पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर ऑनलाइन कला बहार महोत्सव का आयोजन किया गया। जिसमें सभी तरह के कला के जानकार या कला में माहिर कलाकारों को अपनी कला विडियो रूप में लोगों के समक्ष प्रस्तुत करने का सुनहरा अवसर दिया गया। इस महोत्सव में कई कलाकार शख्सियतों ने भाग लिया। जिन्होंने दी गई भिन्न-भिन्न कलाओं में से अपनी इच्छा से एक कला का चयन करके चयनित कला में एक से बढ़कर एक बेहतरीन प्रस्तुतियां देकर महोत्सव की शोभा में चार चाँद लगा दिए और महोत्सव को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस महोत्सव में बेहतरीन प्रतिभा प्रदर्शित करने वाली कलाकार शख्सियतों को ऑनलाइन 'पुनीत कला गौरव' सम्मान से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर ग्रुप के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने महोत्सव में प्रस्तुत की गई भिन्न-भिन्न कला प्रतिभाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर कलाकार शख्सियतों का मार्गदर्शन व उत्साहवर्धन किया तथा प्रतिभागी कलाकार शख्सियतों को उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएं दी। इसके साथ ही उन्होंने ग्रुप द्वारा आयोजित होने वाले भिन्न-भिन्न ऑनलाइन कार्यक्रमों में अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए प्रतिभाशाली लोगों को सादर आमंत्रित भी किया। इस महोत्सव में बेहतरीन प्रस्तुतियां देकर ग्रुप की शोभा बढ़ाने वालों में प्रमुख नाम रंजीता अवस्थी और रुचि गुप्ता के रहे।
रचनाकारों, कलाकारों, प्रतिभाशाली लोगों और उत्कृष्ट कार्य करने वाली शख्सियतों को प्रोत्साहित करने का विशेष मंच।
सोमवार, जुलाई 24, 2023
रविवार, जुलाई 16, 2023
🌸 मित्रता 🌸
मित्रता एक सुन्दर बंधन है,
जो दिल और आत्मा का आबंध है।
सबसे प्यारा है यह रिश्ता,
दोस्ती का हमारा रिश्ता।
मित्र के अभाव में इंसान का,
जीवन अधूरा रहता।
मित्रता का हम पाठ हैं पढ़ते,
जीवन पथ पर आगे बढ़ते।
मित्रता तो जीवन का,
खूबसूरत उपहार है।
जिसका रूप,
सब रिश्तों से अनोखा है।
जिसे मिल जाए ,
वो तन्हाई में खुश है।
न मिले तो वह,
भीड़ में भी अकेला है।
मित्रता एक वरदान है,
जो एक तरफा नही होती।
एक दूजे पर विश्वास,
प्रेम ही है इसका आधार।
कृष्ण-सुदामा के प्रेम ने कराई
मित्रता के महत्व की पहचान मुझे।
एक प्यारा सा दिल है,
जिसमें नफरत का नाम नही।
एक प्यारी सी मुस्कान है,
जो कभी फीकी नही पड़ती।
मित्रता का अहसास,
जो कभी दुख नही देता।
एक ऐसा रिश्ता,
जो कभी खत्म नही होता।
सच्ची मित्रता में होती सहानुभूति,
प्रेम, सहनशीलता, संवेदना।
सच्चा मित्र बुरे वक्त में बनकर सहारा,
पार कराता तूफानों का किनारा।
दिल में न होती बदले की भावना,
सुख-दुख में सदा साथ होते हमारे।
वही होती सच्ची मित्रता की पहचान।
मित्रता जीवन का उपवन है,
जिसमें रंग-बिरंगे फूलों के समान,
सच्चे मित्र होते।
ईश्वर से है इतनी विनती,
सदा हरा-भरा रहे,
हमारी मित्रता का उपवन।।
✍️ पूनम लता ( धनबाद, झारखंड )
💗 ख्वाहिश 💗
दिल के एक कोने में,
छुपी थी मासूम सी ख्वाहिश,
जिसे चाहा है दिल ने मेरे,
जिसे पूजा है हृदय ने मेरे,
वह सदा दिल में ही बसेगा,
इक ख्वाब के जैसे,
ख्वाबों की ताबीर बन,
