सोमवार, अगस्त 30, 2021

🏵️ मीरा के प्रभु कृष्ण 🏵️

मीरा प्रेम में रमी,
श्री कृष्ण में बसी।

हर मान में सजी
हर राग में गुथी।

हर गीत में श्री कृष्ण की हुई,
हर संगीत में श्री कृष्ण की हुई।

हर दर्द को जीत के जी,
हर मर्ज को मार के रही।

मीरा श्री कृष्ण प्रेम की पुजारन,
मीरा श्री कृष्ण की दुलारी।

मीरा कृष्ण राग में रमी,
मीरा कृष्ण प्रेम में बसी।

हर कठिन प्रण में डटी,
हर टीस को मुस्कुरा के सहई।

श्री कृष्ण रूपी प्रेम में संवरी
विरह रूपी प्रेम में व्याकुल हुई।

मीरा कृष्ण का ये प्रेम मीरा का साधक बना,
श्री कृष्ण मीरा के आराध्य बने।

इस प्रेम को ना किसी ने जाना,
इस प्रेम को ना किसी ने सच माना।

अपने ही मीरा के बन गए वैरी
जिन्होंने मीरा को विषपान कराने में नही की देरी।

मीरा का पवित्र प्रेम,
श्री कृष्ण की महिमा में रमा।

कटु विष बन गया,
मीरा के लिए अमृतपान।

          ✍️ डॉ० उमा सिंह बघेल ( रीवा, मध्य प्रदेश )

🏵️ जन्माष्टमी का पावन पर्व 🏵️


आज बड़ा ही शुभ दिवस है आया 
मेरे प्रभु का जन्मदिवस है आया
मैं भक्त प्रभु हरि का
भजु दिन रात हरि का नाम
मन में बसे प्रभु मेरे
इस विचलित मन को
हरि चरणों मे ही चैन मिले
मैं मन्दिर चाहे ना जाऊं
ना दीप रोज जलाऊं
ना ही कोई पाठ, आरती
मैं भले ना कर पाऊं
ना ही कोई फूल-फल
का भोग कभी लगा पाऊं
पर आँखे बन्ध करते ही
हे प्रभु तेरे मैं दर्शन पाऊं
तोड़ सब मोह के धागे
बस हरि में तुझ में रम जाऊं
अब मेरे हरि ही मेरा भरोसा
वो अब मुझे कहीं भटकने नही देंगे
हरि से जुड़ा अलग ही नाता है 
अब ना कोई शिकवा-शिकायत किसी से
मुझे हरि का ही बस सहारा है 
आज जन्माष्टमी का विशेष दिवस है
हरि का रूप कान्हा मुझे लगता प्यारा है
पंचामृत से स्नान कराकर
करना कान्हा का श्रृंगार सारा है
माखन-मिश्री का भोग लगाकर कान्हा को
मैंने जन्माष्टमी का पावन पर्व मनाना है

         ✍️ मीता लुनिवाल ( जयपुर, राजस्थान )                 

🏵️ मनमोहक कान्हा 🏵️

भाद्रपक्ष कृष्ण की अष्टमी तिथि,
रोहिणी नक्षत्र थी घोर अंधेरी रात, 
भये प्रकट मथुरा के कारागार में,
वासुदेव-देवकी की गोद में आए पालनहार,
चहुं ओर बरखा रानी का मच रहा शोर, 
वासुदेव 'देवकीनंदन' को ले जा रहे
नंद बाबा के द्वारे,
यमुना ले रही हिलोरें,
छू चरण शांत पड़ जाए,
शेषनाग की सेवा देख,
 कृष्णा मन ही मन मुस्काए,
 माँ यशोदा देख लला को,
 फूली नहीं समाए,
 मोर मुकुट है ललाट पर,
 बंसी मधुर बजावे, खो सुध-बुध ग्वाल-गोपालन,
 सबके मन को भावें,
 कृष्ण कन्हैया नटखट चितचोर,
 मैया यशोदा को बहुत सतावें, 
 माखन मिश्री खाएं कन्हैया,
 चलत घुटरुन पैजनिया खूब बजाएं,
 मोती की लड़ियों सी दांतिया,
 मैया को बहुत रिझाए,
 कान्हा के दृग लोचन पर जब निंदिया डेरा डाले,
 मैया की गोद में थपकी पाकर सपनों में खो जाए,
 माँ सुंदर बदन देख कान्हा का,
 फिर निहाल हो जाए, 
 नजर न लगे मेरे कान्हा को वारि-वारि जाए,
 गली-गली घूमत कान्हा,
 मटकी फोड़त, ग्वालन को खूब सताए,
 खीझत मैया श्याम को ओखल बांधी आए,
 माँ के घुड़कन पर भोले से मुख में,
 सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड दिखाए।
 ज्ञान गीता का सार सुनाने,
 कान्हा जग में आए।
 है कृष्णा से जग सारा,
 कृष्णा कण-कण में है समाए।

              ✍️ डॉ० ऋतु नागर ( मुंबई, महाराष्ट्र )

