शनिवार, दिसंबर 31, 2022

🦚 नया साल 🦚








कुछ यूं करें 
नए साल का आगाज
मन में बनाकर
खुद पर दृढ़ विश्वास
बीती बातों को भूल कर
चलो नए 
कल को अपनाते है
उदासी के अंधेरों को
रास्ते से हटाकर
खुशियों की रोशनी का
मंजर सजाते हैं
हो तमन्नाएं नई 
बने हौसलों का
नया आशियाना
प्यार से भरी 
ठंडी हवाओं में
चलो गुनगुनाऐं
कोई नगमा सुहाना
इम्तिहानो के दौर तो
चलते ही रहेंगे
किसी के रोकने से
ये कहां रुके हैं
लेकिन हमारे
हौसलों के आगे
ये हमेशा ही झुके हैं
यह नीला आसमान हमें 
अपनी मंजिल की ओर 
बुला रहा है
उड़ने के लिए 
पंख पसार लो अपने 
कि नया साल आ रहा है।
           
✍️ अमृता पुरोहित ( पंचमहल, गुजरात )

सोमवार, दिसंबर 26, 2022

🦚 नव वर्ष की योजना 🦚








नए वर्ष की मित्र को भेजी बधाई 

वहाँ से जवाबी चिट्ठी आई 

मेरे भाई, क्यों जले पर 

नमक छिड़क रहे हो 


मैं एक बेरोज़गार हूँ

दुनियाँ की नज़रों में बेकार हूँ

नए वर्ष में तीस साल 

पूरे करने वाला हूँ।

और तुमने जो पूछा है कि

नए वर्ष में क्या करने की 

योजना बना रहे हो 


तो सुनो 

नौकरी तो मिलेगी नही

धंधा करने के लिए रुपया नही

इसलिए मजदूरी, नेतागिरी, कुलीगीरी

करने की योजना बना रहे है

फिलहाल तो बाप के पैसों पर 

मन मारकर जिये जा रहे हैं।


✍️ देवेन्द्र कुमार मिश्रा ( जबलपुर, मध्य प्रदेश )

शनिवार, दिसंबर 24, 2022

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित राष्ट्रीय स्तरीय ऑनलाइन रिश्ते फरिश्ते साहित्यिक महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा मनुष्य के जीवन में रिश्तों के महत्व, विशेषता और उपयोगिता को दर्शाने के लिए ऑनलाइन रिश्ते फरिश्ते साहित्यिक महोत्सव का आयोजन किया गया। जिसका विषय 'रिश्तों का महत्व' रखा गया। इस महोत्सव में देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकारों ने भाग लिया। जिन्होंने दिए गए विषय पर आधारित एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट रचनाओं को प्रस्तुत कर ऑनलाइन रिश्ते फरिश्ते साहित्यिक महोत्सव की शोभा में चार चाँद लगा दिए और ऑनलाइन रिश्ते फरिश्ते साहित्यिक महोत्सव को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस महोत्सव में रश्मि रावत ( गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश ) और वसुधा श्रीवास्तव ( भोपाल, मध्य प्रदेश ) द्वारा प्रस्तुत की गई रचनाओं ने समूह का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित किया। इस महोत्सव में सम्मिलित सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन 'पुनीत साहित्य स्वर्ण' सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने मनुष्य के जीवन में रिश्तों के महत्व, विशेषता तथा उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए सभी लोगों को प्रत्येक रिश्ते को पूरी ईमानदारी के साथ निभाने के लिए प्रेरित किया और महोत्सव में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन व उत्साहवर्धन किया और सम्मान पाने वाले सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को उज्ज्वल साहित्यिक जीवन की शुभकामनाएं दी। इसके साथ ही उन्होंने हिंदी रचनाकारों को आने वाले ऑनलाइन साहित्यिक महोत्सवों में अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए सादर आमंत्रित भी किया। इस महोत्सव में उत्कृष्ट रचना प्रस्तुत करके समूह की शोभा बढ़ाने वालों में प्रमुख नाम अमृता पुरोहित, रश्मि रावत, वसुधा श्रीवास्तव, देवेन्द्र कुमार मिश्रा, रीता शुक्ला‌ रचनाकारों के रहे।

गुरुवार, दिसंबर 22, 2022

🏅रिश्ते🏅











रिश्तो ने ही तो हमें 
एक दूसरे से मिलाया है
इन रिश्तो ने ही तो दिलों में 
प्रेम का दीपक जलाया है

बड़ा ही अनोखा और सुंदर है
इन रिश्तों का ताना-बाना
शायद इसीलिए ना जान सका 
कोई इन रिश्तों का फसाना

रिश्तों को जी कर ही तो 
दिलों को जीता जाता है
समर्पण और अपनेपन के पानी से
रिश्तों की बगिया को सींचा जाता है

नाव और पतवार की तरह होती है
रिश्ते और जिंदगी की कहानी
फिर भी क्यों समाज ने 
इन रिश्तों की अहमियत न जानी

रिश्ते निभाते-निभाते 
कई जिंदगियां गुजर जाती हैं
कई बार इन की गहराइयों में
खुद की शख्सियत भी नजर नही आती है

पर यह रिश्ते ही तो हैं
जिनसे जिंदगी खुशगवार है
इन्हीं रिश्तों से ही तो
बढ़ता आपस में प्यार है

रिश्तो को निभा कर 
इनकी अहमियत जानिए
और रिश्तों की एक खूबसूरत ग़ज़ल गाकर 
जिंदगी की महफिल में समा बांधिए

✍️ अमृता पुरोहित ( पंचमहल, गुजरात )

🏅 रिश्तों की खटास-मिठास 🏅











जीवन का नही है कोई ठिकाना
अपने सच्चे रिश्तों को तुम
कभी भूल ना जाना
हरदम उनको गले है लगाना

कितना भी ऊंचा पद पा जाओ 
अपनों को मत ठुकराना 
उनकी आंखों में खुशी के आंसू आए 
ऐसे कर्म करते जाना

हर व्यक्ति ने जीवन में
अनुभव की होगी खटास
आज वही खटास तो रिश्तों का 
करती जा रही है विनाश

ना जाने क्यों गुम होती जा रही 
अनमोल रिश्तों से मिठास 
मां की ममता और पिता के त्याग का भी
नही हो रहा है लोगों को एहसास

हर पल जिनका साथ निभाया 
आज वो नही रहे पहचान
जीवन के इस कटु अनुभव को
कैसे भुला सकता है इंसान

जिनको अपना समझ सारे 
सुखों को भूल गले लगाया 
आज उन अटूट रिश्तों ने
उनको ही है ठुकराया

यदि भूल से फोन कर लिया तो
इतनी बातें हैं बनाते
भौतिक सुखों को पाकर 
सुखदाताओं को अपनी व्यस्तता हैं बताते

वे बेचारे उनके कटु वचनों को सुनकर 
सोचने पर विवश हो जाते
मेरा प्यार क्या इतना कच्चा था 
जैसे कच्चे सूत के धागे

कुछ रिश्ते तो मधुर स्मृतियों में 
निरंतर अश्रु की धारा है बहाते
उनमें से कुछ तो ठोकर खाने और 
वृद्ध आश्रम जाने को विवश हो जाते

अधिकांश रिश्ते तो बस 
सोशल मीडिया पर ही लोग चलाते 
लाइक या मैसेज कर 
अपनों पर इतना एहसान हैं जताते

माता-पिता गुरु जैसे रिश्ते हैं अनमोल
न तुम समझो इन रिश्तों को फिजूल
जीवित रहने पर कर लो इनका सम्मान
क्यों चढ़ाते हो उनके चित्रों पर फूल

प्राकृतिक आपदाओं और महामारी ने 
कितने रिश्तों को मिटा दिया
दुख इस बात का है भौतिक सुखों में 
लिप्त मानव ने रिश्तों को ही भुला दिया

आज भी कुछ लोग पूरी कृतज्ञता और 
सच्चे प्यार से रिश्ते हैं निभाते
आधुनिकता की दौड़ में कुछ दुर्जन 
भावी पीढ़ी को कृतघ्नता का पाठ हैं पढ़ाते 

रिश्तों में ना जाने क्यों
बढ़ती जा रही है खटास
विदेश जाकर बसने की 
बढ़ रही है लोगों में चाहत खास

मत भूलो अनमोल रिश्तों की मिठास
मिट्टी में मिल जाना सबने यह जरूरी बात
रिश्तों के बिना जीवन है अधूरा
अंत समय में फिर कोई नहीं देगा साथ

  ✍️ वसुधा श्रीवास्तव ( भोपाल, मध्य प्रदेश )

मंगलवार, दिसंबर 20, 2022

🏅 मां महान होती है 🏅











कितनी पीड़ा सहकर
शिशु को जन्म देती है
मां तू कितनी महान होती है
अपने बच्चों की
छोटी-छोटी खुशियों में
अपनी दुनिया तलाश लेती है 
मां तू कितनी महान होती है
जब कभी बच्चे रूठ जाएं
तू उन्हें हंसकर मना लेती है
मां तू कितनी महान होती है

अपनी खुशियों को
त्याग कर
तूने बच्चों को 
हमेशा गले से लगाया
आज उन्हीं बच्चों ने 
कर दिया तुम्हें पराया
तू चुपचाप इस कड़वे
घूंट को भी पी लेती है
अपनी व्यथा को 
अपने होठों पे सी लेती है
सच में मां तू 
कितनी महान होती है

तेरा कोई नही है सानी मां
तेरे सामने इस दुनिया की 
सारी उपमाएं बेमानी मां
तूने दुनिया की
बुरी नजर से बचाया
मेरी जिंदगी में
बनकर मेरा साया
दुनिया की इस भीड़ से 
अब कौन मुझे बचाएगा
तेरे जैसा फरिश्ता
मेरी जिंदगी में 
फिर कहां से आएगा 

मां तुझ जैसा 
इस दुनिया में कोई नही
तू ममता की छांव है
तुझसे ही इस सृष्टि का सृजन है
मां तू जन्नत का फूल है
प्यार करना ही तेरा उसूल है
मां तेरी हर दुआ मुझे कुबूल है
मेरे लिए तेरे चरणों की मिट्टी भी
जन्नत की धूल है

✍️ रीता शुक्ला ( रायगडा, उड़ीसा )