मेरी धड़कन में समाएगा,
मेरे ख्वाबों की दुनिया का,
शहंशाह बनेगा वह।
उस मासूम ने देखे थे,
सुनहरे ख्वाब कुछ ऐसे,
लगी जब हाथ में मेंहदी,
ख्वाहिशें फूल सी महकीं,
डोली जब उठी उसकी,
ख्वाब तूफान बन मचले,
पिया का साथ होगा अब,
प्रियतम के पास रहूंगी मैं।
पर ख्वाब तो बस ख्वाब होते हैं,
जो बैठकर डोली में,
ख्वाबों को लेकर निकली थी,
धराशाई हुए वह ख्वाब,
क्योंकि वह पराई थी,
पग-पग पर ख्वाब थे टूटे,
तिल-तिल कर वह मरी हर दिन,
एक दिन ऐसा भी था आया,
चिता की आग में जब जली थी वह।।
✍️ डॉ० कंचन शुक्ला ( अयोध्या, उत्तर प्रदेश )
⏲️ समय का समीकरण ⏲️
बदल जाते हैं
समय के साथ
बड़े-बड़े समीकरण
अब तो समय के साथ
बदल जाती हैं
पत्थर की लकीरें भी…
टूट जाते हैं
वो रिश्ते
बिछड़ जाते हैं
वो हमकदम
जिनको मनुष्य मानता है
अपने सुख की हँसी
और दुःख की
मुस्कुराहट…
जो हर क्लेश हर लें
खो जाते हैं
वो नाते-रिश्ते
समय के वीराने में
निगल जाता है सबको
समय का अजगर…
निशान तक मिट जाते हैं
उन कदमों के उन पैरों के
जो हृदय की पगडंडी पर
अंकित होते हैं
अमिट छाप की तरह
वो निशान जिनको
मनुष्य मानता है
अपना विश्वस्त साथी…॥
✍️ भारती राय ( नोएडा, उत्तर प्रदेश )
💢 बीमार मानसिकता 💢
बेदर्दी से चोट पर चोट खाते
वहशीपन के शिकार-निरीह, मूक,
नैसर्गिक बसेरे से दूर, निराधार,
हमारी क्रूरतावश हो रहे कुर्बान।
स्वादेंद्रियों की करते तुष्टि
छोड़ न पाएँ अपनी पशुवृत्ति।
लोलुपतावश निर्दोषों की बलि
दुस्साह क्यों कर किया हमने ?
उर्जा पीड़ा, आक्रोश, घृणा की
दे सकती कैसे, शांति ओ खुशी।
बर्बर, संवेदनहीन, अनुभूतिशून्य,
करते निकृष्ट आचरण निरंकुश।
भक्षक नही, रक्षक बनें हम,
प्रेम ओ सहिष्णुता भर उर में।
सहचर इस धरा पर हम सभी।
कुदरत की सुंदर रचना है यह भी।
✍️ कविता कोठारी (कोलकाता, पश्चिम बंगाल)
🤱 यादों की पोटली 🤱
शाम के धुंधलके हैं और
विस्मृत यादों के झोकें है
मन की मृगतृष्णा है या
लहरों में हुई हलचल है
चारों तरफ है ये जो
छायी लालिमा
आज डूबेगा सूरज
फिर निकलेगा कल
बस अम्बर भर ही
तो थी जो दूरी
रब जाने फिर
क्यों न हुई पूरी
उस पार परदेस में
रहता था कोई अपना
रुक गया पलकों पर
बन कर कोई सपना
उठ मन समेट
यादों की पोटली
छोड़ पलछीन
और यहाँ से चल…
✍️ सीमा मोटवानी ( अयोध्या, उत्तर प्रदेश )
शुक्रवार, जुलाई 14, 2023
पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा आयोजित राष्ट्रीय स्तरीय ऑनलाइन सावन सृजन महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।
पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा सावन आगमन के उपलक्ष्य में ऑनलाइन सावन सृजन महोत्सव का आयोजन किया गया। जिसमें रचनाकारों को सावन सहित दस अलग-अलग विषयों के विकल्प देकर उनमें से किन्हीं दो विषयों का चयन करके चयनित विषयों पर आधारित रचनाएं लिखने के लिए कहा गया। इस महोत्सव में देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकारों ने भाग लिया। जिन्होंने दिए गए विषयों पर आधारित एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट रचनाओं को प्रस्तुत कर महोत्सव की शोभा में चार चाँद लगा दिए और महोत्सव को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस महोत्सव में एक ओर जहां