सोमवार, मई 30, 2022

🍁हिंदी भाषा देश का गौरव है🍁

हमारी संस्कृति बहुत सुन्दर है सारे विश्व में एक अलग ही पहचान है हमारी। संस्कृति से कुछ बहुमूल्य रत्न उपजे हैं उनमे से हमारी हिंदी भाषा एक है। सबसे अच्छी बात ये है कि जो लिखा जाता है वही बोला जाता है भारत में संविधान द्वारा 14 सितम्बर 1949 में हिंदी भाषा को राजकीय भाषा के रूप में स्वीकार किया गया जिसके बाद प्रत्येक वर्ष 14 नवंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। हिंदी केवल भारत में ही नही बल्कि विश्व के अन्य देशों जैसे : पाकिस्तान, फिजी, नेपाल और बांग्लादेश आदि में भी बोली जाती है। यह हमारी संस्कृति और अस्मिता की पहचान है हमारे देश और विदेश के साहित्यकारों और रचनाकारों ने हिंदी भाषा में अपनी कृतियों और पुस्तकों द्वारा हिंदी साहित्य में योगदान करके हमारे देश के गौरव को और बढ़ाया है। हिंदी भाषा सहज और मधुर है इसलिए इसे आसानी से समझा और पढ़ा जा सकता है। कविता, लेख, नाटक, पत्र, हास्य-व्यंग्य आदि विद्याओं को हिंदी भाषा के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है। विश्व के किसी भी कोने में चले जाये लेकिन अपने क्षेत्र में रहकर स्वंत्रत रूप से अपनी मातृ भाषा बोलने का जो सुख और आंनद है वो कहीं और नही हमारी राज भाषा, मातृ भाषा हमारे  देश का गौरव है ऐसी मातृ भूमि को कोटि-कोटि नमन जहां देवनागरी लिपि में लिपटी हिंदी भाषा बोली जाती है।
                
                              ✍️ नंदिनी ठाकुर ( नोएडा, उत्तर प्रदेश )

🍁रक्त का संचार है हिंदी🍁








रग-रग में बहती और मचलती 

रक्त का इक संचार है हिंदी

प्रीत के रस भीगी राधा के 

पायल की झंकार है हिंदी 

कृष्ण विरह डूबी मीरा के

प्रिय प्रतीक्षा की एक पुकार है हिंदी 

कवच सा मानो कर्ण का हो

गोविंद की ललकार है हिंदी 

अर्जुन के गांडीव से निकली 

तीरों की हुंकार है हिंदी 

कभी तो बहती सरिता सी

कभी पपीहे की प्यासी पुकार है हिंदी 

कभी लजाती नव वधू सी तो

कभी मेघों सी गर्जनाकार है हिंदी 

कभी ‘दिनकर’ की ‘रश्मिरथी’ भी है

कभी ‘प्रेमचंद’ की कहानियों का सार है हिंदी 


   ✍️ भारती राय ( नोएडा, उत्तर प्रदेश )


🍁हिंदी वट वृक्ष सभ्यता का🍁








समस्त भाषाओं का गौमुख, शब्दों का प्रयाग है,
हिन्दी अलंकार हिन्द का, मंत्रमुग्ध करने वाला राग है।

मन के भावों को छूने वाली मंद बयार कहीं,
तो कहीं बदलावों  का उदगार है।

सभी भाषायें धूमिल सी लगती, जिसके अर्थो के सागर में,
भाषा शैली ऐसी, समेट लो इसकी विस्तृत लहरों को गागर में।

स्वछंद, स्वतंत्र, उनमुक्त, विचारों, भावों की निर्मल गंगा है,
स्वर्णिम इतिहास इसका, ऋचाओं की पवित्रता से रंगा है।

हिन्द की पावन धरती से इसका सम्बन्ध पुराना है,
हिन्दी वट वृक्ष सभ्यता का, संस्कृति का मुहाना है।

हिन्दी भाषा है हमारी, मात्राओं का जादू जिसमें समाता है,
हिन्द का हर वासी इसकी महत्ता को, मन से शीश नवाता है।

     ✍️ स्मिता सिंह चौहान ( गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश )



🍁हिंदी हमारा अभिमान🍁







हिंदी हमारी मातृभाषा,

हिंदी में करे नित संवाद,

हिंदी से खिलती आशा,

हिंदी में हो वाद-प्रतिवाद।


निज भाषा का अभिमान,

भारत माता का सम्मान,

राष्ट्रप्रेम की धधके ज्वाला,

अपनी माटी, अपना चोला।


सहज, सरल, प्रेम रस भीनी,

मीठी बोली, मिश्री घोली,

हिंदी से हो हमारा गौरवगान,

गढ़ते रहे नित नये प्रतिमान।


सारे कामकाज हो हिंदी में,

हीन भावना न हो मन में,

भाल पर सजी रहे यह बिंदी,

शान से कहे, प्यारी लागे हिंदी।


 ✍️चंचल जैन ( मुंबई, महाराष्ट्र )

🍁हिन्दी🍁








हिन्दी है अभिव्यक्ति की भाषा,
उतुंग हिमालय सी अभिलाषा,
हिन्दी से सुरभित अष्ट-दिशा,
गंगा, जमुना, गोदावरी की आशा।

संस्कृत जननी, शब्द-खजाना,
उर्दू, तमिल, मैथिली हैं बहना,
क्षेत्रीय भाषा का सागर में समाना,
हिन्दी का महासागर बन बहना।

आदान-प्रदान, विचार-समागम,
असंख्य हृदय की सुरमय सरगम,
हिन्दी है राजा-रंक की धड़कन,
शुभ मानवता का अलहद, अक्षय स्पंदन।

हिन्दी है नवपल्लव, मधुमय किसलय,
ज्ञानदीप का औरा, तेजोमय अनुनय,
अंत्योदय से जीवन सुगम, सुखकर,
अन्याय, आक्रोश, पीड़ा करें मुखर।

हिन्दी ! साहित्यकारों की प्रियंवदा,
हिन्दी ! नीतिनिर्धारकों की सशक्त गदा,
हिन्दी ! स्नेह-प्रीत की रेशम डोर,
हिन्दी ! अरुणोदय-सुसज्जित भोर।

 ✍️ कुसुम अशोक सुराणा ( मुंबई, महाराष्ट्र )


रविवार, मई 29, 2022

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित ऑनलाइन नारी कल्याणकारी साहित्यिक महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा नारी की महानता तथा श्रेष्ठता का अहसास लोगों को करवाने के उद्देश्य से ऑनलाइन 'नारी कल्याणकारी साहित्यिक महोत्सव' का आयोजन किया गया। जिसका विषय 'नारी है कल्याणकारी' रखा गया। इस महोत्सव में देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकारों ने भाग लिया। जिन्होंने दिए गए विषय पर आधारित एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट रचनाओं को प्रस्तुत कर महोत्सव की शोभा में चार चाँद लगा दिए। इस महोत्सव में रचनाकारों ने एक ओर जहां अपनी रचनाओं के माध्यम से नारी को ईश्वर की उत्कृष्ट कृति बताया तो दूसरी ओर नारी के भिन्न-भिन्न गुणों का गुणगान कर महोत्सव को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस महोत्सव में सम्मिलित सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन "पुनीत नारी सेवी" सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने नारी शक्ति को कोटि-कोटि नमन करते हुए घर-परिवार तथा समाज के लोगों को नारी को विशेष आदर देने के लिए प्रेरित किया और महोत्सव में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन तथा उत्साहवर्धन किया‌ और सम्मान पाने वाले सभी प्रतिभागी रचनाकारों को उज्ज्वल साहित्यिक जीवन की शुभकामनाएं दी। उन्होंने समूह द्वारा आयोजित होने वाले विभिन्न ऑनलाइन साहित्यिक महोत्सवों में सम्मिलित होने के लिए हिंदी रचनाकारों को सादर आमंत्रित भी किया। इस महोत्सव में उत्कृष्ट रचना प्रस्तुत करके समूह की शोभा बढ़ाने वालों में प्रमुख नाम कुसुम अशोक सुराणा,‌ चंचल जैन, स्मिता सिंह चौहान, भारती राय, नंदिनी ठाकुर‌ रचनाकारों के रहे।



शनिवार, मई 28, 2022

👸स्त्री सृष्टि की पूरक हो तुम👸








स्त्री

कौन हो तुम…?

पर्याय लगती हो धरा की

धीरता से धीर धरती

इक-इक कदम गिरती-संभलती

हो पल्लू में ब्रम्हाण्ड बांधे 

गतिमान इक सूरज हो तुम


स्त्री 

आयी कहाँ से तुम ?