🏅बेटी🏅

रमेश अपनी पाँच वर्षीय बेटी के साथ खेल रहा था। कभी बच्‍ची छिपती। रमेश ढूंढ़ता। कभी रमेश छिपता। बेटी ढूंढ़ती। जब पिता नही मिलते तो बच्‍ची रोने लगती। रमेश दौड़कर उसे गले लगा लेता। रमेश अपनी बेटी को और पिताओं से कुछ ज्‍यादा ही प्‍यार करते थे। पत्नी कहती भी कि ज्‍यादा लाड में मत बिगाड़ो। लेकिन रमेश पत्‍नी से कहते, अपनी बेटी को लाड नहीं करूंगा तो किससे करूंगा। जबसे मेरे जीवन में आई है, मुझे जीने का सहारा मिल गया। बेटी पैदा होने के बाद रमेश ने फिल्‍म जाना, दोस्तों के साथ उठना-‍बैठना सब बन्‍द कर दिया था। अब बेटी के साथ खेलते। बेटी को घुमाने ले जाते। बेटी ही उनका जीवन बनकर रह गई थी। बेटी के साथ आज फिर छुपम-छिपाई का खेल चल रहा था। बेटी छिपती तो देख लेने के बाद भी रमेश इस कमरे से उस कमरे में जाते और कहते –‘’अरे मेरी बेटी कहां गई----मेरी बेटी कहां गई—फिर कुछ देर बाद पकड़ लेते। फिर रमेश छिपते तो बेटी इधर-उधर ढूंढ़ने के बाद रोने लगी। रमेश फौरन दौड़कर आये और बेटी को गले से लगा लिया। बेटी ने रोते हुए धीरे से पिता के गाल पर चपत लगाई। प्‍यार से रमेश ने भी बेटी के गाल पर हल्‍की सी चपत लगा दी। फिर रोते हुए बेटी ने पिता के गाल पर जोर से चपत लगा दी। फिर पिता रमेश ने हंसते हुए हल्‍के से बेटी को चपत लगा दी। फिर बेटी ने थप्‍पड़ मारा प्‍यार भरा। इस बार पिता रमेश ने थोड़े जोर से प्‍यार भरी चपत लगा दी। बेटी को गाल पर चोट सी लगी। उसने गुस्‍से में पिता को अपने नन्‍हें कोमल हाथ से थप्‍पड़ मारा। रमेश ने पिछली बार से ज्‍यादा जोर से मारा। बेटी को जोर से लगा। वह रोकर लिपट गई और पिता की पीठ, गाल पर नन्‍हें हाथों से चोट करने लगी। रमेश को पता नही क्‍या हुआ, वह बच्‍ची को जोर से थप्‍पड़ मारने लगा। बेटी को समझ नही आया कि उसके प्‍यारे पापा उसे क्‍यों मार रहे हैं। बेटी रोते हुए अपने मुलायम, कोमल हाथों से मारने लगी तो पिता रमेश को न जाने अचानक कैसा और किस बात पर गुस्‍सा आ गया कि वे जोर-जोर से अपनी जान से ज्‍यादा प्‍यारी बेटी को मारने लगे। थप्‍पड़ अब चपत या थपकी नही थे। थप्‍पड़ ही थे। बेटी जोर-जोर से रोने लगी और रमेश को पता नही क्‍या पागलपन सवार हुआ‍ कि वे अपनी जान से प्‍यारी बेटी को जोर-जोर से पीटने लगे।  

        रमेश के मस्तिष्‍क में अचानक बचपन का दृश्‍य घूमने लगा। जब वे पांच वर्ष के थे और उसके पिता रमेश की मां को शराब के नशें में पीटते हुए गंदी-गंदी गालियां देते हुए उसे बदचलन कह रहे थे। रमेश की मां पिट रही थी और पिता उसे पीट रहे थे। रमेश सहमा हुआ एक तरफ खड़ा हुआ था। 

        पिता जयसिंह जोर-जोर से चीख रहे थे -‘’तुम औरते होती ही बेवफा हो। मेरी गैरहाजिरी में अपने यार को बुलाकर गुलछर्रे उड़ाती हो। चरित्रहीन औरत तू मर क्‍यों नहीं जाती। इतना प्‍यार है तो अपने यार के साथ मुंह काला करके भाग जाती उसी के साथ -‘’ और ये सिलसिला जब तब चलता रहता। 

        रमेश की मां ने जब एक बेटी को जन्‍म दिया तो जयसिंह ने चीखकर कहा -‘’बेटी कैसे हो गई। ये मेरी नही हो सकती। बेटी पैदा करके तूने मेरा सिर शर्म से झुका दिया। अब कहां से आयेगा इसकी शादी के लिए लाखों रूपये। पूरे जीवन इसके ससुरालवालों के सामने झुकना पड़ेगा। पालेंगे हम और आबाद करेगी दूसरे का घर और यदि जवानी में इसके कदम बहके तो पूरे खानदान के मुंह पर कालिख पोत कर रख देगी।‘’ 

        रमेश की मां जया ने कहा -‘’बेटी लक्ष्‍मी होती है। दुधमुंही बच्‍ची के बारे में इतना क्‍यों सोचते हैं। अपना भाग्‍य लेकर आती हैं लड़कियां। अपने घर के साथ दूसरे का घर भी रोशन करती हैं। आप पढ़े-लिखे हो। सरकारी अफसर हो। बेटी के लिए दहेज जुटाना कौन सी बड़ी बात है आपके लिए’’ 

‘’तो क्‍या मैं इसपर खर्च करने के लिए कमा रहा हूं।‘’ 

‘’बेटियों से घृणा करने वाले यदि अपने लिए बेटियां नही चाहते तो अपने बेटों के लिए बहू कहां से लाओगे’’ 

‘’मुझे उपदेश देने की जरूरत नही है। मुझे लड़की नही चाहिए। चाहे किसी को दे दो या बहा दो नदी में।‘’ 

‘’मैं माँ हूँ। मेरा अंश है ये। मैं इस पर आंच नही आने दूँगी। मैं भी किसी की बेटी हूँ। आपसे प्‍यार किया। आपके साथ घर छोड़कर भागी। आपसे विवाह किया। आपका घर बसाया।‘’ 

‘’इसलिए तो कहता हूँ कल तेरे नक्‍शेकदम पर चलेगी तो क्‍या मुंह दिखाऊगा समाज को। तुम मेरे साथ भागी अपने माँ-बाप को छोड़कर। जब तुम बाप की नही हुई तो मेरी कैसे हो सकती हो और ये लड़की भी यही करेगी तो‍ ----‘’