वरिष्ठ रचनाकारों ने अपनी विशिष्ट साहित्यिक शैली का प्रदर्शन किया तो दूसरी ओर ग्रुप से जुड़े नवीन रचनाकारों ने भी अपनी अनूठी भावनाओं और विचारों से ग्रुप का ध्यान आकर्षित किया। महोत्सव में सम्मिलित सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन 'पुनीत साहित्य भूषण' सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर ग्रुप के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने महोत्सव में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन व उत्साहवर्धन किया और सम्मान पाने वाली सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को उज्ज्वल साहित्यिक जीवन की शुभकामनाएं दी। इसके साथ ही उन्होंने लोगों को ग्रुप द्वारा आयोजित होने वाले भिन्न-भिन्न ऑनलाइन कार्यक्रमों में अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए सादर आमंत्रित भी किया। इस महोत्सव में उत्कृष्ट रचना प्रस्तुत करके ग्रुप की शोभा बढ़ाने वालों में प्रमुख नाम पूनम लता, सीमा मोटवानी, कविता कोठारी, डॉ० कंचन शुक्ला, संध्या शर्मा, भारती राय रचनाकारों के रहे।
गुरुवार, जुलाई 13, 2023
💢 रंग 💢
रंग चेहरे पे कई मेरे आते जाते है
वो ज़रा ज़रा जो करीब आते है
जुस्तुजू की तो थी हमने उनकी
अब क्यों उनसे हम दूर जाते है
रंग चेहरे पे कई मेरे आते जाते है
वो ज़रा ज़रा जो करीब आते है
सुर्ख लाली सा लाल चेहरा है
हया से क्यों ये लाल हुए जाते है
वो ज़रा ज़रा जो करीब आते है
रंग चेहरे पे कई मेरे आते जाते है
वो ज़रा ज़रा जो करीब आते है
उनका आना तो जैसे मन्नत है
रंग होली के साथ लिए आते है
वो ज़रा ज़रा जो करीब आते है
रंग चेहरे पे कई मेरे आते जाते है
वो ज़रा ज़रा जो करीब आते है
वो जो कहते है कहो ग़ज़ल कोई
हम तो खुद ही ग़ज़ल हुए जाते है
वो ज़रा ज़रा जो करीब आते है
रंग चेहरे पे कई मेरे आते जाते है
वो ज़रा ज़रा जो करीब आते है
शुभ खामोश है सफर तो क्या
हर मंज़िल पे उन्हें पाते है
वो ज़रा ज़रा जो करीब आते है
✍️ शुभांजली शर्मा ( यमुना नगर, हरियाणा )
बुधवार, जुलाई 12, 2023
🌧️ घनघोर घटा जब छाए 🌧️
काली बदली क्यों छाए रे
साजन बिन मुझे ना भाए रे
क्यूँ दूजे देश ना जाए रे
यह उमड़-घुमड़ क्यों आए रे
जब तक बूंदें छन-छन करती
तब तक ही है प्यारी लगती
जब बादल शोर मचाए रे
तब मेरा दिल दहलाए रे
इसलिए मुझे ना भाए रे
क्यों हमसे दूर न जाए रे
बिजली चमक रही नभ में
पीछे घन शोर मचाए रे
बिजुरी तू करना ऐसा री
जा पी को देना संदेसा री
आया सावन पर वह ना आए
घनघोर घटा जब छाए री
✍️ संध्या शर्मा ( मोहाली, पंजाब )
❣️ काश की तुम होते ❣️
काश की तुम होते
तो देखते कि
तुम्हारे होने मात्र से
कितनी गुलज़ार थी वो गलियाँ
जो जाती थीं घर की ओर
कितना रौब था
लोहे के उस फाटक में
जो खुलता था
घर की मुख्य दहलीज़ पर…
काश की तुम होते
तो देखते कि
कैसे आती थी हवा
महकते फूलों को छूकर
और प्रवेश कर जाती थी
घर के भीतर
बंद झरोखों और
किवाड़ों से भी
और मुस्कुरा उठती थी
घर की दीवारें सारी की सारी…
काश की तुम होते
तो देखते कि
जो पीड़ा..जो तकलीफ़ें
झट से ओझल हो जाती थी
तुम्हारी उपस्थिति मात्र से
अब कैसे मुस्कुरा निहारती हैं मुझे
देखती हैं एकटक…
मानो पूछती हों… अब कौन ?
