बुधवार, जुलाई 14, 2021

( ** बरसात ** )

सावन के झूले बंधे हैं, 

आम्र वृक्ष की डाली पर।

वीरा बहना को ले आए, 

तीज-त्योहार राखी पर।

खुशियों की बरसात में भीगा, 

बाबुल का सूखा अंगना।

महकी आंगन की कलियां, 

खनके मोतियन के कंगना।

बुंद बुंद बारिश की बरसी, 

बन के बावरी, बरखा,  

सखी-सहेलियां देख हरखी, 

छम-छम सावन, बरसा।

कमलदलों पर सजी-धजी, 

चम-चम बारिश की बूंदें,

भाई की कलाई पर चमके, 

मृदु रेशम के फुंदे।

थरथरा पंख नाचे मयूर, 

बरसे है बदरी कारी।

भाभी की कलाई पे बंधी, 

लूंबों की लंबी डोरी।

कुंकुम तिलक शोभे माथे पर, 

जतन से बांधी हैं राखी।

रक्षासूत्र बांध कलाई पर, 

जतन करू रिश्तों की पांखी।

          ✍️ कुसुम अशोक सुराणा ( मुंबई, महाराष्ट्र ) 






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