🏵️ राधा-कृष्ण 🏵️

कृष्ण नाम प्रेम का 
एक निश्छल प्रेम का
कृष्ण की जब मुरली बजती
क्या सिंह, क्या हिरण
सब राग द्वेष भूल
एक ही सरोवर तट पर 
आ जाते पानी पीते
क्या मानव, क्या पशु, क्या पक्षी
सब प्रेम रूपी मुरली धुन में एक हो जाते
प्रेम की पराकाष्ठा ये ही
अपने आप को भूलकर
प्रेममय हो जाना
राधा कृष्ण का प्रेम
अति मधुर एवं निश्छल
प्रेम हमे ये ही सिखाये
आत्मसमर्पण अपने आप का
कृष्ण और राधा कभी एक दूसरे के हुए नही
पर दोनों कभी अलग भी तो हुए नही
जहां राधा वहां कृष्ण
जहां कृष्ण वहां राधा
जब भी कृष्ण का नाम आये 
कृष्ण से पहले सब राधा-राधा पुकारा करे
राधा-कृष्ण में दो कौन हुए
दोनो ही एक प्रेम सूत्र में
बंधे हुए मिले
प्रेम सूत्र ऐसा 
जो सम्पूर्ण सृष्टि को 
बांधने की क्षमता रखता
कितना अच्छा हो
यदि हम सब कृष्णमय हो
कही नफरत कही द्वेष न हो
बस चहुँ ओर प्रेम का गुंजन हो
जय जय राधा-कृष्ण, जय जय राधा-कृष्ण

              ✍️ वाणी कर्ण ( काठमांडू, नेपाल )

रविवार, अगस्त 29, 2021

🏵️ राधे-राधे 🏵️

 


 तेरी कथा अनेक
 आज सुनाऊं उनमें से एक
 तुमने अर्जुन को दिया ज्ञान
 गीता का देकर व्याख्यान
 पांचाली को मान सखी 
 तुमने उसकी लाज रखी
 यशोदा मैया के थे प्राण
 और नंद बाबा की जान
 मीरा तुमको स्वामी कहती
 और हृदय में तेरे रहती
 राधे-राधे सांसे तेरी कहती 
 रुक्मणी को यह बात अखरती
 एक दिन कृष्णा से बोली वह
 प्रभु मैं तेरी पटरानी हूँ
 मुझ से अधिक है नेह तुम्हारा
 राधा से, अब मैं जानी हूँ
 मैं दिन-रात तेरे संग रहती
 तेरी सांसे राधा ही जपती
 मन तेरा गोकुल में बसता
 मुझे नहीं यह जरा है जचता
 बोले कृष्णा, याद नहीं करता मैं उनको 
 हाँ यह सच है भूला नहीं कभी हूँ उनको
 कुछ दिनों के बाद एक दिन
 प्रभु पीड़ा से ग्रसित हुए
 महल के नर नारी सभी
 इसे देखकर व्यथित हुए
 वैद्य, पंडित बुलाए गए
 पर गई नहीं उनकी पीड़ा
 पूछा रुक्मणी ने स्वामी से
 तुम ही बताओ कैसे दूर करुँ पीड़ा
 भक्त मेरा कोई यदि अपने
 पैरों की धूल लगाएगा
 तो मेरा यह सिर का दर्द
पल में दूर हो जाएगा
 यह महापाप मुझसे ना होगा
 पैरों की धूल लगाऊंगी
 ना जाने कितने जन्मों तक
 घोर नरक में जाऊंगी
 किसी ने दिया नहीं प्रभु को
 अपने पैरों की थोड़ी सी धूल
 प्रभु ने बोला फिर उद्धव से
 गोकुल से ले आओ धूल
 उद्धव को देख गोप, गोपियां,
 राधा ने पूछा प्रभु का हाल
 उद्धव ने बताया कई दिनों से
 प्रभु पीड़ा से हैं बेहाल 
 भक्तों के पैरों की थोड़ी धूल चाहिए
 वही मैं लेने आया हूं
 क्या कोई दे सकता मुझको
 वही पूछने आया हूँ
 रौंद दिया सब ने अपने
 पैरों से गोकुल की वसुधा को
 लाखो बरस नर्क हो चाहे
 गोकुल वासी और राधा को
 ले जा तू सारी धूल समेट
 जा प्रभु के मस्तक पर लपेट
 झट प्रभु की पीड़ा दूर करो
 तुम जन्म हमारा धन्य करो
 उद्धव स्तब्ध थे भक्ति देख
 प्रभु से गोकुल का प्रेम देख
 बोले प्रभु से गोकुल में
 मैं प्रेम का दर्शन कर आया
 चुटकी भर धूल की कौन कहे 
 मैं बोरियों में भर लाया
 प्रभु ने तिरछी नजरों से
 देखा रुक्मणी की ओर
 जय राधे जय गोकुल वासी
 जय-जय नंदकिशोर
 जय राधे जय मनमोहन
 शोर उठा चहुं ओर
 जय राधे जय गोकुल वासी
 जय-जय नंद किशोर

   ✍️ संध्या शर्मा ( मोहाली, पंजाब )

