रचनाकारों, कलाकारों, प्रतिभाशाली लोगों और उत्कृष्ट कार्य करने वाली शख्सियतों को प्रोत्साहित करने का विशेष मंच।
शनिवार, दिसंबर 31, 2022
🦚 नया साल 🦚
सोमवार, दिसंबर 26, 2022
🦚 नव वर्ष की योजना 🦚
नए वर्ष की मित्र को भेजी बधाई
वहाँ से जवाबी चिट्ठी आई
मेरे भाई, क्यों जले पर
नमक छिड़क रहे हो
मैं एक बेरोज़गार हूँ
दुनियाँ की नज़रों में बेकार हूँ
नए वर्ष में तीस साल
पूरे करने वाला हूँ।
और तुमने जो पूछा है कि
नए वर्ष में क्या करने की
योजना बना रहे हो
तो सुनो
नौकरी तो मिलेगी नही
धंधा करने के लिए रुपया नही
इसलिए मजदूरी, नेतागिरी, कुलीगीरी
करने की योजना बना रहे है
फिलहाल तो बाप के पैसों पर
मन मारकर जिये जा रहे हैं।
✍️ देवेन्द्र कुमार मिश्रा ( जबलपुर, मध्य प्रदेश )
शनिवार, दिसंबर 24, 2022
पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित राष्ट्रीय स्तरीय ऑनलाइन रिश्ते फरिश्ते साहित्यिक महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।
पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा मनुष्य के जीवन में रिश्तों के महत्व, विशेषता और उपयोगिता को दर्शाने के लिए ऑनलाइन रिश्ते फरिश्ते साहित्यिक महोत्सव का आयोजन किया गया। जिसका विषय 'रिश्तों का महत्व' रखा गया। इस महोत्सव में देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकारों ने भाग लिया। जिन्होंने दिए गए विषय पर आधारित एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट रचनाओं को प्रस्तुत कर ऑनलाइन रिश्ते फरिश्ते साहित्यिक महोत्सव की शोभा में चार चाँद लगा दिए और ऑनलाइन रिश्ते फरिश्ते साहित्यिक महोत्सव को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस महोत्सव में रश्मि रावत ( गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश ) और वसुधा श्रीवास्तव ( भोपाल, मध्य प्रदेश ) द्वारा प्रस्तुत की गई रचनाओं ने समूह का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित किया। इस महोत्सव में सम्मिलित सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन 'पुनीत साहित्य स्वर्ण' सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने मनुष्य के जीवन में रिश्तों के महत्व, विशेषता तथा उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए सभी लोगों को प्रत्येक रिश्ते को पूरी ईमानदारी के साथ निभाने के लिए प्रेरित किया और महोत्सव में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन व उत्साहवर्धन किया और सम्मान पाने वाले सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को उज्ज्वल साहित्यिक जीवन की शुभकामनाएं दी। इसके साथ ही उन्होंने हिंदी रचनाकारों को आने वाले ऑनलाइन साहित्यिक महोत्सवों में अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए सादर आमंत्रित भी किया। इस महोत्सव में उत्कृष्ट रचना प्रस्तुत करके समूह की शोभा बढ़ाने वालों में प्रमुख नाम अमृता पुरोहित, रश्मि रावत, वसुधा श्रीवास्तव, देवेन्द्र कुमार मिश्रा, रीता शुक्ला रचनाकारों के रहे।
गुरुवार, दिसंबर 22, 2022
🏅रिश्ते🏅
🏅 रिश्तों की खटास-मिठास 🏅
मंगलवार, दिसंबर 20, 2022
🏅 मां महान होती है 🏅
🏅बेटी🏅
