बारिश का मौसम ये,
सुहाना सुहाना सा लगे।
धरा की धानी साड़ी,
सभी के जिया को हरे।
बगीचों की शोभा ये,
सभी से अलग है लगे।
नदियों का कलरव ये,
नवगीत गाता सा लगे।
आकाश की चाँदनी ये,
चम्पा के फूलों-सी लगे।
तालाबों की शोभा कैसी
थाल के पानी -सी सजे।
बगियों के आम जामुन,
ललचाते सब को-ही दिखें।
धान की फसल सजी हुई,
धानी साड़ी धरा की है लगे।
बारिश की बूँदें अमृतमयी,
बरसाती नवजीवन सी दिखें।
✍️ डॉ. सरला सिंह "स्निग्धा" ( मयूर विहार, दिल्ली )
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