तेरे ललाट पर नक्षत्र सारे

नेत्र यूँ चमके ज्यों तारे 

ममत्वकरुणासंयम 

हैं सब संगी तुम्हारे 

आस की सूरत लिए 

गरिममयी मूरत हो तुम।


स्त्री

आयी भला धरती पे क्यों ?

छल से भरा संसार सारा

है छल रहित हिय ये तुम्हारा 

पीकर गरल का घूँट तुम 

सहेजती हो प्रेम सारा 

कभी-कभी तो लगता जैसे

प्रेम की बहती धारा हो तुम।


स्त्री 

हो ईश्वर की अद्भुत रचना तुम 

संकट में दुर्गा रूप धारण करती

तो प्रेम में गौरी बन जाती हो तुम

विपदा में चण्डी बन उभरती 

देवियों के भिन्न-भिन्न रूप दिखाती तुम 

हैं आयाम अनगिनत तुम्हारे 

स्त्री सृष्टि की पूरक हो तुम


   ✍️भारती राय ( नोएडा, उत्तर प्रदेश )

शुक्रवार, मई 27, 2022

👸उत्कृष्ट कृति केवल नारी है👸








नदियों सी निर्मलता, पक्षियों सी चंचलता,
धरा सी सहनशीलता, आसमां सी व्यापकता,
पहाड़ो सी सुदृढ़ता, वृक्षों सी सृजनात्मकता,
हिम समान शीतलता, ज्वालामुखी सी उद्व्गीनता,
चांदनी सी प्रकाशत्मकता, सूरज सी निरंतरता,
समुद्र सी मर्यादा, मृदा सी सहजता और उत्पादकता,
मंद बयार सी मधुरता, तूफान सी भयावहता,
प्रकृति के सारे गुणों को आत्मसात कर,
जन्म लेती है एक नारी।

सृजन हेतु, ईश्वर की इस दुनिया की भव्यात्मकता,
कोमलता, सरलता, उदारता, दयालुता का प्रतीक है,
ईश्वर के समकक्ष उसकी तुलना का, हर पहलू सटीक है,
धरा के निरंतर बदलावों के बीच भी, जो कभी नही हारी है,
ईश्वर भी नतमस्तक हुआ जिसके चरणों में,
वो उत्कृष्ट कृति केवल स्वयंभू एक नारी है।

     ✍️ स्मिता सिंह चौहान ( गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश )

बुधवार, मई 25, 2022

👸स्त्री जगत कल्याणी है👸

स्त्री रचनाकार है हर उस विषय की जो जीवन के हर पहलू को जीना सिखाये। स्त्री पृष्ठभूमि है जीवन की, जहां से त्याग और तपस्या का जन्म होता है। स्त्री के अंतर्मन को केवल वही जान सकता है जिसने उसे बनाया या जिसने उसके मन और जीवन का बारीकी से शोध किया हो। हमारे समाज और जगत के ना जाने कितने युगों से स्त्री के त्याग और समर्पण को अलग-अलग रूपों में पाया गया। सीता, अहिल्या बाई, राधा, मीरा, रानी लक्ष्मीबाई, रजिया सुल्ताना सरोजनी नायडू, कल्पना चावला आदि जैसी और ना जाने कितने नाम है जो स्त्री के ना केवल वीरांगना होने का प्रमाण देते है बल्कि उनके त्याग और समर्पण की अनोखी गाथाएँ हमारे सामने आज भी देखी और सुनी जाती हैं आज भी जगत में इन महान स्त्रियों का नाम अमर है धन्य है ये धरती जिसने ऐसी प्रभावशाली स्त्रियों को जन्म दिया। ऐसी वीर और तेजस्वी स्त्रियों का नाम आज भी इतिहास में अमर है पूजा जाता है उदाहरण दिए जाते हैं। वहीं एक आम स्त्री पत्थर तोड़कर अपने परिवार का पालन कर सकती है वो लाचार नही है देवीय शक्तियों से परिपूर्ण है इसलिए उसे अन्नपूर्णा और लक्ष्मी भी कहा जाता है स्त्री का स्त्रीत्व अद्वितीय है प्रारम्भ से अंत तक स्त्री जगत कल्याण का उदाहरण है स्त्री कल्याणकारी है।

                       ✍️ नंदिनी ठाकुर‌ ( नोएडा, उत्तर प्रदेश )



मंगलवार, मई 24, 2022

👸नारी ! तू कल्याणकारिणी👸







कलकल बहती जलधारा तू, जगत जननी, तू कल्याणी।

आंचल में फले-फूले सभ्यता तेरी, बसे शहर, गाँव, बस्ती, ढाणी।


ममता का अक्षय क्षीरसागर, मिश्री सी तेरी मीठी वाणी।

धरती सी विशाल मना तू, दया, क्षमा, शील की खाणी।


कमल-दल से अधरों पर विराजे, वेद, उपनिषद, गुरुवाणी।

संस्कृति, संस्कार की अधिष्ठात्री तू, तू माता, तू नारायणी।


स्फटिक सी निर्मल, शुभ्र-धवल तू, प्रतिरूप, माँ पाणिनी।

तेरे ही गर्भ-संस्कार से अभिभूत मैं, माँ गौरी, वर-दायिनी।


सृष्टि की सृजनकर्ता तू, माँ काली, दैत्य मर्दिनी।

जगत जननी तू, माँ भवानी, तू भगवती, कल्याण दायिनी।


रिद्धि-सिद्धि तू, अभिवृद्धि तू, तू सुख-समृद्धि वर दायिनी।

नारी ! तू रच्चणहारे की कल्पना, जन्मदात्री तू, तू ही जगतारिणी।

        

✍️कुसुम अशोक सुराणा ( मुंबई, महाराष्ट्र )

👸जगत कल्याणी👸







घर-आंगन स्वर्ग-सा बनाना, जानती है प्रिया जीवनसंगिनी,

परिवार बगिया महकाना, जानती है सुशीला अर्धांगिनी।।


सुकोमल दया, करुणा, क्षमा की वह प्रतिमूर्ति,

नारी, परम प्रभु की सुंदर, अनुपम, उत्कृष्ट कृति।।


रेशम बंध मृदुल नेहभाव, माणिक मोती माला पिरोए,

आपसी मनमुटाव, दंभ, अहंकार से रिश्तों को बचायें।।


सहेजे सहज ही त्याग, संयम, समर्पण, सहयोग भावना,

फले, फूले, खुशहाल रहे छोटा-सा संसार, मंगल कामना।।


सबकुछ करे न्योछावर, अपनों के लिए सदा सादर,

स्नेह मोती लुटाये, बरसाये रिमझिम रिमझिम प्यार-दुलार।।


व्यक्तित्व निखारे, घरद्वार सजाये कामयाबी की बंदनवार,

आंधी तूफान में चट्टान-सी अटल, अंधियारे में दीप उजियार।।


संस्कार बीज करे अंकुरित, मन मानस पुष्प सुरभित सजाये, 

साक्षर, सबला, स्वावलंबी, सत्धर्मी नारी कल्याणी कहलाये।।


एक दूजे के लिए जीना, धर्मानुराग, प्रेमभाव सिखाये,

आपदा-विपदा में साथ न छोड़े, एकता में बल बतलाये।।


नर-नारी मिलन खिले संसार, युगल आदर-सम्मान पाये,

सजनी संग साजन, सुरमई, मधुरिम जीवनगीत गुनगुनाये।।

                

 ✍️चंचल जैन ( मुंबई, महाराष्ट्र )

शुक्रवार, मई 20, 2022

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित ऑनलाइन 'पुनीत रचनाकार प्रशस्ति कार्यक्रम' में रचनाकारों ने मन के भावों को किया प्रस्तुत।

