मैं कौन हूँ ? मेरी पहचान क्या है ?
कभी सोचती हूँ, नारी का वजूद क्या है ?
किस-किस रूप में निश्चित किया,
नारी का रूप विधाता ने ?
माँ के रूप में ममता की मूरत माना,
प्यार की शुरुआत होती माँ से,
जिसके आँचल में संपूर्ण संसार बसा है।
कितना कोमल कितना मधुर रिश्ता बहन का,
भाई एक लहर है तो बहन है नदी की धारा,
न स्वार्थ न चिंताएँ फिर भी,
एक बड़ा अहसास होता उसके अंदर।
बेटी के रूप में ईश्वर ने दिया वरदान,
सृष्टि की उत्पत्ति की बीज है बेटी।
पत्नी के रूप में नारी को नवाजा ईश्वर ने,
मन की भोली समझदारी की प्रति मूर्ति,
घर की दामिनी, जो कहलाती है अर्द्धांगिनी।
पर हमारी सामाजिक परंपराएं,
कहाँ नारी को पहचान पाई।
समाज समझ बैठा नारी को अबला,
आज के बदलते संदर्भ में,
नारी की है अलग पहचान।
कम मत समझो नारी को,
पुरुषों को दे सकती मात।
हर क्षेत्र में हर कार्य में,
न समझो नारी को अबला।
है उनमें इतनी शक्ति,
संगतकार के रूप में,
सदा नर को सबल बना देती।
नर की सफलता संभव नही नारी बिना,
नारी ही सृष्टि का आधार है।
पहले भी थी नारी शक्ति की स्वामिनी,
इतिहास इसका गवाह है।
झाँसी की रानी बन युद्ध क्षेत्र में,
वीरता का प्रमाण दिया।
भक्ति रस में डूबी मीरा ने,
निश्छल प्रेम का प्रसार किया।
दुर्गा का रूप धर अधर्म का,
इसने नाश किया।
यही तो है नारी की पहचान।
धैर्य का दूसरा नाम है नारी,
सहनशक्ति की होती अंबार।
यहीं पर एक कदम,
नर पीछे रह जाते हैं।
उतावलेपन में खो देते,
जोश-होश अपने।
और समझ बैठते हैं,
नारी को अबला।
सुखी परिवार के हैं दो पहिये,
एक है नर तो एक है नारी,
दोनों के बिन जीवन अधूरा,
दोनों के सामंजस्य से जीवन का,
पहिया है आगे बढ़ता।
नारी है शक्ति तो नर है सहारा,
बेटा हो या बेटी,
दोनों हैं हमारे जिगर के टुकड़े।
देना है उन्हें सही संस्कार,
करना है दोनों का सम्मान।।
✍️ पूनम लता ( धनबाद, झारखंड )