शनिवार, मार्च 19, 2022

💒 ये जीवन उपहार है उस खुदा का 💒








ये बहारें, ये मौसम, ये जीवन उपहार है उस खुदा का
लेकिन बन्दे, तू हो चला है उसकी कायनात से जुदा सा

उसकी रहनुमाई, शफाओ को दरकिनार कर चला है
खुद की नाफरमानियो का शिकार हो चला है

इस कायनात ने सांसो के उपहार से नवाजा तूझे
बहारों की रौशनाई से सजाया तूझे

कुदरत के इस अहसान की बन्दगी का हुनर तूझे सीखना होगा
खुदा के नायाब तोहफो को सहेजना सीखना होगा

एक मुकम्मल जहां नहीं मिलता किसी को
लेकिन उसकी मिल्कियत के खजानों मे अपना अक्स ढूंढना है तूझे

उसके उपहारो की बहारों को
खुद से ज्यादा तवज्जो देना है तूझे

कर कुछ ऐसा कि उसकी दुनिया मे तेरा नाम हो जाये
आने वाली पीढ़ी, उस खुदा से पहले तेरी गुलाम हो जाये

                   ✍️ स्मिता सिंह चौहान ( गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश )



शुक्रवार, मार्च 18, 2022

💒 प्रेम उपहार 💒






सुनो ! जानते हो
प्रेम उपहार है
प्रेम से रिक्त हृदय के लिए
प्रेम रचा है
ईश्वर ने तुम्हारे लिए
और मेरे लिए
ताकि हम समझ सकें
इस संसार को और बेहतर
हम भर सकें प्रेम से
हर रिक्त हृदय को
तुम जानते हो ? 
भरोसा उपहार है
टूटे हुए हृदय के लिए
भरोसा ईश्वर ने बनाया है
तुम्हारे और मेरे लिए
ताकि हम जोड़ सकें
संसार में टूटे हुए
स्वप्नों को फिर से संवरने के लिए
क्या तुम जानते हो
तुम उपहार हो मेरे लिए
ताकि मैं समझ सकूँ
भावों के मर्म को
और ढाल सकूँ प्रेम भाव को
कविताओं में संसार के लिए।
      
     ✍️ रश्मि पोखरियाल 'मृदुलिका' ( देहरादून, उत्तराखंड )

💒 रंग-ए-बहार 💒








जीवन के कोरे कैनवास पे,
जब रंग कोई भर जाता है।
खुशियों के उपहार से फिर,
मन पुलकित हो जाता है।

लाल रंग है प्रतीक प्रेम का,
हरा हरियाली लाता है।
सफेद रंग हमें त्याग सिखाता,
मन केसरिया हर्षाता है।

सात रंग जब बिखरे गगन में,
इन्द्रधनुष बन जाता है।
अनुपम छटा से आलम सारा,
सबके मन को लुभाता है।

मस्ती भरा हुड़दंग फागुन का,
दिल में उमंग जगाता है।
रंग-ए-बहार में रंगकर,
फिर मधुर मन मुस्काता है।

       ✍️ सुशील यादव 'सांझ' ( महेंद्रगढ़, हरियाणा )

💒 उपहार 💒







सुनो

आज तुम्हें

कुछ बोल रही हूँ

दिल के राज

खोल रही हूँ

सोने-चांदी

गहने-कपड़े

माना मुझको

प्यारे हैं

पर आज जो

तुमसे मांग रही हूँ

वो उपहार निराले है

प्यार तो तुम

करते हो मुझसे

अब थोड़ा

सम्मान भी करना

नही निपुण मैं

काम काज में

सीख रही मैं

धीरे धीरे

थोड़ा सब्र

अब तुम भी रखना

हो जाए गर

गड़बड़ थोड़ी

गलतियों को मेरी

नजरंदाज भी करना

और नही कुछ चाहूं तुमसे

ये उपहार ही काफी है

प्यार तो तुम

करते हो मुझसे 

अब थोड़ा सम्मान भी करना।

         ✍️ पल्लवी पाठक ( गांधीनगर, गुजरात )

