सोमवार, फ़रवरी 27, 2023

🍁 मेरे एहसास 🍁










हर खुशी को तुझपर नजर कर दूँ।

मांगी हुई हर दुआ को असर कर दूँ।

तुझको ही मांगा और तुझको ही पाया,

बात ये जरा खुदा को भी खबर कर दूँ।।


कोह में भरी निगाहों पर कहर कर दूँ। 

रात जो काली न जाये तो नेक पहर कर दूँ।

रहमतों की बारिश को रुकने न दूँगी कभी,

ख़िदमत में तेरी हर बूँद को लहर कर दूँ।। 


गीत-ग़ज़ल-ओ-नग़मा तुझे अगर कह दूँ।

मख़मली आवाज़ में सजी हुई बहर कह दूँ।

कुछ नही है ये तो ज्यादा, बल्कि कम ही है,

एहसास मेरे चलते जहाँ तुम्हें वही डगर कह दूँ।।


जिधर का रुख़ हो तेरा खुश्बू को उधर कर दूँ।

हवा में फैली हर बू को इतर-इतर कर दूँ।

हर तितलियों का रंग भर दूँ निगाहों में तेरी,

कि आ प्यार से तुझे मैं तर-बतर कर दूँ।।


इश्क में पागल दिल मेरा बन गया शर है।

तुझको चुभ न जाये कहीं ये भी डर है।

इसलिए धड़कन को रख नोंक पर चलाया, 

अब कह न देना कहीं कि तेरा न यहां कोई घर है।।


✍️ ललिता शर्मा 'नयास्था' ( भीलवाड़ा, राजस्थान )

रविवार, फ़रवरी 26, 2023

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित राष्ट्रीय स्तरीय ऑनलाइन भावना विशेष साहित्यिक महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा रचनाकारों के उत्साहवर्धन हेतु एवं उनके मन की भावनाओं को आदर देने के उद्देश्य से राष्ट्रीय स्तर पर ऑनलाइन भावना विशेष साहित्यिक महोत्सव का आयोजन किया गया। जिसमें रचनाकारों को दस अलग-अलग विषयों के विकल्प देकर उनमें से किन्हीं दो विषयों का चयन करके उन विषयों पर आधारित अपनी भावनाओं को रचनाओं के माध्यम से प्रस्तुत करने का अवसर दिया गया। इस महोत्सव में देश के अलग-अलग राज्यों की रचनाकार शख्सियतों ने भाग लिया। जिन्होंने दिए गए विषयों पर आधारित एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट रचनाओं को प्रस्तुत कर महोत्सव की शोभा में चार चाँद लगा दिए और महोत्सव को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस महोत्सव में कविता कोठारी ( कोलकाता, पश्चिम बंगाल ) और ललिता शर्मा 'नयास्था' ( भीलवाड़ा, राजस्थान ) की रचनाओं ने समूह का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित किया। महोत्सव में सम्मिलित सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन 'पुनीत साहित्य श्री' सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने भावनाओं के महत्व तथा विशेषता के बारे में बताते हुए लोगों को अपने सभी कार्यों को अच्छी भावना के साथ करने के लिए प्रेरित किया और महोत्सव में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन व उत्साहवर्धन किया तथा सम्मान पाने वाली सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को उज्ज्वल साहित्यिक जीवन की शुभकामनाएं दी। इसके साथ ही उन्होंने हिंदी रचनाकारों को समूह द्वारा आयोजित होने वाले विभिन्न ऑनलाइन साहित्यिक महोत्सवों में अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए सादर आमंत्रित भी किया। इस महोत्सव में उत्कृष्ट रचना प्रस्तुत करके समूह की शोभा बढ़ाने वालों में प्रमुख नाम कविता कोठारी, ललिता शर्मा 'नयास्था', पूजा गुप्ता, मधु श्रीवास्तव, दीप्ति शर्मा दीप रचनाकारों के रहे।

