ऋतुएं हैं कई आती-जाती,
आते हैं जब आषाढ़ के बादल,
साथ वह सर्वत्र उल्लास लाते।
उमड़ते-घुमड़ते सबके मन को यह भरमाते,
कभी दूर तो कभी पास नजर वो आते।
बिजली भी अपनी गड़- गड़ से,
मानो देती आने का वर्षा का संदेश।
सूखी धरती पर पड़ती जब बारिश की बूंद,
तब चहूं ओर महकती माटी की सोंधी सुगंध।
तपते मौसम से मिलता हमें छुटकारा,
और लहराने लगते हमारे खेत-खलिहान।
रिमझिम बारिश की फुहारें देखकर,
झूम झूम गाये जाने लगते सावन के गीत।
मन मौजों की टोली निकल पड़ती,
पहली बारिश में भीगने को जैसे होड़ मची।
✍️ संजय कुमार गुप्ता ( वाराणसी, उत्तर प्रदेश )
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें