रचनाकारों, कलाकारों, प्रतिभाशाली लोगों और उत्कृष्ट कार्य करने वाली शख्सियतों को प्रोत्साहित करने का विशेष मंच।
सोमवार, मई 30, 2022
🍁हिंदी भाषा देश का गौरव है🍁
🍁रक्त का संचार है हिंदी🍁
रग-रग में बहती और मचलती
रक्त का इक संचार है हिंदी
प्रीत के रस भीगी राधा के
पायल की झंकार है हिंदी
कृष्ण विरह डूबी मीरा के
प्रिय प्रतीक्षा की एक पुकार है
कवच सा मानो कर्ण का हो
गोविंद की ललकार है हिंदी
अर्जुन के गांडीव से निकली
तीरों की हुंकार है हिंदी
कभी तो बहती सरिता सी
कभी पपीहे की प्यासी पुकार है हिं
कभी लजाती नव वधू सी तो
कभी मेघों सी गर्जनाकार है हिं
कभी ‘दिनकर’ की ‘रश्मिरथी’ भी है
कभी ‘प्रेमचंद’ की कहानियों का
✍️ भारती राय ( नोएडा, उत्तर प्रदेश )
🍁हिंदी वट वृक्ष सभ्यता का🍁
🍁हिंदी हमारा अभिमान🍁
हिंदी हमारी मातृभाषा,
हिंदी में करे नित संवाद,
हिंदी से खिलती आशा,
हिंदी में हो वाद-प्रतिवाद।
निज भाषा का अभिमान,
भारत माता का सम्मान,
राष्ट्रप्रेम की धधके ज्वाला,
अपनी माटी, अपना चोला।
सहज, सरल, प्रेम रस भीनी,
मीठी बोली, मिश्री घोली,
हिंदी से हो हमारा गौरवगान,
गढ़ते रहे नित नये प्रतिमान।
सारे कामकाज हो हिंदी में,
हीन भावना न हो मन में,
भाल पर सजी रहे यह बिंदी,
शान से कहे, प्यारी लागे हिंदी।
✍️चंचल जैन ( मुंबई, महाराष्ट्र )
🍁हिन्दी🍁
रविवार, मई 29, 2022
पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित ऑनलाइन नारी कल्याणकारी साहित्यिक महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।
शनिवार, मई 28, 2022
👸स्त्री सृष्टि की पूरक हो तुम👸
स्त्री
कौन हो तुम…?
पर्याय लगती हो धरा की
धीरता से धीर धरती
इक-इक कदम गिरती-संभलती
हो पल्लू में ब्रम्हाण्ड बांधे
गतिमान इक सूरज हो तुम।
स्त्री
आयी कहाँ से तुम ?
तेरे ललाट पर नक्षत्र सारे
नेत्र यूँ चमके ज्यों तारे
ममत्व, करुणा, संयम
हैं सब संगी तुम्हारे
आस की सूरत लिए
गरिममयी मूरत हो तुम।
स्त्री
आयी भला धरती पे क्यों ?
छल से भरा संसार सारा
है छल रहित हिय ये तुम्हारा
पीकर गरल का घूँट तुम
सहेजती हो प्रेम सारा
कभी-कभी तो लगता जैसे
प्रेम की बहती धारा हो तुम।
स्त्री
हो ईश्वर की अद्भुत रचना तुम
संकट में दुर्गा रूप धारण करती
तो प्रेम में गौरी बन जाती हो तुम
विपदा में चण्डी बन उभरती
देवियों के भिन्न-भिन्न रूप दिखाती तुम
हैं आयाम अनगिनत तुम्हारे
स्त्री सृष्टि की पूरक हो तुम।
✍️भारती राय ( नोएडा, उत्तर प्रदेश )
शुक्रवार, मई 27, 2022
👸उत्कृष्ट कृति केवल नारी है👸
बुधवार, मई 25, 2022
👸स्त्री जगत कल्याणी है👸
मंगलवार, मई 24, 2022
👸नारी ! तू कल्याणकारिणी👸
कलकल बहती जलधारा तू, जगत जननी, तू कल्याणी।
आंचल में फले-फूले सभ्यता तेरी, बसे शहर, गाँव, बस्ती, ढाणी।
ममता का अक्षय क्षीरसागर, मिश्री सी तेरी मीठी वाणी।
धरती सी विशाल मना तू, दया, क्षमा, शील की खाणी।
कमल-दल से अधरों पर विराजे, वेद, उपनिषद, गुरुवाणी।
संस्कृति, संस्कार की अधिष्ठात्री तू, तू माता, तू नारायणी।
स्फटिक सी निर्मल, शुभ्र-धवल तू, प्रतिरूप, माँ पाणिनी।
तेरे ही गर्भ-संस्कार से अभिभूत मैं, माँ गौरी, वर-दायिनी।
सृष्टि की सृजनकर्ता तू, माँ काली, दैत्य मर्दिनी।
जगत जननी तू, माँ भवानी, तू भगवती, कल्याण दायिनी।
रिद्धि-सिद्धि तू, अभिवृद्धि तू, तू सुख-समृद्धि वर दायिनी।
नारी ! तू रच्चणहारे की कल्पना, जन्मदात्री तू, तू ही जगतारिणी।
✍️कुसुम अशोक सुराणा ( मुंबई, महाराष्ट्र )
👸जगत कल्याणी👸
घर-आंगन स्वर्ग-सा बनाना, जानती है प्रिया जीवनसंगिनी,
