शुक्रवार, दिसंबर 17, 2021

🍁मैं और मेरी दादी माँ 🍁


एक दादी और दूसरी मैं
हम दोनो रिश्ते में दादी-पोती थी 
कहने दिखने को ही
वैैसे हम थे आपस में सहेली..
जब जब मैं पूछती कोई पहेली
दादी पकड़ बिठाती देहली
आ सुनाऊं आ बताऊं 
आ मुन्नी तूझे लाड लडाऊं
एक था राजा एक थी रानी 
उनकी थी इक बिटिया रानी 
बिटिया थी बेहद ही स्यानी 
जाती रहती थी घर अपनी नानी।

दादी को जब याद मेरी सताती 
दादी जल्द वापिस घर आने की 
तरकीब बताती ...
मां के संग न हम रहते न सोए
सदा दादी-नानी की बांह पकड़ रोए
साथ घुमाने ले जाती थी 
संग सहेलियों से बतलाती थी 
खड़े-खड़े जब मैं थक जाती
दादी को बांह पकड़ मै घर लाती।

चलते-चलते उबड़-खाबड़ राह
दादी अब थक चुकी थी 
बाहर थड़ी पर पसर पड़ी है 
मै सामने बैठ सपील पे 
दादी पे हंसने लगी थी 
बोली दादी दे आवाज जरा 
अपनी मां को 
आकर दरवाजा खोले 
मुझे सूझी थी शैतानी 
बैठ बाहर ही मन लगता था 
मैने कुछ देर लगाई
दादी ने चिढ़कर कुंडी खटकाई
भीतर घुसते ही लेटी चारपाई 
कहने लगी ला दे इक गिलास पानी 
मै झटपट पानी ले आई 
पीकर दादी की जान मे जान आई
हम दोनो न करते थे लड़ाई 
संग-संग कल फिर जो जाना भाई ।।

    ✍️ सुनीता सोलंकी 'मीना' ( मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश )



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