शनिवार, फ़रवरी 25, 2023

🦆त्याग का कोई मोल नही🦆










त्याग का कोई मोल नही

आज के जमाने मे

किसी के लिए

कितना भी कर लो

कोई फर्क नही पड़ता।


नौ माह कोख में रखकर

न जाने कितना दर्द सहकर

कितने त्याग करके

बच्चों को पालती है माँ

पर क्या बच्चे

समझते हैं 

उसके त्याग को। 


पत्नी, बहू जो 

पति के लिए

ससुराल के लिए 

करती कितना त्याग

पर क्या समझता है 

कोई उसे। 


खुद की ख्वाहिशों का 

गला घोंटकर

अपनों के लिए

त्याग किए जाना

मूर्खता है 

आज के जमाने मे 

यहाँ बोलबाला

सिर्फ स्वार्थ का है

त्याग के मोल को

कोई नही समझता यहाँ।


✍️ मधु श्रीवास्तव ( प्रयागराज, उत्तर प्रदेश )

शुक्रवार, फ़रवरी 24, 2023

🦆तुम मेरे दर्द को क्यूँ गा रहे हो ?🦆










तुम मेरे दर्द को क्यूँ, गा रहे हो ?

ज़लजला लबों पे क्यूँ, ला रहे हो ?


लोग समझेंगे यहाँ, नही ना कभी। 

बात दिल में रही, जो दबी की दबी। 

क्यूँ सितम मुझपर फिर, ढा रहे हो ? 

तुम मेरे दर्द को क्यूँ, गा रहे हो ?


चंद अल्फ़ाज़ थे जो, नोक से चल पड़े।

आँख का आँसू थे वो, आँख से ढल पड़े।

इनको दोहरा के तुम क्यूँ, छा रहे हो ?

तुम मेरे दर्द को क्यूँ, गा रहे हो ?


तुमने समझा नही, न ही जाना नही।

हम तो तेरे रहे, इतना भी माना नही।

फिर से जाने को क्यूँ तुम, आ रहे हो ?

तुम मेरे दर्द को क्यूँ, गा रहे हो‌ ?


तुम मेरे दर्द को क्यूँ, गा रहे हो ?

ज़लजला लबों पे क्यूँ, ला रहे हो ?


✍️ ललिता शर्मा 'नयास्था' ( भीलवाड़ा, राजस्थान )

गुरुवार, फ़रवरी 23, 2023

🦆दर्द 🦆










जब किसी बात पर 

दृगों से अश्रु बहे 

और पलके उसे रोकना चाहे

सबसे उसे छुपाना चाहे

पलकों की जद्दोजहद पर भी 

जब अश्क की एक बूंद धीरे-से 

गालों पर ढलक आये 

उसे ही दर्द कहते है।


जब मौन रहते-रहते 

दिल भर जाये 

आपको कोई समझ न पाये

भीड़ में खुद को तन्हा पाये

और धीरे-से पलकों में 

कैद आँसू छलक जाये

उसे ही दर्द कहते है।


जब बिना गलती के ही 

आपको सजा सुनाई जाये

हर बात के गुनहगार 

आप ही बताएं जाये 

आप कहना चाहे और

कोई आपको ना सुनना चाहे

तो उस पीर को छुपाने

पलकों में कैद आँसू 

गालों पर जो छलक आये

उसे ही दर्द कहते है। 


जब अपने बन जाते बेगाने

लग जाते नजरें चुराने 

चेहरे पर लगते मुखौटे सजाने

आपको नीचा दिखाने 

नित-नये ढूंढे बहाने 

अपनो की ये बातें देख 

जब आँख आँसू लगे बहाने

उसे ही दर्द कहते है।


जब अन्तर्मन करे चीत्कार 

दिल दिमाग करे पुकार

कोई ना सुने आपकी गुहार

इच्छाओं को अपनी मार 

जो है आपका पूरा संसार

गलत बताये आपको हर बार

मन हो जाता लहूलुहान 

टूट बिखर जाता आत्म सम्मान 

तभी पलकों में कैद आँसू 

धीरे-धीरे छलक है आते 

उसे ही दर्द कहते है।


✍️ दीप्ति शर्मा दीप ( जटनी, उड़ीसा )