देखो ना कैसी भुलक्कड़ हूँ
भूल गयी बताना
हालाँकि
उन गलियों में
कुछ हफ़्तों पहले ही बनी है
नयी चमाचम सड़क
पर हैं कितनी बेजान और अर्थहीन
क्योंकि अब तुम नही हो…
अभी पिछले ही महीने
नया रंग रोगन हुआ है
फाटक का भी
उसके बावजूद वो लगता है
बेरंग और उदास
क्योंकि अब तुम नही हो…
अब तो खुली रहती है
सारी खिड़कियाँ… सारे झरोखे
पर अब लौट जाती है हवा
झांक बाहर से ही
क्योंकि तुम नही हो
और दीवारें मायूस हो
अब भी ताकती हैं तुम्हारा रास्ता
कि तुम आओगे शायद
और भर दोगे उन्हें जीवंतता से…
तुम्हारे ना होने का अहसास
कितना पीड़ादायक है
और कितना असहनीय
काश की तुम होते
तो देखते कि
कितने मायने थे तुम्हारे होने के…
✍️ भारती राय ( नोएडा, उत्तर प्रदेश )
⛲ फिर आया सावन ⛲
नव किसलयों से करता,
अठखेलियाँ समीर चंचल।
सहलाता उलझी-रूखी अलकें मेरी।
आवारा भ्रमर करते फूलों से गुफ्तगूं,
कानों में मेरे, गुनगुनाते कई बिसरे गीत।
श्यामल घन घटाएँ अंबर का करती आलिंगन,
यादों की दरख़्तों से झाँकते रोमांचक पलछिन।
बरसने को आतुर एक सावन मन में भी मेरे,
जी लेने को व्याकुल कितने अनछुए सपने।
बरसती धरा ओ मन पर मृदुल बूँदे,
हर तृषा हमारी कर जाती तृप्त।
हुलसित हो उठते क्षुब्ध मन प्रांगण,
हो एकरस रचते फिर हम नया सरगम।
✍️ कविता कोठारी (कोलकाता, पश्चिम बंगाल)
पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा आयोजित ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।
पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा लोगों को स्नेह के महत्व और विशेषता का अहसास करवाने के उद्देश्य से ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव का आयोजन किया गया...
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बन जाते हैं कुछ रिश्ते ऐसे भी जो बांध देते हैं, हमें किसी से भी कुछ रिश्ते ईश्वर की देन होते हैं कुछ रिश्ते हम स्वयं बनाते हैं। बन जाते हैं ...
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जीवन में जरूरी हैं रिश्तों की छांव, बिन रिश्ते जीवन बन जाए एक घाव। रिश्ते होते हैं प्यार और अपनेपन के भूखे, बिना ममता और स्नेह के रिश्ते...
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हे प्रियतम ! आपसे मैं हूँ और आपसे ही मेरा श्रृंगार......। नही चाहिए मुझे कोई श्रृंगार-स्वर्ण मिल जाए बस आपका स्नेह.. ...