रविवार, अक्टूबर 31, 2021

☀️ दीपावली ☀️

 

 दीपों की अवली भाती मुझे
 नन्ही सी ज्योति लुभाती मुझे
 सच है यह दूर भगाता है तमको
 इसीलिए दीप दिखाते हैं यम को
 इन दीपो में छिपे हैं संदेश बड़े
 मत हतप्रभ हो यूं खड़े-खड़े
 उम्मीद की चमक नैनों में भरे
 मन के विश्वास को दृढ़ यह करे
 चांद जब समेट लेता चांदनी
 अंधेरी होती अमावस की यामिनी
 पर उन्हें क्या पता दीपों की यह अवली
 तम को दूर कर बिखेरेगी चांदनी
 दीपों की तरह हौसला रखना मन में
 एकता का संदेश देना जन-जन में
 एक दूसरे का हाथ थाम रखना अपने पन में
 दीपक सा उजाला पाओगे कण-कण में


                    ✍️संध्या शर्मा ( मोहाली, पंजाब ) 


☀️कुम्हार का त्योहार ☀️

माटी छानी बना के लुगदी, बनाई आकृति दीपकों की हजार। 
आशा कि मेरे ये सारे ही सुन्दर दीपक, जगमगाएगें हर द्वार।
बिक जायेंगे जैसे ही ये सब, धन की होगी फिर बौछार।


ले आऊंगा मैं भी गुड़िया, तेरे लिए जाकर बाज़ार।
हर बार शक्कर ही मिलती है, खिलाऊंगा तुझे मिठाई भी इस बार।
कुछ खिलौने भी ला दूँगा, ना करूंगा अब कभी इंकार।

दीपावली है पावन पवित्र, माँ लक्ष्मी का त्योहार।
बिक जायेंगी बनाई मेरी मूरत, लक्ष्मी जी खुद आयेंगी मेरे द्वार।
उनके आते ही देखना, बदल जाएगा सभी का कटु व्यवहार।

विश्वास मुझे है मेरी विवशता जानकर, माँ खोलेंगी अपने भंडार।
उन्हें कहाँ सहन कि, तरसे मेरा कभी भी घर-परिवार।
कभी दीप तो कभी मूरत के रूप में, माँ बरसाती है अपना प्यार। 

जब तुम ले लेते हो किसी कारीगर से, उसकी मेहनत देकर रुपए दो-चार।
वो भी खुश होकर फिर, मना पाता है अपना हर त्योहार। 
इस दीपावली उठा लो तुम भी, किसी कुम्हार के त्योहार का ये भार। 

माँ कि कृपा बरसेगी तुम पर, लक्ष्मी माँ खुद आएगी तुम्हारे भी द्वार।
जब भी देखेंगे तुम्हें तब, प्रकट करेंगे कारीगर तुम्हारे प्रति आभार।
मत सोचो बन जाओ बस, इनके त्योहारों का आधार।

                                ✍️सीमा शुक्ला "चाँद" ( खंडवा, मध्य प्रदेश )

☀️ पर्व दिवाली ☀️

आओ मनाएं पर्व दिवाली,
रंग-बिरंगी रचो अनुपम रंगोली,
घर-घर सजे जगमग रोषणाई,
दीपमालाएं सुंदर सजे सजीली।

बंदनवार से घर-द्वार सजाएं,
सुरभित फूलों से महकाएं,
नए परिधान, मावा, मिठाई,
मिलजुल कर प्रेम पर्व मनाएं।

रिद्धि-सिद्धि संग आये गणेश जी,
संग-संग आये माता लक्ष्मी जी,
प्रेम श्रद्धा से करे लक्ष्मी पूजन,
धन, धान्य से भरे भंडार प्रभु जी।

दीप से दीप आओ रोशन करे,
गम अमावस अंधियार हरे,
मन में हो खुशी, हर्षोल्लास,
नववर्ष का प्रेममय स्वागत करे।

भैया दूज की आयी पावन बेला,
स्नेह पर्व यह हैं अद्भुत निराला,
मंगल कामना करें प्रभु से बहना, 
जीवन हो खुशियों का मेला।

दीप से दीप प्रज्वलित करो,
आगत का प्रेम से स्वागत करो,
बांटो खुशियां, आनंद लहरियां,
बड़े-बुजुर्गों का आदर-सम्मान करो।

पर्व पावन दीपोत्सव का,
अंधियार हर लो जीवन का,
दीन, अनाथ का नाथ बनो,
आओ निभाये फर्ज मानवता का।

दीपोत्सव त्यौहार उमंग का,
मनोमालिन्य मिटा, प्रेम तरंग का,
हरदिल धर्म भाव दीप प्रगटे,
प्रकाश उजियार हो संस्कार का।

अनंत शुभकामनाएं दिवाली की,
सुख, समृद्धि, आनंद दीपोत्सव की,
रोशन जीवन प्रकाश जगमग ज्योति,
जगमगाते आनंद हर्षोल्लास की।

            ✍️चंचल जैन ( मुंबई, महाराष्ट्र )


☀️ आओ मिलकर दीप जलायें ☀️

 

आओ मिलकर दीप जलायें।
घर आँगन का कोना-कोना,
स्वच्छ हृदय से उसे सजाएँ।
दीवाली आई है फिर से,
आओ मिलकर दीप जलायें।


केवल अपना ही ना सोचें हम,
रौशन हो सबका घर आँगन,
ऐसी कोई जुगत लगाएँ।
आओ मिलकर दीप जलायें।

वैर भाव मिट जाए मन का,
सब भाई-भाई कहलायें।
मन के आँगन में फिर से हम,
खुशियों के कुछ फूल खिलाएं।
आओ मिलकर दीप जलायें।

जिसका बेटा दूर देश मे,
माँ घर मे है आँख बिछाये।
उसको भी हम गले लगाकर,
दुःख को उसके दूर भगायें।
आओ मिलकर दीप जलायें।

जिसकी आँखे गम से नम है,
बेबस दिल है खुशियाँ कम है।
हम उनको भी गले लगायें,
सहारा देकर उसे उठायें।
आओ मिलकर दीप जलायें।

