा हम अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं। जिनकी वंशावली मे शामिल होने का हमें सौभाग्य मिला होता है। साथ ही श्राद्ध हमे अपने पूर्वजों व बुजुर्गों के दिशा-निर्देश मानने, उनकी बातों पर अमल करने व उनका सम्मान करने का अवसर देता है। पूर्वजों के प्रति श्रद्धा भाव का अर्थ यह है कि दिवगंत हो चुके अपने लोगों के साथ-साथ हम जीवित बुजुर्गों को भी पूरा सम्मान दें, उनकी शिक्षा पर अमल करें और उनके गुणों को सहेज कर रखें। 

             परिवार की नींव हैं पूर्वज और संस्कारों के दाता हैं।
             पूर्वज ही सुगंध बन पारिवारिक बगिया महकाता है।।
             श्रद्धा भाव रख उनको श्रद्धा सुमन चढ़ाएं हम।
           भाव सुमन अर्पित करके आओ उन्हें शीश नवाएँ हम।।

                 ✍️ सावित्री  मिश्रा ( झारसुगुड़ा, ओड़िशा )

गुरुवार, सितंबर 22, 2022

🦚 दादी की सीख 🦚

बात उस समय की है जब मैं बांका जिले के राजकीय कन्या मध्य विद्यालय वर्ग छह की छात्रा थी और माँ पिताजी तथा दो छोटे भाई-बहनों के साथ पिताजी को मिले सरकारी आवास में रहती थी। आस-पास करीब 20 और सरकारी आवास थे। जिनमे और अधिकारी अपने परिवार के साथ रहा करते थे। वहीं बगल के आवास में रहने वाले वर्मा अंकल की बेटी सुनीता जो न सिर्फ मेरी हमउम्र थी बल्कि मेरे ही कक्षा और विद्यालय में भी थी। हमदोनों की दोस्ती की मिसाल कॉलोनी में और बच्चों को दी जाती थी। दिन बीत रहे थे। गर्मियों की एक शाम जब विद्यालय से आई तो मेरी खुशी का ठिकाना न रहा कारण मेरे दादा-दादी गाँव से हमारे यहां शहर आए हुए थे। साथ ही ढेरों घर की बनी मिठाइयाँ जैसे- मीठी मठरियां, पेड़े इत्यादि के साथ रात सोने से पहले सुनाने के लिए कहानियाँ की सौगात भी लेकर आए थे। एक शाम हम सभी बच्चे वहीं पास मैदान जहाँ आम के कुछ पेड़ लगे थे और उन आम के पेड़ों में टिकोरे लग चुके थे। खेल रहे थे, तभी कुछ शरारत से तो कुछ नादानी में हम सभी टिकोरे तोड़ने के लिए कंकड़ पेड़ की ओर उछालने लगे और सौभाग्य वश कुछ टिकोरे टूट नीचे भी आ गिरे। हम अब उन टिकोरो को बांटने में लग गए। जिसमें हमारा झगड़ा हो गया खास कर मेरा और सुनीता का। ज्यादा शाम होने के कारण मैं घर आकर चुपचाप एक कोने मे मुँह फूला कर बैठ गई तभी मेरी दादी जी मेरे पास आई और मनुहार करने लगीं। मैंने सुनीता की सैकड़ों कमियाँ बताते हुए पूरी घटना बता दी। उस वक्त तो दादी जी ने कुछ नहीं कहा बस मुझे हाथ मुँह धो कर पढ़ाई करने को कहकर कॉलोनी में ही स्थित मंदिर चली गईं। रात्रि भोजन के बाद हम सभी भाई बहन आँगन में दादी को घेर कहानी सुनने को बैठ गए। दादी ने उस दिन एक राजा जो एक पैर से लंगड़ा तथा काना था एवं एक चित्रकार की कहानी सुनाई। वो कहानी आज भी मुझे अक्षरश: याद है कि कैसे चित्रकार ने राजा की कमी को छिपाते हुए राजा को एक पांव मोड़ एक पांव पर बैठकर एक आँख से शिकार करने के लिए निशाना लगाते हुए उस राजा का चित्र बनाया। जिस पर राजा ने प्रसन्न होकर उस चित्रकार को गले लगाकर अपने राज्य का चित्रकार घोषित कर दिया व उसे अपना परम मित्र बना लिया। कहानी के अंत मे मुझसे मुखातिब होते हुए वह बोलीं अगर किसी में कमियाँ निकालना हो हजार निकल आयेंगी लेकिन दोस्त वही अच्छे होते हैं। जो अपने बीच मन मुटाव नही होने देते और एक-दूसरे के अवगुणों को दूर कर गुणों को संसार के सामने लाते हैं। आज मेरी दादी मेरे पास नही हैं। लेकिन उनकी सीख हमेशा मेरे पास है। जो मुझे हर व्यक्ति में सिर्फ अच्छाईयों को देखने और उनकी अच्छाईयों से कुछ सीखने के लिए प्रेरित करती है।  

