गुरुवार, मार्च 31, 2022

💞 दिल की खुशनुमां महफिल 💞








दिल की मिल्कियत
और यादों के खजाने
मुकम्मल रहते है जिनसे
आँखो की चमक के फसाने।

तन्हाईयों के तल्ख सफर में,
दिल की अंगड़ाइयों में,
मचलती सरगोशियों सी,
यादों की फिजायें।

कानों में सूफी संगीत गूंजता,
दिल के साज पर जो बजता,
अहसासों की तारों को छेड़,
खुशियों का दरबार हैं सजता।

कभी आकर बैठना तुम,
इस दिल की खुशनुमां महफिल में,
और शमां-ए-मोहब्बत रोशन करना,
हम दिल के झरोंखे में मुस्कुरायेंगे।

कौन कहता है ?
दिल का कोई महत्व नही होता,
देखो हमारी नज़र से कभी,
इस दिल के बग़ैर तो कुछ भी नही होता।
                  
      ✍️ स्मिता सिंह चौहान ( गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश )

💞 दिल की रौनक-ए-महफिल 💞









चूमेंगे नभ, ख्यालों के परवाज़।
महफ़िल के बादशाह, बेताज।
यादों के कारवां का खुशनुमा आगाज़।
स्वप्न-विभावरी का चाँद है सरताज।

सजा लो फूल-पत्तियों से डोली।
भीगे आँगन में मांडना-रंगोली।
मोतियों से गूंथ लो स्वप्न-वंदनवार।
जला दो ! दीप हर दहलीज-द्वार।

जरासी आहट से छुई-मुई हुआ दिल।
सजी दिल की रौनक-ए-महफिल।
मनाएंगे जश्न यार संग हिल-मिल।
चाँदनी रात में रोशन हुआ हर दिल।

जलती रहेगी शमा, विरह में रात-दिन।
पिघलेगा मोम सा तन-मन, संगीन।
पतंगे से प्रीत में पागल, नादां शमा।
खुद मिट बचाएगी, पतंगे का आसमां।

दर्द की इंतहा, सहने की लांघ दी सीमा।
वतन पे शहीद पतंगा... पतंगे पे कुर्बान हुई शमा।
दो जिस्म, एक जान ! हुए साथ-साथ तन्हां।
दो तारें ! चमक रहे अपने आसमां में तन्हां।

            ✍️ कुसुम अशोक सुराणा ( मुंबई, महाराष्ट्र )


💞 दिल ने मेरे हौसले बढ़ाए हैं 💞







ये कह के दिल ने मेरे हौसले बढ़ाए हैं,
गमों की धूप के आगे खुशी के साए हैं।

दिल है खास मगर नादानियाँ करता है,
कदम-कदम पर कितनी ठोकरें खाए हैं।

जिन्हें चाहे उन्हें पाएं ऐसा नामुमकिन,
छोड़ यादों के भंवर सब गम भुलाएं हैं।

ऐसा करके किसी और को क्या फर्क,
अपने आप को मगर बहुत सताएं है।

दिल नफ़रत करनी नही सीख पाया,
जमाने की लपट से इसे कैसे बचाएं है।

      ✍️ सुनीता सोलंकी 'मीना' ( मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश )

💞 दिल से दिल का मिलन 💞

रमा की बड़ी-बड़ी आँखियों में ख्वाब थे बड़े-बड़े। आशादीप प्रदीप। अंधकार को चीरने उतावले। खूब पढूंगी, अपना मुकाम हासिल करूंगी। अपने माँ-बापू का ख्याल रखूंगी। अपने छोटे भाई-बहन का पूरा ध्यान रखूंगी। ढेरों अरमान थे दिल में। फलते-फूलते कभी गुब्बारों से फटाक फूट जाते। दिल की सजी सजायी बाग उजाड़-सी प्रतीत होती। पतझड़ के बाद बहार का मौसम लौट आएगा ही। मन ही मन सपनों का शहर सज जाता। उम्मीदों के दीप जल जाते। रोशनी का आगाज होता। दिल क्यों धड़कता हैं धक-धक ? मन ही मन पड़ोस में रहने वाले राणा से नाता जोड़ लिया था उसने। सीधा-साधा, सरल स्वभाव। मीठी बोली, विवेकी, विनयी राणा उसे बहुत पसंद था। उसकी तरह ही टूटी-फूटी झोंपड़ी में बसेरा करता। दिल का बड़ा नेक। मानवता का पुजारी। स्वच्छता अभियान में साफ सफाई करते दोनों की मुलाकात हुई थी। साथ-साथ काम करते न जाने कब प्रेम अंकुरित हुआ, पता ही न चला। राणा को देखते ही रमा के दिल की कली खिल जाती। उसकी छुअन से रोम-रोम खिल जाता। नयन तीर चलते। अधर खामोश रहते। मौन ही प्रेम की अभिव्यक्ति थी। केवल नजरों से नजर मिलती, शर्म से नजरे झुक जाती। प्यार, मोहब्बत क्या यही हैं ? धीरे-धीरे बात झुग्गी झोपड़ी में फैल गयी। दोनों की प्रेम कहानी की महक दूर-दूर तक फैली। रमा के बापू के दोस्त का लड़का बौखला गया। "रमा मेरी हैं, मेरी ही रहेगी। किसी और की वह हो ही नहीं सकती। हमारी बचपन में ही सगाई पक्की हो गयी थी।" रमा के माँ-बापू के पास आकर रिश्ते की बात पक्की कर ली उसने। रमा और राणा की मोहब्बत को जैसे किसी की नजर लग गयी। रोमियो टाइप रोनित उसे जरा भी न सुहाता। पान चबा चबाकर दिन भर थूकता रहता। "मैं राणा से ब्याह करूंगी।" "आपने वचन दिया होगा। मेरा जीवन हैं। जिसे प्यार करती हूँ, वही मेरा जीवनसाथी होगा।" दिल की आवाज को बुलंद साज मिल गया हमदर्द सखियों से। माँ-बापू को राजी कर रमा को राणा से प्रणय बन्धन में बंधवा दिया। दिल से दिल के मिलन से जीवन बाग गुलजार हो गया। अपनी प्रिय सहेलियों के संबल से रमा-राणा का दाम्पत्य जीवन सदा सुखमय, हितकारी रहा। जीवन की महफ़िल में किलकारियों का मधुरिम संगीत गूंजने लगा।

                      ✍️ चंचल जैन ( मुंबई, महाराष्ट्र )




💞 ज़िंदगी दुश्वार करके चल दिए 💞











खुद ही अपने दिल पर, वो वार करके चल दिए,
एहसासों को अंदर ही वो मार करके चल दिए।

इश्क़ करके हारे दिल, फिर हार गए वो दोस्ती,
दिल-ए-खास रिश्ते को बेज़ार करके चल दिए।

आया नही समझ हमें ये अजब जमाना इश्क़ का,
पास भी आए नहीं दूर से ही प्यार करके चल दिए।

एक पल भी कभी ना खफ़ा हुए, हाँ में हाँ करते रहे,
आज अंत समय में वो इनकार करके चल दिए।

क्या हुआ हासिल उसे बेवजह की तकरार कर,
जीती हुई बाज़ी को वो हार करके चल दिए।

घुट रहे अब अंदर सांझ, खुद ही खुदके दुश्मन बने,
हँसती-खेलती ज़िंदगी को दुश्वार करके चल दिए।

      ✍️ सुशील यादव 'सांझ' ( महेंद्रगढ़, हरियाणा )

💞 दिल का रंग लाल क्यों ? 💞








दिल का रंग लाल क्यों ?
मनों में इतने सवाल क्यों ?
नयनों में उसके....
नीले रंग का,
सागर जैसा कमाल क्यों ?
काली घटा सी काली जटा,
श्वेत मुखरे पे, 
मचा रही बवाल क्यों ?
धनुष जैसी पतली भौं,
तीक्ष्ण विकराल क्यों ?
सुर्ख होठों पर उसके,
गुलाबी रंग निहाल क्यों ?
शूप्र समान नखों पर,
बैंगनी रंग का जाल क्यों?
हरे रंग के आंचल में,
ये परी बेमिसाल क्यों ?

