गुरुवार, जून 29, 2023

⛲ मुझे आसमां मुख्तसर लग रहा है ⛲









मुझे आसमां मुख्तसर लग रहा है,

बहुत खूबसूरत सफर लग रहा है।


चुरा के सितारों से सौगात या रब,

दुपट्टे में इक-इक गुहर लग रहा है।


ये तय है के उसकी दुआ साथ है अब,

इबादत का कुछ-कुछ असर लग रहा है।


बड़ी मुश्किलों से मिला है वो मुझको,

कहीं खो ना जाए ये डर लग रहा है।


ये पायल की छन-छन वो चूड़ी की खन-खन,

इन्हीं से तो घर आज घर लग रहा है।


मेरी बूढ़े बरगद से यादें जुड़ी है,

तुम्हें तो फकत ये सज़र लग रहा है।


हवाओं की दस्तक से चौकी है ख़ुशबू,

यक़ीनन कोई मुंतज़र लग रहा है।।


✍️ ख़ुशबू ए फ़ातिमा ( भोपाल, मध्य प्रदेश )

मंगलवार, जून 27, 2023

❣️ समझ लेना मेरे एहसास ❣️









तुम अपने आप समझ जाना 

सारी परेशानी मेरी 

कहनी ना पड़े मन की व्यथा 

सारी कहानी मेरी


आंसू गिरे जब कभी मेरे

तुम्हारी हथेली पर ही गिरे

मिल जाए सुकून मुझे 

बस साथ से तेरे


जब देखूं तुझे तो

मुस्कुरा दूं गुस्से में

तेरा जिक्र कर दूं मैं

अपने हर किस्से में 


किसी मुकाम पर आकर

तेरे कांधे में सर रख लूं

खुल कर हस लूं

और जी भर रो लूं 


मेरी खामोशी को 

तुम खुद से पढ़ लेना 

कभी बिन बात के भी

मुझसे तुम लड़ लेना


मेरे एहसास को

खुद से ही समझ लेना 

दिल की बात को 

तुम ही मुझसे कह देना


चाहे जो भी

कोई सवालात न करना  

मेरे बारे में कोई बात 

मुझसे ना करना


✍️ डॉ.‌ मनीषा तिवारी ( नर्मदापुरम, मध्य प्रदेश )

👰 बेटी 👰









कल रात मैने फिर

वही वशियत का मंजर देखा 

उन्नत समाज में इक बच्ची को

जन्म लेते ही बहते देखा 

कल आत्मा रोई बहुत

इक बेटी को मरते देखा

यूँ कहते है कि

समाज की जड़ होती है बेटियां 

फिर भी न जाने क्यों 

बेटी को ही बलि चढ़ते देखा


जो लोग कहते है 

बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ 

उन्ही हाथों से 

दफन बेटी को होते देखा 

मेरी आंखे रोई

जो कूड़े में बेटी को पड़े देखा

मां की कोख बलि चढ़ती 

मैने है देखी 

इक बेटे की चाह में 

बेटी को मरते देखा 

वो बेटी बनी ही क्यों 

ये सोचती इक बेटी 

इक कोख में ही देखी

कब्र बनी इक बेटी 


बेटियां भी रखती हैं 

हक जीने का 

क्यों नही सुनता समाज 

पुकारे है इक बेटी

कोई राह में छेड़ जाए 

तो कोई जला देता 

क्यों अस्मत से खिलवाड़ 

होता है बेटी का 

के अब तो बेटियों को 

खड़ा होना होगा खुद ही 

कब तक झुकी रहेगी 

यहां इक बेटी


✍️ शुभांजली शर्मा ( यमुना नगर, हरियाणा )

शनिवार, जून 24, 2023

पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा आयोजित ऑनलाइन नारी कल्याणकारी साहित्यिक महोत्सव की प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतें सम्मानित।

पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा नारी के महत्व को दर्शाने व नारी के कार्यों को नमन करने के उद्देश्य से ऑनलाइन नारी कल्याणकारी साहित्यिक महोत्सव का आयोजन किया गया। जिसमें महिला रचनाकारों को दस अलग-अलग विषयों के विकल्प देकर उनमें से किन्हीं दो विषयों का चयन करके चयनित विषयों पर आधारित रचनाएं लिखने के लिए कहा गया। इस महोत्सव में देश के अलग-अलग राज्यों की महिला रचनाकारों ने भाग लिया। जिन्होंने दिए गए विषयों पर आधारित एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट रचनाओं को प्रस्तुत कर महोत्सव की शोभा में चार चाँद लगा दिए और महोत्सव को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। महोत्सव में उत्कृष्ट रचनाएं प्रस्तुत करने वाली प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन 'पुनीत नारी रत्न' सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर ग्रुप के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने संसार की समस्त महिलाओं को कोटि-कोटि नमन करते हुए उनकी सांसारिक उपलब्धियों और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उनके निस्वार्थ सहयोग की सराहना की। उन्होंने महोत्सव में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन व उत्साहवर्धन किया तथा सम्मान पाने वाली सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को उज्ज्वल साहित्यिक जीवन की शुभकामनाएं दी। इसके साथ ही उन्होंने ग्रुप द्वारा आयोजित होने वाले भिन्न-भिन्न ऑनलाइन साहित्यिक व कला प्रतिभा के कार्यक्रमों में अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए प्रतिभाशाली लोगों को सादर आमंत्रित भी किया। इस महोत्सव में उत्कृष्ट रचना प्रस्तुत करके ग्रुप की शोभा बढ़ाने वालों में प्रमुख नाम पूनम लता, शुभांजली शर्मा, ख़ुशबू ए फ़ातिमा, प्रतिभा सागर रचनाकारों के रहे।