‘’जया गुस्‍से में आ गई। उसने क्रोध से कहा – ‘’ मैंने तुम्‍हारे प्‍यार के लिए अपना घर-परिवार छोड़ा। उसका ये सिला दे रहे। तुम्‍हें किसी की लड़की भगाते शर्म नही आई। इज्‍जतदार होते प्रेम की कदर करते तो मुझे भगाकर न ले जाते। मेरे माता-पिता से मेरा हाथ मांगते।‘’ 

जयसिंह क्रोध में आ गये। शराब का नशा भी था और घर के बड़े-बुजुर्ग के चेहरे भी घर में बेटी के पैदा होने से मुरझा गये थे। उन्‍होंने गुस्‍से में कहा –‘’ ये कन्‍या मेरे घर नही आयेगी। इसका गला घोंट दो। चाहे कहीं फेंक दो। सारा घर मुझ पर लाहनत बरसा रहा है।‘’ कहते हुए क्रोध में जयसिंह बाहर निकल गया। रमेश सब कुछ सुन रहा था। देख रहा था। माँ के आँसू, अपनी छोटी नन्हीं बहन की किलकारी। उसका मन हुआ कि गोद में ले ले अपनी नवजात बहन को लेकिन पिता और दादा-दादी के डर से खमोश रहा और दादा के चीखकर बुलाने पर बाहर आ गया। 

पता नही बाद में क्‍या हुआ कि माँ रोती चीखती रही। अपने पति जयसिंह को हत्‍यारा कहती रही। लेकिन उस नन्‍ही बहिन का कुछ भी पता नही चला। बस माँ के शब्‍द याद थे। जो उन्‍होंने अपने पति से अपने सास ससुर से कहे थे। ‘’रात में सोते समय तुम लोग मेरी बेटी को उठाकर ले गये और उसकी हत्‍या कर दी। नन्‍हीं बालिका की हत्‍या ईश्‍वर कभी माफ नहीं करेगा।‘’  माँ जितना चीखती-चिल्‍लाती उसे उतना ही पीटा जाता। और मार-पिटाई के इसी क्रम में एक दिन माँ मर गई। या कहें कि उसकी हत्‍या कर दी गई। न पुलिस आई न रिपोर्ट हुई। नाना-नानी, मामा लोग अंत्‍येष्टि में आए और चुपचाप चले गये। पिता जयसिंह पुलिस इन्‍सपेक्‍टर थे जो कह दिया उन्‍होंने वही कानून हो गया।

पिता को शराब की लत पहले से थी। पत्‍नी के न रहने पर कभी बाजारू औरतों के साथ बाहर रात गुजारते। कभी घर में लाते। रमेश के दादा-दादी ने बहुत कोशिश की बेटे के दूसरे विवाह की। लेकिन समाज उन्‍हें पत्‍नी एवं कन्‍या हत्‍या का दोषी मानने के साथ-साथ शराबी और अय्याश भी मानता था। 

उनकी हरकतों के कारण किसी ने अपनी लड़की नही दी ओर वे इसी तरह जीते हुए बर्बाद भी हुए और किसी अदृश्‍य बीमारी से उनकी मौत हो गई। दादी-दादा ने जयसिंह की मौत का जिम्‍मेदार उन बाजारू औरतों को माना।

घर की आर्थिक स्‍थिति बद से बदतर हो गई। दादा-दादी बूढ़े थे। वे क्‍या काम करते। रमेश को दस वर्ष की उम्र में पढ़ाई छोड़कर दूसरों की दुकान पर, घरों में छोटे-छोटे काम करके अपना और दादी-दादा का पेट पालना पड़ा। दादा-दादी के न रहने पर रमेश ने कड़ी मेहनत करके पाई-पाई बचाकर परचून की दुकान खोल ली। उसकी दुकान पर आने वाले ग्राहक जो उससे घुले-मिले थे। अपने घर की व्‍यथा – कथा कहते। जिसमें बहन की शादी का रोना। बेटियों को वर न मिलना। दहेज की मांग करना। बेटियों का घर से भागकर शादी रचाना और परिवार के मुंह पर कालिख पोतने जैसे विषय मुख्‍य रहते।

एक ग्राहक ने तो यहां तक कह दिया कि इसलिए पहले के जमाने में लोग पैदा होते ही बेटियों का गला घोंट देते थे। रमेश को लगता कि उसके पिता सही थे।‌ उसकी मां गलत थी। घर में बेटियों को होना ही अभिशाप है बहन-बेटियों से छेड़छाड़ के चलते लोगों ने बेटियों को पढ़ाना बन्‍द कर दिया। कई भाइयों ने छेड़छाड़ करने वालों के साथ मारपीट की और जेल चले गये। कई ग्राहक तो ऐसे भी थे जो उससे हंसी मजाक करते थे। दूसरों की बुराई उससे करते थे। गोविन्‍द ने एक दिन मजाक में कहा -‘’कमल की शादी हुए कई साल बीत गये लेकिन वर्षो बाद हुई भी तो लड़की। नामर्द होगा। मर्द होता तो एक मर्द को पैदा करता। अब मरने के बाद मुखाग्नि कौन देगा ? मोक्ष कैसे मिलेगा ? जायदाद का क्‍या होगा। कोई लड़का आयेगा और लड़की को फंसाकर जीवन भर की कमाई ले उड़ेगा। समाज में मुंह काला होगा सो अलग।‘’ समाज की सोच पहले भी वही थी आज भी वही है। रमेश के दिमाग में इन सब बातों का थोड़ा बहुत असर तो होना ही था। कुछ समय बाद एक भले परिवार ने अपनी लड़की की शादी रमेश से कर दी। जब पत्‍नी ने गर्भधारण किया तो वह यही मांगता रहा भगवान से कि हे ईश्‍वर बेटा ही देना। लेकिन बेटी ही हुई। कुछ समय तो रमेश उदास रहा। फिर बेटी ने अपनी हंसी और भोलेपन की ऐसी माया फैलाई कि रमेश का पूरा जीवन बेटी के इर्द-गिर्द घूमने लगा। जिनके यहां बेटे थे बेटी नही थी। उनके बारे में रमेश यही सोचता कि कितना नीरस जीवन होगा इनका बिना बेटी के। बेटी के होने से परिवार में सभ्‍यता का संचार होता है। शर्म, लिहाज सब सीख जाता है व्‍यक्ति।