रमेश अपनी पाँच वर्षीय बेटी के साथ खेल रहा था। कभी बच्ची छिपती। रमेश ढूंढ़ता। कभी रमेश छिपता। बेटी ढूंढ़ती। जब पिता नही मिलते तो बच्ची रोने लगती। रमेश दौड़कर उसे गले लगा लेता। रमेश अपनी बेटी को और पिताओं से कुछ ज्यादा ही प्यार करते थे। पत्नी कहती भी कि ज्यादा लाड में मत बिगाड़ो। लेकिन रमेश पत्नी से कहते, अपनी बेटी को लाड नहीं करूंगा तो किससे करूंगा। जबसे मेरे जीवन में आई है, मुझे जीने का सहारा मिल गया। बेटी पैदा होने के बाद रमेश ने फिल्म जाना, दोस्तों के साथ उठना-बैठना सब बन्द कर दिया था। अब बेटी के साथ खेलते। बेटी को घुमाने ले जाते। बेटी ही उनका जीवन बनकर रह गई थी। बेटी के साथ आज फिर छुपम-छिपाई का खेल चल रहा था। बेटी छिपती तो देख लेने के बाद भी रमेश इस कमरे से उस कमरे में जाते और कहते –‘’अरे मेरी बेटी कहां गई----मेरी बेटी कहां गई—फिर कुछ देर बाद पकड़ लेते। फिर रमेश छिपते तो बेटी इधर-उधर ढूंढ़ने के बाद रोने लगी। रमेश फौरन दौड़कर आये और बेटी को गले से लगा लिया। बेटी ने रोते हुए धीरे से पिता के गाल पर चपत लगाई। प्यार से रमेश ने भी बेटी के गाल पर हल्की सी चपत लगा दी। फिर रोते हुए बेटी ने पिता के गाल पर जोर से चपत लगा दी। फिर पिता रमेश ने हंसते हुए हल्के से बेटी को चपत लगा दी। फिर बेटी ने थप्पड़ मारा प्यार भरा। इस बार पिता रमेश ने थोड़े जोर से प्यार भरी चपत लगा दी। बेटी को गाल पर चोट सी लगी। उसने गुस्से में पिता को अपने नन्हें कोमल हाथ से थप्पड़ मारा। रमेश ने पिछली बार से ज्यादा जोर से मारा। बेटी को जोर से लगा। वह रोकर लिपट गई और पिता की पीठ, गाल पर नन्हें हाथों से चोट करने लगी। रमेश को पता नही क्या हुआ, वह बच्ची को जोर से थप्पड़ मारने लगा। बेटी को समझ नही आया कि उसके प्यारे पापा उसे क्यों मार रहे हैं। बेटी रोते हुए अपने मुलायम, कोमल हाथों से मारने लगी तो पिता रमेश को न जाने अचानक कैसा और किस बात पर गुस्सा आ गया कि वे जोर-जोर से अपनी जान से ज्यादा प्यारी बेटी को मारने लगे। थप्पड़ अब चपत या थपकी नही थे। थप्पड़ ही थे। बेटी जोर-जोर से रोने लगी और रमेश को पता नही क्या पागलपन सवार हुआ कि वे अपनी जान से प्यारी बेटी को जोर-जोर से पीटने लगे।
रमेश के मस्तिष्क में अचानक बचपन का दृश्य घूमने लगा। जब वे पांच वर्ष के थे और उसके पिता रमेश की मां को शराब के नशें में पीटते हुए गंदी-गंदी गालियां देते हुए उसे बदचलन कह रहे थे। रमेश की मां पिट रही थी और पिता उसे पीट रहे थे। रमेश सहमा हुआ एक तरफ खड़ा हुआ था।
पिता जयसिंह जोर-जोर से चीख रहे थे -‘’तुम औरते होती ही बेवफा हो। मेरी गैरहाजिरी में अपने यार को बुलाकर गुलछर्रे उड़ाती हो। चरित्रहीन औरत तू मर क्यों नहीं जाती। इतना प्यार है तो अपने यार के साथ मुंह काला करके भाग जाती उसी के साथ -‘’ और ये सिलसिला जब तब चलता रहता।
रमेश की मां ने जब एक बेटी को जन्म दिया तो जयसिंह ने चीखकर कहा -‘’बेटी कैसे हो गई। ये मेरी नही हो सकती। बेटी पैदा करके तूने मेरा सिर शर्म से झुका दिया। अब कहां से आयेगा इसकी शादी के लिए लाखों रूपये। पूरे जीवन इसके ससुरालवालों के सामने झुकना पड़ेगा। पालेंगे हम और आबाद करेगी दूसरे का घर और यदि जवानी में इसके कदम बहके तो पूरे खानदान के मुंह पर कालिख पोत कर रख देगी।‘’
रमेश की मां जया ने कहा -‘’बेटी लक्ष्मी होती है। दुधमुंही बच्ची के बारे में इतना क्यों सोचते हैं। अपना भाग्य लेकर आती हैं लड़कियां। अपने घर के साथ दूसरे का घर भी रोशन करती हैं। आप पढ़े-लिखे हो। सरकारी अफसर हो। बेटी के लिए दहेज जुटाना कौन सी बड़ी बात है आपके लिए’’