      ✍️पल्लवी सिन्हा ( मुज़फ़्फ़रपुर, बिहार )


☀️ दीपक एक जलाते है ☀️

निराशाओं को दूर करके,
आशाओं को पास बुलाते हैं।
जग में फैले हुए अंधकार को,
आओ ! सब दूर भगाते हैं।
दीपक एक जलाते हैं।

पूर्ण हो सबकी कामना,
मिटे मन की हीन भावना।
हम सभी एकाकार होकर,
चलो फिर गले लग जाते हैं।
दीपक एक जलाते हैं।

असत्य की राह छोड़कर,
सत्य की राह मंजिल पाकर।
तेजोमय सब मिलजुल,
संग दीपोत्सव मनाते है।
दीपक एक जलाते हैं।

 ✍️ मुकेश बिस्सा ( जैसलमेर, राजस्थान )


सोमवार, अक्टूबर 25, 2021

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित ऑनलाइन 'करवा चौथ साहित्यिक महोत्सव' के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा पावन पर्व करवा चौथ के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय स्तर पर ऑनलाइन "करवा चौथ साहित्यिक महोत्सव" का आयोजन किया गया। जिसका विषय 'करवा चौथ का महत्व' रखा गया। इस महोत्सव में देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकारों ने भाग लिया तथा एक से बढ़कर एक बेहतरीन करवा चौथ के महत्व तथा विशेषता पर आधारित रचनाओं को प्रस्तुत कर ऑनलाइन करवा चौथ साहित्यिक महोत्सव में चार चाँद लगा दिए। इस महोत्सव में कुसुम तिवारी झल्ली (मुंबई, महाराष्ट्र), सीमा शुक्ला "चाँद" (खंडवा, मध्य प्रदेश) और प्रतिभा तिवारी (लखनऊ, उत्तर प्रदेश) की रचनाओं ने सभी का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित किया। इस महोत्सव में सम्मिलित सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन "पुनीत साहित्य शशि" सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने पति की लम्बी आयु के लिए व्रत रखने वाली महिलाओं को करवा चौथ व्रत की सफलता के लिए शुभकामनाएं दी और महोत्सव में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन तथा उत्साहवर्धन किया। उन्होंने कहा कि समूह आगे भी इसी तरह से विभिन्न पर्वों एवं विशेष दिवसों के अवसर पर ऑनलाइन साहित्यिक महोत्सव आयोजित करता रहेगा तथा रचनाकारों को अपनी रचनाएं प्रस्तुत करने के लिए मंच उपलब्ध कराता रहेगा। इस महोत्सव में उत्कृष्ट रचनाएं प्रस्तुत करके समूह की शोभा बढ़ाने वालों में प्रमुख नाम कुसुम तिवारी झल्ली, सीमा शुक्ला "चाँद", प्रतिभा तिवारी, डॉ. उमा सिंह बघेल, डॉ. सुधा मिश्रा, ममता सिंह "अनिका", मुकेश बिस्सा, नीलम वन्दना, मीता लुनिवाल रचनाकारों के रहे।

शनिवार, अक्टूबर 23, 2021

🌙 चाँद 🌙

ए चाँद आज तू जरा जल्दी आना
मत करना कोई बहाना
बादलों की ओट से निकल आना
मुझे साजन के लिए है सजना
करती हूँ हर पल कामना
करनी है पूजा पति परमेश्वर की
मांगी है मन्नत उसके लिए कई
है अरमान इस सुहागिन का
पल-पल निहारूँ मैं तुझे
चैन न आये बिन देखे तुझे
किये है सोलह श्रृंगार
सह लूंगी तेरे लिए मैं हर वार
ना भूख लगती है ना प्यास
बस तुझसे मिलने की है आस
हर दम रहूँ पिया के पास
मुझे आती हर चीज उनकी रास
सदा सुहागिन का वर दे जाना
ए चाँद आज तू जरा जल्दी आना 

       ✍️ मुकेश बिस्सा ( जैसलमेर, राजस्थान )



🌙 प्रिय तुम मेरे ……🌙

  

प्रिय बोलोगे तुम आकर्षण,
प्रेम पंथ मैं लिख दूंगी,
अवधि बहुत छोटी आकर्षण की,
प्रेम अनंत मैं कह दूंगी,
कैसे कह सकते हो तुम,
आकर्षित है मन मेरा,
तेरे चक्षु द्वय के अलावा,
न तन मुझको याद तेरा,
तुम मानो या ना मानो,
मैं सागर तुमको कह दूंगी।
अमिट लेख है शब्द तेरे,
जो हृदय पर गढ़े गए,
मैं डोर सदृश थी बस,
तुम मोती बन मढ़े हुए,
तुम परन्तु में उलझो पर
मुक्ताहर तुम्हें लिख दूंगी।
दिवस नहीं वर्ष हैं बीते,
दशक न जाने कितने चले गए,
तुम प्रथम दिवस की ज्योति में,
हृदय चोरी कर चले गए,
कैसे, क्यों ये द्वन्द तुम्हारे,
पर निरद्वन्द तुम्हें मैं कह दूंगी।
चालित अब जीवन मेरा,
प्रेम प्रकाट्य हुआ कारण,
मन वंदन, मन रंजन मेरे,
मन वारा तुम पर मेरे वारण,
स्वीकार न करो तुम फिर भी,
साकार तुम्हें प्रेम में कह दूंगी।


          ✍️ डॉ. सुधा मिश्रा ( लखनऊ, उत्तर प्रदेश )




