इंसान कैसे करूँ तेरी तारीफ़
तुम अपना वजूद छोड़ भटकते हो
जीवन में चारों दिशाओं
इंसान जग में तेरी बुद्धिमत्ता
मानवता के है परिचय
इंसान की इंसानियत ही
उसकी पहचान होती है
कुछ समय पहले जब
इंसान प्रेम-स्नेह की डोर थामें
सभी से मिलजुल कर रहते थे
लेकिन समय के साथ-साथ
इंसानियत में लोभ-लालच
चलने लगा इंसान अपनी
इंसानियत को छोड़ने लगा है।
इंसान जीवन में कभी-कभी
बेबस और लाचार हो जाते है
उसमें इंसान ख़ुद को पहचान नही
अच्छे-बुरे की अभिव्यक्ति भूल
सब से बड़ी बात है इंसान में
इंसानियत होना
इंसान ऊपर भी उठता है
और नीचे भी गिरता है।
इंसान पर से भरोसा उठा इंसानियत
बदला-बदला सा है जग सारा
प्रेम-स्नेह की क़िस्से केवल हों
मन में है नफ़रत का मेला
रिश्तों में अब स्वार्थ ही नज़र आता है
अपनेपन का मुखौटा पहनकर
अब कोई भी सम्बन्ध में ना रहा विश्वास
पसरा हृदय में सन्ना
पहले इंसान पेड़ों के नीचे बैठकर
एक दूसरे का सुख-दुःख बांटते नज़र आते थे
भले घर ईंट का ना हो मिट्टी के कच्चे घर थे
पर
जो अभी भी इंसान बने है
वो प्रेम और सम्मान जीवन में पा
✍️ अर्चना वर्मा ( क्यूबेक, कनाडा )
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