‘’तो क्या मैं इसपर खर्च करने के लिए कमा रहा हूं।‘’
‘’बेटियों से घृणा करने वाले यदि अपने लिए बेटियां नही चाहते तो अपने बेटों के लिए बहू कहां से लाओगे’’
‘’मुझे उपदेश देने की जरूरत नही है। मुझे लड़की नही चाहिए। चाहे किसी को दे दो या बहा दो नदी में।‘’
‘’मैं माँ हूँ। मेरा अंश है ये। मैं इस पर आंच नही आने दूँगी। मैं भी किसी की बेटी हूँ। आपसे प्यार किया। आपके साथ घर छोड़कर भागी। आपसे विवाह किया। आपका घर बसाया।‘’
‘’इसलिए तो कहता हूँ कल तेरे नक्शेकदम पर चलेगी तो क्या मुंह दिखाऊगा समाज को। तुम मेरे साथ भागी अपने माँ-बाप को छोड़कर। जब तुम बाप की नही हुई तो मेरी कैसे हो सकती हो और ये लड़की भी यही करेगी तो ----‘’
‘’जया गुस्से में आ गई। उसने क्रोध से कहा – ‘’ मैंने तुम्हारे प्यार के लिए अपना घर-परिवार छोड़ा। उसका ये सिला दे रहे। तुम्हें किसी की लड़की भगाते शर्म नही आई। इज्जतदार होते प्रेम की कदर करते तो मुझे भगाकर न ले जाते। मेरे माता-पिता से मेरा हाथ मांगते।‘’
जयसिंह क्रोध में आ गये। शराब का नशा भी था और घर के बड़े-बुजुर्ग के चेहरे भी घर में बेटी के पैदा होने से मुरझा गये थे। उन्होंने गुस्से में कहा –‘’ ये कन्या मेरे घर नही आयेगी। इसका गला घोंट दो। चाहे कहीं फेंक दो। सारा घर मुझ पर लाहनत बरसा रहा है।‘’ कहते हुए क्रोध में जयसिंह बाहर निकल गया। रमेश सब कुछ सुन रहा था। देख रहा था। माँ के आँसू, अपनी छोटी नन्हीं बहन की किलकारी। उसका मन हुआ कि गोद में ले ले अपनी नवजात बहन को लेकिन पिता और दादा-दादी के डर से खमोश रहा और दादा के चीखकर बुलाने पर बाहर आ गया।
पता नही बाद में क्या हुआ कि माँ रोती चीखती रही। अपने पति जयसिंह को हत्यारा कहती रही। लेकिन उस नन्ही बहिन का कुछ भी पता नही चला। बस माँ के शब्द याद थे। जो उन्होंने अपने पति से अपने सास ससुर से कहे थे। ‘’रात में सोते समय तुम लोग मेरी बेटी को उठाकर ले गये और उसकी हत्या कर दी। नन्हीं बालिका की हत्या ईश्वर कभी माफ नहीं करेगा।‘’ माँ जितना चीखती-चिल्लाती उसे उतना ही पीटा जाता। और मार-पिटाई के इसी क्रम में एक दिन माँ मर गई। या कहें कि उसकी हत्या कर दी गई। न पुलिस आई न रिपोर्ट हुई। नाना-नानी, मामा लोग अंत्येष्टि में आए और चुपचाप चले गये। पिता जयसिंह पुलिस इन्सपेक्टर थे जो कह दिया उन्होंने वही कानून हो गया।
पिता को शराब की लत पहले से थी। पत्नी के न रहने पर कभी बाजारू औरतों के साथ बाहर रात गुजारते। कभी घर में लाते। रमेश के दादा-दादी ने बहुत कोशिश की बेटे के दूसरे विवाह की। लेकिन समाज उन्हें पत्नी एवं कन्या हत्या का दोषी मानने के साथ-साथ शराबी और अय्याश भी मानता था।
उनकी हरकतों के कारण किसी ने अपनी लड़की नही दी ओर वे इसी तरह जीते हुए बर्बाद भी हुए और किसी अदृश्य बीमारी से उनकी मौत हो गई। दादी-दादा ने जयसिंह की मौत का जिम्मेदार उन बाजारू औरतों को माना।
घर की आर्थिक स्थिति बद से बदतर हो गई। दादा-दादी बूढ़े थे। वे क्या काम करते। रमेश को दस वर्ष की उम्र में पढ़ाई छोड़कर दूसरों की दुकान पर, घरों में छोटे-छोटे काम करके अपना और दादी-दादा का पेट पालना पड़ा। दादा-दादी के न रहने पर रमेश ने कड़ी मेहनत करके पाई-पाई बचाकर परचून की दुकान खोल ली। उसकी दुकान पर आने वाले ग्राहक जो उससे घुले-मिले थे। अपने घर की व्यथा – कथा कहते। जिसमें बहन की शादी का रोना। बेटियों को वर न मिलना। दहेज की मांग करना। बेटियों का घर से भागकर शादी रचाना और परिवार के मुंह पर कालिख पोतने जैसे विषय मुख्य रहते।