      ✍️ कुमार सोनू ( जयपुर, राजस्थान )

बुधवार, मार्च 30, 2022

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित ऑनलाइन बेटी सौभाग्य साहित्यिक महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा बेटी के महत्व, विशेषता तथा उनसे मिलने वाली सुख समृद्धि का अहसास लोगों को करवाने के उद्देश्य से ऑनलाइन 'बेटी सौभाग्य साहित्यिक महोत्सव' का आयोजन किया गया। जिसका विषय 'बेटी होती है विशेष' रखा गया। इस महोत्सव में देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकारों ने भाग लिया। जिन्होंने दिए गए विषय पर आधारित एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट रचनाओं को प्रस्तुत कर ऑनलाइन 'बेटी सौभाग्य साहित्यिक महोत्सव' की शोभा में चार चाँद लगा दिए। महोत्सव में कुछ प्रतिभागी रचनाकारों ने अपनी रचनाओं में बेटियों के प्रति असीम स्नेह तथा ममता को प्रकट कर मंच के माहौल को भावुकता से भर दिया और ऑनलाइन बेटी सौभाग्य साहित्यिक महोत्सव को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। समूह से जुड़कर पहली बार रचना प्रस्तुत करने वाले रचनाकारों ने समूह का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित किया। इस‌ महोत्सव में सम्मिलित सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन 'पुनीत सुता स्नेही' सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने बेटियों को देश के सुनहरे भविष्य का आधार बताते हुए अभिभावकों से अपनी-अपनी बेटियों की विशेष देखभाल करने तथा उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करने की प्रेरणा दी और महोत्सव में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन एवं उत्साहवर्धन किया तथा सम्मान पाने वाले सभी प्रतिभागी रचनाकारों को उज्ज्वल साहित्यिक जीवन की शुभकामनाएं दी। इसके साथ ही उन्होंने रचनाकारों को आने वाले ऑनलाइन साहित्यिक महोत्सवों में अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए सादर आमंत्रित भी किया। इस महोत्सव में उत्कृष्ट रचना प्रस्तुत करके समूह की शोभा बढ़ाने वालों में प्रमुख नाम रीना अग्रवाल, कुसुम अशोक सुराणा, चंचल जैन, डॉ. उमा सिंह बघेल, सुनीता सोलंकी 'मीना', ज्योति चौधरी, रश्मि पोखरियाल 'मृदुलिका', सीमा रानी प्रधान, संध्या शर्मा, रिंकी सिंह, मीता लुनिवाल, निधि नितिमा, स्मिता सिंह चौहान, कुमार सोनू, सुशील यादव 'सांझ' रचनाकारों के रहे।



मंगलवार, मार्च 29, 2022

👰 बेटी ही जिंदगी 👰







तुम हो मेरी तमन्ना,
तुम ही मेरी चाहत हो,
मेरे दिल के कोने में बैठी,
तुम ही एक इबादत हो।

आईना देखूँ तुम को मैं पाऊं,
तेरी चाहत में तुझको मैं निहारु,
हर पल मेरे लिये हो, 
एक विशेष सी ख्वाहिश।

तुम से मेरी हर धड़कन,
तुम से मेरी हर साँस,
तुम हो मेरी बंदगी,
तुम हो मेरी कविता।

तुम मेरी आदत हो,
तुम मेरी शोहरत हो,
मेरी तुम हर पल की खुशी हो,
तुम ही अद्वितीय, अनूठी,
मेरी प्यारी बिटिया रानी हो।

मेरी परछाईं सी तुम हो मेरी सूरत,
मेरी आंखों के लिए तुम ही हो मूरत,
मेरे हर अल्फाज के लिए तुम हो दर्पण,
सच कहूँ तो तुम ही हो मेरी जिंदगी।

 ✍️ डॉ. उमा सिंह बघेल ( रीवा, मध्य प्रदेश ) 


👰 काश ! मेरी भी एक बेटी होती 👰








मैं थका हारा आता जो दफ़्तर से,
उसकी नन्ही उंगलियां मेरे हाथो में होती,
एक हँसी से हो जाती दूर थकान मेरी,
काश ! मेरी भी एक बेटी होती।

चिराग घर का हो या हो दीपक कुल का,
दमकता तभी साथ में जब एक ज्योति होती,
मैं ममता शीशे की लिए बचाता झोंको से उसे,
काश ! मेरी भी एक बेटी होती।

मैं अबोध बन खेलता खेल साथ उसके,
वो ज्ञानी बन सलीका मुझे सिखाती होती,
और गलती करने पर प्यारी डांट लगाती होती,
काश ! मेरी भी एक बेटी होती।

मैं भी कन्यादान कर पाता एक दिन,
टूट जाता जब वो लिपट के रोती होती,
खिल उठता जो लौट आती पीहर को,
काश ! मेरी भी एक बेटी होती।

               ✍️ कुमार सोनू ( जयपुर, राजस्थान )




सोमवार, मार्च 28, 2022

👰 सौभाग्य लाती हैं बेटियां 👰








घर मे सौभाग्य लाती हैं बेटियां
दो कुलो की शान होती है बेटियां
माँ के दिल का टुकड़ा 
पापा की परी होती है बेटियां
लक्ष्मी, दुर्गा की शक्ति होती हैं बेटियां
किसी बात में कम नही होती हैं बेटियां
झांसी की रानी हो, या हो कल्पना चावला 
जमीन से लेकर आसमान तक
परचम लहराती हैं बेटियां
घर की इज्जत हो या मान-मर्यादा
सब का बोझ अपने कंधों पर ढोती हैं बेटियां
यदि लड़का वट वृक्ष है, दूब घास सी है बेटियां
प्यार, ममता, सौभाग्य का प्रतीक है बेटियां 
माँ, पत्नी, प्रेमिका हर रिश्ता निभाती है बेटियां
अपने सुख को छोड़कर,
सब के दुख में साथ निभाती है बेटियां
बेटियां है तभी वंश की बेल बढ़े
सौभाग्यशालियों के घर जन्म लेती हैं बेटियां 

                  ✍️ निधि नितिमा ( मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश )

👰 रब से बिटिया जो मिल गयी... 👰








मेरी ज़िंदगी की बगिया में एक कली सी खिल गयी,
तोहफ़े में रब से मुझको बिटिया जो मिल गयी..!

नौ महीने कोख में तुझको एहसास से छुआ था..
प्रसव पीड़ा भोगी बहुत जब तेरा जन्म हुआ था,
मेरे चेहरे पे पीड़ सहकर भी मुस्कान खिल गयी,
तोहफ़े में रब से मुझको बिटिया जो मिल गयी..!

पहली दफ़ा जो तुमने मुझको माँ कहा था..
ऐसा मीठा स्वर पहले, कभी कानों में ना घुला था,
पदवी ये माँ की मुझको, तुझसे ही मिल गयी..
तोहफ़े में रब से मुझको बिटिया जो मिल गयी..!

लड़खड़ा के जब तू वो पहला कदम चली थी..
थामने को तुझको ये कायनात भी झुकी थी...
छम-छम से तेरी फिर ये धरती सी हिल गयी..
तोहफ़े में रब से मुझको बिटिया जो मिल गयी..!

मेरी ज़िंदगी की बगिया में एक कली सी खिल गयी,
तोहफ़े में रब से मुझको बिटिया जो मिल गयी..!

       ✍️ सुशील यादव 'सांझ' ( महेंद्रगढ़, हरियाणा )

👰 ईश्वर की अनुपम कृति है बेटी 👰








सृजन का आधार है बेटी, 
इस धरा के जीवन का आधार है बेटी,
जिस वंशबेल पर नाज है तुम्हे, 
उस वंशबेल को पोषित करने का मार्ग है बेटी।

आंगन की रौनक, 
त्योहारों के आनन्द का द्वार है बेटी,
मुस्कुराहट की परिभाषा, 
पायल की खुशनुमां झंकार है बेटी।

माँ की परछाई, 
पिता के अभिमान का स्रोत,
भाई के मन में प्रज्वलित करती, 
वात्सल्य की ज्योत।

अनुशासन का पर्याय, 
नवजीवन का सुनहरा अध्याय,
खुबसूरत अहसासों का उदगम,
जीवंता का अभिप्राय।

सृष्टि के समान सृजनता,
आसमां सी विशालता,
नदियों सी चंचलता,
पर्वतों सी अडिगता,
प्रकृति के गुणों का समावेश लिये,
असाधारण गुणों की खान है बेटी।

उस ईश्वर की अनुपम कृति, 
इस सृष्टि का उत्कृष्ट उपहार है बेटी,
सृष्टि रचियता भी जिसके आगे नतमस्तक,
सृष्टि के सृजन के लिए,
उस ईश्वर के प्रतिबिम्ब का आकार है बेटी।

                ✍️ स्मिता सिंह चौहान ( गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश )



रविवार, मार्च 27, 2022

👰 बेटी होती है विशेष 👰




         



 बेटियाँ तो घर की शान होती हैं..
      अपने माँ-बाप की जान होती हैं..
सौभाग्य बरसता है वहांँ पर..
       जिस घर में लेती हैं बेटियाँ जन्म..

