बरसात में आखेट करते, चंचल नयन प्रियतमा के,
उन्माद भर दे हिय मे भी, नयन जो मद से भरे।
केश जो बिखरे घटा से, बादलों को अनुताप दे,
धडकनो के स्वर भी अब, कर्ण तक डग से भरे।
मन मयूरा थिरक रहा, प्रेम पुष्प खिल गया,
कपोल चूमने भ्रमर भी, गीत गुंजन कर रहा।
कुश की मृदुल आसनी पर बैठ,
अपलक निहारे चंद्रमा,
अतृप्त मन की आस अब, दूर हुई हिय तृष्णा।
प्रेम मेघ बरस रहा, तृप्त हुई हिय संग धरा,
बादलों को चीर फिर, बूंदे जो छम बरस रहा।
✍️ पदमा दीवान "अर्चना" ( रायपुर, छत्तीसगढ़ )
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