गुरुवार, जून 22, 2023

🌻 मुुश्किल से जिसे भुलाया है 🌻









बहुत मुश्किल से जिसे भुलाया है,

आज फिर उनका ख्याल आया है।


मेरे सूखे पड़े थे रात और दिन,

उसकी यादों ने सब भिगाया है।


बड़े नाजों से छिपा था आंखों में,

वो समंदर फिर बहाया है।


बहुत शोर है भीतर बाहर वीरान सा है,

तेरी खामोशी ने बहुत सताया है।


बंद मुट्ठी में रूठे बैठे हैं ख्वाब कई, 

आज फिर उनको मैंने मनाया है।


तुझसे क्या बिछड़े कभी पूरे ना हुए,

खुद को खोकर भी कुछ ना पाया है।


डरने लगी हूँ अब खुद से ही,

खुद को खुद से ही छिपाया है।


✍️ डॉ.‌ मनीषा तिवारी ( नर्मदापुरम, मध्य प्रदेश )

बुधवार, जून 21, 2023

🌻 बंधन 🌻









अधूरापन, कहीं न कहीं

मन के किसी कोने में

रह जाता है ये अधूरापन 

कभी कुछ उसकी सुन लेना 

कभी कुछ अपनी कह लेना 

कभी उसको दिलासा देना 

और साथ ही खुद को समझा लेना

ऐसा ही होना है, ऐसा ही होता है


ये बातें अपने मन में कह देना 

समाज की बेड़ियों में खुद

खुद को ही बांधे रखना 

खुद मे आसूं बहा लेना 

और खुद मे ही 

खुद को समझा लेना

कभी खुद को कोसना 

किस्मत को कोसना 

समाज को कोसना 

पर लकीरों की बेड़ियों से

बाहर कदम न रखना 


अपने अधूरेपन को

खुद से ही गले लगाए फिरना 

हिम्मत न करना 

बाहर निकलने की 

बेड़ियों को तोड़ने की

क्यों आखिर क्यों 

ये डर दिल से जाता क्यों नही 

क्यों अधूरेपन को जिंदगी समझ

किस्मत मान लिया जाता है 

आखिर क्यों नही निकल जाते

इस अधूरेपन से 


अब चल निकल चल 

इस अधूरेपन से 

आ बाहर आ लकीरों से 

तोड़ सब बंदिशे उठ 

कर हिम्मत न समझ के

ये ही तेरी किस्मत है

उठ खुद से बना 

अपनी लकीरों को 

हाथों को देख अपने

ये तेरी किस्मत नही 

तेरी किस्मत तो तू खुद है

 

फिर क्यों जोड़ रखा है 

खुद को इन बंदिशों से 

आ बाहर निकल चल

इस अधूरेपन से

देख ज़रा ये खूबसूरत दुनिया 

खोल अपनी आखों को  

कर अपने ख्वाब पूरे

खुद अपने दम से


✍️ शुभांजली शर्मा ( यमुना नगर, हरियाणा )