🏵️ कृष्ण से लगन लगी 🏵️

प्रीत की रीत ऐसी लगी कान्हा,
अब छूटे से न छूटेगी। 
मैं दुनिया के हर सुख दुःख भूली, 
कृष्ण अब तेरा ही सहारा है। 
दुनिया में प्रेम की कमी हो गई, 
कृष्ण तुम वापस आ जाओ। 
हम तुम से ये विनती करते है,
राधा के पास आ जाओ। 
कृष्ण का प्यार अमर है, 
राधा ने दिल का नज़राना भेजा है। 
दही-मिश्री तुम्हे बुलाती है ,
बासुरी की धुन याद दिलाती है। 
वन-वन हम भटक रहे है, 
तुम गाय चराने आ जाओ, 
राधा तुम्हारी राह देख रही है। 
उसके पास तुम आ जाओ, 
राधा को कृष्ण की यादो ने घेर लिया, 
तुम उसके सपने सजा जाओ।।

                   ✍️ गरिमा ( लखनऊ, उत्तर प्रदेश )

🏵️ कान्हा प्यारा 🏵️

बाल लीला अपनी दिखाने वाला
चमत्कारों से आश्चर्य चकित करने वाला
बांसुरी धुन से मन मोहने वाला
हम सबका कान्हा प्यारा 

ब्रज ग्राम में रहने वाला
नटखटपन से लुभाने वाला
माता यशोदा का राज दुलारा
हम सबका कान्हा प्यारा 

नैन जिसके बहुत सुंदर
मुखड़ा सबको लगता प्यारा
त्रिलोक राजा कहलाने वाला
हम सबका कान्हा प्यारा

चेहरा सांवला सबको भाए
सबके दिल में बसने वाला
सबके दुखों को हरने वाला
हम सबका कान्हा प्यारा 

दोस्ती पक्की निभाने वाला
दाता बन झोलियां भरने वाला
गोवर्धन पर्वत उठाने वाला
हम सबका कान्हा प्यारा 

         ✍️ मुकेश बिस्सा ( जैसलमेर, राजस्थान )

🏵️ देवकी नंदन 🏵️

 

कंस की चीत्कार से कांपे, मथुरा कारागार के गलियारे।
देवकी-वासुदेव के अंतस में, छाए कृष्णपक्ष के अंधियारे।
कैसी विडंबना किस्मत की, सोचे देवकी मय्या मन में।
सात-सात संताने खोई मैंने, निज आँखों के सामने।

अर्धरात्रि में अदभूत आभा से चमका, कारागार का कोना-कोना।
विष्णु अवतार जनेगी देवकी, चमका जननी मुख सलोना।
हुई आकाशवाणी, छोड़ आना देवकीसूत, गोकुल नंदधाम।
देवकी की गोद में कन्या को रख, देना वासुदेव सूता नाम।

घनघोर घटाएं छाई, चंचल सौदामिनी, कड़कड़ाती आई।
उमड़-घुमड़ बदरा आई, बरखा रानी मन हर्षाई।
वासुदेव चले, पल-पल बढ़ती यमुना में, कान्हा को टोकरी में ले।
चूम कृष्ण के पद पंकज, उतरी यमुना श्रीहरि चरण रज ले।

कंस करे तांडव, नृत्य करे असूर, पर पहुंचा कान्हा, गोकुल में।
छल, कपट, संत्रास, भय, हर प्रयास निष्फल दुष्ट कुल में।
कंस मचाए उत्पात, कालिया, पूतना के अट्टहास, गोकुल में।
अष्टमी का चंदा, कान्हा बढ़ता गया पूर्णमासी सा नंद कुल में।

माखन चोर, यशोदा का लाला, ग्वालों संग खेले मतवाला।
कालिया नाग के फन पर नाचे, गोपाला, नंदलाला।
खोल वदन, कराए विराट प्रभु दर्शन, राधारमण, देवकीनंदन।
गोपियों संग रास रचाए, बांसुरी बजाय, रासबिहारी जग वंदन।

दुर्बल तारी, धर्म संवारी, गोवर्धनधारी, रासबिहारी।
बृजमोहन, द्रोपदी शील रक्षक, न्याय पुजारी, कृष्ण मुरारी।
रुक्मिणी वर, अर्जुन रथ सारथी, गीता उपदेशक, सुदर्शन धारी।
अच्युतम्, केशवम् , विष्णु रुपम्, मोर मुकुट धारी।

                        ✍️ कुसुम अशोक सुराणा ( मुंबई, महाराष्ट्र )