🌙 नारी का श्रृंगार 🌙

हमारे भारतवर्ष के बहुत से त्योहारों में नारी के श्रृंगार का बड़ा ही महत्व है, जैसे-वट वृक्ष की पूजा, सावन, दीपावली इत्यादि इन्हीं में से एक प्रमुख त्योहार करवा चौथ भी है। यह त्योहार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रात को मनाया जाता है। इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु के लिए सुबह से निर्जला व्रत रखती है, विभिन्न प्रकार के पकवान बनाती हैं और बिल्कुल उसी तरह तैयार होती हैं, जैसे वे अपने विवाह में तैयार हुई थी और चंद्र दर्शन करके पूजा करती हैं। पूजा करने का अपना-अपना विधि-विधान है पर इसकी संपूर्णता नारी के श्रृंगार पर केंद्रित है, जिसके की कई कारण हैं। हमारे वेदों में भी नारी के श्रृंगार का जैसे मांग में सिंदूर, पैरों में महावर या अलता तथा माथे पर बिंदी आदि का एक विशेष स्थान है और हर श्रृंगार का एक वैज्ञानिक पक्ष भी है, यहां तक कि महावर में एक पड़ी लाइन, एक खड़ी, दो सीधी, तिरछी तथा गोलाकार रचना की भी अपनी मान्यता है। जो गहने पहने जाते हैं, वह एक्यूप्रेशर का काम करते हैं जैसे - बिछिया, पायल, चूड़ियां, कंगन, मांग टीका, कान की बाली या झाले, नाक में नथ तथा गले का हार। कहते हैं - कि इन स्वर्ण आभूषणों का शारीरिक स्पर्श स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभदायक होता है। इसके अतिरिक्त फूलों के गजरे या फूलों के जेवरों का भी शारीरिक और मानसिक रूप से एक स्वस्थ प्रभाव पड़ता है। अतः इस तरह से ये त्योहार नारी के स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभदायक होते हैं इनसे शारीरिक, मानसिक और आत्मिक प्रसन्नता का अनुभव होता है। इसीलिए इन त्योहारों का भी हमारे जीवन में बहुत महत्व है।

( यह आलेख अपने पूर्वजों से प्राप्त अनुभव के आधार पर लिखा गया है, यदि इसमें कोई त्रुटि हो तो कृपया क्षमा करें ) 
                               
                                      ✍️ प्रतिभा तिवारी ( लखनऊ, उत्तर प्रदेश )


🌙 चमकता चाँद 🌙

एक चाँद के पास देखो,
उसका चमकता हुआ सितारा है।
एक चाँद को देखता,
दूर से ये सुंदर संसार सारा है।
एक चाँद को ना देखकर भी,
दिखता चाँद सा चेहरा वो प्यारा है।
एक चाँद ने वर्ष भर राह देखकर,
एक चाँद से माँगा सौभाग्य सारा है।
एक चाँद ने खुद में ही,
अपने चाँद को शिद्दत से निहारा है।
सरहद पर खड़े किसी एक चाँद ने, 
कई चाँद को सुहागिनो कि मांगो में सँवारा है।
मिलेगा वो कैसे कभी, 
जिसके होने से धड़कनो को चाँद का सहारा है।
कहे जहान ये सारा कुछ भी रोज हमसे, 
हममें छुपा हमारा चाँद ही सबसे प्यारा है।
मजहबों के बीच भी हुआ चाँद का,
एक प्यारा सा बँटवारा है।
ईद पे ये एक चेहरे की मुस्कान, 
तो चौथ पर सुहागन की आस्था का प्रतीक और सहारा है।
कभी ये चाँद प्रेमी-प्रेमिका का चेहरा,  
कभी मामा के प्यार की धारा है।
 
                   ✍️ सीमा शुक्ला "चाँद" ( खंडवा, मध्य प्रदेश )

🌙 करवा चौथ का व्रत और चांद की पूजा 🌙

हिन्दू धर्म के सबसे पवित्र माने जाने वाले कार्तिक मास में पड़ने वाला सबसे पहला त्यौहार करवा चौथ का व्रत होता हैं। करवाचौथ उत्तर भारत में शादीशुदा औरतों के द्वारा मनाया जाने वाला प्रमुख त्यौहार है। इसमें सभी सुहागिन स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु की कामना करते हुए उनकी सुख-समृद्धि के लिए निर्जला व्रत रखती है। हिंदू धर्म में करवा चौथ का व्रत शादीशुदा महिलाओं के लिए बहुत खास होता है। इस दिन महिलाएं सोलहो श्रृंगार करके चौथ माता की पूजा करती है। रात में गणेश जी, भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। रात के समय चंद्रोदय के बाद चांद के दर्शन करके उसकी पूजा की जाती है। चांद को अर्घ्य दिया जाता है , और फिर पति के हाथों से जल ग्रहण करके व्रत का पारण किया जाता है। 