एक ग्राहक ने तो यहां तक कह दिया कि इसलिए पहले के जमाने में लोग पैदा होते ही बेटियों का गला घोंट देते थे। रमेश को लगता कि उसके पिता सही थे। उसकी मां गलत थी। घर में बेटियों को होना ही अभिशाप है बहन-बेटियों से छेड़छाड़ के चलते लोगों ने बेटियों को पढ़ाना बन्द कर दिया। कई भाइयों ने छेड़छाड़ करने वालों के साथ मारपीट की और जेल चले गये। कई ग्राहक तो ऐसे भी थे जो उससे हंसी मजाक करते थे। दूसरों की बुराई उससे करते थे। गोविन्द ने एक दिन मजाक में कहा -‘’कमल की शादी हुए कई साल बीत गये लेकिन वर्षो बाद हुई भी तो लड़की। नामर्द होगा। मर्द होता तो एक मर्द को पैदा करता। अब मरने के बाद मुखाग्नि कौन देगा ? मोक्ष कैसे मिलेगा ? जायदाद का क्या होगा। कोई लड़का आयेगा और लड़की को फंसाकर जीवन भर की कमाई ले उड़ेगा। समाज में मुंह काला होगा सो अलग।‘’ समाज की सोच पहले भी वही थी आज भी वही है। रमेश के दिमाग में इन सब बातों का थोड़ा बहुत असर तो होना ही था। कुछ समय बाद एक भले परिवार ने अपनी लड़की की शादी रमेश से कर दी। जब पत्नी ने गर्भधारण किया तो वह यही मांगता रहा भगवान से कि हे ईश्वर बेटा ही देना। लेकिन बेटी ही हुई। कुछ समय तो रमेश उदास रहा। फिर बेटी ने अपनी हंसी और भोलेपन की ऐसी माया फैलाई कि रमेश का पूरा जीवन बेटी के इर्द-गिर्द घूमने लगा। जिनके यहां बेटे थे बेटी नही थी। उनके बारे में रमेश यही सोचता कि कितना नीरस जीवन होगा इनका बिना बेटी के। बेटी के होने से परिवार में सभ्यता का संचार होता है। शर्म, लिहाज सब सीख जाता है व्यक्ति।
रमेश पांच वर्षीय बेटी को पीट रहा था। बेटी जोर-जोर से रो रही थी। पत्नी घर का सामान लेने बाजार गई थी। बेटी के करूण रूदन से मां की कही बात याद आ गई। बेटी लक्ष्मी का रूप होती है। कन्या के हत्यारों को भगवान कभी माफ नही करता। उसे अपनी नन्हीं बहन की याद आ गई। किस बेदर्दी से पिता ने उसकी हत्या कर दी। मां कैसे बेटी की याद में तड़फती रही। उसे लगा जैसे वह अपनी नन्हीं बहन की मां की हत्या कर रहा हो। और जैसे अचानक उसे होश आया। ये क्या कर रहा हूं मैं। बेटी के रोने से उसके अन्दर करूणा फूट पड़ी। उसने बेटी को गोद में उठाकर सीने से लगा लिया। और भगवान से कहा-‘’मार दे मुझे भगवान। ये क्या हो गया था मुझे’’ बेटी कुछ देर रोती रही। अपने नन्हें हाथों से पिता को गुस्से में पीटती रही। पिता बेटी से पिटने का आनन्द लेते रहे। फिर पिता के सीने में सिर रखकर बेटी सो गई।
रमेश ने तय किया कि मैं अपनी बेटी को खूब पढ़ाऊंगा। उसे आत्मनिर्भर बनाऊंगा। जीवन भर हर सुख-दुख में उसका साथ दूंगा। बड़ी से बड़ी गलती बेटी की माफ करूंगा जैसे लोग बेटो की करते हैं। भविष्य में अपना मनपसंद वर चुनती है तो उसकी पसन्द का सम्मान करूंगा। मेरा घर, मेरा परिवार, मेरा समाज मेरी दुनियां मेरी बेटी है। बिटिया को बिस्तर पर लिटाकर पिता रमेश ने उसका माथा चूमा। कई महीने तक रमेश अपनी बेटी पर हाथ उठाने के लिए अन्दर से दुखी रहे और खुद को अपराधी मानकर मन ही मन बेटी से क्षमा मांगते रहे।
✍️ देवेन्द्र कुमार मिश्रा ( जबलपुर, मध्य प्रदेश )
सोमवार, दिसंबर 19, 2022
🏅अनूठा रिश्ता पानी का...🏅
रविवार, दिसंबर 18, 2022
पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित राष्ट्रीय स्तरीय ऑनलाइन 'कलम महान, विशेष पहचान' प्रेरक कार्यक्रम के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।
पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा युवाओं को कलम थामकर उत्कृष्ट लेखन करने की प्रेरणा देने के उद्देश्य से ऑनलाइन 'कलम महान, विशेष पहचान' प्रेरक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसका 'विषय - स्वैच्छिक' रखा गया। इस कार्यक्रम में देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकारों ने भाग लिया। जिन्होंने अपनी कलम से भिन्न-भिन्न विषयों पर आधारित एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट रचनाओं को रचकर तथा कार्यक्रम में प्रस्तुत करके कार्यक्रम की शोभा में चार चाँद लगा दिए और कार्यक्रम को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस कार्यक्रम में नीलम महाजन ( भिवानी, हरियाणा ) और अमृता पुरोहित ( पंचमहल, गुजरात ) की रचनाओं ने समूह का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित किया। कार्यक्रम में सम्मिलित सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन 'पुनीत प्रेरक ज्योति' सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने युवाओं को कलम के महत्व के बारे में बताते हुए बेकार की चीजों का पीछा छोड़कर कलम थामकर समाज सुधारक उत्कृष्ट लेखन करने के लिए प्रेरित किया। इसके साथ ही उन्होंने कार्यक्रम में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन व उत्साहवर्धन किया तथा सम्मान पाने वाली सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को उज्ज्वल साहित्यिक जीवन की शुभकामनाएं दी। उन्होंने रचनाकारों को समूह द्वारा आयोजित होने वाले विभिन्न ऑनलाइन साहित्यिक कार्यक्रमों में अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए सादर आमंत्रित भी किया। इस कार्यक्रम में उत्कृष्ट रचना प्रस्तुत करके समूह की शोभा बढ़ाने वालों में प्रमुख नाम नीलम महाजन, सीमा मोटवानी, अमृता पुरोहित, पूजा आर श्रीवास्तव रचनाकारों के रहे।
शनिवार, दिसंबर 17, 2022
🏆 मेरी कलम, मेरी पहचान 🏆
राह दिखा फैला गई चन्दन
अल्हड़ प्रेम का किया अभिनन्दन
तोड़ी चुप्पियां तोड़े क्रन्दन
उभरी बन मेरी पहचान
उठाई जो मैंने कलम महान
शुक्रवार, दिसंबर 16, 2022
🏆 तुम्हारे लिए 🏆
बुधवार, दिसंबर 14, 2022
🏆 खुद संग चलने का हौंसला 🏆
🏆 स्त्री है उत्पत्ति का आधार 🏆
शनिवार, दिसंबर 10, 2022
पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित राष्ट्रीय स्तरीय ऑनलाइन सिनेमा विशेष साहित्यिक महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।
पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा सिनेमा के महत्व तथा उपयोगिता का अहसास लोगों को करवाने के उद्देश्य से ऑनलाइन सिनेमा विशेष साहित्यिक महोत्सव का आयोजन किया गया। जिसका 'विषय - ऐच्छिक फिल्मी नाम' रखा गया। इस महोत्सव में देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकारों ने भाग लिया। जिन्होंने दिए गए विषय पर आधारित एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट रचनाओं को प्रस्तुत कर महोत्सव की शोभा में चार चाँद लगा दिए और महोत्सव को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस महोत्सव में एक ओर जहां वरिष्ठ रचनाकारों ने अपनी विशिष्ट साहित्यिक शैली का प्रदर्शन किया तो दूसरी ओर समूह से जुड़े नवीन रचनाकारों ने भी अपनी अनूठी रचनाओं से समूह का ध्यान आकर्षित किया। महोत्सव में सम्मिलित सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन 'पुनीत साहित्य ज्योति' सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने सिनेमा के महत्व व विशेषता के बारे में बताते हुए कहा कि सिनेमा मनोरंजन के साथ-साथ लोगों को जागरूक करने का महत्वपूर्ण साधन है। यदि सिनेमा जैसे सशक्त साधन का ठीक ढंग से प्रयोग किया जाए तो यह समाज के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकता है। इसके साथ ही उन्होंने महोत्सव में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन व उत्साहवर्धन किया तथा सम्मान पाने वाली सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को उज्ज्वल साहित्यिक जीवन की शुभकामनाएं दी। उन्होंने समूह द्वारा आयोजित होने वाले विभिन्न ऑनलाइन कार्यक्रमों में लोगों को अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए सादर आमंत्रित भी किया। इस महोत्सव में उत्कृष्ट रचना प्रस्तुत करके समूह की शोभा बढ़ाने वालों में प्रमुख नाम कल्पना यादव, सीमा मोटवानी, दीप्ति शर्मा दीप रचनाकारों के रहे।
गुरुवार, दिसंबर 08, 2022
🦋 जीवन चलचित्र 🦋
जोड़-घटा।
सुख-दुःख के पल,
सिनेमा के,
हम झूमते रहे,
पता ही न चला,
कब उदासी की,
और,
बुधवार, दिसंबर 07, 2022
पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित राष्ट्रीय स्तरीय ऑनलाइन भाग्य विशेष साहित्यिक महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।
पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा भाग्य के विभिन्न पक्षों को लोगों के समक्ष लाने के उद्देश्य से ऑनलाइन भाग्य विशेष साहित्यिक महोत्सव का आयोजन किया गया। जिसका 'विषय - भाग्य के विभिन्न पक्ष' रखा गया। इस महोत्सव में देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकारों ने भाग लिया। जिन्होंने भाग्य के विभिन्न पक्षों पर आधारित एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट रचनाओं को प्रस्तुत कर महोत्सव की शोभा में चार चाँद लगा दिए और महोत्सव को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस महोत्सव में सम्मिलित सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन 'पुनीत शब्द भास्कर' सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने भाग्य की विशेषता बताते हुए कहा कि अच्छे कर्म करने वाले लोगों पर भाग्य सदैव मेहरबान होता है। इसलिए लोगों को भाग्य के भरोसे बैठने की बजाय अच्छे कर्म करते रहना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने महोत्सव में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन व उत्साहवर्धन किया तथा सम्मान पाने वाली सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को उज्ज्वल साहित्यिक जीवन की शुभकामनाएं दी। उन्होंने समूह द्वारा आयोजित होने वाले विभिन्न ऑनलाइन कार्यक्रमों में बच्चों को विशेष रूप से अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए सादर आमंत्रित किया। इस महोत्सव में उत्कृष्ट रचना प्रस्तुत करके समूह की शोभा बढ़ाने वालों में प्रमुख नाम सीमा मोटवानी, दीप्ति शर्मा दीप, कल्पना यादव रचनाकारों के रहे।