💒 उपहार का महत्व 💒

"उपहार" शब्द सुनते ही दिल में खुशी की तरंग दौड़ उठती है। 'भेंट' मंहगी हो या सस्ती इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता है। उपहार देने का चलन बहुत ही प्राचीन है। किसी को प्रोत्साहित करना हो, धन्यवाद बोलना हो या बधाई देना हो, उपहारों से बढ़िया माध्यम कोई नहीं है। उपहार पाने वाला व्यक्ति तो खुशी से झूम उठता है। अपने प्रियजनों के दिए सौगातों को हम बहुत सहेज कर रखते है, ताकि बाद में भी उन्हें देखकर हम प्रसन्न हो सके। इसी तरह प्रकृति ने भी हमें अनेक अतुलनीय उपहार दिए हैं, जिसके बिना जीवन की कल्पना करना भी बेमानी है। वो है, हवा-पानी और सूर्य का प्रकाश। जिसका उपयोग भी हम धड़ल्ले से करते हैं, परंतु जब इसे सहेजने की बारी आती है तो हम दूसरों का मुँह ताकने लगते हैं। प्रकृति-प्रदत्त इन सौगातों का संरक्षण करना हमारा नैतिक कर्तव्य ही नहीं वरन हमारी आवश्यकता भी है। इनको सुरक्षित रखकर ही हम अपनी रक्षा कर सकते हैं।
                       ✍️ सोनी कुमारी ( पटना, बिहार )





गुरुवार, मार्च 17, 2022

🌋 अंतहीन भावो की रंगोली 🌋








जीवन एक अंतहीन भावो की रंगोली,
हर रंग की अपनी छटा, जैसे हो होली।

नित नये रंग सजते, कभी बिखर जाते,
ये अहसास ही हमें जीना सिखाते।

जीवन की यात्रा में, ना जाने हम कितने रंगो मे डूबते है,
कितने रंग ऐसे जो, जो छूड़ाने पर भी नही छूटते है।

कभी खुशी, कभी गम, कभी उदासी की छटा,
कहीं गुणा, कहीं जोड़, गणित की तरह कभी कितना कुछ घटा।

फिर भी जीवन के रंगो की अपनी उमंग है,
लाख हो कहकहे जिंदगी के, फिर भी मुस्कुराता हुआ उसका अपना ही रंग है।

आओ मिलकर जीयें जिंदगी, होली के रंगो की तरह,
बिखरना भी पड़े कभी तो, बिखरे रंगोली के रंगो की तरह।

                     ✍️ स्मिता सिंह चौहान ( गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश )

🌋 बचपन वाली होली 🌋







चलो ना इस बार

होली फिर से

बचपन वाली मनाते हैं

रंग गुलाल उड़ा-उड़ा कर

पानी के गुब्बारों से

रंगों की पिचकारी से खेल

दिल से होली मनाते हैं


बहुत हुआ अब

ना-ना करना

रंगों और गुलालो को

पानी बचाओपानी बचाओ

सबको पाठ पढ़ाने को

माना पानी व्यर्थ नही करना

सालो साल बचाना है

फिर क्यों बस होली को ही

यह आवाज उठाना है

 

जब हम छोटे थे होली पर

जाने-अनजाने घर जाते थे

सभी बड़ों के पैरों पर

अबीर लगा हम मुस्काते थे

परिचित ना होकर भी

गुजियादही बड़े और पुआ

कितने हक से खाते थे

चलो ना अब यही सब

अपने बच्चों को सिखाते हैं

 

होली सिर्फ त्योहार नही

संस्कार धरोहर है

जात-पात से ऊपर उठकर

एक रंग में रंगी

मस्तानों की टोली है

राधा के गालों पर लगा

कृष्ण का प्यार

ही तो होली है

बेरंग जीवन

और रिश्तों में

पकवानों की मिठास

ही तो होली है

अब और नही

खोए रंग होली के

सबको समझाते हैं

चलो ना होली फिर से

बचपन वाली मनाते हैं


       ✍️ पल्लवी पाठक ( गांधीनगर, गुजरात )

पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा आयोजित ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।

पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा लोगों को स्नेह के महत्व और विशेषता का अहसास करवाने के उद्देश्य से ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव का आयोजन किया गया...