चांद की पूजा करने का कारण ⬇️
गौरतलब है कि इस दिन भगवान शंकर, पार्वती जी के साथ कार्तिकेय जी की भी पूजा की जाती है। पार्वती जी की पूजा इसलिए की जाती है क्योंकि पार्वती जी ने कठिन तपस्या करके भगवान शंकर को हासिल किया था और अखंड सौभाग्यवती का वरदान प्राप्त किया था। ऐसी मान्यता है कि करवा चौथ का व्रत करने से 100 व्रत के बराबर फल मिलता है और पति को लंबी आयु मिलती है। जैसे पार्वती जी को अखंड सौभाग्य का वरदान प्राप्त था ठीक उसी तरह का सौभाग्य पाने के लिए सभी महिलाएं करवाचौथ के दिन उपवास रखती है।
           ऐसा माना जाता है कि करवा चौथ के दिन महिलाएं चंद्रमा की पूजा इसलिए भी करती हैं क्योंकि चंन्द्रमा को ब्रम्हा जी की संतान माना जाता है और उन्हें सौन्दर्य, शीतलता, प्रसिद्धि और प्रेम का प्रतीक माना जाता है, चंद्रमा शिव जी की जटा में सुशोभित होता है ,और यह दीर्घायु का भी प्रतीक है अतः ऐसे में करवा चौथ के दिन महिलाएं चंद्रमा की पूजा कर यह सभी गुणो को अपने पति में समाहित करने की प्रार्थना करती हैं।
            करवा चौथ व्रत में चंद्रमा की पूजा की एक मुख्य वजह ये भी है कि जिस दिन भगवान गणेश का सिर धड़ से अलग किया गया था उस दौरान उनका सिर सीधे चंद्रलोक चला गया था। पुरानी मान्यताओं के मुताबिक, कहा जाता है कि उनका सिर आज भी वहां मौजूद है। चूंकि गणेश को वरदान था कि हर पूजा से पहले उनकी पूजा की जाएगी इसलिए इस दिन गणेश की पूजा तो होती है साथ ही गणेश का सिर चंद्रलोक में होने की वजह से इस दिन चंद्रमा की खास पूजा की जाती है।
        एक प्राचीन कथा के अनुसार एक करवा चौथ की कथा के अनुसार, एक साहूकार के सात बेटे और वीरावती नाम की एक पुत्री थी। सातों भाई अपनी बहन को अत्यधिक प्रेम करते थे। विवाह के उपरांत वीरावती का पहला करवा चौथ व्रत था, संयोगवश वह उस समय अपने मायके में थी। संध्या होते-होते वीरावती भूख और प्यास से व्याकुल हो मूर्छित हो गई। भाईयों को अपनी बहन की ये हालत देखी न गई, उन्होंने अपनी बहन से भोजन करने का आग्रह किया परंतु उसने मना कर दिया। जिसके बाद वीरावती का एक भाई दूर पेड़ पर चढ़कर छलनी में दिया दिखाने लगा और उससे कहा कि देखो बहन चांद निकल आया है तुम अर्घ्य देकर व्रत का पारण करो। ये बात सुनकर वीरावती खुशी-खुशी उठी और दीपक की रोशनी को चांद समझकर अर्घ्य देने के बाद भोजन करने बैठ गई। जैसे ही वीरावती ने पहला कौर मुंह में डाला तो उसमें बाल आ गया, दूसरे कौर में उसे छींक आ गई और तीसरे कौर में ससुराल से बुलावा आ गया कि वीरावती के पति की मृत्यु हो गई है। इसके बाद वीरावती ने पूरे वर्ष चतुर्थी के व्रत किए और अगले वर्ष करवा चौथ पर पुनः व्रत करके चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण किया और मां करवा की कृपा से उसका पति पुनः जीवित हो उठा। माना जाता है कि कोई भी स्त्री के पतिव्रत से छल न कर सके इसलिए स्त्रियां स्वयं अपने हाथ में छलनी लेकर दीपक की रोशनी में चंद्र दर्शन करके व्रत का पारण करती हैं। 
करवा चौथ व्रत के नियम ⬇️
  करवाचौथ व्रत के नियम काफी कठिन है, अतः इस व्रत को बहुत ही सावधानी और नियम पूर्वक किया जाता है। कुछ काम ऐसे होते हैं जिन्हें व्रत के दिन नहीं करने चाहिए।
 
1.) जैसे कहते हैं कि सूर्योदय के साथ ही व्रत का प्रारंभ होता है अतः कोशिश करें कि सुर्योदय से पूर्व उठ जाय। इस दिन देर तक न सोना चाहिए। 
2.) पूजा-पाठ में भूरे और काले रंग के कपड़े नहीं पहनने चाहिेए , सम्भव हो तो इस दिन लाल रंग के कपड़े ही पहनें क्योंकि लाल रंग प्यार का प्रतीक है और पति-पत्नी के प्रेम के प्रतीक इस व्रत में लाल रंग आपसी प्रेम में और वृद्धि करेगा।
 3.) इस पवित्र दिन न तो खुद सोएं और न ही किसी सोए हुए व्यक्ति को जगाएं।ऐसी मान्यता है कि करवाचौथ के दिन सोए हुए व्यक्ति जगाना अशुभ होता है।
 4.) करवा चौथ पर सास द्वारा दी गई सरगी शुभ मानी जाती है। व्रत शुरू होने से पहले सास अपनी बहू को कुछ मिठाइयां, कपड़े और श्रृंगार का समान देती है। इस दिन सूर्योदय से पहले ही सरगी का भोजन करें और फिर पूरे दिन निर्जला व्रत रहकर पति की लंबी आयु के लिए कामना करें।
5.) इस दिन व्रत करने वाली महिलाओं को अपनी भाषा पर नियंत्रण रखना चाहिए। महिलाओं को इस दिन घर में किसी बड़े का अपमान नहीं करना चाहिए।पति के साथ भी प्रेम पूर्वक रहना चाहिए।
6.) शास्त्रों में कहा गया है कि करवा चौथ व्रत के दिन पति-पत्नी को आपस में झगड़ा नहीं करना चाहिए। झगड़ा करने पर आपको व्रत का फल नहीं मिलेगा।
7.) इस दिन सफेद चीजों का दान न करें। सफेद कपड़े, सफेद मिठाई, दूध, चावल, दही आदि को भूलकर भी किसी को न दें। 
    
                                     ✍️ नीलम वन्दना ( नासिक, महाराष्ट्र )



🌙 करवा चौथ 🌙


नक्षत्रों का योग प्रबल था
आई मधुर वो बेला थी
गाँठ में अपने धर्म बांधकर
निकली नार नवेली थी।


दीप्त हुआ मस्तक सुहाग से
भाग्य पे वो इतराती थी
भरी उमंगों से सतरंगी
आँगन प्रिय का महकाती थी।

मनमोहक आकर्षक पल
जीवन के घूँट-घूँट वो पीती थी
अमर सुहाग अटूट हो बंधन
दिन-रात कामना करती थी।

हँसी-खुशी में गुजर गए दिन
आया निकट क्वार का वक्त
प्रिय के शुभ मंगल विचार से
रखा उसने करवा का व्रत।

करके सोलह श्रृंगार सभी
जब बनी सती अनसुइया सी
छन से टूटा शीशा मन का
और बिखर गया मन का मनका।

वर्तमान के एक सवाल ने 
आज उसे झकझोरा था
सहन करूँ मैं क्यों उपेक्षा ?
बस इस ख्याल ने घेरा था।

है कैसी ये विडंबना 
क्योंकर है ये रीति-रिवाज ?
पुरुष प्रधान समाज में नारी
क्यों है सिर्फ़ सामानों साज ?