                         ✍️ सुषमा पांडे ( बोकारो, झारखंड )

सोमवार, सितंबर 19, 2022

🦚 तर्पण 🦚








नही खोजती तुमको मैं 

छज्जे पर बैठे कौवों में

नही खोजती हूँ मैं तुमको

किसी श्वान या गऊवों में


तुम तो अब भी हो मन के भीतर

कैसे मानूँ तुम हो गए पितर

तुम तो मेरे पीछे आए थे 

मेरी पीठ का भाई बनकर 


मन करता नही स्वीकार अनुज

कि तुम तन्हा मुझको छोड़ गए

जिस हृदय लगाती थी तुमको 

वो हृदय टुकड़ों में तोड़ गए 


तुम छोटे होकर भी परिपक्व थे 

संयमसहिष्णुस्नेह से भरे हु

तुमने ही तो सिखलाया धैर्य मुझे 

होठों पर मुस्कान को धरे हुए 


पितृ पक्ष आया है देखो

सब कहते हैं तुमको जल ढारुं

पर जी करता जो तुम मिल जाओ

तुम पर अपना जीवन वारूँ


खोल हथेली तर्पण करने को

जब उसमें जल ढारुंगी

सुंदर स्मृतियाँ याद करूँगी 

हिय से तुम्हें पुकारूँगी


तब पास मेरे 

 पाओगे क्या तुम ?

अपनी इस सहोदरा पर

आकर स्नेह लुटाओगे क्या तुम ?


जब खोजेंगी आँखें तुमको

ले हाथों में तिल और जल

जब अंतस रोएगा दुःख में

क्या आकर हृदय लगाओगे उस पल ?


जब आँखों से आँसू गिरकर

जल को खारा कर देंगे

जब फैली मेरी हथेली को

अश्रु झरकर भर देंगे


तब कर पाओगे क्या स्वीकार अनुज

मेरे खारे आँसू का तर्पण

तुम ही बतला दो

और करूँ क्या तुमको अर्पण…?


✍️ भारती राय ( नोएडा, उत्तर प्रदेश )

रविवार, सितंबर 18, 2022

🦚 दादा-दादी की कहानियां 🦚








कभी-कभी बचपन 
याद आता है, 
और याद आती हैं 
वो दादा-दादी की कहानियां,
उन कहानियों में थी 
कुछ जादुई सी बातें,
उन बातों में काटी थी
वो बचपन की रातें,
सप्तऋषि मंडल था
कभी मन को लुभाता,
तो चन्दा मामा कभी
घर आँगन को आता,
ध्रुवतारा भी रहता था
रातों को रौशन,
आसमान क्यों जगता 
रातभर बुदबुदाता था मन।

परियों की कहानी भी
थी अम्मा सुनाती,
रहती कहाँ हैं।
ये दूधिया परियां 
मिलने क्यों नहीं आती ?
परियों से पँख 
काश ! हमकों भी
मिल पाते,
तो हम भी फिर आसमां 
के चक्कर लगाते।

वो नन्हा सा बचपन 
जो फिर से मिल जाता,
परियों का आसमान  
भी बौना हो जाता,
वो छोटी सी रातें
वो तोतली सी बातें,
वो झूलों वाला मेला
खो जाता मन अकेला,
काश ! वो गुड्डे-गुड़ियों सा
बचपन फिर मिल जाता,
पर ये मन न जाने कहां ?
अब है दौड़ लगाता।

✍️ सीमा मोटवानी ( अयोध्या, उत्तर प्रदेश )
            

शनिवार, सितंबर 17, 2022

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित ऑनलाइन 'काया विशेष साहित्यिक महोत्सव' में रचनाकारों ने दी शानदार प्रस्तुतियां।

