रविवार, जुलाई 18, 2021

( ** जिंदगी **)


चार दिन की जिंदगी ये,

 रोते हुए आए थे, हंसते-हंसाते जाना है,

 चार चरणों में बटी ये जिंदगी,

 'बचपन' की मासूमियत में लिपटे हुए,

 न किसी बात की चिंता,

 ना किसी चीज की फ़िक्र,

 दोस्तों की अठखेलियां में बीत जाता है 'बचपन', 

'यौवन' की दहलीज पर रखते कदम, 

लाखों अरमानों को दिल में संजोए,

 बिंदास से आगे बढ़ाते हैं कदम,

'गृहस्थी' की दुनिया में रखते हैं पांव,

 जहां नई दुनिया की हसरतों में खो जाते कहीं,

 जोड़-भाग करते जरूरतों का,

 कहीं पूरा होता, छूट जाता कहीं,

 'बुढ़ापे' की ओर पांव बढ़ते धीरे-धीरे ,

जहां आज़ादी मिली, तन साथ देता कुछ कम है,

 हर चाहत के लिए दूर तलक देखतें हैं,

 है जीवन खेल भी अजब सा,

 वक्त पल भर के लिए,

कभी रुकता नहीं है,

है दुर्गम पथ और दूर तलक जाना है,

 वक्त कैसा भी हो ,सिर्फ हंसना-हंसाना है,

 ना खुद रोना ,न दूजे को रुलाना है,

 जख्मों पर हौले से मरहम लगाना है,

 चार दिन की ज़िंदगी ये.....

 जियो इस क़दर कि ज़िंदगी हमें नहीं,

 हम ज़िंदगी को मिले हो,

 जिंदगी का हंसी मकसद यही है,

 प्यार दो ,प्यार लो, प्यार बांटते चलो,

 चार दिन की ज़िंदगी ये........

                       ✍️ डॉ० ऋतु नागर ( मुंबई, महाराष्ट्र )

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा आयोजित ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव के प्रतिभागी रचनाकार सम्मानित।

पुनीत अनुपम ग्रुप द्वारा लोगों को स्नेह के महत्व और विशेषता का अहसास करवाने के उद्देश्य से ऑनलाइन स्नेह ध्येय सृजन महोत्सव का आयोजन किया गया...