रखती हैं हम करवा का व्रत
सातों जन्म निभाने को
एक जन्म भी पर इनको हम 
फूटी आँख ना भाती हैं।

आज मगर सारे समाज से
एक अनुबंध ये करना है...

वस्तु नहीं हैं चीज़ नहीं हम
जीती जागती ललना हैं
परंपरा की बलिवेदी पर
अब हमको नही जलना है।

रची हैं हमने वेद ऋचाएँ
जौहर भी है दिखलाया
सृष्टि जगत के मुक्ति मार्ग का
भेद हमीं ने बतलाया।

क्षुब्ध हुई गर प्रकृति धरा की
ब्रह्माण्ड डोल ही जायेगा
धर्म रीति-रिवाज का ठीकरा
ऐ पुरुष तू कब तक उठाएगा ?

             ✍️ कुसुम तिवारी झल्ली ( मुंबई, महाराष्ट्र )


रविवार, अक्टूबर 17, 2021

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित राष्ट्रीय स्तरीय ऑनलाइन 'दशहरा साहित्यिक महोत्सव' में रचनाकारों ने दिखाया कलम का कमाल।

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा पावन पर्व दशहरा के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय स्तर पर ऑनलाइन "दशहरा साहित्यिक महोत्सव" का आयोजन किया गया। जिसका विषय 'अच्छाई की ताकत' रखा गया। इस महोत्सव में देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकारों ने भाग लिया तथा सच्चाई और अच्छाई की ताकत पर आधारित अपनी बेहतरीन रचनाओं को प्रस्तुत कर लोगों को सदा सच्चाई और अच्छाई का साथ देने के लिए प्रेरित किया। इस महोत्सव में सम्मिलित सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन "पुनीत सर्वोत्तम रचनाकार" सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इसके साथ ही समूह द्वारा आयोजित "लघु ई-पुस्तक रचना कार्यक्रम" में शामिल होकर 'सोच का सागर' नाम की लघु ई-पुस्तक की रचना करने के लिए मीता लुनिवाल ( जयपुर, राजस्थान ) को विशेष तौर पर ऑनलाइन "पुनीत कलम गौरव" सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने सभी देशवासियों को पावन पर्व दशहरा की शुभकामनाएं दी और महोत्सव में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का उत्साहवर्धन किया। उन्होंने समूह द्वारा आयोजित होने वाले विभिन्न ऑनलाइन साहित्यिक कार्यक्रमों में सम्मिलित होने के लिए हिंदी रचनाकारों को सादर आमंत्रित भी किया। इस महोत्सव में उत्कृष्ट रचना प्रस्तुत करके समूह की शोभा बढ़ाने वालों में प्रमुख नाम सरोज कंचन, डाॅ. ऋतु नागर, डॉ. सुधा मिश्रा, प्रतिभा तिवारी, पल्लवी सिन्हा,‌ डॉ. उमा सिंह बघेल, मुकेश बिस्सा, मीता लुनिवाल रचनाकारों के रहे।

शुक्रवार, अक्टूबर 15, 2021

आँखों की देखभाल के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर ऑनलाइन 'विश्व दृष्टि दिवस साहित्यिक महोत्सव' आयोजित।

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा विश्व दृष्टि दिवस के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय स्तर पर ऑनलाइन "विश्व दृष्टि दिवस साहित्यिक महोत्सव" का आयोजन किया गया। जिसका विषय 'आँखें है अनमोल' रखा गया। इस महोत्सव में देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकारों ने भाग लिया तथा आँखों के महत्व और विशेषता पर आधारित अपनी बेहतरीन रचनाओं को प्रस्तुत कर आँखों की देखभाल के प्रति लोगों को जागरूक किया। इस महोत्सव में सरोज कंचन ( कानपुर, उत्तर प्रदेश ), डॉ. ऋतु नागर ( मुंबई, महाराष्ट्र ) और डॉ. सुधा मिश्रा ( लखनऊ, उत्तर प्रदेश ) की रचनाओं ने सभी का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित किया। इस महोत्सव में सम्मिलित सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन "पुनीत साहित्य ज्योति" सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने आँखों को शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग बताते हुए तथा बच्चों को कम उम्र में चश्मा लगने के प्रति गंभीर चिंता जाहिर करते हुए बच्चों सहित सभी को अपनी आँखों का ध्यान रखने के लिए प्रेरित किया और महोत्सव में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन तथा उत्साहवर्धन भी किया। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह अपने सामाजिक दायित्व को निभाते हुए आगे भी इसी तरह से समाज में जागरूकता उत्पन्न करने वाले ऑनलाइन साहित्यिक कार्यक्रम आयोजित करता रहेगा तथा रचनाकारों को अपनी रचनाएं प्रस्तुत करने के लिए मंच उपलब्ध कराता रहेगा। इस महोत्सव में उत्कृष्ट रचना प्रस्तुत करके समूह की शोभा बढ़ाने वालों में प्रमुख नाम सरोज कंचन, डाॅ. ऋतु नागर, डॉ. सुधा मिश्रा, प्रतिभा तिवारी, पल्लवी सिन्हा,‌ डॉ. उमा सिंह बघेल, डॉ. लीना झा चौधरी, मुकेश बिस्सा, मीता लुनिवाल रचनाकारों के रहे।

💢 नेकी का रास्ता 💢

सारी लंका जला गई,
पर नहीं जली विभीषण की कुटिया,
देखो अच्छाई की ताकत,
इस पर ही टिकी सारी दुनिया।

कोई जो मन में द्वेष रखे,
करे दूजे की उन्नति से वैर सदा,
कैसे निज हो प्रगति उसकी,
जो कर ले जीवन को नेकी से जुदा।

सच्चाई हो मन में सबके लिए,
जल जाता पानी से दीपक,
अच्छाई की महिमा अनंत,
जीवन होता आनंद दायक।

नेकी का रास्ता अपनाओ,
बद्दुआ से रहोगे दूर हरदम,
करो गरीबों की सेवा,
हो जाएगा दूर तेरा हर गम।

     ✍️ पल्लवी सिन्हा ( मुज़फ़्फ़रपुर, बिहार )