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा रचनाकारों के उत्साहवर्धन हेतु एवं उनके मन के भावों को आदर देने के उद्देश्य से ऑनलाइन 'पुनीत रचनाकार प्रशस्ति कार्यक्रम' का आयोजन किया गया। जिसमें रचनाकारों को अलग-अलग विषयों के विकल्प देकर उसमें से किसी एक विषय का चयन करके चयनित विषय पर आधारित रचना लिखने के लिए कहा गया था। इस कार्यक्रम में देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकारों ने भाग लिया। जिन्होंने दिए गए विषयों पर आधारित एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट रचनाओं के माध्यम से अपने मन के भावों को प्रस्तुत कर ऑनलाइन 'पुनीत रचनाकार प्रशस्ति कार्यक्रम' की शोभा में चार चाँद लगा दिए। इस कार्यक्रम में समूह द्वारा अपने पिछले ऑनलाइन साहित्यिक कार्यक्रमों में मंच की शोभा बढ़ा चुके रचनाकारों को विशिष्ट साहित्यिक शख्सियत के तौर पर जोड़कर ऑनलाइन 'पुनीत विशिष्ट रचनाकार' सम्मान देकर सम्मानित किया गया और साथ ही समूह से पहली बार जुड़कर अपनी रचनाएं प्रस्तुत करने वाले रचनाकारों को ऑनलाइन 'पुनीत रचनाकार' प्रशस्ति पत्र प्रदान कर उनका उत्साहवर्धन किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने ऑनलाइन 'पुनीत रचनाकार प्रशस्ति कार्यक्रम' में प्रतिभागी रचनाकारों द्वारा प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन व उत्साहवर्धन किया तथा सम्मान पत्र और प्रशस्ति पत्र पाने वाले सभी रचनाकारों को उज्ज्वल साहित्यिक जीवन की शुभकामनाएं दी। उन्होंने रचनाकारों को आने वाले ऑनलाइन साहित्यिक महोत्सवों में अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए सादर आमंत्रित भी किया। इस कार्यक्रम में उत्कृष्ट रचना प्रस्तुत करके समूह की शोभा बढ़ाने वालों में प्रमुख नाम सोनी कुमारी, स्मिता सिंह चौहान, प्रिया अवस्थी शर्मा, सीमा मोटवानी, संध्या शर्मा, ज्योति चौधरी, रीना अग्रवाल, सुभाष सेमल्टी 'विपी', गरिमा, ज्योति पांडे, अर्चना श्रीवास्तव, प्राप्ति सिंह, सावित्री मिश्रा, सरोज कंचन, नंदिनी ठाकुर, पूजा गुप्ता, पूजा सिंह रघुवंशी, कोमल वर्मा रचनाकारों के रहे।



गुरुवार, मई 19, 2022

🌻दर्द की किताब है मेरी जिंदगी🌻







मेरी हर इबादत रंगीन लगने लगी
आने से तुम्हारे जिंदगी संवरने लगी
तेरे आने से पहले हर राह सीधी थी
ना जाने ये जिंदगी अब किधर मुड़ने लगी ?

तेरे प्यार मे दिनों-दिन दीवानगी बढ़ती है
भूख लगे ना प्यास बस तेरी चाहत पलती है
तेरे जिस्म की खूशबू मे ये रूह मिलती जाती है
तेरे आने की खुशी मे ये आँखें नम सी लगने लगी
ना जाने ये जिंदगी अब किधर मुड़ने लगी ?

तुझ को बाहों मे भरने की अब ख्वाहिशें जागती हैं
देख कर तुम्हारी प्यारी सूरत मन मे उमंगे नाचती हैं
रिमझिम सी बारिश जब पेड़ों पर गिरने लगी
तब पत्तों पे गिरि बूंदें मुझे शबनम सी लगने लगी
ना जाने ये जिंदगी अब किधर मुड़ने लगी ?

महज एक कल्पना में है प्यार का एहसास 
जब की सच्चाई तो ये है कि 
खुशियों से नाराज है मेरी जिंदगी
प्यार की मोहताज है मेरी जिंदगी
हँस लेती हूँ लोगों को दिखाने के लिए
वरना दर्द की किताब है मेरी जिंदगी।

✍️ सावित्री मिश्रा ( झारसुगुड़ा, ओड़िशा )

बुधवार, मई 18, 2022

🌻जिंदगी कभी बेवफ़ा नहीं होती🌻












जिंदगी कभी बेवफ़ा नहीं होती, बेवफ़ा तो हम होते हैं..!
जो अक्सर उससे (जिंदगी) उसकी सांसें छीन लिया करते हैं..!! 

जीते तो हैं मुजरिमों की तरह हम अक्सर यहाँ..! 
पर मर जाते हैं एक दिन बेगुनाहों की तरह..!!

खुशियां कहाँ जीती है इन गमों में..!
ये गम ही तो है जो उन खुशियों में जीया करता है..!! 

सपनें कहाँ मिलते है इन उजालों से हमें..!
ये सपनें ही तो है जो अक्सर अंधेरों से मिला करते है हमें..!! 

दफ़न हो जाते वादें भी अक्सर यहाँ..!
पर ये दिल ही तो है जो उन रिश्तों के बोझ भी उठा लिया करता है..!!

धुंधली पड़ जाती है यादें भी अक्सर यहाँ..!
पर ये अपने ही तो हैं जो अपनी नज़रों में भी हमारी छवियों को बसा लिया करते हैं..!!