रमेश पांच वर्षीय बेटी को पीट रहा था। बेटी जोर-जोर से रो रही थी। पत्‍नी घर का सामान लेने बाजार गई थी। बेटी के करूण रूदन से मां की कही बात याद आ गई। बेटी लक्ष्‍मी का रूप होती है। कन्‍या के हत्‍यारों को भगवान कभी माफ नही करता। उसे अपनी नन्‍हीं बहन की याद आ गई। किस बेदर्दी से पिता ने उसकी हत्‍या कर दी। मां कैसे बेटी की याद में तड़फती रही। उसे लगा जैसे वह अपनी नन्‍हीं बहन की मां की हत्‍या कर रहा हो। और जैसे अचानक उसे होश आया। ये क्‍या कर रहा हूं मैं। बेटी के रोने से उसके अन्‍दर करूणा फूट पड़ी। उसने बेटी को गोद में उठाकर सीने से लगा लिया। और भगवान से कहा-‘’मार दे मुझे भगवान। ये क्‍या हो गया था मुझे’’ बेटी कुछ देर रोती रही। अपने नन्‍हें हाथों से पिता को गुस्‍से में पीटती रही। पिता बेटी से पिटने का आनन्‍द लेते रहे। फिर पिता के सीने में सिर रखकर बेटी सो गई।  

रमेश ने तय किया कि मैं अपनी बेटी को खूब पढ़ाऊंगा। उसे आत्‍मनिर्भर बनाऊंगा। जीवन भर हर सुख-दुख में उसका साथ दूंगा। बड़ी से बड़ी‍ गलती बेटी की माफ करूंगा जैसे लोग बेटो की करते हैं। भविष्‍य में अपना मनपसंद वर चुनती है तो उसकी पसन्‍द का सम्‍मान करूंगा। मेरा घर, मेरा परिवार, मेरा समाज मेरी दुनियां मेरी बेटी है। बिटिया को बिस्‍तर पर लिटाकर पिता रमेश ने उसका माथा चूमा। कई महीने तक रमेश अपनी बेटी पर हाथ उठाने के लिए अन्‍दर से दुखी रहे और खुद को अपराधी मानकर मन ही मन बेटी से क्षमा मांगते रहे।


✍️ देवेन्द्र कुमार मिश्रा ( जबलपुर, मध्य प्रदेश )

सोमवार, दिसंबर 19, 2022

🏅अनूठा रिश्ता पानी का...🏅








प्रेम तुम्हारा जैसे सविता और मेरा ज्यों पानी है।
ये जो झरती झर-झर वर्षा, अपनी प्रेम कहानी है।

तुझसे मिलने की चाहत में, क्या नदियां और सागर क्या।
अपने सभी ठिकाने‌ छोड़े, झरने क्या और पोखर क्या।
सबकी नज‌रों से लुक छिपकर, चंचल छोड़ी रवानी है।
ये जो झरती झर-झर वर्षा.......।

न भय तेरे ताप का कुछ भी, न पथ की कठिनाई का।
न अपनी कुछ सुविधा देखी, काम नहीं चतुराई का।
पवन संग ले पंख उड़ी जो, वो मेरी ही जवानी है।
ये जो झरती झर-झर वर्षा.........।

कैसे तुझको मैं छू पाती, दूरी अगणित मील हुई।
तुझसे मिलने की चाहत तो, फिर से चकनाचूर हुई।
बार-बार ठोकर खाकर भी, न माने वो दीवानी है।
ये जो झरती झर-झर वर्षा..........।

जब पीड़ा न थाम सका और, रोकर तड़प उठा ये दिल।
तब मेघों में गरज उठी और, नाहक छलक पड़ा ये दिल।
आंखों से पाकर के रस्ता, बहता खारा पानी है।
ये जो झरती झर-झर वर्षा......।

पा लेने का नाम न केवल, प्रेम नाम बलिदानों का।
शुद्ध समर्पण भाव चाहिए, त्याग भाव अभियानों का।
मेरे प्रेमामृत को पाकर, चूनर धरती की धानी है।
ये जो झरती झर-झर वर्षा.........।

✍️ रश्मि रावत ( गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश )

रविवार, दिसंबर 18, 2022

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित राष्ट्रीय स्तरीय ऑनलाइन 'कलम महान, विशेष पहचान' प्रेरक कार्यक्रम के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा युवाओं को कलम थामकर उत्कृष्ट लेखन करने की प्रेरणा देने के उद्देश्य से ऑनलाइन 'कलम महान, विशेष पहचान' प्रेरक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसका 'विषय - स्वैच्छिक' रखा गया। इस कार्यक्रम में देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकारों ने भाग लिया। जिन्होंने अपनी कलम से भिन्न-भिन्न विषयों पर आधारित एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट रचनाओं को रचकर तथा कार्यक्रम में प्रस्तुत करके कार्यक्रम की शोभा में चार चाँद लगा दिए और कार्यक्रम को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस कार्यक्रम में नीलम महाजन ( भिवानी, हरियाणा ) और अमृता पुरोहित ( पंचमहल, गुजरात ) की रचनाओं ने समूह का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित किया। कार्यक्रम में सम्मिलित सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन 'पुनीत प्रेरक ज्योति' सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने युवाओं को कलम के महत्व के बारे में बताते हुए‌ बेकार की चीजों का पीछा छोड़कर कलम थामकर समाज सुधारक उत्कृष्ट लेखन करने के लिए प्रेरित किया। इसके साथ ही उन्होंने कार्यक्रम में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन व उत्साहवर्धन किया तथा सम्मान पाने वाली सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को उज्ज्वल साहित्यिक जीवन की शुभकामनाएं दी। उन्होंने रचनाकारों को समूह द्वारा आयोजित होने वाले विभिन्न ऑनलाइन साहित्यिक कार्यक्रमों में अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए सादर आमंत्रित भी किया। इस कार्यक्रम में उत्कृष्ट रचना प्रस्तुत करके समूह की शोभा बढ़ाने वालों में प्रमुख नाम नीलम महाजन, सीमा मोटवानी, अमृता पुरोहित, पूजा आर श्रीवास्तव रचनाकारों के रहे।