ईश्वर के वरदान का रूप हैं..
     अच्छे कर्मो का उपहार हैं वो..
साक्षात लक्ष्मी का स्वरूप होती हैं..
     ये बेटियाँ तो घर का गुरूर होती हैं...

संवर जाता वो घर भी..
      जहां बेटियों का होता सम्मान..
 महक जाता घर का आंगन..
       जब बिखेर देती अपनी मुस्कान..

उनकी मीठी बोली से..
      मानो सरगम की वीणा-सी बजती है..
छम-छम करती पायल जब..
          संगीत की धुन-सी लगती है...

कैसी भी हो जीवन की परिस्थितियांँ..
       मजबूत खड़ी वह रहती हैं..
अपनो का थामे हाथ सदा वह..
      ख़्याल सभी का रखती हैं..

बेटियों को नहीं चाहिए महंगे उपहार..
    उन्हें तो चाहिए बस अपने हिस्से का थोड़ा सा आसमां..
जहां वो उड़ना चाहे अपने सपनों के पंख पसार..
  वो भी बना सके इस जग में अपनी एक नई पहचान..

तो क्यों न..; हम दे दे..
बेटियों को थोड़ा उन्मुक्त आसमां..
भर सके वो भी..अपने सपनों की..
     एक सुदंर-सी उड़ान..

                      ✍️ रिंकी सिंह ( ठाणे, महाराष्ट्र )

👰 बेटियाँ 👰








आगाज़ से अंत तक, 
संघर्ष का नाम बेटियाँ।
कोख से चिता तक, 
जिजीविषा का नाम बेटियाँ।
बाबुल से ससुराल तक,
सफ़र का नाम बेटियाँ।
जीवन से मृत्यु तक,
जीवट का नाम है बेटियाँ।
सांसों के बीचों-बीच के, 
प्रयास-प्रयाण का नाम है बेटियाँ।
परिवार के उपवन में, 
कुंहकती कोयल हैं बेटियाँ।
रवि का ताप सह कर,
प्राणवायु देती तुलसी है बेटियाँ।
अवरोधों के कीचड़ में, 
खिला पद्मकमल है, बेटियाँ।
सूर्य को अलविदा कह,
खुद रोशनी बांटती है, बेटियाँ।
घर-गृहस्थी की हर विपदा में,
मजबूत आधार-स्तंभ है बेटियाँ।
माथे की लकीरों के बीच,
अक्षुण्ण सौभाग्य है बेटियाँ।
दो कुलों के रीति-रिवाज,
संस्कार-संस्कृति का सेतू है बेटियाँ।
उफनती लहरों में फंसी,
कश्ती के लिए दीपस्तंभ है बेटियाँ।
ममता के फटे आंचल की,
झीणी-झीणी तुरपाई है बेटियाँ।
माँ के आंखों से झरते, 
मोतियों का पानी है बेटियाँ।

       ✍️ कुसुम अशोक सुराणा ( मुंबई, महाराष्ट्र )

👰 बेटी सृजन की वज़ह 👰



  

 


जब यूँ ही भर आयी होगी आँखे

तब ईश्वर ने बेटी को बनाया होगा


जब बनाया होगा थोड़ा सा विश्वास

थोड़ी सी आस, ढेर सारे जज्बात

तब ईश्वर ने बेटी को बनाया होगा


जब देना होगा मानव को कुछ खास

पुण्य कर्मो का फल, सौभाग्य और रत्न

तब ईश्वर ने बेटी को बनाया होगा


जब वृद्धावस्था की ओर होगा मानव

अकेलापन, असक्त शरीर और टूटामन

तब ईश्वर ने बेटी को बनाया होगा


जब खतरे में हुआ संसार का अस्तिव

प्रकृति में असंतुलन, स्वतंत्रता में भी बंधन

तब ईश्वर ने बेटी को बनाया होगा


जब बना होगा निश्छल, निस्वार्थ हृदय

रिश्तों का संबल, खुशियों का आधार

तब ईश्वर ने बेटी को बनाया होगा


   ✍️ रश्मि पोखरियाल 'मृदुलिका' ( देहरादून, उत्तराखंड )

शनिवार, मार्च 26, 2022

👰‌ बेटी तो बेटी होती है 👰








बेटी तो बेटी होती है
बेटी तेरी-मेरी या 
इसकी-उसकी नही होती
बेटी तो बेटी होती है
बेटी की कोई 
जात-पात नही होती 
हर धर्म मे बेटी
बेटी ही होती है
प्रत्येक देश और प्रत्येक जगह
बेटी, बेटी ही होती है
बेटी से ही संसार है
बेटी से ही हमारी 
आन, बान और शान है
बेटी सर का ताज है
बेटी दिल और उसकी धड़कन है
बेटी से संस्कार है
बेटी बुढ़ापे की लाठी है
बेटी है तो जीवन है
बेटी का सुख-दुख में साथ है
बेटी है तो उम्मीद है
बेटी है तो अरमान है
बेटी लक्ष्मी का रूप है
बेटी दो कुल की पहरेदार है
बेटी मायके और ससुराल की जान है
बेटी वरदान है, बेटी देवी स्वरूप है
अब और क्या कहूँ कि बेटी क्या-क्या है 
बस इतना ही कह सकती कि बेटी तो बेटी होती है

          ✍️ मीता लुनिवाल ( जयपुर, राजस्थान )

👰 बिटिया 👰








मेरी बुलबुल मेरी पाखी 
मेरी सोन चिरैया 
जाने कहां छिपी थी 
अब तक ओ मेरी गौरैया 
कब से ढूंढ रहे थे तुझको 
तेरे पापा और मैया 
आसमान से उतरी तू तो 
मेरी सोन चिरैया  
फुदक-फुदक कर आई कैसे
इस सूने आंगन में 
बांध दिया है तूने सबको 
एक नये बंधन में 
तू लक्ष्मी बन आई घर में 
तू ही दुर्गा मैया
नजर लगे ना तुझको लाडो 
ले लूँ तेरी बलैया 
गोदी में सबकी खेलें 
छोटी सी मेरी गुड़िया
किस्मतवाले होते हैं वो
जिनके घर होती बिटिया
आजा तुझको लोरी सुना दूँ
नैनों में आ जाए तेरे निंदिया

       ✍️ संध्या शर्मा ( पटना, बिहार )




शुक्रवार, मार्च 25, 2022

👰 जीवन की डोर बिटिया 👰








तुझसे बंधी है,
जीवन की डोर बिटिया।
आँखों का काजल,
आँचल की छोर बिटिया।

घर की है,
फुदकती चिड़िया।
तू ही घनबन,
नाचती मोर बिटिया।

प्यार से भरा,
तेरा संसार।
बन जाये सबकी,
चितचोर बिटिया।

महकता मायका,
तुझसे खिलता ससुराल।
तू ही हमारी पूँजी,
तू ही संस्कार बिटिया।

मन वृंदावन तेरा,
तू है मधुवन।
फूल की क्यारी है तू,
है तुझसे संसार बिटिया।

    ✍️ सीमा रानी प्रधान ( महासमुंद, छत्तीसगढ़ )




👰 बेटी को पाती 👰







मैं लिख रही हूँ आज
बेटी तुझे यह पाती
आशा तेरी बढ़ेगी ख्याति

अच्छा लगता है देखकर

तेरे हौसलों का बढ़ जाना
चाहतों के आसमां को नाप आना

जो मैं दरख़्त सी
फूट आना तू हरे पात सी
और घनी छांव हो जाना

मैं बही जो नदिया सी
बनना तू निर्मल धार
और संग-संग बह जाना 

मैं हुई जो मृग सी
बनना तू कस्तूरी
और मुझे बौरा जाना

हो जाऊं जो मैं पर्वत
झरना तुम बन जाना
झर-झर के स्नेह फैलाना

आंच उठे जो वैर की
अपनत्व भाव से
तुम उसे मिटाना

         ✍️ ज्योति चौधरी ( लातेहार, झारखंड )