💢 अच्छाई 💢

         

पथ में कदम तेरे भले डगमगाए 
चाहे अपमान ही क्यों ना हिस्से में आए
गिरकर संभलना पर विचलित न होना
अच्छाई किसी की कभी व्यर्थ न जाए।
हर मोड़ पर ही दो-दो राहें मिलेंगी
अच्छी, बुरी दोनों राहें मन को छलेंगी
ईप्सा में पड़कर कहीं भटक नहीं जाना
अच्छाई की राहों में ही मंजिल मिलेगी।
प्रबलता दशानन-सा देव भी न पाए
रावण के निज कर्मों ने सबकुछ गँवाए
श्रीराम ने सिखाया तुम धैर्य नहीं खोना
अच्छाई की ताकत से ही लंका मिटाए।
अनुचित कर्मों से भले वैभव हो जाए
सदगुण, सदाचरण से ही मन सुख पाए
धोखे बहुत हैं जग में, भ्रम में न खोना
सही और गलत का भेद समझ न आए।
प्रेम, दया, सेवा जिसके दिल में समाए
चरित्र, व्यवहार, वचन से तन को सजाए
शिष्टाचार, संयम ही है जीवन का गहना
अच्छाई ही जीवन-पथ को सुगम बनाए।

✍️ सरोज कंचन ( कानपुर, उत्तर प्रदेश )



गुरुवार, अक्टूबर 14, 2021

💢 अच्छाई की ताकत 💢

अच्छाई की ताकत का 
सबसे बड़ा उदाहरण है 
राम की रावण पर विजय
रावण ने किया काम गलत
जो सीता का किया हरण
नारी का अपमान किया
बर्बाद इस घटना ने
उसका सारा जीवन किया
अपने पुत्रों एवं भाईयों की
मृत्यु का वह कारण बना 
और बना कुल का विनाशक
उसकी नगरी जो थी सोने की
उसका भी विनाश हुआ
राम से भयावह युद्ध किया
अपनी मृत्यु को खुद आमंत्रित किया 
अच्छाई की ताकत की विजय हुई
सच जीतता है और बुराई हारती है।

           ✍️ मीता लुनिवाल ( जयपुर, राजस्थान )



💢 सत्य विजित सदा 💢

 

जब-जब धरा पर अधर्म का हुआ अधिकार है,
तब-तब धर्म ने रच दिया स्वयं ही प्रतिकार है,
हैं कई साक्ष्य इस धरा पर, और हैं कई प्रमाण भी,
जब-जब कराही थी धरा तब हुआ परित्राण भी,
हैं कथाएँ अनगिनत जिनकी बनी यही सीख है,
दया और मनुजता ही समर्थ ये नहीं कोई भीख है,
एक कथा जब रावण का बढ़ गया अति अभिमान था,
बुद्धिमत्ता थी बहुत पर दर्प हुआ तो हुआ ज्ञान से अनजान था,
जब बुराई साथ हो तब हमें बुरी ना वो दिखती ज़रा,
न समझ पाए वो मनुज जिसके कर्म से जर्ज़र हो उठी हो धरा,
दर्प रावण का ज्ञान पर भारी ज्यों कुचाल के हों थपेड़े,
वेद-पुराण ज्ञान भी दब गया अभिमान सब पर भारी पड़े,
 दर्द था अनंत उसका और क्रूरता अति हो उठी,
 जान जो असीम इतिश्री उसकी क्रोध में हो उठी,
 क्रोध के वशीभूत वह कर बैठा अनीति कर्म,
 पत्नी की वाणी भी ना समझी, बिगाड़ दिया कुलधर्म,
 बन विधर्मी वह देवताओं का करता रहा अपमान तब,
 माता सीता को बंदी बना ले आया निज धाम तब,
 जानता था गति इस कर्म कि नहीं विधिसंगत कभी,
 पर बुद्धि और विवेक पर पड़ गई अविवेकी रंगत तभी,
 भाई ने भी धर्म का अमूल्य ज्ञान उसको दिया,
 हठधर्मी समझा न उसने अपना दर्प कर लिया,
 हठधर्मिता बढ़ाकर कर गया अपने कुल का नाश वह,
 एक ही त्रुटि थी उसकी, वंश का कर गया सर्वनाश वह,
 धर्म के साथ थे राम तभी उस रावणी शक्ति से लड़ सके,
 जो देवों से था प्रकाशित सदा वह तथ्य प्रकट कर सके,
 हो कितनी भी प्रभावी पर बुराई नहीं कभी जीतती,
 कितना गहरा भी हो तमस पर अच्छाई प्रकाश नहीं छोड़ती,
 हो कोई भी देशकाल या कोई भी युग रहे,
 अच्छाई सदा बुराई पर है भारी चारों युग कहते रहे,
 माना कि वह कष्ट पाता जिसने चुना अच्छाई का कटीला रास्ता,
 पर सदा विजित वही हो कितना भी विकट पथरीला रास्ता,
 युग-युगांतर सदा यही तथ्य प्रमाणित करता जाएगा,
 असत्य सदा पराजित होगा सत्य विजित होता आएगा।।


                                  ✍️ डॉ० सुधा मिश्रा ( लखनऊ, उत्तर प्रदेश )

बुधवार, अक्टूबर 13, 2021

👁️‍🗨️ आँखें : जीवन सत्य 👁️‍🗨️

अगर ना आँखें होतीं तो धरा की सुंदरता, रह जाती बेमोल,
जनम लिया इस धरा सच कहूँ, अपनी आँखें हैं अनमोल।

मात-पिता और गुरुओं से इसने मिलन हमारा कराया है,
कई-कई जन्मों का पुण्य जो आँखों नें हमें दिखाया है,
सब बातों से बड़ी बात जो कह दी बात खंगोल,
जनम लिया इस धरा सच कहूँ, अपनी आँखें हैं अनमोल।