बुधवार, फ़रवरी 22, 2023

🦆पिता के त्याग का कोई मोल नही 🦆










आप से ही मेरा अस्तित्व 

आप ही मेरे जीवन का अवलंब

मेरे अर्श के धूम्रकेतु

आप ही हैं मेरे अनुष

घोर अंधकार में कभी

करते पथ आलोकित

कभी खड़े रहें

बन छाँव कड़ी धूप में

दिया करते रहे अनुदेश 

कभी प्रत्यक्ष कभी परोक्ष में


दस्तक दे रही जीवन की शाम

न किया कभी आपने आराम

करते-करते हमारी ख्वाहिशें पूरी

रह गई आपकी सभी इच्छाएं अधूरी

चित्त में चिंता, मुख पर स्मित

ताकि रह सके हम सदा अचिंत


मेरे गौरव, मेरे अभिमान 

आपकी जिंदगी बस घूमती रही

हमारी खुशियों की धुरी पर

सचमुच पिता के त्याग का कोई मोल नही

धन्य हुई मैं आप जैसे पिता को पाकर


✍️ कविता कोठारी ( कोलकाता, पश्चिम बंगाल )

🦆कहाँ आसान है त्याग करना 🦆










कहाँ है आसान इतना 

कि कोई त्याग कर सके

किसी के लिए

होता है वो ही महान 

जो त्यागता है ख्वाबों को

अपनी तमन्नाओं की 

चढ़ा के बलि

जो लाता है 

किसी और के

चेहरे पर हंसी 

वो साधारण इंसान नही

बल्कि होता है फरिश्ता 


चुकानी पड़ती हैं 

बड़ी ही कीमतें

जब-जब बात 

आती है त्याग की

कहां है आसान इतना 

कि कोई यूं ही 

किसी के लिए 

त्याग कर सके


जब दिल में जगे हो 

जाने कितने ही अरमां

और उन अरमानों की

देनी पड़े कुर्बानी

तो कैसा लगता है 

पूछो ज़रा उस दिल से 

कैसे जी जाती है 

उस वक्त ये जिंदगी 


पल पल तड़पती है रूह 

पर होंठों पर

सजानी पड़ती है हंसी 

कहाँ है आसान इतना 

कि कोई यूं ही 

किसी के लिए 

अपनी खुशियों का 

त्याग कर सके


✍️ पूजा गुप्ता ( सीतापुर, उत्तर प्रदेश )

बुधवार, फ़रवरी 15, 2023

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित ऑनलाइन स्नेह ध्येय साहित्यिक महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा लोगों को स्नेह के महत्व और विशेषता का अहसास करवाने के उद्देश्य से ऑनलाइन स्नेह ध्येय साहित्यिक महोत्सव का आयोजन किया गया। जिसमें रचनाकारों को दस अलग-अलग विषयों के विकल्प देकर उनमें से किन्हीं दो विषयों का चयन करके चयनित विषयों पर आधारित रचनाएं लिखने के लिए कहा गया। इस महोत्सव में देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकारों ने भाग लिया। जिन्होंने दिए गए विषयों पर आधारित एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट रचनाओं को प्रस्तुत कर महोत्सव की शोभा में चार चाँद लगा दिए और महोत्सव को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस महोत्सव में एक ओर जहां वरिष्ठ रचनाकारों ने अपनी विशिष्ट साहित्यिक शैली का प्रदर्शन किया तो दूसरी ओर समूह से जुड़े नवीन रचनाकारों ने भी अपनी अनूठी भावनाओं और विचारों से समूह का ध्यान आकर्षित किया। महोत्सव में सम्मिलित सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन 'पुनीत स्नेह रत्न' सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने मनुष्य के जीवन में स्नेह का विशेष महत्व बताते हुए लोगों से प्रकृति के कण-कण के प्रति स्नेह भाव रखने की प्रार्थना की और महोत्सव में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन व उत्साहवर्धन किया और सम्मान पाने वाले सभी प्रतिभागी रचनाकारों को उज्ज्वल साहित्यिक जीवन की शुभकामनाएं दी। इसके साथ ही उन्होंने रचनाकारों को आने वाले ऑनलाइन साहित्यिक महोत्सवों में अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए सादर आमंत्रित भी किया। इस महोत्सव में उत्कृष्ट रचना प्रस्तुत करके समूह की शोभा बढ़ाने वालों में प्रमुख नाम संध्या शर्मा, मधु श्रीवास्तव, कविता कोठारी रचनाकारों के रहे।