🏵️ श्री कृष्ण जन्माष्टमी 🏵️


भादव कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि है आज,
बादल दामिनी दमके देवकी के दिल में छाया भय का राज।
छः शिशु का वध किया कंस ने सातवां हुआ विलोप,
आठवें की बारी है जाने क्या होगा आगे उसका प्रकोप।
है बेचारी माता रोती वह दु:ख से है बेहाल,
शिशु जन्म की खुशियां कैसी विंहसे कंस सा काल।
रात अंधेरी कारी कजरारी मेघ बरसता गर्जन करे घन घोर,
दामिनी दमके क्षण क्षण होती जाये प्रकृति कठोर।
देवकी का दिल विह्वल करती पीड़ा लेती हिलोर,
कोमल लाल को कैसे बचाएं कंस का पाश कठोर।
प्रभु ने रची जो माया जगत में कौन समझ वो पाया,
प्रभु को सम्मुख पाकर मात-पिता का दिल हर्षाया।
भक्ति और ममता का संगम एक साथ हो आया,
प्रेम पगे स्वर में प्रभु ने जब मधुर वचन सुनाया।
ले जाएं गोकुल में मुझको नंद का लाल बनाएं,
नंद यशोदा बने कृष्ण के पालक आप महामाया को लाएं।
पल में खुली सब हथकड़ियां पहरेदार के नैनों में नींद समाई,
सब दरवाजे खोल पिता की राह आसान बनाई।
काली अंधियारी रात घनघोर घटा है छाई,
चमचम चमकती दामिनी ने अंधेरे में राह दिखाई।
प्रभु की माया से नदियों में भी राह बनाई,
शेष नाग ने रक्षा करने को सिर पर छत्र सजाई।
वासुदेव, कृष्ण को ले माथे पर नंद गृह तक पहुंचाए,
रख यशोदा के पास कृष्ण, महामाया को गोद उठाये।
घन अंधियारी रात ने इस काम को आसान बनाया,
खुली नींद जब नंद-यशोदा की कृष्ण को सम्मुख पाया।
लगे बाजन गोकुल में बधाई नंद का लाला है आया,
कान्हा से लाल को पाकर यशोदा का दिल हर्षाया।
धन्य पिता नंद और माता यशोदा हुए कान्हा को पाकर
धन्य हुई वसुधा है सारी, गीत कृष्ण के गाकर।

                        ✍️ निर्मला कर्ण ( राँची, झारखण्ड )

🏵️ गोकुल में पधारे माधव 🏵️

 

            
            गोकुल धाम पधारे प्रभु तुम,
            ग्वालन के संग खूब सुहाये। 
            नन्द की गाय चराने को माधव, 
            नन्दन कानन में है विराजे।। १।। 

गोपिन बिन सहाये नहीं, 
नन्द के घर का दीपक आयो। 
ब्रजधाम को मिल्यो अमूल्य निधि, 
असुर को विधि विधान बतायो।। २।। 

            
              जमुना जल को मुक्त कियो प्रभु, 
              गोकुल को जीवन प्राण दिये। 
              महादानव कंस संहार कर प्रभु, 
              अवनि को दानव मुक्त किये।। ३।। 

बांसुरी धुन बजाय के केशव, 
निर्जीव में प्राण उतारो। 
ब्रजवासिन के उर में नन्द नन्दन, 
प्रेम को रूप उपजायो  ।। ४।। 

              शक्र के दर्प मिटाय को केशव, 
               गिरि गोवर्धन तर्जनी उठाये।
               प्रभृति दानवों का नाश किये, 
               वसुधा में धर्म को पुन: उपजाये  ।।५।। 

माखन चोरी करियो है बहुत,
गोपिन को है खूब सताये।
राधिका रानी के जीवन में,
प्रेम नाम की ज्योति जगाये।। ६।। 

           ✍️ कैलाश उप्रेती "कोमल" ( चमोली, उत्तराखंड )

शनिवार, अगस्त 28, 2021

🏵️ नंदलाला, आ जाओ 🏵️

नंदलाला, कृष्ण कन्हैया,
बंसी बजैया, चितचोर कन्हैया।
वृंदावन सारा आनंद विभोर,
हर्षित गोकुल, राधा हृद हिलोर।
रास रचाये संग रमैया कान्हा,
बंसी सुर सुन बावरी राधा।
मटकी फोड़े देखो माखनचोर,
वस्त्र चुराए नटखट नन्दकिशोर।
गोकुल में स्वर्ग सुख का उजियार,
श्री विष्णु ले आये थे कृष्णावतार।
चारों ओर आज मचा हैं उत्पात, शोर,
पाप मिटाने आओ करुणा सागर।
प्रेम रस, आनंद भरो मन की गागर,
दुष्टों का विनाश, पापियों का संहार।
हे मुरारी, मुरलीधर बजाओ बांसुरी,
सुमधुर धुन से जीवन में आये माधुरी।
छितराओ निर्मल प्रेम रस रिमझिम बौछार,
भीगा भीगा रहे हर दिल तृप्त प्रीत तुषार।
हे गिरिधर, गोपाल, जगत तारणहार,
श्री कृष्णा, दुःख हरने, आ जाओ, सुनो पुकार।
फन फैलाये बैठा नकाबपोश भ्रष्टाचार,
डंक मारने छुप छुप दुराचार।
दुष्प्रवृत्तियों का करने समूल विनाश,
बचाने भोले भाले जन मन की लाज।
बचाने नारी का शील, ले द्रोपदी चीर,
सुदर्शन चक्र से करो तेज प्रहार।
बेख़ौफ़ हैं आज दुशासन, कंस,
खूनी होली खेल रहे हैं नराधम।
खूंखार भेड़ियों की टोली अमानुष,
मानवता, सहृदयता पर लगा रहे कलंक।
अधर्मी सोच मिटाने, आनंद बरसाने,
धरा को स्वर्ग सा अनुपम बनाने, हे प्रभु,
निस्तेज मानवता का दीप जलाने,
इंसानियत का पैगाम देने,
स्वार्थवश रिश्तों में आया जो सूखापन,
आओ श्री हरि मुरलीधर, आ जाओ।
काली अंधियारी रात में एक बार,
दिव्य प्रकाश चमकारा फैला दो।  
सूरज की रोशनी, चंदा की शीतलता,
महका दो फूलों सा कोमल मन।
तितलियों से रंग सु-रंग भर दो,
जीवन सजा दो, आओ कृष्ण मुरारी।
मटकी प्रेम माखन से भर दो,
स्नेह का माखन जगत को खिला दो।
महका दो, चहका दो मधुबन,
प्रेम रस भीगे हर हृदय कण-कण।
श्री कृष्णा, कृष्णा भजे सकल जन,
जगत को स्वर्ग-सा सुन्दर बना दो।  