सत्य-असत्य के बिम्ब हमें आँखों में दिख जाते हैं,
बातों में भ्रम डाले कोई, पर आँखों से पकड़े जातें हैं,
पहचान की हैं इसने सबकी, रख देतीं है हृदय टटोल,
जनम लिया इस धरा सच कहूँ, अपनी आँखें हैं अनमोल।

सब दृष्टिवान हों, ज्ञानवान, जगत् की अनुपम छटा दृष्टिगत हो,
सब हों आँखों से युक्त सदा ना कोई इससे आँखों से निर्वासित हो,
सब को दें सकें दृष्टि, उपाय करो, विज्ञान से या पलटना पड़े भूगोल,
जनम लिया इस धरा सच कहूँ, अपनी आँखें हैं अनमोल।

बस आस यही अरदास यही, सब देखें सब देख सकें,
जो इतनी सुन्दर धरा सुहानी, इसके रस से पेख सकें,
सब दृष्टि की महत्ता पहचाने, बदले इन अनदेखों का माहौल,
जनम लिया इस धरा सच कहूँ, अपनी आँखें हैं अनमोल।

            ✍️ डॉ० सुधा मिश्रा ( लखनऊ, उत्तर प्रदेश )


👁️‍🗨️ आंखों से उसने..... 👁️‍🗨️

आँखों से उसने ना जाने क्या कह दिया,
पल भर में उसने दीवाना बना दिया।

अदाओं की उसने घायल कर दिया,
इंसान से मुझे उसने पुतला बना दिया।

एक आवारा, एक पागल, एक बेकार था मैं,
उसने मुझे अदद शायर बना दिया।

औरों की आँखों मे खटकता था मैं,
झलक दिखा कर परवाना बना दिया।

गमों के साए में हरदम रोता था मैं,
उसकी मुस्कुराहट ने मुझे हंसना सीखा दिया।

एक बेजान सूखा पेड़ था मैं,
पल भर में उसने मुझे आबाद कर दिया।

               ✍️ मुकेश बिस्सा ( जैसलमेर, राजस्थान )
     

👁️‍🗨️ अनमोल हैं आँखें 👁️‍🗨️

इस जहां में सबसे प्यारी-अनमोल

चीज कोई है, तो वो हैं आँखें


इनके बिना सब सूना-सूना सा 

हम देखते दुनिया इससे ही है


इससे प्रकृति की सुंदर-सुंदर छटा देखते

सुंदर, पेड़-पौधे, फूल-पत्तियां और घटा देखते


देखते ये हँसी नज़ारे ये चाँद, ये तारे सुनहरे

देखते ऊंचे-ऊंचे पर्वत और समुद्र गहरे-गहरे


अगर आँखें ना होती तो हम कैसे पाते रह

अंधकार में डूब जाता तब हमारा जीवन यह


आँखें हैं इसलिए तो हम सुविधा से सारे काम कर लेते

कौन भला है कौन बुरा है आँखों से पहचान लेते


पर क्या करें कद्र नही लोगो को इस खजाने की

रखते नही ध्यान वे इन अनमोल आँखों का


टी०वी०, मोबाइल, कम्प्यूटर, लेपटॉप पर

बस यूँ ही लगे रहते है दिन और रात।।

           

                       ✍️ मीता लुनिवाल ( जयपुर, राजस्थान )

👁️‍🗨️ आँखें हैं अनमोल 👁️‍🗨️

पुनीत धरती पर जीवन पाकर ईश्वर का उपहार मिला
प्राणी को नेत्र-ज्योति प्रकृति का अनुपम उपकार मिला। 
दृग बिना चहुँदिश अँधेरा, सब कुछ लगता एक समान
सूर्य, चंद्र, तारों का भी किसी को कुछ नहीं होता भान।
चक्षु मिले जब प्रथम बार, निर्मल रूप दिखी ममता की
शिशु-स्नेह, अवलम्बन की प्रतिमूर्ति थी मिली पिता की।
आँखें हैं अनमोल कि जिसने, हमको सुंदर संसार दिया
सृष्टि की अतुल्य सृजन यह, रंग, रूप और प्यार दिया।
जाने कब तक जीवन हो, अगले पल से हैं सब अनजान
नष्ट वपु फिर भी हैं धरा पर, नेत्र का देकर अपने दान।
नैन ही जाने नैन की भाषा, नैन-छवि दिल में बस जाए
हर्ष, विषाद, व्यथा विदित हो, जरा पर्णल-पलकें हट जाए।
नैन न होते तो धरा पर कुछ भी कर पाना मुश्किल था
श्रेष्ठता पाना जीवों में, मानव-धर्म निभाना मुश्किल था।
दृष्टि न होती तो वसुधा पर ईश्वर का दर्शन पाता कौन ? 
भला-बुरा और ऊँच-नीच का अंतर हमको बतलाता कौन ? 

✍️ सरोज कंचन ( कानपुर, उत्तर प्रदेश )

👁️‍🗨️ नेत्रदान का महत्व 👁️‍🗨️


आज 'नैना' उसी जगह खड़ी है जहां वह अपने पिता रमाकांत जी के साथ बचपन में आया करती थी। समुद्र की लहरों के बीच बने पुल पर बैठ घंटों अपने पिता से वहां के नजारों को महसूस करती थी। नैना अपने पिता के साथ अकेली रहती थी, उसकी मां बचपन में ही गुजर गई थी। नैना की आंखें बड़ी-बड़ी और सुंदर थी उसे देखकर ही सब ने उसका नाम नैना रखा था, पर एक दिन नैना के साथ हादसा हो गया और उसकी आंखों की रोशनी चली गई। पिता रमाकांत अत्यंत चिंतित थे उसका बहुत ख्याल रखते थे उसके इलाज के लिए कई जगह गए किंतु निराशा ही हाथ लगी। एक दिन अचानक रमाकांत जी घर की सीढ़ियों से गिर गए उन्हें गंभीर चोटें आई। उन्हें अस्पताल ले जाया गया किंतु होनी को कुछ और ही मंजूर था। रमाकांत जी अपनी बिलखती नैना को छोड़कर चले गए पर अपनी अंतिम सांस लेने से पहले वह नैना को अपने नेत्र दान कर गए थे। उनके बाद नैना उनकी आंखों से दुनिया देख सके यह उनकी अंतिम इच्छा थी। अपनी पिता की अंतिम इच्छा को पूरा करने के लिए नैना डाॅक्टर साहब के कहने पर आंखों की सर्जरी कराने के लिए तैयार हो गई। आज आंखों की सर्जरी सफल हो जाने पर नैना सबसे पहले उन्हीं लहरों के बीच बने पुल पर बैठकर अपने पिता को याद करना चाहती हैं जिनको वह पिता रमाकांत से सुना करती थी महसूस किया करती थी। आज वह घने काले बादलों के बीच एक रोशनी देख रही है जो उसके पिता ने जाते हुए आशीर्वाद स्वरुप उसे दी है। उसके मन में लोगों को नेत्रदान का महत्व बताने का विचार भी चल रहा है।