🦋नियति और कर्म 🦋
🦋 भाग्यवान 🦋
अरे ! बेटा सुन वो कमली कहाँ मर गयी देख कर आ तो, माँ सुनो ना ! तुम कमला को ऐसे मत बोला करो, वो मेरी पत्नी है। सात फेरे और सात वचन देकर मैं उसे ब्याह कर लाया हूँ, वो मेरा भाग्य है। आप क्यों उसे जबरन बात-बात पर ताना मारती रहती है। काहे का भाग्य अभागी है वो जनमते ही अपने बाप को खा गयी।थोड़ी बड़ी हुई तो इकलौता भाई था वो भी नही रहा फिर जैसे ही ब्याह हुआ अपनी माँ को भी हजम कर गयी ऐसी औरत कहाँ से तेरा भाग्य बनायेगी। माँ उसमें उसका क्या दोष आप उसको काहे कोस रहे हो। मानव जितनी उमर लिखा कर आता है पूरी होते ही चला जाता है। हाँ बस मौत का कारण कोई न कोई बन जाता है। आपको पता है पत्नी को अर्द्धांगिनी क्यों कहते हैं, क्योंकि शादी होते ही पति-पत्नी शरीर से भले दो रहे पर जान एक रहती है और बताऊं पत्नी को भाग्यवान क्यों बुलाते हैं। क्योंकि एक औरत माँ बनकर बच्चों को संस्कारवान बनाती है, उनके कर्म से उनका भाग्य बनता है फिर बहन और बेटी बनकर कन्यादान करवाकार पुण्य कमाने का मौका देती है। ये मौका भी सौभाग्य से मिलता है, और फिर पत्नी बनकर उम्र भर पति के भाग्य को चमकाने के लिये प्रयत्न करती रहती है। भाग्य कोई लिखा कर नही लाता माँ, वो तो मानव अपने कर्मों से बनाता है। मैं ऐसे ही कमला को भाग्यवान नहीं बुलाता हूँ बल्कि इसलिए क्योंकि वो सौभाग्य से मुझे मिली है।
मंगलवार, दिसंबर 06, 2022
🦋 नियति 🦋
सोमवार, दिसंबर 05, 2022
🦚 कभी खुशी, कभी गम 🦚
रविवार, दिसंबर 04, 2022
🦚 विरह 🦚
तुम्हारे बदलने से लेकर
हमारे संभलने के मध्य
बीत गए कई युग
और उन युगों के मध्य
बीत गयी कई सदियां
कई साल और रातें
और उन रातों में बीत गए
वो क्षण
जो ख़ुद के साथ
बिताये बातें करते हुए
कभी चाँद साथी बना तो
कभी आसमां हमराही
और उसके एक कोने पर
खड़े तुम और दूजे पर हम
चाँद से संदेशें भेजते रहे
संजोये हुए सारे सपने
सपनो में जाकर जगाते थे
सिहर उठ बैठते थे आसूं
विरह युग जीना सरल है क्या
उत्तर नदारद पर प्रश्न असंख्य
राधे तुम्हारे प्रेम को नमन
मीरा नतमस्तक हूँ तुम्हारे समक्ष
प्रेम की परिभाषा अलग
और परिस्थितियां भी अलग
प्रेम एक स्वाभाविक
और सरल प्रक्रिया है
पर युग युगान्तर तक
उदाहरण होना अत्यंत कठिन
विरह युग जीना सरल है क्या ?
✍️ सीमा मोटवानी ( अयोध्या, उत्तर प्रदेश )
पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा आयोजित ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।
पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा लोगों को स्नेह के महत्व और विशेषता का अहसास करवाने के उद्देश्य से ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव का आयोजन किया गया...
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बन जाते हैं कुछ रिश्ते ऐसे भी जो बांध देते हैं, हमें किसी से भी कुछ रिश्ते ईश्वर की देन होते हैं कुछ रिश्ते हम स्वयं बनाते हैं। बन जाते हैं ...
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जीवन में जरूरी हैं रिश्तों की छांव, बिन रिश्ते जीवन बन जाए एक घाव। रिश्ते होते हैं प्यार और अपनेपन के भूखे, बिना ममता और स्नेह के रिश्ते...
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हे प्रियतम ! आपसे मैं हूँ और आपसे ही मेरा श्रृंगार......। नही चाहिए मुझे कोई श्रृंगार-स्वर्ण मिल जाए बस आपका स्नेह.. ...