              ✍️ चंचल जैन ( मुंबई, महाराष्ट्र )

सोमवार, अगस्त 23, 2021

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित ऑनलाइन रक्षाबंधन साहित्यिक महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा भाई-बहन के पावन पर्व रक्षाबंधन के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय स्तर पर ऑनलाइन "रक्षाबंधन साहित्यिक महोत्सव" का आयोजन किया गया। जिसका विषय 'भाई-बहन का नाता' रखा गया। इस महोत्सव में देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकारों ने भाग लिया। जिन्होंने रक्षाबंधन पर आधारित अपनी बेहतरीन रचनाओं को प्रस्तुत कर भाई-बहन के अटूट स्नेह को प्रदर्शित किया। इस महोत्सव में संध्या शर्मा (मोहाली, पंजाब) और चंचल जैन (मुंबई, महाराष्ट्र) की रचनाओं ने सभी का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित किया। इस महोत्सव में सम्मिलित सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन "पुनीत साहित्य स्नेही" सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने सभी रचनाकारों को भाई-बहन के पावन पर्व रक्षाबंधन की बधाई एवं शुभकामनाएं दी तथा महोत्सव में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन तथा उत्साहवर्धन भी किया। उन्होंने कहा कि पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह इसी तरह आगे भी ऑनलाइन साहित्यिक महोत्सवों के माध्यम से भारतीय सभ्यता-संस्कृति से जुड़े विभिन्न पर्वो को मनाता रहेगा। इसके साथ ही उन्होंने समूह द्वारा श्री कृष्ण जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में आयोजित होने वाले ऑनलाइन "श्री कृष्ण जन्माष्टमी साहित्यिक महोत्सव" और शिक्षक दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित होने वाले ऑनलाइन "शिक्षक दिवस साहित्यिक महोत्सव" में शामिल होने के लिए हिंदी रचनाकारों को सादर आमंत्रित भी किया। इस महोत्सव में उत्कृष्ट रचना प्रस्तुत करके समूह की शोभा बढ़ाने वालों में प्रमुख नाम मीता लुनिवाल, प्रतिभा तिवारी, कुसुम अशोक सुराणा, चंचल जैन, डॉ. उमा सिंह बघेल, वाणी कर्ण, रामभरोस टोण्डे, डाॅ. ऋतु नागर, सुखमिला अग्रवाल 'भूमिजा', संध्या शर्मा, निर्मला कर्ण रचनाकारों के रहे।

रविवार, अगस्त 22, 2021

🌺 त्योहार रक्षाबंधन 🌺


भाई-बहन का अनोखा त्योहार,
बंध गया रेशम डोरी में प्यार।

श्रावण माह की पूर्णिमा को होती ये रस्म,
भाई-बहन की रक्षा की लेता है कसम।

प्यार मनुहार लड़ाई झगड़ो का रिश्ता निराला,
इसी तरह होता भाई-बहन का स्नेह प्रगाढ़ विशाला।

भाई के माथे पर कुमकुम का टीका,
जैसे सितारों के बीच सुंदर चाँद हो चमका।

भाई की कलाई में बंधी राखी रंगीली,
बहन का प्यार झलकाती मनमोहक सजीली।

आरती उतारती अपने भाई की बहन,
दे दो भाई मुझे मेरी रक्षा का वचन।

स्नेह रक्षा और प्यार का अनोखा बंधन,
खुशियों से भरा ये त्योहार रक्षाबंधन।

                  ✍️ वाणी कर्ण‌‌‌ ( काठमांडू, नेपाल )

🌺 राखी का पावन त्यौहार 🌺



निर्मल, निश्चल प्यार का सागर,
नेह दुलार लबालब, ले गागर,
बहना का हृदय हुलरे हिलोर,
सदा खुश रहे भैया, भाव विभोर।।

रोली, अक्षत, ले मावा मिठाई,
लाखों में एक हैं मेरा भाई,
रूठना, मनाना, लड़ना, झगड़ना,
फिर भी बहता प्रेम-नेह झरना।।

इठलाये, इतराये, चहके बहना,
याद आये सदा पीहर का अंगना,
भैया, भाभी, भतीजा, भतीजी,
हरा भरा रहे परिवार अपना।।

यादों की सुहानी बारात सजाये,
नटखट बचपन की याद आये,
भूली-बिसरी, खट्टी-मीठी बातें,
मासूम अठखेलियां मन को भाये।।

बिता अल्हड़ बचपन, खिले यौवन रंग,
सोलह श्रृंगार कर चली साजन के संग,
भूलाये न भूला पाऊं बाबुल का अंगना,
भैया, भूल से भी हमें पराया न समझना।।

खिलखिलाती खुशियां, स्मृतियां मधुर,
सुख,साधन,संपति,शुभ भावना,संस्कार,
आप की सलामती,आप के लिए दीर्घायु,
यश, कीर्ति, गौरव, मांगू प्रभु कृपा अपार।।
 
राखी का पावन निर्मल त्यौहार,
नहीं चाहिए मुझे कोई बड़ा उपहार,
महकती हंसी, खनकती ख़ुशी,
सुरभित मुस्कान, सजाना प्यार, दुलार।। 

आये सावन की रिमझिम फुहार,
उमड़-उमड़ आया निश्चल प्यार,
आया हैं राखी का पावन त्यौहार,
बहना पुलकित, रुमझुम नेह बौछार।।

✍️ चंचल जैन ( मुंबई, महाराष्ट्र )

🌺 राखी आई 🌺

 


राखी आई, खुशियाँ लाई।

फुले नही समाए बहन-भाई।

बहना ने रोली, राखी और मिठाई,

से थाली आज है सजाई।

बांधे भाई के हाथ में राखी, 

लेती भाई से रक्षा का वादा।

राखी की लाज निभाना भैया,

बहन को कभी भूल ना जाना।

भाई देता बहन को वचन,

वादा करता भाई हर लूँगा दुख तेरे।

भाई बहन को प्यारा है,

बन्धन ये सबसे निराला है।

त्यौहार राखी का न्यारा है,

ये रिश्ता हर रिश्ते से प्यारा है।


        ✍️ मीता लुनिवाल ( जयपुर, राजस्थान )

🌺 एक अनोखा रिश्ता 🌺


एक अनोखा रिश्ता जग में,
बहन-भाई का प्यार,
पावन, पवित्र, निर्मल, निश्छल,
विधाता का अनुपम उपहार।

समग्र सृष्टि में नहीं है दूजा,
रिश्तों का संसार,
सुरक्षा कवच अटूट अनुपम,
भावुक उर का प्यार।

मायके आती जब प्यारी बहना,
भईया करें मनुहार,
झूठ मूट का लड़ना झगड़ना,
और मीठी सी तकरार।

जब-जब आता रक्षाबंधन,
राखी का त्योहार,
नेह भरी आंखों से बहना,
पल-पल करे इंतजार।

बहन-भाई की सलामती,
चाहे बारम्बार,
हरा-भरा हो मायके का अंगना,
हो खुशियों की बौछार।

अक्षत कुमकुम रोली मौली,
गूंथे शगुनों के हार,
लेती है सौ-सौ बलईंया,
देती नज़र उतार।

बहन-भाई का है ऐसा नाता,
देव भी हैं बलिहार,
अपनी कलाई में बंधवाने राखी,
लेतें हैं अवतार।

वो ले आते हैं अवतार,
है कैसा अनोखा प्यार....
           
         ✍️ सुखमिला अग्रवाल 'भूमिजा' ( मुंबई, महाराष्ट्र )

🌺 पावन रक्षाबंधन 🌺


आया रक्षाबंधन का पावन त्योहार है,
लाया खुशियां अपार है,
भाई बहन का प्यारा नाता,
दुनिया में सबसे न्यारा है,
ना कोई शिकवा, ना है शिकायत,
प्रीत का रस बरसाता है,
चाहे जितना भी लड़-झगड़ ले,
पर मन में ना तकरार है,
दिलों में इनके एक-दूसरे के लिए अथाह प्यार है,
 खुश नसीब हैं वो,
 जहां भाई-बहन का साथ है,
 मां-बाप के बाद भी उनका ही दुलार है,
 रेशम के धागों में लिपटा भाई बहन का प्यार है,
रक्षाबंधन सिर्फ एक रस्म नही,
जज्बातों का त्योहार है,
आया रक्षाबंधन का पावन त्योहार है। 

               ✍️ डाॅ० ऋतु नागर ( मुंबई, महाराष्ट्र )

🌺 रक्षा सूत्र 🌺


कच्चे धागे में छुपा, 
पूर्णमासी आफताब है।
मयूरपंख में रचा-बसा, 
मखमली ख़्वाब है।
रेशम लड़ियों से सजा, 
सक्षम रक्षा तंत्र है।
भाई की कलाई पे लिखा, 
सर्वसिद्धि मंत्र है।
रिश्तों के दरम्यान, 
अल्हड़पन का श्रृंगार है।
जज़्बातों के स्पंदन, 
भावनाओं का उभार है।
जीत का जुनून, 
प्रीत का समंदर है।
सांसो के हर स्पंदन में, 
सलामती का ख़्याल है।
कतरा-कतरा लहू का, 
रंग लाल ही लाल है।
शैशव के पंखों पर,
खिला-खिला बचपन है।
बचपन के फलक पर,
यौवन का इंद्रधनुष है।
भाई-बहन के प्यार का,
राखी ! अनुपम उपहार है।
कुंकुम, अक्षत, रोली सजा,
बहना का अक्षय निखार है।

