शनिवार, दिसंबर 11, 2021

💢 जीने का है सब का अधिकार 💢

सूरज की गुनगुनी धूप,
सुनहरी रवि किरणों संग,
मिट्टी की नमी ले बीज से,
अपनी ही धुन में मस्त मगन,
हौले से घूंघट पट उठा,
झांकने लगा किसलय,
खिलने लगा नवांकुर,
पाकर नेह, प्यार, दुलार। 

जीने का है सब का अधिकार।
जीवन बाग़ रहें गुलजार। 

झुग्गी झोपड़ी हो छोटा-सा घर,
या हो भव्य सुंदर शीशमहल, 
प्रेम हर्ष भरा हो स्वागत,
नवजात मासूम जीव का
प्रेम पुलकित हो स्वागत,
आदर सम्मान तहे दिल से,
न हो कोई लिंगभेद, 
न आलोचना, न निर्बंध,

जीने का है सब का अधिकार,
प्रेमपूर्वक हो स्वीकार। 

मानव जन्म मिला न सहज ही,
कद्र हो अपने मानव धर्म की,
खुश रहो, खुश रहने दो,
जियो और सहर्ष जीने दो,
अनाथ का संबल बनो,
ज्योत से ज्योत जलाते चलो,
प्रभु कृपादृष्टि के हकदार,
दीन-दुःखी हो या लाचार। 

जीने का है सब का अधिकार,
जीवन हो सदाबहार। 

कलियाँ न यूं मुरझाने दो,
फूल बन महकने दो,
बेटियां घर की खुशियां,
घर आंगन की सोन चिरैया, 
जीवन का सुंदर श्रृंगार,
पायल की मधुर झंकार,
चहके, महके सारा संसार,
मानवता की सुनो पुकार। 

जीने का है सब का अधिकार,
फले-फूले घर संसार। 

             ✍️ चंचल जैन ( मुंबई, महाराष्ट्र )

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