👰 बेटी सौभाग्य हमारा 👰









घर आंगन की चहक,
अपनेपन की महक,
मृदुल रेशम डोर,
प्रेम बंध, अल्हड़ भोर।

प्राची का आह्लाद,
मनमंदिर पूजा निनाद,
प्रेम की मधुरिम झंकार,
खिली-खिली सी बहार।

रवि किरणों सी तेजस,
उल्लसित और ओजस,
प्रमुदित प्रभात प्रभास,
सुनहरा उजला उजास।

दिल का सुरमई संगीत,
आनद धन वैभव सौगात,
शीतल छांव, प्रेम स्वरूप,
ठिठुरती ठंड में गुनगुनी धूप।

बेटी है सौभाग्य हमारा,
दीपित जीवन उजियारा,
चमके, चमकाये जग सारा,
जैसे सूरज, चांद, सितारा।

      ✍️ चंचल जैन ( मुंबई, महाराष्ट्र )

👰 बेटी से सौभाग्य 👰







बेटी से सौभाग्य जन्मे

रुनझुन से घर आंगन गूंजे

किलकारी से नानी का मन

मामा का मन खुशियों से नम

दादा ने लड्डू बटंवाये

बिटिया सोए भाग जगाए

दादी बोली भविष्य मजबूत दो

बिटिया के कुछ नाम कर दो

बेटी नही होती पराई

पापा ने मन की भावना बताई

माँ ने बिटिया गले लगाई

शिक्षण से सक्षम की बात कहाई

भाई बोला हंसने लड़ने की

इसको अब सब आजादी दो

बुआ बिटिया होने पर इतराई

कुटुंब देता रहा बधाई

क्यूंकि सबकी है सोच बदली

बेटी बन गई सशक्त अब असली।


     ✍️ रीना अग्रवाल ( बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश )

👰 बेटियां रहमत 👰







बेटे हैं नेमत तो बेटियां रहमत
इस बात से हुई दुनिया सहमत

कुछ बेटी माँ सी कुछ बाप सी
रब की रहमत का हिसाब नही

रहमतें मिलेंगी किस रूप में
माँ बाप को तो बेटी स्वरूप में

बेटी खुशरंग छतनार चिनार हैं
दुख में तो बनती ठंड़ी फुहार हैं

जिस दिन ले जन्म घर शक्ति
तो उस घर की हो जाती दुर्गा भक्ति

पूर्व जन्म का प्रारब्ध बाप का
बेटी जन्म से खात्मा पाप का

बेटियां अब नही रही जहमत
यें तो बस खुदा की रहमत

नेमतों का हिसाब देना पड़ता
रहमतों को बस संजोकर है रखना

जिस घर जन्म ले रही हैं बेटियां 
माया, सत्यभामा, वैदेही बेटियां 

यही सरस्वती बन जुबां पर बैठे
अज्ञानी के पास बहुत कम ठहरे

दर्द पीड़ा सहभागी हैं सृष्टि सृजन
बेटी दुखी हों तो करती मौन गर्जन

माँ बन जाने पर बेटी साक्षात् भगवान है
बच्चें कैसे भी हो पर वह मां सबकी एक समान है
 

     ✍️ सुनीता सोलंकी 'मीना' ( मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश )

बुधवार, मार्च 23, 2022

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित ऑनलाइन उपहार बहार साहित्यिक महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा लोगों को उपहार के महत्व तथा विशेषता का अहसास कराने के उद्देश्य से, ऑनलाइन उपहार बहार साहित्यिक महोत्सव का आयोजन किया गया। जिसका विषय 'उपहार से बहार' रखा गया। इस महोत्सव में देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकारों ने भाग लिया। जिन्होंने दिए गए विषय पर आधारित एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट रचनाओं को प्रस्तुत कर ऑनलाइन 'उपहार बहार साहित्यिक महोत्सव' की शोभा में चार चाँद लगा दिए और ऑनलाइन उपहार बहार साहित्यिक महोत्सव को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। महोत्सव में प्रस्तुत रचनाओं में कुसुम अशोक सुराणा (मुंबई, महाराष्ट्र), स्मिता सिंह चौहान (गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश) और पल्लवी पाठक (गांधीनगर, गुजरात) की रचनाओं ने समूह का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित किया। इस‌ महोत्सव में सम्मिलित सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन 'पुनीत शब्द सौग़ात' सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने उपहार के महत्व, विशेषता तथा भावनाओं से जुड़ी महत्वपूर्ण बातों को बताते हुए महोत्सव में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन तथा उत्साहवर्धन किया और सम्मान पाने वाले सभी प्रतिभागी रचनाकारों को उज्ज्वल साहित्यिक जीवन की शुभकामनाएं दी। इसके साथ ही उन्होंने रचनाकारों को आने वाले ऑनलाइन साहित्यिक महोत्सवों में अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए सादर आमंत्रित भी किया। इस महोत्सव में उत्कृष्ट रचना प्रस्तुत करके समूह की शोभा बढ़ाने वालों में प्रमुख नाम सुनीता सोलंकी 'मीना', संध्या शर्मा, कुसुम अशोक सुराणा, चंचल जैन, मीता लुनिवाल, पल्लवी पाठक, सोनी कुमारी, रश्मि पोखरियाल 'मृदुलिका', स्मिता सिंह चौहान, सुशील यादव 'सांझ', डॉ. उमा सिंह बघेल, अनिता पाठक रचनाकारों के रहे।




शनिवार, मार्च 19, 2022

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित ऑनलाइन रंग उमंग साहित्यिक महोत्सव के प्रतिभागी 'पुनीत सप्तरंगी रचनाकार' सम्मान से सम्मानित।

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा पावन पर्व होली के उपलक्ष्य में ऑनलाइन रंग उमंग साहित्यिक महोत्सव का आयोजन किया गया। जिसका विषय 'रंगों से ही जीवन उमंग' रखा गया। इस महोत्सव में देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकारों ने भाग लिया। जिन्होंने एक से बढ़कर एक रंगों के महत्व, विशेषता तथा होली पर आधारित अपनी बेहतरीन रचनाओं को प्रस्तुत कर महोत्सव की शोभा में चार चाँद लगा दिए। महोत्सव में कुछ प्रतिभागी रचनाकारों ने अपनी रचनाओं में बचपन‌ की होली का जिक्र करके बीती सुनहरी यादों को तरोताज़ा कर दिया। समूह से जुड़कर पहली बार रचना प्रस्तुत करने वाले रचनाकारों ने समूह का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित किया। इस महोत्सव में सम्मिलित सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन 'पुनीत सप्तरंगी रचनाकार' सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने जीवन में रंगों की विशेषता बताते हुए सभी देशवासियों को पावन पर्व होली की शुभकामनाएं दी और महोत्सव में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन तथा उत्साहवर्धन किया और कहा कि समूह आगे भी विभिन्न महत्वपूर्ण दिवसों एवं पर्वों पर इसी तरह से ऑनलाइन साहित्यिक कार्यक्रम आयोजित करता रहेगा तथा नए रचनाकारों को अपनी साहित्यिक प्रतिभा दिखाने के लिए मंच उपलब्ध करवाता रहेगा। उन्होंने समूह द्वारा आयोजित होने वाले विभिन्न ऑनलाइन साहित्यिक कार्यक्रमों में सम्मिलित होने के लिए हिंदी रचनाकारों को सादर आमंत्रित भी किया। इस महोत्सव में उत्कृष्ट रचना प्रस्तुत करके समूह की शोभा बढ़ाने वालों में प्रमुख नाम कुसुम अशोक सुराणा, चंचल जैन, सुनीता सोलंकी 'मीना', संध्या शर्मा, मीता लुनिवाल, सोनी कुमारी, अनिता पाठक, रश्मि पोखरियाल 'मृदुलिका', स्मिता सिंह चौहान, सुशील यादव 'सांझ', डॉ. उमा सिंह बघेल, पल्लवी पाठक, ज्योति चौधरी रचनाकारों के रहे।




पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा आयोजित ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।

पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा लोगों को स्नेह के महत्व और विशेषता का अहसास करवाने के उद्देश्य से ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव का आयोजन किया गया...