      ✍️ कुसुम अशोक सुराणा ( मुंबई, महाराष्ट्र )

🌺 रक्षाबंधन 🌺

 


भैया तुम जरूर आ जाना रक्षाबंधन में।
आरती सजा कर रखूंगी, मैं तेरे अभिनंदन में।
मेरे रेशम के ये दो धागे हैं, साझे दुख-सुख के,
जिसमें कृष्ण का वादा है, कृष्णेयी का पुनीत बंधन।।

  ✍️ प्रतिभा तिवारी ( लखनऊ, उत्तर प्रदेश )

🌺 तुम मेरे भाई से बढ़कर मेरे पिता भी हो 🌺


पिता के बाद कोई तो है अपना,                                                           जो है जीवन का स्नेहिल एक सपना। 

पिता जैसा ही है उसका स्नेह,
हृदय और आत्मा को छूता है उसका स्नेह।

हर एक वक्त पिता जैसे ही एक तड़प रहती है,
हर एक तकलीफ में जो पिता तुल्य जीवन जीते है।
भाई हैं जो भाई पिता बन के जो साथ देते है,
माता-पिता के साथ-साथ,
भाई भी पिता समान जो सम्मान देते हैं,
ससुराल में रहते हुये भी मायके का अभिमान देते हैं।

जीवन के हर पड़ाव में मिल के जो साथ देते हैं,
अनुरागी हो कर बहन को जो मान देते हैं।
भाई-बहन के बंधन को जो रक्षा का बन्धन कहते हैं।
      
              ✍️ डॉ० उमा सिंह बघेल ( रीवा, मध्य प्रदेश )

शनिवार, अगस्त 21, 2021

🌺 रक्षाबंधन 🌺

माँ लक्ष्मी ने बांधा बलि को सबसे पहले रक्षाबंधन
तुम मुक्त करो उस प्रहरी को बदले में मांगा एकवचन
बोला बलि जो चाहे ले लो धन-धान्य और राज बहन
पर कभी नहीं छोडूंगा मैं रक्षा करता जो प्रहरी बन
तू नहीं जानती कौन है वह
प्रण से बधे इस प्रहरी को 
तुमको उससे मतलब क्या है
जो चाहिए कहो इस भाई को
बोली लक्ष्मी तू नहीं जानता
मैं उस प्रहरी की पत्नी हूँ
 वैकुंठ धाम सूना उन बिन है
 मैं उस श्री हरि की लक्ष्मी हूँ
 तेरी रक्षा का देती वचन
 विश्वास करो तुम मुझ पर
 माना है बहन मुझे अपनी
 तो रखो यकीन इस धागे पर
 तीनों लोकों के पालनहार को
 कैसे तुम रख सकते हो
 माना प्रभु ने दिया वचन
 तुम मुक्त उन्हें कर सकते हो
 तुम डरो नहीं निर्भय होकर
 पाताल लोक में राज करो 
 प्रभु ने दिए जो तुझे वचन
उनसे उनको आजाद करो 
त्योहार तभी से हुआ शुरु
रिश्ते जग में हैं बहुत मगर
रक्षाबंधन पावन सबसे
भाई बहन का प्यार अमर
कहलाता यह रक्षाबंधन
पर हर बंधन से है ऊपर
धर्म-जाति रिश्ते से हटकर
भाई-बहन का प्यार अमर
 यह राखी भाई की ताकत है
 सैनिक के हाथ में हिम्मत है
 इस धागे का कोई मोल नहीं
 जिसे मिलती वह खुशकिस्मत है।
 
           ✍️ संध्या शर्मा ( मोहाली, पंजाब )

शुक्रवार, अगस्त 20, 2021

🌺 भाई-बहन 🌺

सबसे पावन सबसे पवित्र,
जगत में भाई-बहन का प्रेम।
एक माता और एक पिता की,
हैं दोनों ही सन्तान।
बचपन में सँग खाते खेलते,
पढ़ते, हैं चढ़ते दोनों परवान।
बालपन का निश्छल स्नेह,
जाने कहाँ है छूट जाता।
जाने किस अँधियारे कोने से,
दुनियादारी आकर बस जाता।
मैं बैठी सपनों में भूली,
करुँ मैं किससे फरियाद।
मुझको शिद्दत से आ रही,
है आज मेरे भाई की याद।
वो भाई की बाहों का झूला,
वो रूठना मचलना फिर।
बहुत मनाने पर मान जाना,
फिर किसकी थी गलती।
किसने किया किसे आहत,
सब पल भर में भूल जाना।
ना कोई अहम ना दुनियादारी,
नहीं रहता किसी का भाई-भाई ;
और भाई-बहन के बीच स्थान।
ज्यों-ज्यों उम्र बढ़ती गई,
जिन्दगी दिल के बदले;
दिमाग के अधीन होती गई।
ऊँच-नीच सामाजिक स्तर,
सम्बन्ध के बीच आने लगे।
और रिश्ते की गर्माहट जाने,
कहाँ मुँह छिपाने लगे।
कब किसने पत्र लिखा,
और कब किया फोन ये;
रिकॉर्ड भी रखे जाने लगे।
पशोपेश में हूँ क्या करुँ मैं,
 कैसे दिलाऊँ भाई को;
बचपन की स्नेहिल याद।
किसके द्वारा भेजूँ सन्देश,
करुं कहाँ अपनी फरियाद।
कैसे बताऊं मैं उन्हें मुझे,
आती है अपने भाई की याद।
मेरे दिल के अन्दर अब भी,
सिंचित हैं ये स्नेहिल रिश्ते।
दुनियादारी निभाकर भी मै,
सहेजती रही कोमल किस्से।
मैं कुछ भी नहीं भूली,
ईश्वर तुम पहुँचा दो।
मेरे भाई तक मेरी फरियाद,
कह दो मेरे माँ जाई से।
मैं अब भी जुड़ी हूँ अपने,
किल्लोल करते बचपन से।
राखी के रेशमी मोहक तार से,
मानभरे स्वप्निल मनुहार से।
बड़ी शिद्दत से आती है आज,
मुझे मेरे भाई की याद।
मुझे मेरे भाई की याद।।

