तरसती धरती की आँखों में
रक्त-कण तैरने लगे
आसमान ने
इस व्याकुलता को भाँप
बादलों की चिट्ठी तैयार की
समूची धरती पर छाया फैलाकर
बादल ने चिट्ठी पढ़ सुनाई
आसमान का विरह पढ़ते-पढ़ते
श्रद्धानवत आँसुओं की भेंट दी
बादलों के समर्पित नेह को
धरती ने अपने भीतर समेट लिया
और आसमान के प्रेम को
अपनी कोख में भर लिया
तृप्त धरा अपने अक्ष पर
रक़्स करने लगी
आसमान ने बादलों को
प्रेम का संदेशवाहक नियुक्त कर दिया है
इस डाकिए को देखते ही
समूचा जीव-अजीव जगत
संताप भूल मुस्कुराने लगता है
✍️ सरला सोनी "मीरा कृष्णा" ( जोधपुर, राजस्थान )
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