परिवार बगिया महकाना, जानती है सुशीला अर्धांगिनी।।
सुकोमल दया, करुणा, क्षमा की वह प्रतिमूर्ति,
नारी, परम प्रभु की सुंदर, अनुपम, उत्कृष्ट कृति।।
रेशम बंध मृदुल नेहभाव, माणिक मोती माला पिरोए,
आपसी मनमुटाव, दंभ, अहंकार से रिश्तों को बचायें।।
सहेजे सहज ही त्याग, संयम, समर्पण, सहयोग भावना,
फले, फूले, खुशहाल रहे छोटा-सा संसार, मंगल कामना।।
सबकुछ करे न्योछावर, अपनों के लिए सदा सादर,
स्नेह मोती लुटाये, बरसाये रिमझिम रिमझिम प्यार-दुलार।।
व्यक्तित्व निखारे, घरद्वार सजाये कामयाबी की बंदनवार,
आंधी तूफान में चट्टान-सी अटल, अंधियारे में दीप उजियार।।
संस्कार बीज करे अंकुरित, मन मानस पुष्प सुरभित सजाये,
साक्षर, सबला, स्वावलंबी, सत्धर्मी नारी कल्याणी कहलाये।।
एक दूजे के लिए जीना, धर्मानुराग, प्रेमभाव सिखाये,
आपदा-विपदा में साथ न छोड़े, एकता में बल बतलाये।।
नर-नारी मिलन खिले संसार, युगल आदर-सम्मान पाये,
सजनी संग साजन, सुरमई, मधुरिम जीवनगीत गुनगुनाये।।
✍️चंचल जैन ( मुंबई, महाराष्ट्र )
शुक्रवार, मई 20, 2022
पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित ऑनलाइन 'पुनीत रचनाकार प्रशस्ति कार्यक्रम' में रचनाकारों ने मन के भावों को किया प्रस्तुत।
गुरुवार, मई 19, 2022
🌻दर्द की किताब है मेरी जिंदगी🌻
बुधवार, मई 18, 2022
🌻जिंदगी कभी बेवफ़ा नहीं होती🌻
🌻कर्म ही है सबसे बड़ा🌻
कृष्ण कहते हैं, कर्म ही है सबसे बड़ा,
जैसा समझा, वैसी ही धारणा बन गई।
परिश्रमी पिपीलिका, पर्वतों तक चढ़ी,
कर्मवीरों की तब वही प्रेरणा बन गई।
कृष्ण कहते हैं, कर्म ही है सबसे बड़ा।।
कुछ करने की हसरत हो दिल में अगर,
कोई अवरोधक हो पथ से डिगाता नही
हौंसला हो अगर तो कुछ मुश्किल नही,
कश्तियों को कोई तूफां है डुबाता नही।
चट्टानें अचल की जो कभी दुश्कर रही,
दशरथ मांझी की वही साधना बन गई।
कृष्ण कहते हैं, कर्म ही है सबसे बड़ा।।
है स्वेद से सींचता जब कृषक खेत को,
रत्नगर्भा, रत्नों को है ये उगलती तभी।
पड़ती है जो प्रभाकर की प्रखर-रश्मियाँ,
महिका, महीधर की भी पिघलती तभी।
सगर पुत्रों का तरण, जब मनोरथ बना,
जाह्नवी, भगीरथ की आराधना बन गई।
कृष्ण कहते हैं, कर्म ही है सबसे बड़ा।।
परिस्थिति थी कहाँ, कोई बाधक बनी,
गुरू-प्रतिमा एकलव्य की साधक बनी।
जब लगन की अगन थी हृदय में जली,
गुरू-शिष्य की उत्तम भावना बन गई।
कृष्ण कहते हैं, कर्म ही है सबसे बड़ा।।
✍️ सरोज 'कंचन' ( कानपुर, उत्तर प्रदेश )
🌻तेरे इश्क का दर्द🌻
🌻प्रकृति की जीत🌻
पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा आयोजित ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।
पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा लोगों को स्नेह के महत्व और विशेषता का अहसास करवाने के उद्देश्य से ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव का आयोजन किया गया...
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बन जाते हैं कुछ रिश्ते ऐसे भी जो बांध देते हैं, हमें किसी से भी कुछ रिश्ते ईश्वर की देन होते हैं कुछ रिश्ते हम स्वयं बनाते हैं। बन जाते हैं ...
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जीवन में जरूरी हैं रिश्तों की छांव, बिन रिश्ते जीवन बन जाए एक घाव। रिश्ते होते हैं प्यार और अपनेपन के भूखे, बिना ममता और स्नेह के रिश्ते...
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हे प्रियतम ! आपसे मैं हूँ और आपसे ही मेरा श्रृंगार......। नही चाहिए मुझे कोई श्रृंगार-स्वर्ण मिल जाए बस आपका स्नेह.. ...