शनिवार, दिसंबर 17, 2022

🏆 मेरी कलम, मेरी पहचान 🏆









जब-जब मन ने बांधे बन्धन
राह दिखा फैला गई चन्दन
अल्हड़ प्रेम का किया अभिनन्दन 
तोड़ी चुप्पियां तोड़े क्रन्दन 
उभरी बन मेरी पहचान 
उठाई जो मैंने कलम महान 

मेरी सांसों को खुद में भर
लिखा लहरों पर मेरा पैगाम
अल्फ़ाजों का श्रृंगार कर 
महका दिया मन का गुलिस्ताँ 
पात-पात बोला मेरा पैगाम 
मेरी कलम बन गई मेरी पहचान 

बिखेरने लगी अपने इर्द-गिर्द 
अपने ही ब्रश से अपने ही रंग
बनाने लगी अपना ही आसमां
अपनी ही चाहतों के संग 
मन की मादकता हो गई जवान 
मेरी कलम बन गई मेरा गुमान 
  
✍️ नीलम महाजन ( भिवानी, हरियाणा )
 

शुक्रवार, दिसंबर 16, 2022

🏆 तुम्हारे लिए 🏆








प्रीत का वरण है तुम्हारे लिए
स्नेह का आचरण है तुम्हारे लिए
तुम मुझ में रहो मैं तुझमें रहूँ
ये प्रणय व्याकरण है तुम्हारे लिए
मन का सुंदर सा दर्पण तुम्हारे लिए 
सारा जीवन समर्पण तुम्हारे लिए 
हर दुआ में है रब से बस मांगा तुम्हें
सारी खुशियां हैं अर्पण तुम्हारे लिए
दिल का दिल से गठबंधन तुम्हारे लिए
शुद्ध, निश्चल ये बंधन तुम्हारे लिए
आस्था को मेरी तुम निभाना सदा
सारा मौसम सुहावना तुम्हारे लिए

✍️ पूजा आर श्रीवास्तव ( वाराणसी, उत्तर प्रदेश )

बुधवार, दिसंबर 14, 2022

🏆 खुद संग चलने का हौंसला 🏆












खुद संग चलने का हौंसला
होता मुश्किल है ये फैसला..
पर व्यथित मन के साथ 
संघर्ष नही हो सकता
निर्मित करना पड़ता है
खुद को नये आकार में
रोपित करना पड़ता है
निर्मूल अभिलाषाओं को
गहरी पैठ होती है
घावों के दीमक की
पीड़ाओं का उफनता समंदर 
पार नही लगने देता 
वो तिनका 
जिसमे जिजीविषा
तैरती नजर आती है
पर उत्कंठित मन 
कर इकट्ठा
जूझ अंतरद्वन्द से
जीतना होता है
समय चक्र से लौटना
इसलिए तो
खुद संग चलने का हौंसला
होता मुश्किल है ये फैसला..

✍️ सीमा मोटवानी ( अयोध्या, उत्तर प्रदेश )

🏆 स्त्री है उत्पत्ति का आधार 🏆












स्त्री.............
रेगिस्तान की तपती रेत में,
बहने वाली ठंडी बयार है।
वो स्त्री ही तो है जो इस संसार में,
उत्पत्ति का आधार है।

दुर्गा बनकर करती वह,
दुष्टों का संहार है।
संस्कारों का सृजन करके,
समाज को प्रगति की ओर ले जाती है।
अपनी असीमित क्षमताओं से,
नए ताने-बाने बनाती है।
स्त्री है वह जिसका,
ऋणी सारा संसार है।
वो स्त्री ही तो है जो इस संसार में,
उत्पत्ति का आधार है।

खेल हो या अंतरिक्ष,
हर जगह स्त्री ने परचम लहराया है।
अन्नपूर्णा बनकर लगती वो,
अपने परिवार का दृढ़ साया है।
राष्ट्र प्रगति की धुरी है स्त्री,
वो ही वीरता रूपी तलवार है।
वो स्त्री ही तो है जो इस संसार में,
उत्पत्ति का आधार है।

प्रेम और करुणा की मूरत बनकर,
ममता की छाया देती है।
खुद के सपनों को तिलांजलि देकर,
सारे दुखों को हरती है।
प्रणाम है स्त्री शक्ति को,
नमन है उसकी भक्ति को।
संसार रूपी नाव की वो,
जीती जागती पतवार है।
वो स्त्री ही तो है जो इस संसार में,
उत्पत्ति का आधार है।

स्त्री के अमूल्य योगदान को,
हम कभी भूला नही सकते।
स्त्री के बिना किसी संसार की,
कल्पना हम नही कर सकते।
साहस और शौर्य की प्रतिमा है स्त्री,
जिसके समक्ष नतमस्तक सारा संसार है।
वो स्त्री ही तो है जो इस संसार में,
उत्पत्ति का आधार है।

✍️ अमृता पुरोहित ( पंचमहल, गुजरात )