सोमवार, जून 19, 2023

🌻 सम्मान का गहना 🌻









ये माथे की बिंदिया,

चमकती है तुम्हारे प्यार से।

आंखों का काजल तुम्हें सोचकर,

हर वक्त मुस्कुराता है।

कानों के झुमके,

शोर करते हैं तुम्हारे आने का।

गालों की लाली हया बन जाती है।

जब तुम्हें देखकर पलके मेरी,

झुक जाती हैं।

अधरों की बात नही करना,

मुझको लाज आती है।

कि इस ख्याल से ही मेरी,

धड़कन बढ़ जाती है।।


चूड़ी की खन-खन,

पायल की छम-छम।

बजती है जैसे, 

प्रेम धुन की कोई सरगम।

ये श्रृंगार तुमसे है, 

तुम्हारे लिए है पिया।

किंतु गर समझते हो,

कि खुश कर सकते हो स्त्री को,

इन बहुमूल्य गहनों से।

तो कहीं ना कहीं, 

समझ नही पाए हो,

स्त्री का मन।

गर करना हो किसी स्त्री से,

प्रेम समर्पण।

तो करना उसका श्रृंगार,

अपने स्नेह से।।


चूड़ी की खन-खन से पहले,

समझना उसके हृदय की धड़कन।

छम-छम करती पायल को,

खामोश नही करना गुस्से की चिंगारी से।

खड़े रहना साथ, 

जब जरूरत उसे तुम्हारी हो।

मत समझना बस,

सजावट का इक सामान।

कि सँवार लो तब,

जब देह तुम्हारी प्यासी हो।।


यूं तो बिछ जाएगी,

वह प्रेम में तुम्हारे।

किंतु याद रखना,

मन से स्वीकार नही पाएगी,

कभी वह स्वयं के श्रृंगार को।

हां ! सच कह रही हूँ,

श्रृंगार स्त्री को प्रिय है मगर,

वह विमुख हो जाएगी,

तुम समझ भी नही पाओगे,

और वह लाश बन जाएगी।।


इसलिए गर करते हो,

किसी स्त्री से प्रेम तुम सच्चा,

तो रूठने और टूटने से पहले,

उसे संभाल लेना।

करना श्रृंगार चाहे गहनों-फूलों,

या कि सूती एक धागे से ही, 

किंतु हृदय में,

कोई छल कपट मत रखना।।


कि स्त्री का सच्चा श्रृंगार,

गहनों से नही होता‌।

स्त्री का सच्चा श्रृंगार, 

उसका सम्मान होता है।

जो एक पुरुष द्वारा,

उसे दिया जा सकता है,

उपहार स्वरूप।

कि खिल उठेगा,

श्रृंगार एक स्त्री का,

सम्मान का गहना पाकर।। 


✍️ प्रतिभा सागर ( शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश )

शनिवार, जून 17, 2023

🌻 नारी की पहचान 🌻









मैं कौन हूँ ? मेरी पहचान क्या है ?

कभी सोचती हूँ, नारी का वजूद क्या है ?

किस-किस रूप में निश्चित किया,

नारी का रूप विधाता ने ?


माँ के रूप में ममता की मूरत माना,

प्यार की शुरुआत होती माँ से,

जिसके आँचल में संपूर्ण संसार बसा है। 

कितना कोमल कितना मधुर रिश्ता बहन का,

भाई एक लहर है तो बहन है नदी की धारा, 

न स्वार्थ न चिंताएँ फिर भी,

एक बड़ा अहसास होता उसके अंदर।


बेटी के रूप में ईश्वर ने दिया वरदान, 

सृष्टि की उत्पत्ति की बीज है बेटी। 

पत्नी के रूप में नारी को नवाजा ईश्वर ने,

मन की भोली समझदारी की प्रति मूर्ति, 

घर की दामिनी, जो कहलाती है अर्द्धांगिनी। 


पर हमारी सामाजिक परंपराएं,

कहाँ नारी को पहचान पाई। 

समाज समझ बैठा नारी को अबला, 

आज के बदलते संदर्भ में,

नारी की है अलग पहचान।

कम मत समझो नारी को,

पुरुषों को दे सकती मात।

हर क्षेत्र में हर कार्य में,

न समझो नारी को अबला। 


है उनमें इतनी शक्ति, 

संगतकार के रूप में, 

सदा नर को सबल बना देती। 

नर की सफलता संभव नही नारी बिना,

नारी ही सृष्टि का आधार है। 

पहले भी थी नारी शक्ति की स्वामिनी,

इतिहास इसका गवाह है। 


झाँसी की रानी बन युद्ध क्षेत्र में,

वीरता का प्रमाण दिया।

भक्ति रस में डूबी मीरा ने,

निश्छल प्रेम का प्रसार किया। 

दुर्गा का रूप धर अधर्म का,

इसने नाश किया। 

यही तो है नारी की पहचान।

 

धैर्य का दूसरा नाम है नारी,

सहनशक्ति की होती अंबार।

यहीं पर एक कदम,

नर पीछे रह जाते हैं।

उतावलेपन में खो देते,

जोश-होश अपने।

और समझ बैठते हैं,

नारी को अबला। 


सुखी परिवार के हैं दो पहिये, 

एक है नर तो एक है नारी,

दोनों के बिन जीवन अधूरा,

दोनों के सामंजस्य से जीवन का,

पहिया है आगे बढ़ता। 

नारी है शक्ति तो नर है सहारा, 

बेटा हो या बेटी,

दोनों हैं हमारे जिगर के टुकड़े। 

देना है उन्हें सही संस्कार, 

करना है दोनों का सम्मान।।


✍️ पूनम लता ( धनबाद, झारखंड )

पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा आयोजित ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।

पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा लोगों को स्नेह के महत्व और विशेषता का अहसास करवाने के उद्देश्य से ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव का आयोजन किया गया...