            ✍️ निर्मला कर्ण ( राँची, झारखण्ड )

🌺 रिश्तों का मीठा बंधन 🌺

मेंहदी लगा कर,
बैठी मेरी बहना।
भाई की कलाई में,
रेशम की डोरी बांधने।

सावन का महीना, 
रक्षाबंधन का त्योहार।
रेशम की डोरी से,
भाई की कलाई पर सज रही प्यार की खुशियाँ।

मिले खुशियाँ अपार जीवन में, 
भाई-बहन का प्यार।
अटूट बंधन है,
रक्षाबंधन का त्योहार।

यूं ही मिलते रहे प्यार, 
प्यार और स्नेह का प्रतीक।
रक्षाबंधन का त्योहार, 
मिले खुशियाँ अपार।
    
     ✍️ रामभरोस टोण्डे ( बिलासपुर, छत्तीसगढ़ )

सोमवार, अगस्त 16, 2021

पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा आयोजित राष्ट्रीय स्तरीय ऑनलाइन स्वतंत्रता दिवस साहित्यिक महोत्सव में शानदार प्रस्तुतियां देने वाले प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।


पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह द्वारा राष्ट्रीय पर्व स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय स्तर पर ऑनलाइन "स्वतंत्रता दिवस साहित्यिक महोत्सव" का आयोजन किया गया। जिसका विषय 'स्वतंत्रता का महत्व' रखा गया। इस महोत्सव में देश के अलग-अलग राज्यों के रचनाकारों ने भाग लिया तथा स्वतंत्रता के महत्व तथा विशेषता पर आधारित अपनी रचनाओं को प्रस्तुत कर उन्होंने स्वतंत्रता के जश्न में चार चाँद लगा दिए। इस महोत्सव में संगीता सिंघल विभु (पीलीभीत, उत्तर प्रदेश) और निर्मला कर्ण (राँची, झारखण्ड) की स्वतंत्रता पर आधारित रचनाओं ने सभी का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित किया। इस महोत्सव में सम्मिलित सभी प्रतिभागी रचनाकार शख्सियतों को ऑनलाइन "पुनीत स्वतंत्र श्रेष्ठ रचनाकार" सम्मान देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर समूह के संस्थापक एवं अध्यक्ष पुनीत कुमार जी ने सभी देशवासियों एवं रचनाकारों को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं दी तथा महोत्सव में प्रस्तुत की गई रचनाओं पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देकर रचनाकारों का मार्गदर्शन तथा उत्साहवर्धन किया। उन्होंने कहा कि पुनीत अनुपम साहित्यिक समूह इसी तरह आगे भी ऑनलाइन साहित्यिक महोत्सवों के माध्यम से भारतीय सभ्यता-संस्कृति से जुड़े विभिन्न पर्वो को मनाता रहेगा तथा नए रचनाकारों को साहित्यिक मंच उपलब्ध करवा के साहित्य के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता रहेगा। उन्होंने रक्षाबंधन के उपलक्ष्य में आयोजित होने वाले ऑनलाइन 'रक्षाबंधन साहित्यिक महोत्सव' में शामिल होने के लिए हिंदी रचनाकारों को सादर आमंत्रित भी किया। इस महोत्सव में उत्कृष्ट रचना प्रस्तुत करके समूह की शोभा बढ़ाने वालों में प्रमुख नाम उर्मिला मेहता, प्रतिभा तिवारी, नीलम झा, कुसुम अशोक सुराणा, चंचल जैन, डॉ. उमा सिंह बघेल, सरिता कुमार, पदमा दीवान 'अर्चना', डाॅ. ऋतु नागर, मीता लुनिवाल, संध्या शर्मा, मुकेश बिस्सा, संगीता सिंघल विभु, ज्ञानवती सक्सैना 'ज्ञान', निर्मला कर्ण रचनाकारों के रहे।

पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा आयोजित ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।

पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा लोगों को स्नेह के महत्व और विशेषता का अहसास करवाने के उद्देश्य से ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव का आयोजन किया गया...