शनिवार, दिसंबर 10, 2022

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित राष्ट्रीय स्तरीय ऑनलाइन सिनेमा विशेष साहित्यिक महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा सिनेमा के महत्व तथा उपयोगिता का अहसास लोगों को करवाने के उद्देश्य से ऑनलाइन सिनेमा विशेष साहित्यिक महोत्सव का आयोजन किया गया। जिसका 'विषय - ऐच्छिक फिल्मी नाम' रखा गया। इस महोत्सव में देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकारों ने भाग लिया। जिन्होंने दिए गए विषय पर आधारित एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट रचनाओं को प्रस्तुत कर महोत्सव की शोभा में चार चाँद लगा दिए और महोत्सव को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस महोत्सव में एक ओर जहां वरिष्ठ रचनाकारों ने अपनी विशिष्ट साहित्यिक शैली का प्रदर्शन किया तो दूसरी ओर समूह से जुड़े नवीन रचनाकारों ने भी अपनी अनूठी रचनाओं से समूह का ध्यान आकर्षित किया। महोत्सव में सम्मिलित सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन 'पुनीत साहित्य ज्योति' सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने सिनेमा के महत्व व विशेषता के बारे में बताते हुए‌ कहा कि सिनेमा मनोरंजन के साथ-साथ लोगों को जागरूक करने का महत्वपूर्ण साधन है। यदि सिनेमा जैसे सशक्त साधन का ठीक ढंग से प्रयोग किया जाए तो यह समाज के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकता है। इसके साथ ही उन्होंने महोत्सव में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन व उत्साहवर्धन किया तथा सम्मान पाने वाली सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को उज्ज्वल साहित्यिक जीवन की शुभकामनाएं दी। उन्होंने समूह द्वारा आयोजित होने वाले विभिन्न ऑनलाइन कार्यक्रमों में लोगों को अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए सादर आमंत्रित भी किया। इस महोत्सव में उत्कृष्ट रचना प्रस्तुत करके समूह की शोभा बढ़ाने वालों में प्रमुख नाम कल्पना यादव, सीमा मोटवानी, दीप्ति शर्मा दीप रचनाकारों के रहे।

गुरुवार, दिसंबर 08, 2022

🦋 जीवन चलचित्र 🦋








जीवन,
चलचित्र ही तो है।
जन्म से लेकर,
मरण तक का,
जोड़-घटा।
सुख-दुःख के पल,
बदलते रहे।
सिनेमा के,
पर्दे की तरह।
हम झूमते रहे,
जीवन की र॔गीनियों में।
पता ही न चला,
कब उदासी की,
शाम आयी।
और,
रील खत्म। 

✍️ कल्पना यादव ( कानपुर, उत्तर प्रदेश )

बुधवार, दिसंबर 07, 2022

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित राष्ट्रीय स्तरीय ऑनलाइन भाग्य विशेष साहित्यिक महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा भाग्य के विभिन्न पक्षों को लोगों के समक्ष लाने के उद्देश्य से ऑनलाइन भाग्य विशेष साहित्यिक महोत्सव का आयोजन किया गया। जिसका 'विषय - भाग्य के विभिन्न पक्ष' रखा गया। इस महोत्सव में देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकारों ने भाग लिया। जिन्होंने भाग्य के विभिन्न पक्षों पर आधारित एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट रचनाओं को प्रस्तुत कर महोत्सव की शोभा में चार चाँद लगा दिए और महोत्सव को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस महोत्सव में सम्मिलित सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन 'पुनीत शब्द भास्कर' सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने भाग्य की विशेषता बताते हुए‌ कहा कि अच्छे कर्म करने वाले लोगों पर भाग्य सदैव मेहरबान होता है। इसलिए लोगों को भाग्य के भरोसे बैठने की बजाय अच्छे कर्म करते रहना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने महोत्सव में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन व उत्साहवर्धन किया तथा सम्मान पाने वाली सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को उज्ज्वल साहित्यिक जीवन की शुभकामनाएं दी। उन्होंने समूह द्वारा आयोजित होने वाले विभिन्न ऑनलाइन कार्यक्रमों में बच्चों को विशेष रूप से अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए सादर आमंत्रित किया। इस महोत्सव में उत्कृष्ट रचना प्रस्तुत करके समूह की शोभा बढ़ाने वालों में प्रमुख नाम सीमा मोटवानी, दीप्ति शर्मा दीप, कल्पना यादव रचनाकारों के रहे।

🦋नियति और कर्म 🦋






     

         
         नियति के प्रश्न,
         बार-बार खटकते रहे,    
         कहा गया,
         नियति ही ऐसी थी,
         कर्म का क्या दोष,
         बच-बचा कर ,
         कर्मों की पोटली,
         रख छोड़ी भाग्य सहारे,
         अब क्यूं कोसना !
         पता नहीं क्यूं ?
         भाग्य-कर्म का घालमेल, 
         दुष्कर कर देता है,
         राहें यदा-कदा,
         थक-थका कर,
         कर्म के फन्दों से,
         जब भाग्य की डोरियां,
         थामता है मनुष्य,
          जान ही नही पाता,
          नाव बहेगी किस ओर,
          जाने किस घाट लगे जाकर,
          घाट की कुटिया ही,
          तय करेगी राह,
          जो !
          कर्म के गठजोड़ से ,
          बदल दे नियति,
          शायद।

          ✍️ कल्पना यादव ( कानपुर, उत्तर प्रदेश )