जिंदगी कभी बेवफ़ा नही होती, बेवफ़ा तो हम होते हैं..!
जो अक्सर उससे (जिंदगी) उसकी सांसें छीन लिया करते हैं..!!
 
                ✍️ कोमल वर्मा ( धनबाद, झारखंड )



🌻कर्म ही है सबसे बड़ा🌻







कृष्ण कहते हैं, कर्म ही है सबसे बड़ा,

जैसा समझा, वैसी ही धारणा बन गई। 

परिश्रमी पिपीलिका, पर्वतों तक चढ़ी, 

कर्मवीरों की तब वही प्रेरणा बन गई। 

कृष्ण कहते हैं, कर्म ही है सबसे बड़ा।।


कुछ करने की हसरत हो दिल में अगर,

कोई अवरोधक हो पथ से डिगाता नही

हौंसला हो अगर तो कुछ मुश्किल नही,

कश्तियों को कोई तूफां है डुबाता नही।

चट्टानें अचल की जो कभी दुश्कर रही,

दशरथ मांझी की वही साधना बन गई। 

कृष्ण कहते हैं, कर्म ही है सबसे बड़ा।। 


है स्वेद से सींचता जब कृषक खेत को,

रत्नगर्भा, रत्नों को है ये उगलती तभी।

पड़ती है जो प्रभाकर की प्रखर-रश्मियाँ,

महिका, महीधर की भी पिघलती तभी।

सगर पुत्रों का तरण, जब मनोरथ बना,

जाह्नवी, भगीरथ की आराधना बन गई।

कृष्ण कहते हैं, कर्म ही है सबसे बड़ा।। 


परिस्थिति थी कहाँ, कोई बाधक बनी,

गुरू-प्रतिमा एकलव्य की साधक बनी।

जब लगन की अगन थी हृदय में जली,

गुरू-शिष्य की उत्तम भावना बन गई।

कृष्ण कहते हैं, कर्म ही है सबसे बड़ा।। 


 ✍️ सरोज 'कंचन' ( कानपुर, उत्तर प्रदेश )

🌻तेरे इश्क का दर्द🌻








आंखो में 
तेरे इश्क का 
दर्द लिए 
गुजर रहे 
हम उन्ही राहों से 
जिनमे 
साथ चले थे 
तुम्हारा दामन थामे 

ये राहें
ये मील के पत्थर 
ये गुलज़ार बगीचे
ये आबो हवा 
ये खुश्बू 
तुम्हारे करीब होने का 
अहसास कराती है

लेकिन तन्हाइयों में 
मेरे दिल की धड़कन 
तुम्हारी कमी का 
अहसास करती हैं 

इंतजार करते-करते
पथरा गई निगाहें मेरी 
जिन निगाहों में बसने का 
तुम ऐलान करते थे

इश्क़ था तुमसे 
मोहब्बत भी थी 
जब तुम थे
जीवन में 
कुछ कमी ना थी 

इश्क़ अश्क बन गया
मोहब्बत दीवानी हो गई 
सब कुछ है 
कहने को 
बस तुम्हारी ही कमी है 

तुमसे मिलने 
और
बिछड़ने से 
एक सीख मिली 
इश्क है 
तो नज्म है
दिल है तो 
दर्द है 

तुम जीवन नही
सिर्फ दर्द बन के 
रह गए

✍️ प्राप्ति सिंह ( हैदराबाद, तेलंगाना )


🌻प्रकृति की जीत🌻








आज प्रकृति इतराती है 
निज गौरव पर इठलाती है
मानव ने किया ना कभी चिंतन
सदियों से किया इसका दोहन
काटा वन को रौंदे पर्वत
पाटी नदियां पहुंचा नभ तक
सब जीव जंतु खाए इसने
फिर भी मन रहा नही वश में
डर खोकर यह बढ़ता ही गया
सत्ता ईश्वर की भूल गया
जब धरती डोली गरजा अंबर
सरिता, सागर भी चले उफनकर
एक जीव (कोरोना) ने की इसकी आफत
तब भूला ये अपनी ताकत
अब चक्षु खुले और मिला ज्ञान
है प्रकृति के आगे हारा विज्ञान

 ✍️ अर्चना श्रीवास्तव ( गोरखपुर, उत्तर प्रदेश )

पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा आयोजित ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।

पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा लोगों को स्नेह के महत्व और विशेषता का अहसास करवाने के उद्देश्य से ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव का आयोजन किया गया...