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा शारीरिक अंगों के महत्व, विशेषता तथा उपयोगिता को दर्शाने के लिए ऑनलाइन काया विशेष साहित्यिक महोत्सव का आयोजन किया गया। जिसका 'विषय - काया है विशेष' रखा गया। इस महोत्सव में देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकारों ने भाग लिया। जिन्होंने एक से बढ़कर एक बेहतरीन शरीर के अंगों के महत्व तथा विशेषता पर आधारित रचनाओं को प्रस्तुत कर ऑनलाइन काया विशेष साहित्यिक महोत्सव में चार चाँद लगा दिए। इस महोत्सव में सम्मिलित प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन 'पुनीत साहित्य गौरव' सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने मानव की काया को ईश्वर का सबसे अनमोल उपहार बताते हुए काया के समस्त अंगो का ध्यान रखने के लिए लोगों को प्रेरित किया और महोत्सव में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन व उत्साहवर्धन किया। उन्होंने कहा कि समूह आगे भी इसी तरह से अपने सामाजिक दायित्व की पूर्ति हेतु ऑनलाइन साहित्यिक महोत्सव आयोजित करता रहेगा तथा नए रचनाकारों को अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए ऑनलाइन साहित्यिक मंच उपलब्ध करवाता रहेगा। इस महोत्सव में उत्कृष्ट रचना प्रस्तुत करके समूह की शोभा बढ़ाने वालों में प्रमुख नाम भारती राय और रंजन लाल 'बेफिक्र' रचनाकारों के रहे।

बुधवार, सितंबर 14, 2022

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित ऑनलाइन हिंदी दिवस साहित्यिक महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में ऑनलाइन 'हिंदी दिवस साहित्यिक महोत्सव' का आयोजन किया गया। जिसका विषय 'हिंदी का महत्व' रखा गया। इस महोत्सव में देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकारों ने भाग लिया। जिन्होंने हिंदी भाषा के महत्व तथा विशेषता पर आधारित अपनी बेहतरीन रचनाओं को प्रस्तुत कर हिंदी भाषा के प्रति अपने अटूट स्नेह एवं आदर भाव को प्रकट किया तथा महोत्सव को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। महोत्सव में भारती राय ( नोएडा, उत्तर प्रदेश ) तथा रंजन लाल 'बेफिक्र' ( इंदौर, मध्य प्रदेश ) की रचनाओं ने समूह का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित किया। इस महोत्सव में सम्मिलित प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन 'पुनीत हिंदी रत्न' सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने हिंदी भाषा तथा हिंदी भाषा के विद्वानों को कोटि-कोटि नमन करते हुए समस्त देशवासियों को हिंदी दिवस की बधाई व शुभकामनाएं दी और लोगों को हिंदी भाषा को हृदय से अपनाने के लिए प्रेरित किया। इसके साथ ही उन्होंने महोत्सव में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन तथा उत्साहवर्धन किया और समूह द्वारा आयोजित होने वाले विभिन्न ऑनलाइन साहित्यिक कार्यक्रमों में सम्मिलित होने के लिए हिंदी रचनाकारों को सादर आमंत्रित भी किया।

🌸 दिल 🌸










कोई अरमान हर दिल में मचलता है।
लहू बनकर दिलों में प्यार बहता है।।

बहुत मासूम दिल ये मांस का टुकड़ा,
बहुत ताकत मगर दिल खास रखता है।।

दिलों की सरज़मीं पर ख़्वाब लेकर कुछ,
महल अहसास का बनता बिगड़ता है।।

धड़कती चीज़ हर इक दिल नही होती,
बनाने में दिलों को वक्त लगता है।।

खुशी पर खुश गमों से गमगीं होता है,
ये दिल बस एहसासों से बहकता है।।

सुना है कितना दिल में आग होती है,
तड़पता ख़्वाब कोई जो दहकता है।।

चुभन कुछ खट्टी मीठी बात की हो जब,
कहा फिर लोगों ने ये दिल सुलगता है।।

दिमागों की कहानी कुछ रही हो पर,
फसाना दिल अलग अंदाज़ कहता है।।

रहे "बेफिक्र" से जज़्बात इस दिल के,
तभी जिंदा है ये जब तक धड़कता है।।

✍️ रंजन लाल 'बेफिक्र' ( इंदौर, मध्य प्रदेश )


मंगलवार, सितंबर 13, 2022

🌻 हमारी मूल पहचान है हिंदी 🌻








है सबसे मिलनसार और सबसे निराली,
हर जगह अलग तरह बोले जानी वाली।
अपनी उदार हिंदी ऐसी भारत की शान,
हर भाषा से मिल कर साथ चलने वाली।