🦋 भाग्यवान 🦋

अरे ! बेटा सुन वो कमली कहाँ मर गयी देख कर आ तो, माँ सुनो ना ! तुम कमला को ऐसे मत बोला करो, वो मेरी पत्नी है। सात फेरे और सात वचन देकर मैं उसे ब्याह कर लाया हूँ, वो मेरा भाग्य है। आप क्यों उसे जबरन बात-बात पर ताना मारती रहती है। का‌‌हे का भाग्य अभागी है वो जनमते ही अपने बाप को खा गयी।थोड़ी बड़ी हुई तो इकलौता भाई था वो भी नही रहा फिर जैसे ही ब्याह हुआ अपनी माँ को भी हजम कर गयी ऐसी औरत कहाँ से तेरा भाग्य बनायेगी। माँ उसमें उसका क्या दोष आप उसको काहे कोस रहे हो। मानव जितनी उमर लिखा कर आता है पूरी होते ही चला जाता है। हाँ बस मौत का कारण कोई न कोई बन जाता है। आपको पता है पत्नी को अर्द्धांगिनी क्यों कहते हैं, क्योंकि शादी होते ही पति-पत्नी शरीर से भले दो रहे पर जान एक रहती है और बताऊं पत्नी को भाग्यवान क्यों बुलाते हैं। क्योंकि एक औरत माँ बनकर बच्चों को संस्कारवान बनाती है, उनके कर्म से उनका भाग्य बनता है फिर बहन और बेटी बनकर कन्यादान करवाकार पुण्य कमाने का मौका देती है। ये मौका भी सौभाग्य से मिलता है, और फिर पत्नी बनकर उम्र भर पति के भाग्य को चमकाने के लिये प्रयत्न करती रहती है। भाग्य कोई लिखा कर नही लाता माँ, वो तो मानव अपने कर्मों से बनाता है। मैं ऐसे ही कमला को भाग्यवान नहीं बुलाता हूँ बल्कि इसलिए क्योंकि वो सौभाग्य से मुझे मिली है।

                     ✍️ दीप्ति शर्मा दीप ( जटनी, उड़ीसा )

मंगलवार, दिसंबर 06, 2022

🦋 नियति 🦋








नियति तय करती है 
जीवन यात्रा का 
आदि और अंत
कभी-कभी यात्रा 
सुखद अनुभूतियों से गुजरते हुए
तय करती है इच्छित पड़ाव
यात्रा के दौरान सहयात्री
आपको सुखद अनुभव 
और स्मृतियों का उपहार देकर 
आजीवन आपके हृदय में 
वास करते हैं
पर कभी-कभी नितांत एकाकीपन 
एकमात्र उत्तर होता है मन मे
निरंतर उठ रहे उत्कंठित प्रश्नों का
पास से गुजरते चलते-फिरते
भागते, मुस्कुराते चेहरे 
जाने पहचाने तो लगते हैं 
पर अनभिज्ञ होते हैं
हमारे उस व्यक्तित्व से
जो लेशमात्र ही जुड़ा होता है
उनकी यात्रा से एकाकी मन 
यात्रा थमती नही
वह जुड़ी रहती है 
आकाशगंगाओं से 
और खोज लेती है 
एक स्थिरचित्त
जो देह के भीतर ही है

✍️ सीमा मोटवानी ( अयोध्या, उत्तर प्रदेश )

सोमवार, दिसंबर 05, 2022

🦚 कभी खुशी, कभी गम 🦚








कभी खुशी तो कभी मिलते बेशुमार गम है,
जिन्दगी जीने के लिए एक जीवन भी कम है,
पल-पल रंग बदल रहे इस मानव जीवन में,
कभी मिलती राहत तो कभी मिलते ज़ख्म है।

कहीं हो रहा मिलन तो कहीं हो रही है जुदाई,
उस मालिक के हिस्से में भी तो दोनों है आई,
खुशी में नही गम में भगवान को हम कोसते,
भगवान तूने आखिर ये दुनिया क्यों है बनाई।

खुशी और गम दोनों इस जीवन के दो रूप है,
जैसे छांव के साथ-साथ हमेशा चलती धूप है,
खुशी व गम जीवन का संतुलन बनाये रखते,
जब एक बोलने लगता तो एक रहता चुप है।

गमों के बाद देखो हमेशा खुशियाँ आती है,
जैसे अंधियारी रात सुबह को पैगाम लाती है,
ये दिन है ये फिर ढलेगा फिर से रात आयेगी,
गम खुशी को, खुशी गम को पूर्ण कर पाती है।

  ✍️ दीप्ति शर्मा दीप ( जटनी, उड़ीसा )

रविवार, दिसंबर 04, 2022

🦚 विरह 🦚






तुम्हारे बदलने से लेकर

हमारे संभलने के मध्य 

बीत गए कई युग 

और उन युगों के मध्य 

बीत गयी कई सदियां

कई साल और रातें 

और उन रातों में बीत गए 

वो क्षण

जो ख़ुद के साथ

बिताये बातें करते हुए

कभी चाँद साथी बना तो

कभी आसमां हमराही

और उसके एक कोने पर 

खड़े तुम और दूजे पर हम 

चाँद से संदेशें भेजते रहे

संजोये हुए सारे सपने

सपनो में जाकर जगाते थे 

सिहर उठ बैठते थे आसूं

विरह युग जीना सरल है क्या 

उत्तर नदारद पर प्रश्न असंख्य

राधे तुम्हारे प्रेम को नमन

मीरा नतमस्तक हूँ तुम्हारे समक्ष

प्रेम की परिभाषा अलग

और परिस्थितियां भी अलग

प्रेम एक स्वाभाविक 

और सरल प्रक्रिया है 

पर युग युगान्तर तक

उदाहरण होना अत्यंत कठिन

विरह युग जीना सरल है क्या ?

 

✍️ सीमा मोटवानी ( अयोध्या, उत्तर प्रदेश )

पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा आयोजित ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।

पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा लोगों को स्नेह के महत्व और विशेषता का अहसास करवाने के उद्देश्य से ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव का आयोजन किया गया...