💞 काजल 💞










बाती बनकर मैं रात भर जली हूँ,

तभी तेरी आंखों में काजल बन सजी हूँ।


तपने के बाद ही सोना भी दमकता है,

रात के बाद ही सूरज भी चमकता है।


मेहंदी भी पिसने के बाद रंग लाती है,

जिंदगी भी ठोकरो के बाद संभल पाती है।


हल चलने के बाद ही धरती भी फसल देती है,

मुश्किलों पर चलकर ही मंजिल भी मिलती है।


मेहंदी अगर पत्थर पर घिसती नही,

दुल्हनों के हाथ में वह सजती नही।


सोना यदि आग में तपता नही,

तो सुंदर आभूषण वह बनता नही।


बाती बन रात भर जली हूँ तो कोई गम नही,

तेरी आंखो का काजल बन सजी तो कुछ कम नही।


✍️ संध्या शर्मा ( पटना, बिहार )

मंगलवार, फ़रवरी 14, 2023

💞 आकर्षण 💞










ना जाने कैसा

आकर्षण था तुझमें

जो मुझे खींच रहा था

अपनी ओर

ये कैसा आकर्षण था

जो मुझे 

कर रहा था पागल

खो जाने को तुझमें….


कुछ धड़कनें सा

लगा था दिल में

एक अनोखा 

अहसास सा

छाने लगा था

मन-मस्तिष्क में…..


जाने कैसा आकर्षण था 

जो मुझे

बांध रहा था तुझसे

सुनों !

कहीं ये 

प्यार तो नही था…..


हाँ, शायद 

प्यार ही था

तभी तो मैं 

बंध गई थी

तुम्हारे आकर्षण में 

तुम्हारी होकर

सदा के लिए.....


✍️ मधु श्रीवास्तव ( प्रयागराज, उत्तर प्रदेश )

💞 अहसास 💞










रैट रेस में शामिल

समय के खिलाफ 

दौड़ी जा रही थी

गंतव्य से अनभिज्ञ 

दिशा विहीन, निरुद्देश्य

आत्मिक चेतना से शून्य 

मृगतृष्णा के सदृश्य

मत भ्रमित

भौतिक वस्तुओं में ढूँढती रही

खुशी, शांति और आनंद।


आंतरिक और बाह्य

जगत का असमन्वय

अभाव की मनोवृत्ति को 

करता रहा दृढ़

नश्वर, स्थूल पदार्थों को 

एकत्रित करने में रही सदा लीन

शाश्वत, सूक्ष्म होता रहा विलीन

समय सीमा में बद्ध 

बस निरंतर दौड़ती रही

बिज़ी सिर्फ स्टेटस ही नही

शब्दकोष बन गया

स्वयं के साथ बैठने 

और चिंतन करने की

कभी फुर्सत कहाँ मिली।


मन अगाह करता रहा

पर मैं उसे अनसुनी करती रही

अपनी स्थगित करने की 

आदत को सुदृढ़ करती हुई

परिणाम से बेखबर

जीवन व्यतीत करती रही

फिर एक दिन हुआ यह अहसास

कहीं ऐसा न हो

समय के खिलाफ दौड़ते-दौड़ते

समय हाथ से फिसल जाए 

और मैं हाथ मलते रह जाऊँ.....


✍️ कविता कोठारी ( कोलकाता, पश्चिम बंगाल )

सोमवार, फ़रवरी 13, 2023

💞 सूखा गुलाब 💞










हमने गुलाब दिया नही हमें गुलाब मिला नही

लेन-देन का था कोई तब ऐसा सिलसिला नही


एक दिन सोचा हमने जब उम्र ढल जाएगी

बसंत आने पर जब मन में बहार ना आएगी


तो हम वह सूखा गुलाब कहां से लाएंगे

बिन गुलाब पुरानी यादें कैसे दोहराएंगे


फिर क्या था हमने बागान से दो गुलाब तोड़े

और एक-एक हम दोनों ने किताबों में रख छोड़े


आज जब भी वह सूखा गुलाब देखती हूँ

सनम की खुशबू तन मन में भर लेती हूँ


  ✍️ संध्या शर्मा ( पटना, बिहार )

पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा आयोजित ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।

पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा लोगों को स्नेह के महत्व और विशेषता का अहसास करवाने के उद्देश्य से ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव का आयोजन किया गया...