मंगलवार, सितंबर 28, 2021

❇️ कहां खो गया बचपन ? ❇️

  

कहाँ खो गया ?
महामारी के भंवर में,
बच्चों का अल्हड़पन ?
कंक्रीट के जंगलों में, 
जज़्बातों के खंडहर तले,
नौनिहालों का बचपन ?

"ऑनलाइन शिक्षा" के चक्रव्यूह में,  
अभिमन्यु सा असहाय,
फंसता, धंसता बचपन।
कड़े बंधनों में जखड़ा,
सलाखों पर सिर पटकता,
चार दीवारी में कैद बालमन।

वो डरावना सा मंज़र,
मीलों नागिन सी पगडंडी पर,
होंठ शुष्क, जिस्म थका-थका, 
नंगे पैर घिसता, तड़पता बचपन।
दाने-दाने को तरसता,
पेट के गड्डे मुश्किल से छिपाता,
अभिभावकों से बिछड़ता,
फटे-पुराने आंचल से,
पैरों के छालों को ढकता,
मुरझाई कलियों सा बचपन।

कहां है वो धमाल-चौकड़ी,
दोस्तों का जमघट, 
शरारतो का पिटारा ?
"पिकाचू" का लंच बॉक्स,
"मिकी माउस" की वॉटर बॉटल,
"स्पाइडरमैन" का स्कूल बैग,
"हनी-बनी" का रेनकोट ले...
स्कूल जाने का ख़्वाब संजोता,
मुस्कुराता, चहकता बचपन ?

कहां खो गया, 
मासूमों का स्पंदन,
वो निरागस, स्फटिक सा बचपन ?
कौन निगल गया सूरसा सा,
बच्चों का मधुबन, सपनों का आंगन ?
वो शीशे सा बिखरता, दम तोड़ता,
भोला-भाला बचपन।
वो देसी दारू के गुत्ते, ईंट के भट्टे,
चाय के ठेले, जमीन के पट्टे,
पटाखों की फैक्ट्री, बीड़ी के कारखाने,
यहीं पर कहीं, स्वेद-अश्क बहाता, 
मानव-तस्करी की भेंट चढ़ता, 
निरागस, कोमल बचपन।

कहां है वो बादलों का "ब्लैकबोर्ड"?
'सौदामिनी' की रुपहली लकीरें,
मोतियों सी बारिश की बूंदे,
पंख झटकते भीगे परिंदे ?
वो बादलों की गड़गड़ाहट,
वो पत्तों की थरथराहट,
वो नौनिहालों की चहचहाहट,
वो पेड-पौधों की सुगबुगाहट,
वो शिक्षकों की चहलपहल,
वो स्कूल की दनदनाती बेल,
वो मास्टरजी का डस्टर, चॉक,
वो फटी-पुरानी किताब, 
टूटी-फूटी ऐनक ?
कहां खो गया वो, 
विराट फलक पर उभरता,
देश का स्वर्णिम भविष्य ?

 ✍️ कुसुम अशोक सुराणा ( मुंबई, महाराष्ट्र )

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