                                           ✍️ डॉ० ऋतु नागर ( मुंबई, महाराष्ट्र )

👁️‍🗨️ कभी चक्षु तो कभी नयन हो तुम 👁️‍🗨️

क्या कहूं तुम्हें कि क्या हो तुम
कभी चक्षु तो कभी नयन हो तुम
चेहरे पर हर एक के सजे हो 
लोचन तो कभी ओक्ष कहलाते हो तुम
जो न होते तुम हम इंसानों के पास 
तो भला कैसे होता यह एहसास
वसुंधरा हमारी है खुबसूरती की ख़ान
ना देख इसे मन हो जाता निराश
कोई मोल क्या लगाए तेरा
हो अनमोल तुम मानो कहा मेरा
क्या कहूं तुम्हें कि क्या हो तुम
हो प्रेम की प्रथम सोपान तुम
दिल तक पहुँचने की राह हो तुम
मन को पढ़ लेने की किताब हो तुम
खोल देते हो दिल का हर एक राज़
कभी नैन तो कभी अम्बक हो तुम
क्या कहूं तुम्हें कि क्या हो तुम।।

      ✍️ डॉ० लीना झा चौधरी ( जयपुर, राजस्थान )

गुरुवार, अक्टूबर 07, 2021

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित ऑनलाइन 'पूर्वज स्मृति साहित्यिक सप्ताह' में रचनाकारों ने दी अपने पूर्वजों को साहित्यिक श्रद्धांजलि।

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा पितृ पक्ष में पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने हेतु ऑनलाइन "पूर्वज स्मृति साहित्यिक सप्ताह" का आयोजन किया गया। जिसका विषय 'पूर्वज और उनकी शिक्षाएं' रखा गया। इस स्मृति साहित्यिक सप्ताह में इंदु नांदल (बावेरिया, जर्मनी) सहित देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकारों ने भाग लिया तथा पूर्वजों के जीवन और शिक्षाओं पर आधारित अपनी श्रद्धा भरपूर रचनाओं को प्रस्तुत कर पूर्वजों के प्रति अपनी अटूट श्रद्धा तथा आदर भाव को प्रकट किया। इस स्मृति साहित्यिक सप्ताह में प्रतिभा तिवारी (लखनऊ, उत्तर प्रदेश) तथा डॉ. पद्मावती (चेन्नई, तमिलनाडु) की रचनाओं ने सभी का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित किया। इस स्मृति साहित्यिक सप्ताह में सम्मिलित सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन "पूर्वज साहित्य आशीष" सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने पितृ पक्ष के महत्व को बताते हुए, युवाओं से पूर्वजों की शिक्षाओं को अपने जीवन में अपनाने के लिए कहा और साथ ही उन्होंने पूर्वज स्मृति साहित्यिक सप्ताह में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का उत्साहवर्धन भी किया। उन्होंने समूह द्वारा आयोजित होने वाले विभिन्न ऑनलाइन साहित्यिक कार्यक्रमों में सम्मिलित होने के लिए हिंदी रचनाकारों को सादर आमंत्रित भी किया। पूर्वज स्मृति साहित्यिक सप्ताह में अपनी श्रद्धा भरपूर रचनाओं से पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने वालों में प्रमुख नाम प्रतिभा तिवारी, डॉ. पद्मावती, सरोज कंचन, इंदु नांदल, अनुपमा कडवाड़, डॉ. उमा सिंह बघेल, डाॅ. ऋतु नागर, मीता लुनिवाल, मुकेश बिस्सा रचनाकारों के रहे।

बुधवार, अक्टूबर 06, 2021

🌿 पूर्वजों की सीख 🌿

 

सदियों से सुनते आए हम कहानियां,
दादा-दादी, नाना-नानी की जुबानियां
बहुत सी अच्छी बातें जो पीढ़ियों से सराही गई,
हम उनका पालन करके क्यों ना जीवन को दिशा दे सही
बड़े बुज़ुर्गों का तजुर्बा और अनुभव, 
डालता है जीवन के संघर्षों पर प्रभाव। 
उनसे सीखी गई कुछ बातें है ऐसी,
ठंड में मिली बेशकीमती धूप की जैसी।
रात को जल्दी सोकर अच्छी बात सुबह जल्दी उठना,
घर के काम-काज मे सब का हाथ बंटाना।
बड़ों का हमेशा आदर करना,
सारी फल-सब्जियां खाना, नियमित व्यायाम करना।
जिससे स्वास्थ्य को होगी हानि ऐसी चीजों का सेवन ना करना,
गलत बातों से और चीजों से परहेज़ है हमेशा करना।
मिट्टी के बर्तनचूल्हे पर पकाकर खाना जो खिलाया उन्होंने,
हमे वह आनंद आधुनिक चीजों मे कहाँ है मिलना।
प्रकृति की देखभाल करना है पूर्वजों ने सिखलाया,
नेकी करके सफलता पाने का मार्ग भी पूर्वजों ने दिखलाया


               ✍️ अनुपमा कडवाड़ ( मुंबई, महाराष्ट्र )



पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा आयोजित ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।

पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा लोगों को स्नेह के महत्व और विशेषता का अहसास करवाने के उद्देश्य से ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव का आयोजन किया गया...