हिंदी भाषा हर पांच कोस पर बदल गई,
परिवेश संस्कृति लोगो के सांचे में ढल गई।
जगह विशेष की मौलिकता समेट लेती है,
नई भाषा के रूप में वहां की हो जाती है।

हर भाषा के शब्द इसमें जुड़कर निखरते है,
बिना किसी दुर्भाव के साथ-साथ चलते है।
अंग्रेजी, उर्दू ,फारसी या कोई भी भाषा हो,
सबके शब्द बोलचाल में देखने को मिलते है।

हिंदी ने उदारता से कई भाषाओं को बनाया है,
मगर इसकी मौलिकता पर भी संकट आया है।
कुछ लोगो ने आज ऐसा हिंदी का हाल बनाया है,
क्षेत्रीय भाषाओं को उठाकर नीचा इसे दिखाया है।

हिंदी साहित्य की गरिमा को वापस लाना है,
कर्तव्य हमारा है अब हिंदी का स्तर उठाना है।
दिवस विशेष में याद करें बाकी समय भूले रहे,
मातृभाषा का ऐसा भी हाल तो अब हम न करें।

कोई भाषा नही है छोटी मगर ये अब समझना है
हमारी मूल पहचान है हिंदी सबको समझाना है।।

  ✍️ रंजन लाल 'बेफिक्र' ( इंदौर, मध्य प्रदेश )

रविवार, सितंबर 11, 2022

🌻 गर्व हमारा हिंदी 🌻








वो मीठी भाषा हिंदी ही थी 

जब मुँह से निकली पहली बोली 

माँ के आँखों के काजल सी

पिता के माथे की रोली सी


हिमगिरी सी तटस्थ और ऊँची

शब्दस्वर-व्यंजन की धनी हिंदी 

संस्कृति का तुम्हारे दर्पण हूँ

मानो हमसे कहती हिंदी 


जन-जन के कंठ की गान है हिंदी 

अज्ञानता में ज्ञान की मधुर फुहार है हिंदी 

झर-झर झरती निर्मल झरने सी 

साहित्य का इक अथाह भण्डार है हिंदी 


सुंदरमनोहारीसरससलिल

है अपनेपन का भाव छुपाए हिंदी

मिश्री सी मीठी-मीठी सी

है उन्नति का आँचल फैलाए हिंदी 


हिंदी तुलसीकबीर की बानी है

प्रेमचंदजयशंकरपंत की कहानी है 

हिंदी मीरा के हृदय का प्रेम भी है 

गंगा-यमुना के लहरों की रवानी है 


है भारत के भाल का टीका-चंदन

सदा हिंदी को हमारा अभिनंदन 

सिरमौर रहे हिंदी हरदम 

हिंदी का हो चहुं ओर वंदन 


हम क्यों लें कृत्रिम गंधों को जब

चमन में कुसुम-सुगंध ख़ुद बिखरा हो 

क्यों हम औरों की भाषा बोलें जब 

साहित्य-सागर निज भाषा का गहरा हो 


है अभिमान हमें अपनी भाषा-बोली पर

कोटि-कोटि वन्दन है हमारा हिंदी को

हम निज भाषा पर गर्व करेंरोम-रोम में हिंदी हो

प्रेम हमारा हिंदी होगर्व हमारा हिंदी हो 


      भारती राय ( नोएडा, उत्तर प्रदेश )

बुधवार, सितंबर 07, 2022

🌸 नयन 🌸








नयनों की कितनी परिभाषाएँ

पर हर परिभाषा से परे नयन 

कोई कहता सुंदर मृगनयनी सा

कोई मीन सा सुंदर कहे नयन


जब पीड़ा होती छलक-छलक कर

अश्रु नीर से भरे नयन

आनंद में भी छलका करते 

प्रकट हर भाव निःशब्द हो करे नय


जब प्रेम में हो अपने प्रियतम को

खोल के पलकें जी भर भरे नयन 

फिर रात्रि नींद में मूँद के पलकें 

स्वप्न में उसको तके नयन


कभी ये लगते झील से गहरे

कभी ख़ाली सूनेपन से नयन

कभी तो छलते हँस कर के

कभी बेकल करते हृदय नयन


गर नयन नही तो जग सूना है

जीवन रंगों से भरें नयन

कभी तो रहते शांतचित्त से 

कभी जी भर बातें करें नयन 

 

 ✍️ भारती राय ( नोएडा, उत्तर प्रदेश )

पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा आयोजित ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।

पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा लोगों को स्नेह के महत्व और विशेषता का अहसास करवाने के उद्देश्य से ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव का आयोजन किया गया...